Wednesday, October 3, 2012

मई में मध्यावधि चुनाव होंगे


`अगर वॉलमार्ट इतना ही इच्छा है तो न्यूयार्प में इसका विरोध क्यों?' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि दुनिया की दिग्गज रिटेल कम्पनी वॉलमार्ट का रास्ता साफ करने के लिए भारत में तमाम फायदे गिनाए जा रहे हैं। अमेरिका की इस दिग्गज कम्पनी का 16 देशों में 404 अरब डॉलर का कारोबार है। अन्य रिटेलर कम्पनियों में फ्रांस की केयरफोर (34 देशों में 2009 में 112 अरब डॉलर का कारोबार)। जर्मनी में मेट्रो एजी जिसका 33 देशों में 2009 में 91 अरब डॉलर का कारोबार था, ब्रिटेन की टैस्को जिसका साम्राज्य 13 देशों में फैला हुआ है और जिसका 2009 में राजस्व 90.43 अरब डॉलर का था। सबसे बड़ी कम्पनी वॉलमार्ट है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जितने भी वॉलमार्ट के फायदे गिनाएं पर यह कम्पनी खुद अपने देश में तगड़े झटके से दो-चार हो रही है।
न्यूयार्प टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक वॉलमार्ट ने न्यूयार्प के ब्रुकलिन में नया शॉपिंग सेंटर बनाया है। इसी में वह मेगा स्टोर खोलने की तैयारी कर रही थी। मगर स्थानीय यूनियन, सिटी काउंसिल के कई सदस्यों और सामुदायिक समूहों ने इस पर कड़ा एतराज जताया जिसके बाद कम्पनी ने पिछले सप्ताह इस योजना को रद्द कर दिया। विरोध करने वालों का कहना है कि यह कम्पनी अपने कर्मचारियों को कम वेतन देती है, सुविधाएं भी नहीं देती हैं। दाम कम रखकर अपने आसपास के छोटे दुकानदारों के मुनाफे पर चोट पहुंचाती हैं ताकि उन्हें इलाके से खदेड़ा जा सके।
`सियासी पार्टियों की करोड़ों की आमदनी का मामला' के शीर्षक से दैनिक `इंकलाब'ने अपने सम्पादकीय में  लिखा है कि एसोसिएशन फॉर डेमोकेटिक राइट्स नामक एनजीओ के हवाले से एक अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित खबर के मुताबिक देश की पांच बड़ी सियासी पार्टियोंöकांग्रेस, भाजपा, सीपीएम, बसपा और एनसीपी को गत पांच वर्षों में 3 हजार 4 सौ 53 करोड़ रुपए की आमदनी हुई है। इन सियासी पार्टियों की आमदनी को टैक्स से छुट प्राप्त है। इसलिए यह पार्टियां 1033 करोड़ रुपए के टैक्स से बच गईं। रिपोर्ट के मुताबिक जब उक्त एनजीओ ने सीधे जानकारी हासिल करने की कोशिश की ताकि आंकड़ों को मिलाया जा सके तो कांग्रेस ने जवाब दिया कि उस पर आरटीआई लागू नहीं होती। इसलिए उसे यह जानकारी देना जरूरी नहीं है। एनसीपी ने कहा कि उसके पास स्टाफ नहीं है इसलिए जानकारी नहीं दी जा सकती। भाजपा और बसपा ने आरटीआई का कोई जवाब नहीं दिया। केवल सीपीएम ने आरटीआई का जवाब दिया। सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों है? यदि इस देश के एक नागरिक के लिए यह जरूरी हो कि आमदनी की सीमा क्रॉस करने के बाद अपनी आमदनी को जाहिर करे और उस पर टैक्स अदा करे तो सियासी पार्टियां क्यों अपनी आमदनी बताना नहीं चाहती हैं। जो कानून को बनाती भी हैं और क्रियान्वित भी करती हैं। हम समझते हैं कि देश की सभी पार्टियों की आमदनी को आरटीआई के तहत लाना चाहिए और उनसे भी बिल्कुल उसी तरह आमदनी का विवरण हासिल करना चाहिए जैसा नौकरी करने वाले या कारोबार करने वाले पर अनिवार्य है। अन्यथा उसके घर या दफ्तर पर इन्कम टैक्स का छापा पड़ जाता है। यह इसलिए भी जरूरी है कि एक ही देश में दो कानून नहीं हो सकते।
`सहरोजा दावत' में सम्पादक परवाज रहमानी ने अपने ख्याति प्राप्त स्तम्भ `खबरो नजर' में अमेरिका की निंदनीय फिल्म पर चर्चा करते हुए लिखा है कि मुसलमानों के खिलाफ एक ताजा शरारत तो वह है जो एक अमेरिकी फिल्म निर्माता ने अपनी फिल्म `इन्नोसेंस ऑफ मुस्लिम' में की है और दूसरी शरारत यह है जो अमेरिकी सरकार कर रही है और जिसे आज विश्व मीडिया आगे बढ़ा रहा है। अर्थात् अलकायदा नाम का कोई आतंकी ग्रुप आज भी मौजूद है वह समय-समय पर मुसलमानों को निर्देश देता रहता है और मुसलमान उसके निर्देश पर अमल करके दुनियाभर में हिंसा फैलाते हैं। इस सिलसिले में अलकायदा का नाम इतनी बार लिया जाता है कि पढ़ने और सुनने वाले गैर मुस्लिम यह विश्वास कर लें कि अलकायदा आज भी मौजूद है और विश्व स्तर पर मुसलमानों पर अपनी पकड़ रखता है। जबकि सच्चाई यह है कि अलकायदा नाम का कोई ग्रुप सिरे से कहीं मौजूद ही नहीं है वह अफगानिस्तान में सोवियत यूनियन के पराजय के कुछ साल बाद ही बिखर गया था।
 आज इस नाम से जो ग्रुप काम कर रहे हैं वह या तो फर्जी हैं या अमेरिका द्वारा खड़े किए गए हैं। तालिबान के नाम से भी कई नकली ग्रुप अमेरिका ने खड़े कर रखे हैं।
`मई में होंगे मध्यावधि चुनाव' के शीर्षक से उर्दू साप्ताहिक `चौथी दुनिया' के सम्पादक संतोष भारती ने अपने विशेष लेख में वर्तमान राजनीतिक स्थिति की समीक्षा करते हुए लिखा है कि कांग्रेस पार्टी और सरकार ने तय कर लिया है कि उसे बजट अधिवेशन के दौरान या बजट अधिवेशन खत्म होते ही चुनाव में चले जाना है। आर्थिक स्थिति तेजी से बिगड़ रही है। यह भी फैसला किया गया है कि कठोर बजट लाया जाए और आम लोगों को संकट में डालने के जितने भी तरीके हो सकते हैं, उन तरीकों को क्रियान्वित कर दिया जाए। आने वाला बजट भारतीय संविधान में दिए गए सभी आश्वासनों और विश्वासों के खिलाफ होने वाला है। इस बजट में ज्यादातर सब्सिडी खत्म हो जाएगी, टैक्स बढ़ जाएंगे, बाजार कंट्रोल नीति अपनाई जाएगी, इसके बाद कांग्रेस यदि हार गई तो आने वाली सरकार इसका खामियाजा उठाएगी, ऐसा नीतिकारों का मानना है। 2009 में कांग्रेस पार्टी ने वह चुनाव जीतने के लिए नहीं लड़ा था, यह मानकर लड़ा था कि आर्थिक स्थिति खराब होगी और आने वाली सरकार इसे भुगतेगी लेकिन भाजपा की चालाकी से वह चुनाव भी कांग्रेस जीत गई। जिसके बाद यूपीए-2 का कार्यकाल शुरू हुआ जिसने घोटालों का रिकार्ड बना दिया। कांग्रेस रणनीतिकारों का अनुमान है कि गैर कांग्रेस पार्टियों की अगुवाई वाली सरकार बनेगी इसको सालभर चलाया जाए इसके बाद चुनाव कराया जाए जिसमें कांग्रेस पार्टी को दोबारा बहुमत मिल जाए।
`विदेशी निवेश में घिरी यूपीए सरकार' के शीर्षक दैनिक `सहाफत' में मोहम्मद आसिफ इकबाल ने आईएमएफ की ताजा रिपोर्ट के हवाले से लिखा है जिसमें कहा गया है कि इस समय भारत के अन्दर 40 करोड़ से अधिक व्यक्तियों की आमदनी एक डॉलर प्रतिदिन से भी कम है। अर्थात् दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की छत्रछाया में दुनिया की सबसे बड़ी गरीबी परवान चढ़ रही है। जिसका एक कारण धन को मुट्ठीभर लोगों के हाथों में रखना है। दूसरी ओर विश्व फूड संस्था के अनुसार हिन्दुस्तान में 71 फीसदी खेत से जुड़े किसान विश्व संस्थानों की शर्तों, बीज, खाद और बिजली की कीमतों में वृद्धि के चलते आर्थिक समस्या से जूझ रहे हैं। किसानों की बड़ी संख्या रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन कर रही है इससे आबादी का संतुलन बुरी तरह बिगड़ चुका है। देश की 80 फीसदी जनता बुनियादी सुविधाओं से वंचित है और इस तर्प के साथ कहा जा रहा है कि रिटेल में एफडीआई की इजाजत का फैसला देश हित में होगा।