Tuesday, January 3, 2012

मुस्लिम ओबीसी आरक्षण पर उठे सवाल

उत्तर पदेश में कांग्रेस की अग्निपरीक्षा के शीर्षक से दैनिक `पताप' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि विधानसभा चुनाव की तारीख तय होने से लगभग 40 घंटे पहले कांग्रेस द्वारा ओबीसी के 27 फीसदी कोटे में से अल्पसंख्यकों, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध और पारसी को 4.5 फीसदी अलग से आरक्षण देना यूपी की 403 विधानसभा में कांग्रेस को अपने वजूद के मजबूत होने की उम्मीद है। पहले इसकी सीटें 22 थीं अब इसमें 60 सीटें बढ़ सकती हैं। कांग्रेस का चौधरी अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी से समझौता इसके वोट बैंक में वृद्धि करेगा। कांग्रेस का अगला कदम उत्तर पदेश में पधानमंत्री की कुर्सी के दावेदार मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी से चुनावी तालमेल की कोशिश होगी ताकि इसके साथ मिलकर कांग्रेस चुनाव में यादव एवं अन्य जातियों के वोट बैंक पर पकड़ बना सके। राज्य में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की सकियता से पार्टी को आशा हो चली है कि 17 फीसदी मुस्लिम वोट की अहम भूमिका होगी। वह जिस पार्टी की ओर जाएगा वही पार्टी सत्ता में आने वाली पार्टी किंग मेकर की भूमिका निभाएगी। चुनाव पूर्व सर्वे के मुताबिक किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने वाली है। उत्तर पदेश में गठजोड़ की सरकार बनेगी। देखना है कि चुनाव में ऊंट किस करवट बैठता है लेकिन इतना तय है कि यूपी चुनाव कांग्रेस और यूपीए सरकार के लिए सियासी चैलेंज भरा होगा।

कोलकाता से पकाशित दैनिक `आजाद हिंद' ने उत्तर पदेश विधानसभा चुनाव के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि मायावती को अपने राज्य में मुसलमानों से कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही और न ही अल्पसंख्यकों के लिए इनकी पार्टी ने कुछ किया है लेकिन इस बार जब उन्हें मुसलमानों के तेवर साफ दिखाई दे रहे हैं तो ऐसे मौकों पर उन्होंने मुस्लिम कार्ड खेलने की भी कोशिश की है और पिछले सप्ताह ही घोषणा की कि उनकी सरकार राज्य में अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए काम करेगी। अब जबकि चुनाव सिर पर आ गया है तो मायावती को मुसलमानों की याद आई और कुछ बिकाऊ मुस्लिम चेहरों को लेकर एक बड़ा सम्मेलन भी किया लेकिन राज्य के मुसलमान मायावती से दूर हो गए हैं। गत 5 वर्षों के दौरान मायावती को कभी भी मुसलमानों की याद नहीं आई लेकिन इस समय मुसलमानों से हमदर्दी का दम भर रही हैं। सच्चर कमेटी ने तो पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की सबसे खराब हालत बताई थी लेकिन यदि उत्तर पदेश का जायजा लिया जाए तो पता चलेगा कि वहां के मुसलमान पश्चिमी बंगाल से भी खराब हालत में अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं जहां उनकी न अपनी कोई पहचान है और न कोई भविष्य। मुसलमानों की उन्नति के लिए आरक्षण जरूरी के शीर्षक से आबिद अनवर अपने लेख में लिखते हैं कि मुसलमान हिन्दुस्तान में नए दलित हैं। दुनिया में ऐसा पहला देश होगा जहां दलित से बदतर मुसलमानों की जिंदगी बना दी गई है। सर्वे में पता चला है कि देश के लगभग एक तिहाई मुसलमान 550 रुपए मासिक से कम आमदनी पर जिंदगी गुजारने पर विवश हैं। नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड एकोनामिक रिसर्च (एनसीएईआर) के अनुसार 2004-05 में हर 10 में से तीन मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजार रहे हैं। गरीब मुसलमान जो शहरों में रहते हैं उनकी हालत गांव में रहने वाले मुसलमानों से कुछ बेहतर है। गांव में रहने वालों की आमदनी मात्र 338 रुपए मासिक थी। इसके अतिरिक्त शहरी इलाकों में लगभग 38 फीसदी और देहाती क्षेत्र में 27 फीसदी मुसलमान गरीबी रेखा से नीचे की जिंदगी गुजार रहे हैं। मुसलमानों को सुविधा देने की बात सभी सियासी पार्टियां करती हैं लेकिन जब उन्हें सुविधा देने की बात आती है तो इन पार्टियों को सांप सूंघ जाता है। कुछ पार्टियां आरक्षण की बात करती हैं लेकिन जब सत्ता में आ जाती हैं तो वह भूल जाती हैं कि जैसा कि नीतीश कुमार सरकार ने किया। उन्होंने चुनाव से पूर्व मुसलमानों के लिए आरक्षण की बात कही थी लेकिन दोबारा सत्ता में आते ही आरक्षण की बात तो दूर उल्टे बिहार में मुसलमानों का खून बहाया जा रहा है। फारबसगंज पुलिस फायरिंग और बड़ाहा कत्ल इसका ताजा उदाहरण है।

मुस्लिम ओबीसी के लिए विशेष किया गया कोटा- खोटा के शीर्षक से दैनिक `हमारा समाज' में पकाशित लेख में मौलाना अब्दुल मोईद कासमी ने लिखा है कि सच्चाई यह है कि 4.5 फीसदी आरक्षण मुसलमानों अथवा ओबीसी मुसलमानों के लिए बल्कि सभी ओबीसी अल्पसंख्यकों (मुस्लिम, सिख, बौद्ध, ईसाई और पारसी) के लिए है। इस तरह यह घोषणा साढ़े चार फीसदी की है लेकिन मुस्लिम ओबीसी के हिस्से में मुश्किल से ढाई फीसदी आएगा। कांग्रेस मंत्रिमंडल ने कोटा तो तय किया है लेकिन इसमें दो बड़े छल किए हैं। एक यह कि मुस्लिम ओबीसी का कोटा तय करने के बजाए अल्पसंख्यकों अर्थात मुसलमानों समेत सिख, बौद्ध, इसाई और पारसी का कोटा तय किया है। इससे स्थित में यह तब्दीली हुई कि पहले मुस्लिम ओबीसी सभी ओबीसी का हिस्सा थे। अब सभी अल्पसंख्यक ओबीसी का हिस्सा हैं अर्थात केवल शालि होने को विशेष किया गया है, स्पष्ट रूप से मुस्लिम ओबीसी का कोटा विशेष नहीं किया गया है। इस तरह यह बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में मुसलमानों के लिए आरक्षण का जो वादा किया था उसको पूरा कर दिया गया। इस आधे-अधूरे फैसले द्वारा मुसलमानों की ओर आरक्षण का जो दबाव बना था उसे भी निष्पभावी करने की कोशिश की गई है और कुछ दिया भी नहीं गया है। दूसरी ओर भाजपा सहित साम्पदायिक ताकतों को मुसलमानों के खिलाफ देशवासियों विशेषकर हिन्दू ओबीसी जातियों को बहकाने का मौका हाथ आ गया।

विधानसभा चुनाव का बिगुल के शीर्षक से दैनिक `जदीद खबर' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि वैसे तो उत्तर पदेश में सभी सियासी पार्टियों की नजर 20 फीसदी मुस्लिम वोटों पर है जो विधानसभा की 100 से अधिक सीटों पर निर्णायक भूमिका रखते हैं। लेकिन बाबरी मस्जिद के अपराधी कल्याण सिंह से हाथ मिलाने के कारण मुलायम सिंह की वह इमेज बाकी नहीं रह गई जो कभी हुआ करती थी। राज्य की सत्ता बन बहुजन समाज पार्टी को मुसलमानों की याद चुनाव के बहुत करीब आकर आई।

पहले उन्होंने पधानमंत्री को पत्र लिखकर मुस्लिम आरक्षण देने की मांग की और इसके बाद लखनऊ में मुसलमानों को लुभाने के सम्मेलन किया। पिछली बार मायावती ने दलितों और ब्राह्मण वोटों के बल पर सत्ता हासिल करने का जो तजुर्बा किया था उसे राजनैतिक हलकों में सराहा गया था लेकिन अब स्थिती पूरी तरह भिन्न है। कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने चुनाव से पूर्व अन्य पिछड़ी जातियों को साढ़े चार फीसदी आरक्षण की घोषणा कर दी है। इस बाबत सरकारी अधिसूचना जारी हो चुकी है और मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़ी जातियों को साढ़े चार फीसदी आरक्षण देने हेतु दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। इसी के साथ पार्टी ने अपनी स्थिति मजबूत बनाने के लिए राष्ट्रीय लोकदल से चुनावी समझौता किया और चौधरी अजीत सिंह को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया है। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी पार्टी को यूपी में सत्ता सीन करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। देखना यह है कि इन कोशिशों के नतीजे में कांग्रेस को किस हद तक सियासी फायदा हासिल होगा।