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Monday, September 17, 2012

असम समस्या और समाधान की संभावना


कोयला घोटाले के चलते संसद का कामकाज ठप है। इस पर चर्चा करते हुए दैनिक`जदीद खबर' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि जिस तरह भारत में भ्रष्टाचार को खत्म करने का आंदोलन जोर पकड़ रहा है और जनता उससे जुड़ रही है उसी तरह देश में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं। कोयला घोटाले में सीधे तौर पर प्रधानमंत्री को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि इससे सरकारी कोष को 1.86 लाख करोड़ रुपए का नुकसान बताया जा रहा है। इसे सरकार की ही एक संस्था कैग ने उजागर किया है। विपक्ष की आलोचनाओं और मांगों की अनदेखी कर सरकार ने इस पूरे मामले में मौन धारण कर रखा है इसकी ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जा रहा है। कैग एक सरकारी संस्था है और कई अवसरों पर सरकार ने स्वयं ही इस संस्था की रिपोर्टों का केडिट लिया है इसलिए अब जो कुछ सामने आया है उस पर भी सरकार को स्पष्टीकरण देना चाहिए। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के पास कोयला मंत्रालय है और उनके सहयोगी मंत्री भी रह चुके हैं कि यह सारा अलाटमेंट मनमोहन सिंह की मर्जी से हुआ है।
ऐसे में सरकार की खामोशी का कोई औचित्य नहीं हो सकता और यह खामोशी भी खुद प्रधानमंत्री को तोड़नी चाहिए। भारत में आज भी करोड़ों लोग दो जून की रोटी हासिल नहीं कर पाते हैं वहां इतनी बड़ी राशि का सरकारी कोष को नुकसान पहुंचाने वालों को माफ नहीं किया जा सकता चाहे यह कितने ही उच्च पदों पर क्यों न आसीन हों।
`असम समस्या और समाधान की संभावना' पर चर्चा करते हुए मर्पजी जमीअत अहले हदीस हिंद के महासचिव मौलाना असगर इमाम मेंहदी सलफी ने अपने समीक्षात्मक लेख में लिखा है कि असम की वर्तमान समस्या बुनियादी तौर पर कानूनी और सियासी है। यह बोडो और गैर बोडो समुदाय के बीच है। इसे हिन्दू-मुस्लिम या बंगलादेशी संदर्भ में देखना किसी लिहाज से सही नहीं है। यही कारण है कि सिनथाली एवं अन्य आदिवासियों और समुदायों की भी बहुत बड़ी संख्या समय-समय पर निशाना बनती रहती है। इसलिए सत्ता पक्ष को चाहिए कि वह बोडो काउंसिल की प्राकृतिक संरचना और ढांचे पर पुनर्विचार करें और वहां मौजूद सभी लोगों की समानुपातिक प्रतिनिधित्व को निश्चित बनाएं। ज्ञात रहे कि 2003 की बोडो संधि के तहत संविधान में संशोधन प्रस्ताव के तहत 46 सदस्यीय बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल वजूद में लाई गई थी। गोहाटी के एक वकील के हवाले से मौलाना असगर ने लिखा है कि यह संशोधन ही असंवैधानिक है और इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करने की जरूरत है क्योंकि इसे संसद के दो तिहाई वोट से ही संशोधित किया जा सकता है जो कि वर्तमान में संभव नजर नहीं आ रहा है। इसके तहत उपरोक्त काउंसिल के अंदर 73 फीसदी गैर बोडो अधिकारहीन और 27 फीसदी बोडो अधिकार प्राप्त कर चुके हैं।
असम समस्या पर कुछ मुस्लिम नेताओं और पार्टियों की ओर से हो रही राजनीति पर चर्चा करते हुए दैनिक `सहाफत' में मोहम्मद अनस सिद्दीकी ने `असम हिंसा पर सियासी कदमताल, माल एनसीपी का और ब्रांड फाउंडेशन की' के शीर्षक से अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि असम जाने से पूर्व ख्वाजा गरीब नवाज फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना अनसार रजा खां ने अखबारों द्वारा मुसलमानों से जकात और सदाकात देने की अपील की थी लेकिन असम वापसी के बाद उनकी तरफ से जो बयान सामने आया, आश्चर्यजनक तौर पर इसमें वहां किसी तरह की कोई सहायता देने का जिक्र नहीं था। इसके विपरीत इस प्रतिनिधिमंडल को एनसीपी अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का बताया गया लेकिन एनसीपी की ओर से भी असम हिंसा में पीड़ितों को किसी प्रकार की सहायता देने का कोई जिक्र या बयान पढ़ने और सुनने को नहीं मिला। सवाल यह है कि गरीब नवाज फाउंडेशन की अगुवाई में एनसीपी अल्संख्यक प्रकोष्ठ का डेलीगेशन असम क्या करने गया था? यदि उसने वहां किसी तरह की सहायता सामग्री नहीं दी तो क्या इसने हालात की समीक्षा कर अपनी कोई रिपोर्ट पार्टी को दी, के सवाल पर एनसीपी अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जफर अख्तर कहते हैं कि हमने इस डेलीगेशन को दो दिन में अपनी रिपोर्ट देने को कहा है लेकिन दौरे के 11 दिन गुजर जाने के बाद भी इस डेलीगेशन ने कोई रिपोर्ट नहीं दी। यह तो एनसीपी ही बताए कि उसने पार्टी फंड से इस डेलीगेशन को असम का दौरा करने की इजाजत क्यों दी? पार्टी जवाबदेही से अपना दामन नहीं बचा सकती है।
`कैग के खिलाफ हमला' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट संसद में पेश होते ही कांग्रेस और केंद्र सरकार के मंत्रियों ने इस संवैधानिक संस्था के खिलाफ हमला बोल कर अपनी ही फजीहत करानी शुरू कर दी है। कैग किसी सरकार के रहमोकरम पर निर्भर नहीं होती। इसका गठन संविधान के पांचवें अध्याय के अनुच्छेद 149, 150 और 151 के तहत हुआ है। जिस तरह से देश में संसद का महत्व है, न्यायपालिका का महत्व है ठीक उसी प्रकार कैग का भी महत्व है। कांग्रेस की जब-जब सरकारें रही हैं और कोई घपला-घोटाला कैग रिपोर्ट द्वारा उजागर किया गया है तो यह सब कैग पर ही पिल पड़ते हैं। 1984 से 1980 तक के कैग महानिदेशक त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी के साथ भी यही हुआ था। तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने बोफोर्स तौप सौदे में हुए घोटाले की रिपोर्ट को तो गलत बताया ही तत्कालीन महानिदेशक को भी अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया। 2जी और कामनवेल्थ खेल घोटाले में कैग रिपोर्ट पर टिप्पणी की गई।
कैग महानिदेशक को विपक्ष का एजेंट तक बताया गया। बेशर्मी की हद तो तब हो गई जब कपिल सिब्बल जैसे मंत्री ने यहां तक कह डाला कि 2जी में एक भी पैसे का नुकसान सरकार को नहीं हुआ।
`प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग क्यों' के शीर्षक से हैदराबाद से प्रकाशित दैनिक`ऐतमाद' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि आश्चर्यजनक तौर पर कैग अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों की अनदेखी कर सरकार से मुकाबले पर उतर आई है। कोयला गेट में 35 बिलियन डालर घोटाले की बात की जा रही है, अंबिका सोनी के मुताबिक इसका सुबूत क्या है? और जैसा कि केंद्रीय संचार मंत्री बंसल ने कहा है कि कोयला निकालने का काम भाजपा शासित राज्यों में भी हुआ है। इन राज्यों के बारे में भाजपा ने अपना कोई दृष्टिकोण नहीं व्यक्त किया है।
सरकार ने भाजपा और अन्य पार्टियों से कोल गेट पर बहस की दावत दी है। इस पर सकारात्मक बहस होनी चाहिए। भाजपा के कहने पर यदि प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दे दिया तो इससे  देश में एक गलत मिसाल कायम होगी। प्रधानमंत्री को भी अपनी सफाई का पूरा मौका मिलना चाहिए।

Sunday, September 16, 2012

असम हिंसा में राज्य सरकार को मुशावरत की क्लीन चिट


हामिद अंसारी के दूसरी बार उपराष्ट्रपति बनने का स्वागत करते हुए दैनिक `जदीद मेल' ने लिखा है कि वह स्वतंत्र भारत के 14वें उपराष्ट्रपति हैं और एक मुसलमान के नाते वह दूसरे मुस्लिम हैं। इनसे पूर्व स्वर्गीय जाकिर हुसैन उपराष्ट्रपति रहे थे जो बाद में राष्ट्रपति बने। जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद और एपीजे अब्दुल कलाम तीन ऐसे मुस्लिम हैं जो राष्ट्रपति रहे हैं। अब तक दो मुस्लिम चीफ जस्टिस हिदायत उल्ला बेग और जस्टिस एएम अहमदी रह चुके हैं। इदरीस हसन लतीफ देश की वायुसेना के चीफ रहे हैं। फौज का चीफ अभी तक कोई मुसलमान नहीं हुआ लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति जनरल जमीरउद्दीन शाह फौज के उप चीफ रह चुके हैं। भारतीय लोकतंत्र में हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए उच्च पदों के दरवाजे खुले हुए हैं और यह राष्ट्र के सेकुलर चरित्र का सुबूत है लेकिन सवाल यह है कि क्या किसी कौम की समस्याएं सत्ता के शीर्ष पदों पर असीन होने से हल हो सकते हैं। आज मुसलमान राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक हर मैदान में पिछड़ेपन की चरम सीमा पर पहुंच चुका है।
इसी स्वतंत्र और सेकुलर भारत में बाबरी मस्जिद का गिराया जाना, गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार होना और अभी दस दिन पूर्व असम में  लगभग चार लाख मुसलमानों का नस्ली हिंसा में  बेघर होना इस बात का तर्प है कि मुसलमानों के खिलाफ देश में घृणा का एक सैलाब है जो ढाढे मार रहा है। इसलिए देश हित में यही है कि हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति के पद पर रहते देश के मुसलमानों की समस्याओं पर गंभीरतापूर्वक ध्यान दें और सच्चर कमेटी रिपोर्ट के सुझावों पर अमल कर इनकी समस्याओं को जल्द से जल्द हल करने की कोशिश की जाए।
`फिजा' में दूषित `चांद' के शीर्षक से दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' ने अपने सम्पादकीय में 24 घंटे में हरियाणा से दोनों खबरों पर चर्चा करते हुए लिखा है कि एयर होस्टेस और फिजा दोनों की मौत में एक बात संयुक्त यह है कि इसका आरोप ऐसे वर्ग पर जाता है जिस पर कानून बनाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी है। दोनों की कहानी में बहुत ज्यादा फर्प नहीं है। अनुराधा उर्प फिजा हरियाणा की पूर्व सहायक एडवोकेट जनरल थीं और राज्य के उपमुख्यमंत्री की मोहब्बत में फंस गई थी। शादी के लिए इस्लाम धर्म स्वीकार करने का ड्रामा रचा क्योंकि धर्म परिवर्तन के बिना शादी संभव नहीं थी। अनुराधा ने फिजा और चंद्र मोहन ने चांद मोहम्मद का चोला पहन शादी का स्वांग रचा, लेकिन यह रिश्ता 40 दिन से ज्यादा न चला और तलाक हो गई। इन दोनों में दूरी क्यों हुई, इस पर किसी चर्चा की जरूरत नहीं है और न ही यह बताने की जरूरत है कि अनुराधा की जिंदगी में उसके इतने ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़े कि उसने आत्महत्या कर अपनी जिंदगी को खत्म कर लिया। यह संयोग ही है कि अनुराधा की जान भी एक नेता के चक्कर में गई जबकि गीतिका की जान भी एक नेता के कारण गई। इन घटनाओं में उन राजनेताओं का लिप्त होना निश्चय ही चिंता का विषय है जो विधानसभा के सदस्य हैं और जिन पर कानून बनाने की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी है। जब इस तरह के लोग कानून बनाएंगे तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि समाज किस रास्ते पर चलेगा और महिलाओं की आबरू किस हद तक सुरक्षित रहेगी?
असम दंगों पर चर्चा करते हुए मोहम्मद रियाज अहमद ने लिखा है कि असम में योजनाबद्ध तरीके से मुसलमानों का मारा गया, उनके मकान जलाए गए। 20 जुलाई से लगातार दस दिन तक बोडो टेरीटोरियल आटोनामी डिस्ट्रिक्ट्स (ँऊAअ) में मुसलमानों का खून बहाया गया। इसके बावजूद कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने आपराधिक खामोशी अख्तियार की। कोकराझार एवं अन्य जिलों में मुसलमानों की जो तबाही हुई है उसमें गोगोई की भूमिका संदिग्ध हो गई है। क्योंकि पुलिस ने मौजूद कुछ मानवतावादी और शिक्षिक पदाधिकारियों के हवाले से सूत्रों न रहस्योद्घाटन किया है कि इन पुलिस अधिकारियों को हिंसा भड़काने वालों के खिलाफ किसी भी कार्यवाही न करने की हिदायत दी गई थी इनसे स्पष्ट तौर पर कह दिया गया था कि बोडो आतंकवादी जो कर रहे हैं उनके इस काम (मुसलमानों का नरसंहार) में रुकावट न डाली जाए। यह हिदायत किसने दी? क्यों दी और इसका मकसद क्या है? इस बारे में उच्च स्तरीय जांच जरूरी है। वैसे भी कोकराझार में मुसलमानों का कत्ल कोई नई बात नहीं है। वर्तमान नस्ली हिंसा से `नेली' में 18 फरवरी 1983 को मुसलमानों के बर्बरतापूर्वक किए कत्ल की याद ताजा हो गई। 18 फरवरी को चुनाव के दिन लगभग सुबह 9 बजे एक भीड़ ने नेली और आसपास के देहातों पर हमला कर दिया और 6 घंटों तक मुसलमानों का कत्ल होता रहा। इसमें 2191 मुसलमानों के शहीद होने की पुष्टि की गई लेकिन गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 5 से 10 हजार मुसलमानों को मौत के घाट उतारा गया। इस घटना पर 378 मुकदमे दर्ज किए गए लेकिन राजीव गांधी के साथ आंसु संधि के दौरान इन मुकदमों को खत्म कर दिया गया।
`असम हिंसा पर गोगोई सरकार को क्लीन चिट' दिए जाने पर मोहम्मद अहमद ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि आल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत ने आज कहा है कि यह कहना कि असम हिंसा गोगोई सरकार की सरपरस्ती में हुई है बिल्कुल गलत होगा। मुशावरत के अध्यक्ष डॉ. जफरुल इस्लाम खां ने असम से वापसी के बाद आज मुशावरत के मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि हम राज्य सरकार के खिलाफ कोई मुकदमा कर ही नहीं सकते, क्योंकि वह इस हिंसा के लिए जिम्मेदारी नहीं है। उन्होनें बोडो लीडरशिप (बीटीसी) को भी क्लीन चिट देने की कोशिश करते हुए कहा कि इनकी लीडरशिप से बात करने के बाद ऐसा लगता है कि वह भी इस हिंसा पर शर्मिंदा है और चाहते हैं कि जल्द से जल्द लोग अपने घरों को लौट आएं क्योंकि यदि मुसलमान वापस नहीं आएंगे तो उनके क्षेत्रों में विकास रुक जाएगा।
उन्होंने इस हिंसा को गुजरात से जोड़ने की बात को भी सिरे से खारिज करते हुए कहा कि गुजरात दंगे मोदी की सरपरस्ती में हुआ था, लेकिन इसमें सरकार (गोगोई) शामिल नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि जमीअत उलेमा हिंद (अरशद मदनी) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने असम से वापसी के बाद असम हिंसा को गुजरात हिंसा की तर्ज पर बताया था। जिसका मुशावरत ने खंडन कर दिया।
`अन्ना ने टीम भंग तो कर दी पर अब क्या होगा?' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि सोमवार को अन्ना हजारे ने अपनी टीम भंग करने की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि जन लोकपाल के लिए टीम अन्ना बनाई गई थी और अब चूंकि सरकार से इस विषय पर कोई बातचीत नहीं होनी है इसलिए टीम अन्ना के नाम से शुरू हुए काम खत्म होता है और समिति भी समाप्त होती है। उन्होंने कहा कि अब चुनावी तैयारी शुरू होगी। टीम अन्ना कुछ मुद्दों को लेकर चल रही है, ऐसे में जातिवाद के जिन्न से कैसे निपटेगी?
अन्ना खुद कह चुके हैं कि वह तो नगर पालिका का चुनाव भी नहीं जीत सकते, ऐसे में लोकसभा की कितनी सीट जीत पाएंगे? प्रत्याशियों का चयन भी बड़ा काम होता है। राजनीतिक संगठन बनाने या चुनाव लड़ने के लिए पैसा, साधन चाहिए, यह कहां से आएगा? इसलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को राजनीतिक विकल्प के रूप में आगे बढ़ाना आसान नहीं होगा? वैसे यह चुनौती अकेले इस आंदोलन की नहीं बल्कि देश के लोकतांत्रिक भविष्य की भी है।