Sunday, November 13, 2011

सच गवारा क्यों नहीं होता!

मालेगांव बम धमाकों के आरोप में गिरफ्तार व मुस्लिम युवकों की 6 साल बाद रिहाई पर चर्चा करते हुए दैनिक `अखबारे मशरिक' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि 2006 में हुए इस धमाके में 37 व्यक्ति मारे गए और सैकड़ों जख्मी हुए। मरने और जख्मी होने वाले सभी मुसलमान थे। प्रशासन ने यह सोचकर कि धमाका करने वाले केवल मुसलमान होते हैं, 9 मुसलमानों को गिरफ्तार कर लिया। इनके घर वाले बराबर यह कहते रहे कि यह लोग बेगुनाह हैं और इनका धमाकों से कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन सरकार ने इनकी फरियाद नहीं सुनी। शुरू में महाराष्ट्र एटीएस ने इस मामले को देखा और उसी के दखल पर इन सबकी गिरफ्तारी हुई थी, बाद में यह केस सीबीआई के हवाले कर दिया जिसके काम करने का तरीका भी एटीएस जैसा ही था। इसी वर्ष असीमानन्द ने इकबाले जुर्म किया कि 2006 में मालेगांव बम धमाके में कट्टरपंथी हिन्दू संगठन का हाथ था। जिसने मालेगांव के अतिरिक्त अजमेर और हैदराबाद की मक्का मस्जिद में भी बम धमाके किए थे। असीमानन्द के कुबूल जुर्म के बाद उर्दू अखबारों और मुस्लिम नेतृत्व ने इन मुस्लिम युवाओं को रिहा कराने का आंदोलन चलाया। इस बाबत महाराष्ट्र मुख्यमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम से मिलकर उन्हें हालात से अवगत कराया गया। शुक्र है कि घटनाओं की रोशनी में सरकार का माइंड सेट बदला है और अब विशाल परिपेक्ष में जांच करने लगी है। सरकार से हमारी मांग है कि वह बम धमाकों में गिरफ्तार मुसलमानों के केसों पर पुनर्विचार करें एवं बम धमाकों में लिप्त हिन्दू संगठनों को सामने लाए और इनके खिलाफ उचित कार्यवाही करे ताकि दुनिया के सामने सही सूरत-ए-हाल आ सके।
`सच गवारा क्यों नहीं होता!' के शीर्षक से दैनिक `जदीद मेल' में अपने सम्पादकीय में उत्तर प्रदेश पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी डीआईजी देवेन्द्र दत्त मिश्रा द्वारा लगाए गए आरोप पर चर्चा करते हुए लिखा है कि वह ईमानदार पुलिस अधिकारी हैं। पुलिस सेवा में आने के बाद से कई जिलों में एसपी रहकर उल्लेखनीय काम किया। इनकी बेहतर सेवा हेतु 1992 में उन्हें आईपीएस का दर्जा मिला। 2006 में उन्हें सैलेक्शन ग्रेड मिला और 2008 में उनको पदोन्नति देकर डीआईजी बना दिया गया। बेहद सादा जिन्दगी गुजारने वाले मिश्रा अचानक पागल कैसे हो गए, यह बात समझ से परे है। वह उसूलों के पक्के थे और ईमानदारी से अपना काम करते थे। शायद यही उनका पागलपन हो कि भ्रष्टाचार के समुद्र में रहकर उन्होंने गोता लगाना गवारा नहीं किया और जब सरकार और उसके अन्दर चल रहे घालमेल को मुंह से बाहर निकालना शुरू कर दिया तो उन्हें मानसिक रूप से पागल करार दे दिया गया। वह तो वही बातें कह रहे थे जो उत्तर प्रदेश सरकार के बारे में मशहूर हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार के बारह मंत्री लोकायुक्त की जांच के घेरे में न होते। वह उसी भ्रष्टाचार को उजागर कर रहे थे जिसके सामने आने पर स्वयं मुख्यमंत्री को मजबूर होकर अपने मंत्रियों को मंत्रिमंडल से हटाना पड़ा है। इसलिए सरकार पर जो आरोप लगाए हैं उसके लिए किसी जांच की जरूरत नहीं है। इस कड़वी सच्चाई को हल्क में उतारने का जब साहस नहीं हुआ तो डीडी मिश्रा को पागल करार दे दिया गया।
सच्चर कमेटी के पांच साल पूरे होने पर दरभंगा (बिहार) के मिल्लत कॉलेज के प्रिंसिपल, डॉ. मुशताक अहमद ने इसकी समीक्षा करते हुए लिखा है कि अब जबकि देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और 2014 में आम चुनाव होंगे तो समय-समय पर मुसलमानों को सुनहरा सपना दिखाया जा रहा है विशेषकर सच्चर कमेटी रिपोर्ट के हवाले से। सच्चर कमेटी के सदस्य सचिव अबु सालेह शरीफ ने भी बीते दिनों इस बात को स्वीकार किया है कि कमेटी जिस मकसद से बनाई गई थी और जिस मेहनत से कमेटी सदस्यों ने इस रिपोर्ट को तैयार किया था इस पर पानी फिर गया है। सच्चर कमेटी रिपोर्ट देश के मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने से अधिक राजनैतिक प्रोपेगंडा ही साबित हुई है। केंद्र सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस रिपोर्ट से मुसलमानों को कुछ मिला हो या नहीं लेकिन यह सच्चाई तो सामने आ ही गई कि इस देश में स्वतंत्रता के 64 वर्षों के बाद भी वह दलितों से पिछड़े हैं। नवम्बर 2006 में जब कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार के हवाले की थी तो मुसलमानों को यह आशा हो चली थी कि देर से ही शायद अब उनकी हालत सुधरने वाली है लेकिन जिस तरह से इसे राजनीतिक हथकंडा बनाया गया न केवल चिन्ताजनक है बल्कि उनके साथ एक बड़ा धोखा है।
उर्दू साप्ताहिक `चौथी दुनिया' ने भारत के अटार्नी `जनरल ई. वाहनवती का असली चेहरा' से प्रकाशित लेख में रुबी अरविन ने लिखा है कि वाहनवती ने न केवल 2जी स्पेक्ट्रम में सरकार की किरकिरी कराई है बल्कि वह पहले भी अपने फैसलों पर सरकार को परेशानी में डाल चुके हैं। ताजा मामला समाजवादी पार्टी सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव की आमदनी से ज्यादा सम्पत्ति का सीबीआई में दर्ज मामला है। सुप्रीम कोर्ट के वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी ने दिल्ली के तिलक मार्ग थाने में अटार्नी जनरल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है जिसमें कहा गया है कि गुलाम वाहनवती ने सीबीआई पर इस बात के लिए दबाव डाला था कि वह मुलायम सिंह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चल रहे आमदनी से ज्यादा सम्पत्ति रखने वाले मामले को रफा-दफा करे। इसके अतिरिक्त वाहनवती ने भोपाल गैस कांड पर भी सरकार की किरकिरी कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फौजी जनरल की आयु विवाद पर इनकी भूमिका ने इस पद की गरिमा को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया। इन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने अपने सुपुत्र ऐसाजी वाहनवती को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी निर्देशों की अवहेलना की। मामला वेदांता नामी कम्पनी से जुड़ा है। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम इस कम्पनी के बोर्ड ऑफ डायरेर्क्ट्स में थे। गुलाम वाहनवती के सुपुत्र ऐसाजी वाहनवती इसके विधि विशेषज्ञ हैं। अगस्त 2010 में वेदांता ने घोषणा की कि वह केरन इंडिया लिमिटेड की 60 फीसदी हिस्सेदारी खरीदना चाहते हैं। यह फाइल उस समय के सालिसीटर जनरल वाहनवती के पास सीधे पहुंच गई। मामला गैस और पेट्रोलियम का था जिसका तरीका यह है कि किसी भी राज्य में स्थित पेट्रोल भंडार पर पहले ओएनजीसी का अधिकार होता है लेकिन यहां गुलाम वाहनवती के बेटे की वजह से वेदांता की फाइल सीधी केंद्र तक पहुंच गई। हालांकि इस मसले पर बाद में काफी विवाद भी हुआ और वाहनवती एवं कानून मंत्रालय को इस बात पर सफाई भी देनी पड़ी।