2014 के लोकसभा चुनाव को मोदी बनाम राहुल में रेखांकित करते हुए विख्यात सामाजिक चिंतक एवं टिप्पणीकार मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी दैनिक `जदीद खबर'में प्रकाशित अपने लेख में चर्चा करते हैं कि राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी में अपनी पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी देने के गर्मागरम चर्चा में सियासी रथ दो विरोधी दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है, इसके पहिए के नीचे कौन-कौन आकर अपने गंतव्य को पाएंगे और कौन-कौन रथ की सवारी के नाम पर एयरकंडीशन, आरामदेह कार रथ की सवारी का आनंद लेंगे, इसका पूर्ण विवरण बताने की स्थिति में अभी कोई नहीं है। राजू शुक्ला जैसे कांग्रेसियों की इस आशा और भविष्यवाणी को पूरी तरह झुठलाया नहीं जा सकता कि 2014 में उनके प्रधानमंत्री राहुल गांधी होंगे। ऐसी हालत में भाजपा आज की तारीख में `धर्म संकट' में है कि प्रधानमंत्री के तौर पर खुलकर किसका नाम सामने लाया जाए। आने वाले दिनों में राहुल गांधी बनाम मोदी की सियासत तेज होगी। मोदी केवल एक नाम नहीं रह गया है बल्कि एक विशेष मानसिकता का प्रतीक बन गया है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को पार्टी में शामिल करने के संदर्भ में जिस सोच का सबूत दिया है। इसने भाजपा के विशेष चेहरे से एक बार फिर नकाब उठा दिया है। इसलिए नरेन्द्र मोदी को संघ को विशेष परिप्रेक्ष्य में ही देखना होगा। लेकिन यदि कांग्रेस ने गुजरात की तरह हिन्दुत्व से दूरी वाली नीति अपनाई तो उसे अच्छे नतीजे की आशा नहीं रखना चाहिए। इसलिए चुनावी लड़ाई तो जंग की तरह ही लड़नी होगी, ऐसी हालत में कोई स्पष्ट भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती लेकिन कामयाबी के संबंध में करीब-करीब सही अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि बाजी किसके हाथ में होगी।
दिल्ली और कोलकाता से एक साथ प्रकाशित दैनिक `अखबारे मशरिक' ने दिल्ली की 23 वर्षीया निर्भय के साथ हुए गैंगरेप के छठे आरोपी को नाबालिग बताने पर चर्चा करते हुए अपने सम्पादकीय में लिखा है कि आयु का मामला तकनीकी है और असल चीज अपराध का होना है। सजा अपराध की बुनियाद पर होनी चाहिए न कि उम्र की बुनियाद पर। छोटे-मोटे अपराध के मामलों में तो फिर भी वयस्क और अवयस्क की बात की जा सकती है लेकिन दुष्कर्म और जघन्य हत्या के मामले में किसी प्रकार की छूट देना अपराध का हौसला बढ़ाना होगा। 13 से 14 वर्ष की आयु को विशेषज्ञों ने सबसे ज्यादा खतरनाक करार दिया है। ऐसी हालत में अवयस्क होने के कारण सख्त सजा से छूट जाना अपराध को बढ़ाने जैसा होगा। क्या यह अच्छा होता कि कानून मंत्रालय मोटे-मोटे अपराध जैसे हत्या और दुष्कर्म आदि के संदर्भ में जनता को सचेत करता विशेषकर इस परिप्रेक्ष्य में कि अपराध पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गए हैं और इसमें युवाओं का हिस्सा ज्यादा है। यदि इन्कम टैक्स विभाग विज्ञापन द्वारा नागरिकों को यह बता सकता है कि टैक्स की चोरी या न देने की सूरत में जुर्माना या कैद की नौबत आ सकती तो हत्या, दुष्कर्म और अन्य गंभीर अपराध की बाबत सरकार उनको प्रचारित क्यों नहीं करती। यह सच्चाई है कि जिन देशों में सख्त कानून है वहां अपराध का ग्रॉफ कम है। हमें भी सजा को सख्त करना होगा और उम्र के चक्कर से निकलना होगा।
कमल हासन की फिल्म `विश्वरूपम' पर चर्चा करते हुए दैनिक `राष्ट्रीय सहारा' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि उनकी पिछली फिल्मों की नाकामी ने शायद उन्हें थोड़ा डगमगा दिया, उन्हें एक ऐसी कहानी की तलाश थी जो डब किए जाने की सूरत में तमिलनाडु से बाहर हिन्दी फिल्म जगत से भी ढेरों पैसा वापस ला सके। इस जरूरत ने उन्हें एक ऐसी कहानी चुनने पर मजबूर कर दिया, जिस तरह की कहानियां कई सफल हिन्दी फिल्मों का विषय भी रही हैं। इन फिल्मों का एक खास पहलू मुसलमानों को एक खास अंदाज में पेश किया जाता है। किसी न किसी बहाने और किसी न किसी आतंकवादी, स्मगलिंग, देशद्रोही और अन्य नकारात्मक मूल्यों से मुसलमानों को जोड़ दिया जाता है और उन्हें विलेन बनाकर पेश किया जाता है। कमल हासन ने यही किया। यह कहा जा सकता कि ऐसा करने का कारण उनकी मानसिकता नहीं, पैसे की ज्यादा जरूरत थी। लेकिन शायद उन्हें अंदाजा नहीं था कि यही कारीगरी उनके लिए बवाल जान बन जाएगी। उन्होंने चाहा था कि फिल्म डिजीटल तकनीक की मदद से `डायरेक्ट टू होम' रिलीज की जाए लेकिन जयललिता सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी। इसके बाद मुस्लिम मुनतरा गजम नामी सियासी पार्टी को इसकी भनक लग गई। इसके विरोध के बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट ने सुझाव दिया कि कमल हासन को विरोध करने वालों से बात करके मामले को तय कर लेना चाहिए। तमिलनाडु सरकार ने भी कहा है कि विश्वरूपम से कम से कम घंटे भर का मैटर निकाल देना चाहिए। यही उनके लिए बेहतर तरीका है।
दिल्ली के महरौली में डीडीए द्वारा गौसिया मस्जिद तोड़े जाने पर जो राजनीति हो रही है उसका रहस्योद्घाटन करते हुए आमिर सलीम खां ने दैनिक `हमारा समाज' में लिखा है कि सरकारी एजेंसियों द्वारा तोड़ी गई गौसिया मस्जिद और इससे मिली कालोनी का पुनर्निर्माण न हो लेकिन कुछ लोग लीडरी चमकाने में जरूर व्यस्त हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि दशकों से मसलकी जंग से दूर रहने वाली गौसिया मस्जिद के विध्वंस के बाद मसलक का जहर फैलाया जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि विध्वंस के लिए कुछ पीड़ित भी बराबर के जिम्मेदार हैं। आपसी चपकलीश के चलते गौसिया कालोनीवासियों ने लगभग 50 से अधिक आवेदन विभिन्न सरकारी विभागों में देकर दिल्ली वक्फ बोर्ड की जमीन को सरकारी बताते हुए उस पर से अतिक्रमण हटाने की मांग की गई। जब विध्वंस हुआ तो जिन्होंने सरकारी सम्पत्ति बताई थी वही दिल्ली वक्फ बोर्ड की जमीन के पुख्ता सबूत ले आए। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और दिल्ली वक्फ बोर्ड सहित विभिन्न बैठकों में यह बात भी सामने आ चुकी है जब कुछ पीड़ितों ने यहां तक कह दिया कि `मस्जिद नहीं पहले हमारे घर निर्माण कराओ।' गौसिया मस्जिद और वहां वक्फ जायदादों की सामूहिक लड़ाई अब बिखर चुकी है। कुछ लोग बाहर से आकर वहां मुसलमानों में मसलक का जहर फैला रहे हैं। महरौली में मस्जिद और वक्फ जायदादों के संरक्षण के लिए यदि एक शाही इमाम ने आवाज बुलंद की तो उनके बजाय मसलक का जहर फैलाने वाले लोग दूसरे शाही इमाम को लेकर घटनास्थल पर पहुंच रहे हैं। स्थानीय लोगों ने भी यह स्वीकार किया कि हमसे गलती हुई है और हमारे कुछ नेता लीडरी चमकाने के लिए मसलकी दीवार खड़ी कर रहे हैं।
`शाहरुख की छोटी-सी टिप्पणी पर इतना बड़ा बवाल' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि बॉलीवुड के सुपर स्टार शाहरुख खान की सुरक्षा पर नापाक नसीहत भारत और पाकिस्तान के बीच तकरार का नया सबब बन गई है। 21 जनवरी न्यूयार्प टाइम्स के सहयोग से प्रकाशित पत्रिका आऊटलुक टर्निंग प्वाइंट्स का अंक बाजार में आया था। पत्रिका को दिए अपने इंटरव्यू में शाहरुख ने अपने मन की कई बातों का खुलासा किया। इसमें उन्होंने यह भी कहा कि भारत में कुछ ही नेता हर मुसलमान को देशद्रोही नजरिए से देखते हैं। इस पीड़ा से एक मुस्लिम होने के नाते वे कई बार खुद गुजरे हैं। ऐसे में उन्हें देशप्रेम जताने के लिए कुछ न कुछ बोलना पड़ता है। जबकि उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। उनकी पत्नी गौरी एक हिन्दू हैं। उनके जीवन में कभी भी धर्म के सवाल पर तनाव नहीं हुआ। लेकिन कुछ लोग मुसलमानों को गलत नजरिए से देखते हैं। इस इंटरव्यू के छपते ही मुंबई हमले के मास्टर माइंड और आतंकी संगठन जमात उद दावा के सरगना हाफिज सईद ने शाहरुख की आप बीती का हवाला देते हुए उन्हें पाकिस्तान में बसने का न्यौता दे डाला। पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक बिना सोचे इस मैदान में कूद गए। शाहरुख ने बिना किसी का नाम लिए यह स्पष्ट किया कि कोई उन्हें बेवजह सलाह न दे।