Friday, August 26, 2011

अन्ना मुहिम और मुस्लिम दृष्टिकोण

बीते सप्ताह जहां राजनैतिक परिदृश्य पर अन्ना हजारे और उनकी टीम द्वारा जन लोकपाल का मुद्दा छाया रहा, वहां उर्दू के कई समाचार पत्रों ने इस आंदोलन को सांप्रदायिक ताकतों से जोड़ते हुए इसे देश के लिए खतरनाक बताया। इतना ही नहीं, रामलीला मैदान में अन्ना समर्थन में उमड़ी भीड़ के इलैक्ट्रॉनिक मीडिया का कमाल बताते हुए अन्ना को जनता से मायूसी हुई और उनके समर्थकों को अन्ना की जिद झेलनी पड़ रही है, जैसी खबरें भी उनके संवाददाताओं के नाम से प्रकाशित की गईं। `अन्ना आंदोलन पर मुसलमानों को संदेह' के शीर्षक से लगभग सभी उर्दू अखबारों ने सैयद अहमद बुखारी, पर्सनल लॉ बोर्ड सदस्य जफरयाब जीलानी, वैलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के महासचिव कासिम रसूल इलियास, दारुल उलूम देवबंद के मोहतामिम अबुल कासिम नोमानी, फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मुफ्ती मुकरम अहमद, इमाम आर्गेनाइजेशन अध्यक्ष उमैर इलियासी के बयान को प्रमुखता से प्रकाशित किया। पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह कहकर इस मुहिम से पीछा छुड़ाया है कि भ्रष्टाचार बोर्ड के कार्य क्षेत्र में नहीं है। कासिम रसूल इलियास ने कहा कि संसद के अधिकारों को कमजोर करने की कोशिश न तो लोकतंत्र के लिए अच्छी है और न ही देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के लिए। अन्ना जिस चीज के लिए मुहिम चला रहे हैं, हम इससे सहमत हैं लेकिन संसद को अपनी शर्तें मनवाने पर मजबूर करने के हक में नहीं हैं। लोकपाल बिल और जन लोकपाल बिल पर संसद जल्द फैसला कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचे।
`मुस्लिम नेताओं ने सदैव कांग्रेस की डूबती किश्ती बचाई है' के शीर्षक से दैनिक `अखबारे मशरिक' ने ऑल इंडिया उलेमा काउंसिल और तनजीम अबनाए कदीम देवबंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष एजाज अहमद रज्जाकी के हवाले से लिखा है कि कांग्रेस अपने हमाम में नंगी है। `अन्ना की ललकार, बिल लाना पड़ेगा... या जाना पड़ेगा' के शीर्षक से दैनिक `हिन्द समाचार' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है। 28 जुलाई को केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से टीम अन्ना के प्रस्तावित सख्त `जन लोकपाल बिल' को निरस्त कर सरकारी लोकपाल बिल के नरम विधेयक को मंजूरी देने के बाद बुजुर्ग समाजसेवी अन्ना हजारे पहले से घोषणा अनुसार 16 अगस्त से भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। इसी दौरान अन्ना ने लोकपाल के अपने एजेंडे को पालिका को एक ताकतवर लोकपाल के अधीन लाने की बात कही गई लेकिन अन्ना के वर्तमान अनशन को गलत बताया गया। मुस्लिम नेताओं ने मैदान में निकलना शुरू कर दिया है। मौलाना रज्जाकी ने कहा कि दारुल उलूम देवबंद को जमीयत उलेमा हिन्द से अलग कर दें। दोनों संगठनों का सुर में सुर मिल रहा है जो सदस्य दारुल उलूम की कार्यकारिणी में शामिल हैं लगभग वही लोग जमीयत उलेमा के सदस्य भी हैं। इसी के साथ मौलाना रज्जाकी ने उलेमा काउंसिल और तनजीम अबनाए कदीम की ओर से अन्ना के समर्थन की घोषणा की।
दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने `अन्ना के जन लोकपाल बिल पर भाजपा का दृष्टिकोण क्या है?' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अन्ना के अनशन को लगभग नौ दिन गुजर चुके हैं और भाजपा ने अभी तक जन लोकपाल पर अपने पत्ते नहीं खोले? भाजपा के दो सांसदों ने खुलकर जन लोकपाल बिल का समर्थन किया है। इनमें एक वरुण गांधी दूसरे राम जेठमलानी। वरुण का कहना है कि अन्ना का बिल प्राइवेट बिल के तौर पर संसद में पेश करेंगे। राज्यसभा में भाजपा सांसद राम जेठमलानी ने भी अन्ना टीम के बिल का समर्थन किया है। उनका कहना था कि अन्ना के बिल को पूरी तरह नजरंदाज करना अब राजनेताओं के लिए सम्भव नहीं है। जेठमलानी जन लोकपाल बिल के दो अहम बिन्दुओं से पूरी तरह सहमत हैं। इनमें प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना और न्यायिक व्यवस्था को शामिल करना है। काबिले गौर है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल में लाने की मांग तो भाजपा कर रही है लेकिन न्यायाधीशों के लिए वह अलग से संस्था बनाए जाने के पक्ष में है। समय आ गया है कि टीम अन्ना और जनता चाहती है कि भाजपा हर बिन्दु पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करे। चाहे संसद के बाहर अथवा संसद के अन्दर।
`अन्ना की ललकार' बिल लाना पड़ेगा... या जाना पड़ेगा' के शीर्षक से दैनिक `हिन्द समाचार' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है। 28 जुलाई को केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से टीम अन्ना के प्रस्तावित सख्त `जन लोकपाल बिल' को निरस्त कर सरकारी लोकपाल बिल के नरम विधायक को मंजूरी देने के बाद बुजुर्ग समाजसेवी अन्ना हजारे पहले से घोषणा अनुसार 16 अगस्त से भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। इसी दौरान अन्ना ने लोकपाल के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए जमीन अधिग्रहण और चुनाव सुधार की बात कर सरकार पर चारों तरफ से दबाव बना दिया है। उन्होंने चुनाव व्यवस्था की खामियों को दूर करने का भी आह्वान किया, क्योंकि इसी के कारण 150 अपराधी संसद में पहुंचे। एक ओर जहां जन लोकपाल सरकार के गले की फांस बना हुआ है वहीं कैग ने 40 हजार करोड़ रुपये के घोटाले की दो और रिपोर्ट तैयार कर ली है जिससे आने वाले दिनों में सरकार की परेशानी बढ़ जाएगी।
दैनिक `इंक्लाब' द्वारा सरकारी बिल में मदरसे और गैर सरकारी संगठन भी आते हैं, का समाचार प्रकाशित किए जाने के बाद पहली बार मुस्लिम संगठनों ने दबी जुबान से सरकारी बिल को खतरा बताया लेकिन इसी स्वर में उन्होंने अन्ना पर भी कटाक्ष कर उन्हें गलत बताया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (मौलाना सालिम ग्रुप) के महासचिव इलियास मलिक ने सरकारी लोकपाल बिल को अस्वीकार करार देते हुए कहा कि सरकारी बिल के अध्याय छह की धारा `ई' में जो कुछ कहा गया है उसके तहत सभी सरकारी व गैर सरकारी संगठन विशेषकर हमारे मदरसे भी आ जाएंगे। जब हम अपने मदरसों के लिए कल नहीं तैयार हुए तो आज किस तरह तैयार हो जाएंगे कि इनमें हस्तक्षेप का दरवाजा खुले। जहां तक मदरसों में भ्रष्टचार का मामला है तो इसके लिए प्रबंधक कमेटियां होती हैं जो ट्रांसपैरेंसी के लिए प्रयासरत रहती हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना सैयद निजामुद्दीन ने सरकारी लोकपाल बिल में गैर सरकारी संगठनों और संस्थानों को इसके तहत लाने की बात पर कहा कि सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। ऐसा कानून नहीं बनना चाहिए जिससे समाज में बेचैनी पैदा हो।
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत (सैयद शहाबुद्दीन ग्रुप) ने अपनी बैठक में निर्णय लिया कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए किसी बड़ी संस्था के गठन की जरूरत नहीं है, क्योंकि इतनी बड़ी संख्या खुद अपने बोझ तले दब जाएगा और भ्रष्टाचर दूर करने के बजाय भ्रष्टाचार फैलाने का कारण बनेगा। बैठक में मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त सीजीआई(एम) के प्रतिनिधि को विशेष रूप से बुलाया गया था। बैठक में राजनेताओं सहित प्रधानमंत्री, ब्यूरोकेसी और न्यायपालिका को एक ताकतवर लोकपाल के अधीन लाने की बात कही गई लेकिन अन्ना के वर्तमान अनशन को गलत बताया गया।

Friday, August 19, 2011

रमजान में भिखारियों का जमावड़ा

बीते सप्ताह जहां राजनैतिक मुद्दों पर उर्दू अखबारों ने अपना पक्ष रखा वहां पवित्र रमजान महीने के लिहाज से कुछ ऐसे मुद्दों को भी छेड़ा है जो दिलचस्प होने के साथ-साथ विचारणीय भी हैं। `रमजान में भीख मांगने के लिए महत्वपूर्ण सड़कों की नीलामी होती है' के विषय पर हैदराबाद से प्रकाशित उर्दू दैनिक `मुनसिफ' ने विशेष रिपोर्ट प्रकाशित कर बताया है कि किस तरह देश के विभिन्न शहरों से पेशावर भिखारियों की एक बड़ी संख्या हैदराबाद पहुंच चुकी है।
भिखारियों की इस टोली में ईसाई और हिन्दू भिखारी भी मुसलमानों के रूप में भीख मांगते हैं। रमजान के शुरू होते ही हिन्दुस्तानभर के पेशावर भिखारियों ने हैदराबाद का रुख कर लिया है। इनमें वह सफेदपोश भी शामिल हैं जो हाथों में रसीद लिए दीनी मदरसों और मस्जिद निर्माण के लिए चन्दे की अपीलें करते हैं। एक भिखारी ने बताया कि आम दिनों में वह अपने गांव में एक दुकान पर काम करता है लेकिन रमजान के सीजन में भीख मांगने के लिए हैदराबाद आ जाता है, जहां आम दिनों में उसे 800 रुपये से 1100 रुपये रोज मिल जाते हैं। भीख मांगने की जगह उसे ठेके पर मिलती है। ठेकेदार को रकम देकर और खाने-पीने का खर्च निकालकर वह ईद पर 15 से 20 हजार रुपये लेकर वापस जाता है। इसी तरह नाम पल्ली चौराहे के बाहर फुटपाथ पर एक टांग से विक्लांग भिखारी ने बताया कि वह गत सात साल से रमजान में भीख इकट्ठा करने आता है। अंधा भिखारी अकेला नहीं है उसके साथ इस काम में परिवार के 9 सदस्य रमजान में भीख मांग रहे हैं।
`जकात व्यवस्था के बावजूद मुसलमान सबसे ज्यादा गरीब हैं' के शीर्षक से दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' में नूर उल्लाह जावेद अपने लेख में लिखते हैं। निसंदेह भारत जैसे देश में जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हों वहां सामूहिक जकात व्यवस्था मुश्किल है लेकिन यह देश और राज्य स्तर पर नहीं हो सकता तो मोहल्ला की स्तर पर हम यह कोशिश कर ही सकते हैं। हमारे सामने मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका की मिसाल है। मलेशिया में सरकार की निगरानी में जकात की रकम ली जाती है और इसको खर्च किया जाता है लेकिन दक्षिण अफ्रीका में यह व्यवस्था स्वयं मुसलमानों ने कायम कर रखी है। वास्तव में भारत में आज जकात की रकम पहले से कहीं ज्यादा निकलती है। सच्चर कमेटी रिपोर्ट के अनुसार भारतीय बैंकों में मुसलमानों की जो रकम जमा है उसका अनुमान 23657 करोड़ रुपये है। यदि इस रकम की जकात निकाली जाए तो कुल 5914 करोड़ रुपये जकात निकलेगी। यह केवल अनुमान है जबकि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग ब्याज रहित लेन-देन के चलते अपनी रकम बैंकों में जमा नहीं करता है। यदि इस वर्ग की जकात को भी इसमें मिला लिया जाए तो हिन्दुस्तान में हर वर्ष 10829 करोड़ रुपये की जकात निकलेगी। यदि हम इसकी व्यवस्था करने में सफल हो जाते हैं तो निश्चय ही कुछ सालों में भारतीय मुसलमानों की बहुसंख्यक जकात देने वाली हो जाएगी।
ग्रीनलैंड जहां गर्मी के दिनों में दिन 16 घंटों का होता है वहां अगस्त के महीने में सूर्य अस्त रात 11 बजे होता है। दैनिक `अखबारे मशरिक' ने अरब टीवी `अल-अरबिया' के हवाले से लिखा है कि वसाम आजीकार नामी व्यक्ति गत कई वर्षों से यहां अपना होटल चलाते हैं और अकेले रोजेदार हैं, उनके आसपास कोई दूसरा मुस्लिम रोजेदार नहीं है। 21 घंटे के रोजे में उसके लिए सबसे मुश्किल समय अफतार का होता है यदि अफतार में जल्दी न की जाए तो मगरिब की नमाज कजा हो जाती है और एक रोजेदार के लिए रोजा रखकर मगरिब की नमाज कजा कर देना किसी सूरत स्वीकार्य नहीं है। लगभग 12 बजे रात ईशा की नमाज के समय शुरू होता है और फिर एक घंटे और कुछ मिनट के बाद ही सेहरी का समय शुरू हो जाता है। ग्रीनलैंड के इस इकलौते रोजेदार को लगभग तीन घंटे के अन्दर-अन्दर रोजा खोलने के बाद मगरिब और ईशा की नमाज अदा करना होता है।
ग्रीनलैंड में जिन्दगी सूरज के साथ नहीं चलती बल्कि घड़ी के साथ चलती है। इसलिए खाने-पीने का समय भी रात या दिन के हिसाब से नहीं होते बल्कि आमतौर पर लोग घड़ी देखकर जागने की हालत में हर छह घंटे बाद कुछ न कुछ खाते हैं। सर्दियों के मौसम में सूरज ज्यादा से ज्यादा केवल चार घंटे तक दिखाई देता है।
`अन्ना की आंधी है, यह दूसरे गांधी हैं' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' ने अपने सम्पादकीय में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने लिखा है कि मंगलवार 16 अगस्त का दिन हमेशा याद रहेगा। यह कोई फिल्म से कम नहीं था। पूरे दिन सस्पेंस, ड्रामा, एमोशन सभी देखने को मिले। सारे देश की नजरें अन्ना पर लगी हुई थीöदेखें आज अन्ना क्या करते हैं। अन्ना अपने कहे पर खरे उतरे। मंगल की सुबह दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी लगभग ढाई सौ जवानों को लेकर मूयर विहार फेज-1 में स्थित सुप्रीम एन्क्लेव में प्रशांत भूषण के फ्लैट पहुंचे, लगभग आधा घंटा बातचीत में कोई नतीजा नहीं निकला तो अन्ना को उसी फ्लैट में जहां वह रुके थे, हिरासत में ले लिया।
अन्ना की गिरफ्तारी की खबर पूरे देश में फैल गई। कुछ माहौल वैसा ही था जो एक जमाने में जेपी आंदोलन के समय बना था। अन्ना आंदोलन अब पूरा रंग दिखा चुकी है। अन्ना मुद्दा, बाबा रामदेव जैसा मुद्दा नहीं बल्कि असल मुद्दा भ्रष्टाचार और महंगाई है। गिरफ्तारी के बाद अन्ना ने कहा कि यह परिवर्तन की लड़ाई है जब तक परिवर्तन नहीं आएगा तब तक जन समर्थन हासिल नहीं होगा।
`अन्ना हजारे का आंदोलन और सोनिया की अनुपस्थिति' के शीर्षक से पहले पेज पर प्रकाशित विशेष सम्पादकीय में दिल्ली संस्करण के सम्पादक हसन शुजा दैनिक `सहाफत' में लिखा है कि अन्ना हजारे के आंदोलन को एक तरफ आरएसएस परिवार, देसी और विदेशी ताकतें हवा दे रही हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी और सरकार इससे निपटने में नाकाम रही है। इस समय सोनिया गांधी की अनुपस्थिति बुरी तरह महसूस हो रही है जो अपने ईलाज के लिए अमेरिका के एक अस्पताल में दाखिल हैं। अन्ना आंदोलन को जिस तरह आरएसएस और भाजपा का समर्थन हासिल है उससे स्पष्ट है कि इस आंदोलन को पूरी तरह सांप्रदायिक ताकतों ने हाइजैक कर लिया है। भाजपा का खेल यह है कि वह इसका रुख मोड़कर सत्ता पर काबिज होना चाहती है। यदि भाजपा इसमें कामयाब हो जाती है तो यह सेकुलरिज्म के लिए बड़ा नुकसान होगा।

Friday, August 12, 2011

मुस्लिम सांसद अपने समुदाय के लिए आवाज नहीं उठाते

बीते सप्ताह उर्दू अखबारों ने विभिन्न मुद्दों को चर्चा का विषय बनाया है। उर्दू दैनिक `सहाफत' ने मुस्लिम संगठनों को आड़े हाथ लेते हुए उन पर आरोप लगाया है कि यह संगठन मासूम युवाओं के संरक्षण में नाकाम है। मोहम्मद आतिफ ने अपनी रिपोर्ट में मुंबई से समाजवादी विधायक अबु आसिम आजमी द्वारा रमजान के अवसर पर भेजे गए एसएमएस, जिसमें उन्होंने लिखा है कि इस महीने में उन लोगों की भी खबरगीरी कीजिए जिनके बच्चे जेलों में बंद हैं और इंसाफ से वंचित हैं। अपने देश और पूरी दुनिया में शांति व्यवस्था बनी रहे, इसकी भी दुआ कीजिए। इस पर मुस्लिम पॉलिटिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष तसलीम अहमद रहमानी ने कहा कि मुझे यह स्वीकार करने में शर्मिंदगी जरूर है लेकिन संकोच नहीं है कि आतंकवाद के मामले पर मुस्लिम संगठन अपने मासूम बच्चों को संरक्षण देने में पूरी तरह नाकाम हैं। उन्होंने कहा कि हम इन बच्चों को कोई कानूनी सहायता भी नहीं दे पा रहे हैं जिससे उनकी रिहाई का रास्ता आसान हो सके। इसके अलावा बेरोजगार मां-बाप जिनके बच्चे जेलों में कैद हैं उन्हें भुखमरी से निजात दिलाने के लिए भी हमने कोई रणनीति नहीं अपनाई है जबकि उन्हीं के नाम पर हम अपनी सियासत चमका रहे हैं।
संसद के मानसून सत्र में मुसलमानों की बहुत-सी समस्याओं पर आवाज नहीं उठेगी जैसे मुद्दे पर चर्चा करते हुए दैनिक `इंकलाब' ने लिखा है कि राइट टू एजुकेशन, जामिया अल्पसंख्यक चरित्र का मामला, मुसलमानों को आरक्षण और वक्फ जैसे मुद्दों पर मुस्लिम सांसदों को सूचना उपलब्ध कराने के बावजूद हर तरफ खामोशी पर चिंन्ता प्रकट की है। संसद का मानसून सत्र में महंगाई और सीएजी रिपोर्ट के खुलासे के बाद भाजपा ने कांग्रेस के खिलाफ अपना मोर्चा खोल दिया है। इन हालात में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के मामले को संसद में उठाना काफी मुश्किल लग रहा है। विशेषकर मुस्लिम सांसदों की जो भूमिका रहती है उससे तो यही संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि इस बार भी उपरोक्त मुद्दों पर मुस्लिम सांसद कोई चर्चा नहीं करेंगे। सूत्रों के अनुसार मुसलमानों के एक बड़े संगठन की ओर से यह कोशिश की जा रही है कि इन मुद्दों पर लिखित नोट तैयार किया जाए जो उर्दू, हिन्दी और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में हो ताकि मुस्लिम सांसदों को इन मुद्दों को समझने और सवालों का जवाब देने में किसी तरह की परेशानी न हो। जकति फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. जफर महमूद मानते हैं कि मुस्लिम सांसद अपने समुदाय के लिए आवाज नहीं उठाते हैं।
आदर्श सोसाइटी मामले में कैग रिपोर्ट पर अपने सम्पादकीय में दैनिक `हिन्द समाचार' ने लिखा है कि कारगिल जंग के शहीदों की विधवाओं और अन्य फौजियों के रहने के लिए मुंबई के कोलाबा में बनी आदर्श हाउसिंग सोसाइटी का महाघोटाला संसद में `कैग' की रिपोर्ट के बाद फिर से चर्चा में है। पहले यहां 8 मंजिल बनाने की इजाजत दी गई लेकिन बाद में पर्यावरण एवं अन्य मापदंडों की अनदेखी करते हुए इसे 31 मंजिल और 200 से ज्यादा फ्लैट वाली बिल्डिंग बना दी गई। 9 अगस्त को संसद में पेश अपनी 51 पेज की रिपोर्ट में कैग ने आदर्श सोसाइटी का कच्चा चिट्ठा खोलते हुए कहा कि इसमें दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा फौज के दो पूर्व जनरल एनसी विज और जनरल दीपक कपूर को नियम तोड़कर फ्लैट हासिल करने का कसूरवार ठहराया है। `कैग' ने कहा है कि शायद देश में ऐसा दूसरा कोई भी मामला देखने में नहीं आया है जिसमें सभी संबंधित विभाग एक राष्ट्रीय हित के लिए नहीं बल्कि व्यक्तिगत हितों के लिए एकजुट हुए। सभी ने मिलकर आम जनता का भरोसा तोड़ा और कारगिल शहीदों का अपमान किया। कैग की रिपोर्ट ने केंद्र सरकार की परेशानी बन रहे भ्रष्टाचार मुद्दों की सूची में और वृद्धि कर दी है। इसी कारण सरकार और उसके उच्चाधिकारी कैग के खुलासे से काफी परेशानी महसूस कर रहे हैं, क्योंकि इस रिपोर्ट ने साबित कर दिया है कि नेताओं, बाबुओं और फौज के सदस्यों अर्थात् सबने मिलकर नियमों को तोड़ा और साबित कर दिया कि `सब चोर' हैं।
दैनिक `राष्ट्रीय सहारा' ने अपने सम्पादकीय में आदर्श सोसाइटी पर कैग की रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार पर कैग की रिपोर्ट पर संसद और इसके बाहर हंगामा जारी है। यूपीए सरकार के लिए चैलेंज है कि वह इन सबका मुकाबला कैसे करें और संसद की कार्यवाही कैसे चले। सरकार की इन परेशानियों में आदर्श सोसाइटी में घपले पर कैग रिपोर्ट ने और भी वृद्धि कर दी है। कैग की रिपोर्ट न केवल केंद्र की यूपीए सरकार बल्कि महाराष्ट्र सरकार के लिए भी समस्या बनी हुई है क्योंकि इसके बाद दोनों सरकारों पर कसूरवार ठहराए गए नेताओं, मंत्रियों और नौकरशाहों पर कार्यवाही के लिए दबाव बढ़ जाएगा। सरकार के रुख से ऐसा लगता है कि वह कैग की रिपोर्ट को ज्यादा महत्व देने के मूड में नहीं है और अपने मंत्रियों के बचाव में उतर सकती है। शीला दीक्षित के मामले में अपनाया गया रवैया इसका सबूत है लेकिन जहां तक नौकरशाहों अथवा उच्च फौजी अधिकारियों का मामला है तो इनमें से कुछ को बलि का बकरा बनाकर इस मामले को ठंडा करने की कोशिश की जा सकती है। `सोनिया की अनुपस्थिति में पार्टी को ठीकठाक चलाना चुनौती है' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि आमतौर पर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी प्रधान तिरंगा लहराती हैं लेकिन इस वर्ष पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी देश में नहीं हैं इसलिए किसी और को उनकी अनुपस्थिति में झंडा लहराना पड़ेगा। सोनिया गांधी के बाद आशा तो यह है कि राहुल गांधी इस बार राष्ट्रीय झंडा लहराएंगे। लेकिन राहुल गांधी फिलहाल अमेरिका में अपनी मां के साथ हैं। शायद वह आज-कल में आ जाएंगे। कांग्रेस पार्टी को फिलहाल दैनिक कार्यों को ठीक-ठीक चलाने के अलावा एक अहम फैसला यूपी में टिकट बंटवारे और यूपी लीडरशिप को लेकर करना होगा। इसके लिए क्रीनिंग कमेटी की बैठक होनी है। मोहन प्रकाश की अगुवाई में होने वाली बैठक तभी होगी जब राहुल गांधी वापस आ जाएंगे। राहुल का यूपी मिशन 2012 उनकी अनुपस्थिति में अधूरा है और इनके लौटने पर ही इसमें रंग भरा जाएगा।

Friday, August 5, 2011

महंगाई और भ्रष्टाचार में फंसी सरकार

`मुस्लिम कैसे पाएं अपना वाजिब स्थान' के शीर्षक से उर्दू दैनिक `हिन्द समाचार' ने लिखा है। दूसरी पिछड़ी जातियों से जुड़े मुस्लिमों के लिए यूपीए सरकार कुछ आरक्षण कर रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव समीप है और कांग्रेस का मकसद यह है कि वह दोबारा इस राज्य में पदासीन हो जाए। भारतीय मुसलमानों के सामने आरक्षण ही अहम मुद्दा नहीं है अन्य कई समस्याएं भी हैं। उनकी स्थिति तो प्रचलित फारसी कहावत `तन हम दाग, दाग सूद, पम्बा कुजा नेहाम' (पूरे बदन पर दाग ही दाग हैं) में कितनी जगह फाया रखूं। अन्य समस्याओं को छोड़कर केवल एक समस्या से ही निपटना असंतुष्टि है, इससे भले ही बुरा मकसद जाहिर न होता हो, अज्ञात कारणों से नाइंसाफी को जारी रखने की बू आती है। ऐसा लगता है कि आरक्षण की यह पेशकश बड़ी होशियारी से तैयारी की गई है। इसके बाद कांग्रेस के कुछ चहेते इसे अदालत में चैलेंज करेंगे और अदालतें इसे एक अथवा दूसरा कारण बताकर निरस्त कर देंगी। आखिर हिन्दू वोट मुस्लिम वोट के मुकाबले अहम है क्योंकि हिन्दू वोट मुस्लिम वोट के मुकाबले कहीं ज्यादा है। इसी बीच आरक्षण की इस घोषणा से कांग्रेस की चुनावी मुहिम चलाने वाले पूरा फायदा उठा लेंगे। इस प्रक्रिया में मुस्लिमों की नई राजनैतिक पार्टियों को चुनाव में नुकसान पहुंचेगा जैसा कि एआईयूडीएफ, पीस पार्टी और वैलफेयर पार्टी से जाहिर है। इसलिए मुस्लिमों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें वहीं कांग्रेस के बारे में वोट देने के लिए सोचना चाहिए जहां इन पार्टियों में किसी एक अथवा अन्य का कोई उम्मीदवार न हो। `वोटिंग कायदे के तहत बहस का जुआ' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है। जैसा कि आशा थी भारतीय जनता पार्टी ने संसद में यूपीए सरकार पर हल्ला बोल दिया है और भ्रष्टाचार व महंगाई को लेकर केंद्र की कांग्रेस अगुवाई वाली यूपीए सरकार को घेरने में लगी भाजपा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चारों तरफ से घेरने की पूरी योजना बना ली है। भाजपा ने इन पर मानसून सत्र का माहौल खराब करने का भी आरोप लगा दिया है।
भ्रष्टाचार और महंगाई पर भाजपा केवल बहस ही नहीं बल्कि वोटिंग भी चाहती है ताकि इन मुद्दों पर यह साफ हो सके कि कौन सरकार के साथ है और कौन सरकार के खिलाफ। यह दांव चलकर भाजपा कांग्रेस के साथ इसके सहयोगियों को भी बेनकाब करना चाहती है। भाजपा का अनुमान है कि इन मुद्दों पर यदि वोटिंग हुई तो यूपीए सरकार फंस सकती है। सरकार ने वोट कायदे के तहत बहस कराना स्वीकार कर लिया है। देखें इस जुए में वह कितनी कामयाब होती है?
हैदराबाद से प्रकाशित उर्दू दैनिक `ऐतमाद' में आमिर उल्लाह खां ने `सुधारों के 20 साल' के शीर्षक से समीक्षा करते हुए लिखा है कि 20 साल पूर्व भारत की प्रति व्यक्ति आय 30 डालर थी अर्थात् हर भारतीय की मासिक आय 400 रुपये से भी कम थी। लेकिन अब यह 1500 डालर अर्थात् 60 हजार रुपये को छूने लगी है। सरकार के पास अब खजाना भरा हुआ है ताकि वह गरीबों पर खर्च कर सके। मनमोहन सिंह ने 20 वर्ष पूर्व सुधारों का जब सफर शुरू किया था। यही कहा जा रहा था कि भारत संकट में आ जाएगा। गरीबी बढ़ेगी, भारतीय कम्पनियां बन्द होंगी, हर चीज इम्पोर्ट करना पड़ेगी और विदेशी कम्पनियों का भारतीय मंडियों पर कब्जा हो जाएगा। लेकिन इनमें से कोई संदेह सच साबित न हो सका। भारत में विदेशी निवेश में जितनी वृद्धि हुई, भारतीयों ने भी विदेशों में उतना ही निवेश किया।
`मस्जिदों पर गैर कानूनी कब्जों के लिए दिल्ली वक्फ बोर्ड जिम्मेदार' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' में मुमताज आलम रिजवी ने अपनी विशेष रिपोर्ट में आरटीआई के हवाले से लिखा है कि जमीयत इस्लामी हिन्द के सहायक सचिव इंतिजार नईम की 16 जून 2011 की आरटीआई के जवाब में वक्फ बोर्ड ने यह तो बताया कि 26 वक्फ जायदादों पर विभिन्न सरकारी संस्थानों के गैर कानूनी कब्जे हैं और 72 वक्फ जायदादों पर पुरातत्व विभाग का गैर कानूनी कब्जा है। दिल्ली वक्फ बोर्ड की लापरवाही की एक मिसाल निजामुद्दीन के पीछे रिंग रोड पर मिलिनियम पार्प से मिला हुआ 14 एकड़ कब्रिस्तान की जमीन है। 19 सितम्बर 1949 में सरकार से एक रजिस्टर्ड संधि के तहत दिल्ली के मुसलमानों के लिए 14 एकड़ जमीन कब्रिस्तान के लिए अलाट की गई थी लेकिन डीडीए ने इस 14 एकड़ में से 10 एकड़ जमीन इस शर्त पर इस्तेमाल कर लिया कि वक्फ बोर्ड को जब इसकी जरूरत होगी वह इसे इस्तेमाल कर सकेगा। आरटीआई द्वारा यह पूछे जाने पर कि वक्फ बोर्ड ने इस 14 एकड़ कब्रिस्तान की जमीन की सुरक्षा के लिए क्या उपाय किए और बोर्ड की बैठक में यह एजेंडा कब रहा? के जवाब में वक्फ अधिकारी नजमुल हसनैन ने लिखा कि इस 14 एकड़ जमीन की हिफाजत के लिए दिल्ली वक्फ बोर्ड की ओर से कोई उपाय नहीं किए गए और न ही कोई कानूनी कार्यवाही की गई।