Saturday, July 30, 2011

दिल्ली पुलिस में मुसलमान प्रमोशन से वंचित'

बीते सप्ताह राजनैतिक, सामाजिक मुद्दों सहित अनेक ज्वलंत मुद्दों पर उर्दू अखबारों ने खुलकर अपना नजरिया पेश किया है। पेश है इस बाबत उर्दू अखबारों की राय। उर्दू का सबसे बड़ा अखबार दैनिक `हिन्द समाचार' ने `गडकरी पहले अपने गिरेबां में झांकें' की शीर्षक से लिखे सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है। कर्नाटक सरकार की तरफ से अधिग्रहण जमीन का अधिग्रहण खत्म कर अपने रिश्तेदारों को अलॉट करने, अपने नजदीकी मंत्री को एक बिल्डर से छह करोड़ रुपये दिलाने और अपने मंत्रिमंडल में शामिल खनन व्यावसायी रेड्डी बंधुओं को लाभ पहुंचाने आदि के आरोप में घिरे मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा अब लोक आयुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े की ओर से सौंपी जाने वाली 1827 करोड़ रुपये के गैर-कानूनी खनन घोटाले से संबंधित रिपोर्ट में बुरी तरह फंस गए हैं।

एक टीवी चैनल की ओर से लोक आयुक्त की लीक हुई इस रिपोर्ट में येदियुरप्पा का नाम आने पर कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों ने जब इससे त्यागपत्र मांगा तो भाजपा अध्यक्ष ने इसका बचाव करते हुए कह दिया कि हम लोक आयुक्त की रिपोर्ट आने के बाद ही इस पर कार्यवाही करेंगे। लेकिन जब 1.76 लाख करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम घोटाले में पूर्व संचार मंत्री ए. राजा ने 25 जुलाई को सीबीआई की विशेष अदालत में यह कहा कि इस लेनदेन में डॉ. मनमोहन सिंह और पी. चिदम्बरम को पूरी जानकारी थी तो गडकरी ने तुरन्त ही दोनों से त्यागपत्र की मांग कर डाली। जहां तक स्पेक्ट्रम घोटाले में राजा के लिप्त होने और इन दोनों को जानकारी होने का सवाल है। गडकरी की मांग सही है लेकिन गडकरी को उनसे त्यागपत्र मांगने का कोई नैतिक हक नहीं है। गडकरी पहले ही यह कर उन्हें `बरी' कर चुके हैं कि येदियुरप्पा की कार्यवाही गैर-कानूनी नहीं अनैतिक है। श्री गडकरी पहले अपनी पार्टी का दामन साफ करें इसके बाद ही कांग्रेस को सफाई की नसीहत दें।

`दिल्ली पुलिस में मुसलमान प्रमोशन से वंचित, 15 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी के बावजूद पुलिस में प्रतिनिधित्व 2 फीसदी से भी कम' के शीर्षक दैनिक `हमारा समाज' में सादिक शेरवानी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि करोड़ों की आबादी के बावजूद दिल्ली में एक भी मुस्लिम डीसीपी नहीं है जिसको फुल चार्ज दिया गया हो। दिल्ली के कुल 186 थानों में तैनात एसएचओ में मुसलमानों की संख्या दो है जबकि कुल 181 एडीशनल एसएचओ में एक भी मुस्लिम नहीं है। 186 इंस्पेक्टर एटीओ में केवल 2एटीओ इंस्पेक्टर मुस्लिम हैं। दिल्ली पुलिस में उच्च पदों पर तरक्की देने से मुसलमानों को रोका जाता है। इस तरह का आरोप लगाते हुए कई संगठनों ने दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग से शिकायत की थी। जिस पर कार्यवाही करते हुए अल्पसंख्यक आयोग ने दिल्ली पुलिस से जानकारी मांगी थी। गृह मंत्रालय द्वारा भेजी रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली पुलिस में स्पेशल/ज्वाइंट एडीशनल पुलिस आयुक्त की कुल संख्या 44 है। इनमें केवल एक मुस्लिम है जबकि तीन सिख समुदाय से हैं। इसी तरह एसीपी की संख्या 266 है और इनमें से केवल 7 मुस्लिम हैं, सिख 18 हैं। इंस्पेक्टरों की कुल संख्या 1315 है जिनमें से केवल 14 मुस्लिम हैं जबकि 40 सिखों को तरक्की दी गई है। इसी तरह हेडकांस्टेबल को तरक्की देकर एएसआई बनाया जाता है। एएसआई की कुल संख्या 6100 है जिनमें से 173 मुस्लिम हैं, 238 सिख हैं अर्थात् प्रमोशन के लिहाज से मुसलमान सिख समुदाय से पीछे हैं।

`हिना रब्बानी का भारत दौरा' के शीर्षक से दैनिक `इंक्लाब' ने चर्चा करते हुए लिखा है कि पाकिस्तान की नई और प्रथम महिला विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार का भारत दौरा उसी सिलसिले की कड़ी है जिसके तहत दोनों देशों के अधिकारी और मंत्री एक-दूसरे से मिलते रहते हैं। हिना रब्बानी ने भारत आने के पूर्व और भारत पहुंचकर जिस तरह के बयानात दिए हैं उनमें डिप्लोमैटिक शब्दों और प्रचलित शब्दावलियों के अलावा यदि कुछ है तो यह कि कुछ नहीं है। उनके यह शब्द आकर्षक हैं इसलिए सुनने में भी अच्छे मालूम होते हैं। दोबारा बातचीत, दूरी से बेहतर हैं और इतिहास से सबक लिया जाता है और इसे बोझ नहीं समझा जाता। हमें इन शब्दों में कोई गम्भीर पहल का जज्बा दिखाई नहीं पड़ता। एक बात साफ है कि पाकिस्तान अपनी शर्तों पर दोस्ती करना चाहेगा तो रिश्ते मजबूत होना तो दूर की बात, दोस्ती का वातावरण भी पैदा नहीं हो सकता। हिना रब्बानी का यह पहला दौरा है। इसी दौरे से उनके अगले दौरे की शुरुआत हो रही है। इस दौरे की कामयाबी ही उनके अगले दौरे की कामयाबी की जमानत होगी ऐसे में फैसला उन्हीं को करना है कि वह क्या चाहती हैं।

दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि लगभग एक सप्ताह बाद संसद का मानसून सत्र शुरू होने वाला है। पहले से ही कई तरफ से घिरी कांग्रेस पार्टी और उनके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और घिरने वाले हैं। विपक्ष ने पहले से ही कई मुद्दों पर सरकार के खिलाफ घेराबंदी तेज कर दी है। ऐसे में ए. राजा का सीबीआई की विशेष अदालत में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर सीधे आरोप लगाने से पार्टी और सरकार दोनों की खासी खिंचाई होने की संभावना है। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले में पहले ही सुप्रीम कोर्ट के फटकार झेल चुके प्रधानमंत्री का नाम अब इस विवाद में घसीटे जाने से यूपीए सरकार में खलबली मचना स्वाभाविक है।

ए. राजा के अदालती बयान से चिंतित सरकार ने अपने रणनीतिकार मंत्रियों की फौज `डैमेज कंट्रोल' के लिए लगा दी है। कपिल सिब्बल से लेकर पी. चिदम्बरम, पवन बंसल और नारायणस्वामी तक सभी राजा के बयानों को एक अपराधी का बयान साबित कर विपक्ष के हमलों का जवाब तैयार करने में जुट गए हैं।

उर्दू अखबारों को घर-घर पहुंचाने के उद्देश्य से इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स प्रोटेक्शन एसोसिएशन ने अपनी मुहिम के पहले दिन इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष शमीम अहमद की अगुवाई में जामा मस्जिद गेट नम्बर 2 पर उर्दू अखबार बेचे गए। तीन घंटों में तीन हजार अखबार बेचे गए। दैनिक `सहाफत' में मोहम्मद अंजुम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि `उर्दू की तरक्की, कौम की तरक्की' का बैनर उठाए मुहिम के कार्यकर्ताओं को देखने के लिए एक भीड़ जमा हो गई। इस मुहिम में दयाल सिंह कॉलेज के उर्दू विभाग के अध्यक्ष डॉ. मौला बख्श, दैनिक `अदंलीब' के सम्पादक मोहम्मद मुस्तकीम खाँ, विख्यात शायर डॉ. शोएब रजा फातमी, डॉ. एमआर कासमी, अब्दुल अलीम अंसारी, डॉ. अमीर अमरोही, अखबार नौ के जावेद कमर, `वक्त और समाज के सम्पादक शमीम अहमद, अख्तर हुसैन अंसारी एवं अन्य जानी-मानी हस्तियां शामिल थीं।' इस मुहिम का मकसद उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा दिलाना और लोगों को उर्दू अखबार खरीद कर पढ़ने के लिए प्रेरित करना है। मुहिम का यह पहला दिन है। मुहिम अभी जारी रहेगी।

Saturday, July 23, 2011

`वोट के बदले नोट' अमर सिंह पर शिकंजा कसा

बीते सप्ताह विभिन्न मुद्दे उर्दू मीडिया में छाये रहे। पेश है इन में से कुछ अखबारों की राय। `नोट के बदले वोट' मामले पर अमर सिंह से पूछताछ करने की इजाजत मिलने पर दैनिक `हमारा समाज' ने चर्चा करते हुए लिखा है कि यह मामला अमर सिंह के एक करीबी साथी संजू सक्सेना की दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तारी के बाद सामने आया है। अमर सिंह पर यह आरोप है कि उन्होंने सांसदों को घूस देने के लिए नोट उपलब्ध कराए थे। संजू सक्सेना के इस आरोप के बाद दिल्ली पुलिस समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह के खिलाफ शिकंजा कसने की पूरी तैयारी कर ली है। दरअसल यह मामला भारत-अमेरिका परमाणु संधि से संबंधित है, जिसके लिए वाम मोर्चों के विरोध के बाद यूपीए सरकार को वोट हासिल करने के लिए लोकसभा सदस्यों को खरीदने की बात सामने आई थी, 22 जुलाई 2008 को वोट हासिल करते समय भाजपा के कुछ सदस्यों ने नोटों की गड्डियां संसद में उछाल कर यह सुबूत देने की कोशिश की थी कि उन्हें वोट देने के लिए खरीदा गया, जिसका संबंध अमर सिंह से जोड़ा जा रहा है। तीन साल का समय गुजरने के बाद सुप्रीम कोर्ट की जब फटकार लगी है तब इस मामले में कुछ प्रगति हुई है। अब जबकि अदालत और संसद के बीच टकराव की बात आ रही है और दोनों के क्षेत्राधिकार पर बहस हो रही है, एक बार फिर यह मामला संगीन हो सकता है कि संसद के लिए कोई दिशा-निर्देश हैं या नहीं?
दारुल उलूम देवबंद के मोहतामिम मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी के मामले को लेकर दैनिक `इंक्लाब' ने रहस्योद्घाटन करते हुए लिखा है कि जांच कमेटी के एक सदस्य कानपुर के मुफ्ती मंजूर अहमद मजहिरी ने किसी जांच के बिना ही अपनी रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट के अनुसार मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी पर लगाए जाने वाले आरोपों की जांच के लिए गठित तीन सदस्य कमेटी के एक सदस्य मुफ्ती इस्माइल मालेगांव ने आगामी 23, 24 जुलाई को कार्यकारिणी (मजलिस शूरा) की बैठक से पूर्व रहस्योद्घाटन करते हुए कहा कि कमेटी में शामिल कानपुर के मुफ्ती मंजूर अहमद ने जांच पूरी किए बिना मौलाना गुलाम वस्तानवी के खिलाफ रिपोर्ट तैयार कर ली थी और मुझसे और मौलाना मोहम्मद इब्राहिम मद्रासी से अपनी तैयार की रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने की बात की थी, लेकिन हम दोनों ने यह कहकर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया कि कार्यकारिणी ने हमें जो जिम्मेदारी दी है उसे ईमानदारी से पूरा करेंगे। मुफ्ती इस्माइल के अनुसार गत महीने होने वाली कार्यकारिणी की बैठक में भाग लेने के लिए पहुंचे तो हम लोगों ने जांच में शामिल मुद्दों पर तफ्तीश करनी चाहिए तो मुफ्ती मंजूर अहमद ने हमारे साथ शामिल होने से साफ इंकार कर दिया। ज्ञात रहे दारुल उलूम देवबंद का मोहतामिम बनाए जाने के बाद मौलाना वस्तानवी ने मोदी के समर्थन में बयान दिया था, जिस पर काफी हंगामा खड़ा हो जाने के कारण मजलिस शूरा ने तफ्तीश के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की थी।
तेलंगाना ः कांग्रेस के `आगे कुआं पीछे खाई' के शीर्षक से दैनिक `हिन्द समाचार' ने लिखा है। 1947 में देश विभाजन के समय हमारे यहां 500 से अधिक छोटे-बड़े राज्य थे जिन्हें सरदार पटेल ने भारत में विलय कराया था। 17 दिसम्बर 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय हुआ। तब आंध्रा प्रदेश के 21 तेलुगूभाषी जिलों में से 9 जिले हैदराबाद और 12 जिले मद्रास रेजीडेंसी के अधीन थे। 1952 में यूं ही श्री रामोलो ने आंध्रा प्रदेश के लिए मरणव्रत रखा और शहीद हो गए। पंडित नेहरू ने 19 दिसम्बर को अलग आंध्रा के गठन की घोषणा की। 1956 में राज्यों की भाषायी आधार पर इन तेलुगूभाषी जिलों को मिलाकर आंध्रा प्रदेश का गठन किया गया था जिसकी राजधानी हैदराबाद बनाई गई लेकिन तेलंगाना के लोगों की शिकायतों की अनदेखी की जाती रही। तेलंगाना के लिए आंदोलन चला रही टीआरएस व सहयोगी पार्टियों का कहना था कि वह ऐसे तेलंगाना से कम कुछ भी मंजूर नहीं करेंगे जिसकी राजधानी हैदराबाद हो। उस समय तो मामला थम गया लेकिन अब फिर गरम हो गया है। कांग्रेस एवं केंद्र सरकार इन मुद्दों पर बुरी तरह फंस चुकी है। इससे राज्य की अगुवाई कर रही रेड्डी सरकार के लिए खतरा पैदा हो गया है। एक तरफ कांग्रेस इसे कुछ महीनों के लिए टालने का प्रयास कर रही है और दूसरी तरफ तेलंगाना राज्य के लिए सभी पार्टियों ने सियासी मुहिम तेज कर दी है। कांग्रेस के नेता गण दो हिस्सों में बंट गए हैं। कर्नाटक एवं तमिलनाडु तो पहले ही कांग्रेस के हाथ से निकल चुके हैं जबकि गत चुनाव में केरल में भी इसे मामूली फर्प से सरकार बनाने में कामयाबी मिली है। ऐसे में यदि आंध्रा प्रदेश भी कांग्रेस के हाथ से निकल गया तो दक्षिण में इसका जनाधार खत्म हो जाएगा। `दार्जिलिंग पर त्रिकोणीय संधि' पर चर्चा करते हुए दैनिक `मुनसिफ' ने लिखा है। इस समय पूरा देश अलग तेलंगाना राज्य की मांग करते देख रहा है। स्वतंत्रता के बाद देश में राज्यों की व्यवस्था को सुचारू करने में जो समस्याएं पेश आईं, उससे देश परिचित है। उसके चलते कुछ अन्य राज्यों के अलग गठन की मांग होने लगी है जिसमें झारखंड, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ की मांगें पूरी हुईं। विदर्भ, बुंदेलखंड, तेलंगाना और गोरखालैंड को अलग करने की मांग अभी पूरी नहीं हुई है। जनता के बीच अलग राज्य की मांग भाषायी और भौगोलिक हालात के अलावा उसी समय उठती है जब राज्य सरकारें और प्रशासन राज्य के हर कोने तक पहुंचने में नाकाम हो जाते हैं। तब जनता में बेचैनी की लहर उठती है। पटना और रांची, भोपाल और जयपुर, लखनऊ और देहरादून के विवादों को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। जहां कहीं अलग राज्य के गठन की मांग उठी वहां राजनैतिक पार्टियों के निजी एजेंडे मांगों पर हावी नजर आए। पश्चिमी बंगाल में इन दिनों ऐसा ही दृश्य दिखाई दे रहा है। पश्चिमी बंगाल के पूर्वी भागों को मिलाकर जिसें दार्जिलिंग, कलम्पांग एवं कर सियांग पहाड़ी क्षेत्र हैं, गोरखालैंड के नाम से अलग राज्य बनाने की मांग 1980 से चली आ रही है। 18 जुलाई 2011 को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, पश्चिमी बंगाल और केंद्र सरकार के बीच एक त्रिकोणीय संधि हुई है जिसके तहत केंद्र सरकार ने गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन के गठन को स्वीकृति दे दी है। दार्जिलिंग में लम्बे समय से जारी नाराजगी को तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने फिलहाल बड़ी चालाकी से सम्भाल लिया है लेकिन इससे अलग गोरखालैंड की मांग ठंडी पड़ जाएगी, ऐसा फिलहाल नजर नहीं आ रहा है।

Friday, July 15, 2011

मुसलमानों का कांग्रेस से मोहभंग

बीते सप्ताह कई मुद्दों को उर्दू अखबारों ने चर्चा का विषय बनाया है। `देश में मस्जिद असुरक्षित, अजान और नमाज पर रोक' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' में मोहम्मद आतिफ ने एक सर्वे रिपोर्ट के हवाले से यह रहस्योद्घाटन किया है। जमीअत उलेमा हिन्द द्वारा सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ और गाजियाबाद का सर्वे कर यह जानकारी एकत्र की है। रिपोर्ट के अनुसार जहां बहुत-सी मस्जिदें गैर-आबाद हैं वहां ऐसी मस्जिदें भी हैं जिन पर कुछ लोगों का कब्जा है और वह उसको स्टोर के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। मेरठ शहर जहां मुसलमानों की जनसंख्या काफी है वहां भी मस्जिद में अजान और नमाज अदा करने की इजाजत नहीं दी जाती है। मिलिट्री एरिया की मस्जिद हाथी खाना इसका उदाहरण है। इस मस्जिद में तीन साल पूर्व नमाज होती थी लेकिन अब हाल यह है कि इसमें किसी को अन्दर तो क्या कैम्पस में भी जाने की इजाजत नहीं है। बहुत सी मस्जिदों के कागजात गायब हैं। यह सूरतेहाल सहारनपुर और मुजफ्फरनगर की कई मस्जिदों की है। सूत्रों के अनुसार जमीअत के वर्किंग ग्रुप में विचार-विमर्श कर आगे की रणनीति तय की जाएगी। सर्वे के मुताबिक प्रशासन के भेदभाव के चलते मस्जिदों की हालत खराब होती जा रही है। सारे सुबूत मुसलमानों के हक में हैं और सारे कागजात मौजूद हैं फिर भी सरकार इसके निर्माण में रुकावट डाल रही है। इस सर्वे के हवाले से जमीअत उलेमा हिन्द सचिव मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मौलाना महमूद मदनी की कोशिश और हिदायत पर सर्वे कराया गया है और वह इस सिलसिले में गंभीरता से रणनीति बनाने पर विचार कर रही है इसके लिए जमीअत उलेमा हिन्द बड़े स्तर पर आंदोलन भी चला सकती है।
`हज घपला से सामाजिक कार्यकर्ता बेचैन' के शीर्षक से मोहम्मद अंजुम ने लिखा है कि हज घपले के रहस्योद्घाटन से लोगों में बेचैनी फैल गई है। ज्यादा कीमत वाली कम्पनी को टेंडर करने वाले मामलों को किसी ने मंत्रालय और अधिकारियों की मिलीभगत बताया और इस भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच कराने की मांग करते हुए इसे 2जी स्पेक्ट्रम से भी बड़ा घोटाला बताया। मुस्लिम पॉलिटिकल कौंसिल के अध्यक्ष डा. तसलीम अहमद रहमानी ने हज सब्सिडी को खत्म करने की मांग करते हुए कहा कि हज कमेटी को खत्म करके एक ग्लोबल कारपोरेशन बनाया जाए जो सभी तरह के अधिकार रखता हो इसके बाद टेंडर भी ग्लोबल स्तर पर हो और जिस कम्पनी का रेट कम हो उसे टेंडर दिया जाए। इससे न केवल हाजियों को आसानी होगी बल्कि सरकार पर भी बोझ कम पड़ेगा। रहमानी के अनुसार टेंडर दिए जाने में नागरिक अड़चन मंत्रालय से लेकर संबंधित अधिकारियों को घूस कमीशन के तौर पर दी जाती थी, पहले यह कमीशन 30 डालर प्रति हाजी था जो अब बढ़कर 70 डालर प्रति हाजी हो गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि एक लाख 40 हजार हाजी जाते हैं तो यह कमीशन कितना हो जाएगा।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की टीम में हुई फेरबदल में एक भी मुस्लिम को शामिल नहीं किए जाने पर दैनिक `हमारा समाज' में आमिर सलीम खाँ ने कुछ मुस्लिम नेताओं के वक्तव्यों को प्रकाशित किया है। कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर मुसलमानों के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा है, सलमान खुर्शीद को तरक्की जरूर दी गई लेकिन मंत्रिमंडल में लिए 8 नए चेहरों में एक भी मुस्लिम नहीं है जबकि मुसलमानों को यूपीए प्रथम और यूपीए द्वितीय से काफी उम्मीदें थीं। फिलहाल मनमोहन सिंह की टीम में वही पांच पुराने मुस्लिम चेहरे हैं। मुसलमानों का प्रतिनिधित्व अब गुलाम नबी आजाद, सलमान खुर्शीद, ई. अहमद और फारुक अब्दुल्ला तक सीमित होगा। यदि मुसलमानों का प्रतिशत सरकार के मुताबिक लगभग 15 फीसदी मान लिया जाए तब भी 67 मंत्रिमंडल मंत्रियों में मुसलमानों की संख्या 8 होनी चाहिए। यूपीए द्वितीय के गठन के समय मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने मंत्रिमंडल में 11 मुसलमानों के प्रतिनिधित्व की सिफारिश की थी लेकिन उन्हें मायूसी हाथ लगी। कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को ठेंगा दिखाने पर मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने कटाक्ष करते हुए कहा कि अब हमें सरकार से उम्मीदें छोड़ देनी चाहिए।
दैनिक `अखबारे मशरिक' ने अपने दूसरे सम्पादकीय में `अल्लाह के नाम पर' चर्चा करते हुए लिखा है कि हाल ही में पड़ोसी देश बंगलादेश में संविधान में संशोधन कर `अल्लाह' की जगह `खालिक' (बनाने वाला) शब्द इस्तेमाल किया गया है। इस पर बंगलादेश में कई स्थानों पर हिंसा भड़क उठी है जिसमें कम से कम एक सौ व्यक्ति जख्मी हुए।
यह मुहिम बंगलादेश की जमीअत इस्लामी चला रही है जिसे विपक्षी पार्टी बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बेगम खालिदा जिया) का समर्थन हासिल है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि संविधान में `खालिक' के बजाय पूर्व की भांति `अल्लाह' शब्द रखा जाए। बंगलादेश की 95 फीसदी जनसंख्या मुसलमानों की है। इन हालात में संविधान से शब्द `अल्लाह' निकाल देना सही नहीं है। बंगलादेश में काफी समय से दो बेगमें, बेगम खालिदा जिया और शेख हसीना वाजिद का शासन रहा है। बेहतर था कि बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी इसको अपना आगामी चुनावी मुद्दा बनाती और कामयाब होने की सूरत में संशोधन करती। बंगलादेश पहले ही गरीबी की मार झेल रहा है यह और ज्यादा हिंसा सहन नहीं कर सकता। इसलिए सारा ध्यान सकारात्मक कार्यों पर केंद्रित होना चाहिए।
`मकतबा जामिया के साथ `जंग' का मजाक' के शीर्षक से मुमताज आलम रिजवी ने लिखा है कि उर्दू किताबें छापने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय मकतबा जामिया दिल्ली के साथ जिस तरह का मजाक किया जा रहा है वह पूरी उर्दू बिरादरी के लिए निन्दनीय घटना है। मकतबा जामिया का दुर्भाग्य यह है कि जामिया मिलिया इस्लामिया की सरपरस्ती होने के बावजूद यह संस्था खस्ता हाल है।
बड़े-बड़े प्रोफेसर और उर्दू प्रेमियों की निगरानी के बावजूद इसकी व्यवस्था खराब से खराब हो चुकी है। कौमी काउंसिल बराए फरोग उर्दू जुबान (एनसीपीयूएल) के साथ हुई संधि से पूर्व मकतबा जामिया के बारे में यह बात आम थी कि यह अपनी जिन्दगी की अंतिम सांसें गिन रहा है। आखिर क्या वजह है कि जामिया मिलिया इस्लामिया इस संस्था की मालिक (स्वामी) होने के बावजूद इसको टेकओवर नहीं कर रही है? जामिया के वर्तमान वाइस चांसलर नजीब जंग से पहले जब प्रोफेसर मुशीरुल हसन जामिया के वीसी और मकतबा जामिया के चेयरमैन थे, उन्होंने भी इस संस्था को बर्बाद करने का काम किया।
22 मई 2011 को जामिया के वीसी नजीब जंग और एनसीपीयूएल के डायरेक्टर हमीद उल्ला भट्ट के बीच जो संधि हुई उसके मुताबिक मकतबा जामिया की किताबों को छापने और इन दोनों संस्थानों के सहयोग से बेचने की बातें तय हुईं। किताबों को बेचने से जो मुनाफा मिलेगा उसका आधा-आधा दोनों संस्था लेंगी। सूत्रों के अनुसार एनसीपीयूएल ने मकतबा जामिया को टेकओवर करने का इरादा किया था जिस पर वीसी नजीब जंग का कहना था कि यह क्या बात हुई कि कल वह कहेगा कि हम जामिया मिलिया इस्लामिया को टेकओवर करना चाहते हैं तो क्या हम जामिया दे देंगे।

राहुल गांधी के मिशन 2012 में मुसलमान कहां?

बीते सप्ताह कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसे उर्दू अखबारों ने विशेष महत्व दिया है। इनमें राहुल गांधी की कोर टीम में एक भी मुस्लिम नहीं, अब भाजपा खेलेगी सिया-सुन्नी खेल, गज्जा जाने वाले सहायता काफिले को यूनान के पोर्ट पर रोका, इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में घपला और लिंग परिवर्तन का आपरेशन छोड़ा, पहला स्तर पूरा करने के बाद सर्जन ने कानूनी इजाजतनामा और जामिया अल-अजहर का फतवा लाने की शर्त लगाई, जैसे अनेक मुद्दे हैं। पेश है उपरोक्त मुद्दों पर उर्दू अखबारों की राय।
दैनिक `जदीद मेल' ने राहुल गांधी के `मिशन 2012' पर चर्चा करते हुए लिखा है कि कांग्रेस का सेक्युलरिज्म एक बार फिर छलावा साबित हुआ। मिशन 2012 में गठित `चुनाव समिति' के 20 सदस्यों में जहां मुसलमानों की संख्या शून्य से कुछ ऊपर है वहीं चुनाव समिति से निर्वाचित सदस्यों पर आधारित `कोर कमेटी' के 6 सदस्यों में एक भी मुसलमान नहीं है। कोर कमेटी सदस्यों में राहुल गांधी महासचिव कांग्रेस पार्टी, यूपी कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी, यूपी मामलों के पार्टी इंचार्ज दिग्विजय सिंह, पिछड़ी जाति नेता और राज्यमंत्री बेनी प्रसाद वर्मा, दलित नेता और एससी आयोग चेयरमैन पीएल पूनिया एवं एमएलए प्रमोद तिवारी शामिल हैं। रीता बहुगुणा बार-बार कह रही हैं कि इस बार मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में टिकट मिलेगा। लेकिन मिशन 2012 के पहले पड़ाव पर ही कांग्रेस का मुसलमानों के साथ यह सलूक जाहिर करता है कि दाल में कुछ काला जरूर है। सूत्रों के अनुसार एससी आयोग के चेयरमैन पीएल पूनिया ने `अंसारी बिरादरी' के लोगों का बॉयोडाटा जमा करना शुरू कर दिया है लेकिन अन्य मुसलमानों की वकालत कौन करेगा, यह सवाल अपनी जगह बरकरार है।
दैनिक `सहाफत' ने भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा की गतिविधियों को उजागर करते हुए लिखा है कि भाजपा अब मुसलमानों को शिया-सुन्नी में बांटने का खेल करने में लगी है जिसके कारण भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के चेयरमैन डॉ. जेके जैन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं और मोर्चा पदाधिकारियों के बीच मतभेद पैदा हो गए हैं। अखबार के अनुसार हाल ही में भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चों के तहत शिया वर्किंग ग्रुप बनाया गया है जिसमें ज्यादातर लोग लखनऊ से लिए गए हैं। इस शिया ग्रुप के सिलसिले में यह बात कही जा रही है कि भाजपा अब शिया-सुन्नी का खेल खेलने की तैयारी में है। डॉ. जैन इसका खंडन करते हैं उनके अनुसार भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चों ने फैसला लिया कि जिस तरह महिला वर्किंग ग्रुप, पिछड़ा वर्किंग ग्रुप, यूथ वर्किंग ग्रुप बनाया गया है इसी तरह शिया वर्किंग ग्रुप भी होना चाहिए ताकि शिया समाज की समस्याओं को हल किया जा सके। इस संबंध में एक कांफ्रेंस 10 जून को लखनऊ में भाजपा नेता राजनाथ सिंह की अगुवाई में होने वाली थी लेकिन अब स्थगित कर दी गई है। अखबार सवाल उठा रहा है कि शक शिया समाज पर नहीं, भाजपा की नीयत पर है आखिर इसे शियों का अचानक ख्याल कैसे आ गया और इस तरह का कार्यक्रम लखनऊ में कराने की क्यों योजना बना रही है जहां पहले से ही शिया-सुन्नी झगड़े होते रहते हैं।
मोहम्मद आतिफ ने गज्जा सहायता के लिए जाने वाले जहाज को यूनान पोर्ट पर रोके जाने पर जहाज काफिले में शामिल और मुस्लिम पालिटिकल कौंसिल ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. टीए रहमानी के हवाले से लिखा है कि मजलूमों के साथ सरकार कैसा बर्ताव करती है इसका इजहार यूनान के पोर्ट पर विश्व शांति मिशन के सदस्यों को रोकने से हो जाता है। उन्होंने कहा कि इस्राइल के लोग लगातार यह झूठा प्रचार कर रहे हैं कि यह काफिला हथियार सप्लाई करने के लिए जा रहा है और इसी को बुनियाद बनाकर वह विभिन्न देशों पर राजनैतिक दबाव डाल रहे हैं एवं शांति मिशन को नाकाम बनाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना था कि इन जहाजों पर जाकर कोई भी व्यक्ति देख सकता है कि इसमें सहायता सामग्री के अतिरिक्त कुछ नहीं है। गज्जा के लोगों पर अत्याचार हो रहा है और जब इसके खिलाफ आवाज बुलंद करने की कोशिश की जाती है तो उसकी आवाज को दबा दिया जाता है या फिर शांति काफिले को रोक देना जैसा सलूक होता है, इस पर विश्व समुदाय को विचार करने की जरूरत है।
दैनिक `अखबारे मशरिक' ने `इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में सदस्यता में गड़बड़ी के चलते संस्था को एक करोड़ 81 लाख रुपये का नुकसान' के शीर्षक से लिखा है कि सेंटर के दो सदस्यों चौधरी जियाउल इस्लाम और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट जैडके फैजान ने इस बात रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज में शिकायत दर्ज कराई है कि इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के प्रशासन ने सदस्यता अभियान में हेराफेरी की है जिसके कारण सेंटर को आर्थिक और तकनीकी तौर पर नुकसान पहुंचा है। वर्ष 2007-08 में 850 व्यक्तियों को लाइफ सदस्यता दी गई जिससे सदस्यता शुल्क दो करोड़ 29 लाख 60 हजार रुपये की रकम सेंटर को मिलनी चाहिए थी जबकि इसी साल 48 लाख 20 हजार रुपये की सदस्यता शुल्क के रूप में जमा दिखाया गया। इस तरह सेंटर को एक करोड़ 81 लाख 40 हजार रुपये का घाटा हुआ। इस बाबत जब एजीएम में सवाल उठाया गया तो जल्द हिसाब देने की बात कर मामले को टाल दिया गया। तीन साल का समय गुजर जाने के बाद इसका कोई हिसाब नहीं दिया गया। सेंटर ने आजीवन सदस्यता शुल्क फीस तीस हजार से बढ़ाकर पचास हजार कर दिया है जबकि सेंटर के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।
`लिंग आपरेशन अधूरा छोड़ा, पहला स्तर पूरा करने के बाद सर्जन ने कानूनी इजाजतनामा और फतवा लाने' के शीर्षक से दैनिक `मुंसिफ' ने लिखा है कि मिस्र में अपनी तरह के अनोखे और दिलचस्प घटना में एक सर्जन ने लिंग परिवर्तन का आपरेशन इसलिए अधूरा छोड़ दिया है कि उसके पास लिंग परिवर्तन करने का फतवा मौजूद नहीं है। सर्जन का कहना है कि आधा आपरेशन करने के बाद उसे ख्याल आया कि उसे यह काम करने से पूर्व उलेमा से फतवा हासिल करना चाहिए था, जो कि नहीं लिया गया, इसलिए उसने यह शर्त लगा दी जिसके कारण लड़के से लड़की बनने वाले के मां-बाप परेशान हैं। मिस्र के अरबी दैनिक `अल हराम' ने सर्जन के नाम को गोपनीय रखते हुए लड़की के पिता के हवाले से लिखा है कि 15 साल की उम्र होने के बाद महसूस किया कि उसमें मर्दों वाले गुण ज्यादा हैं जिस पर उन्हें चिन्ता हुई और उसे लेडी डाक्टर से दिखाया गया।
रिपोर्ट में पुष्टि की गई कि इसमें लड़की वाले गुणों के बजाय लड़कों वाली आदतें ज्यादा हैं उसे नॉर्मल लड़का बनाने के लिए सर्जरी की जरूरत है। इस पर उसे लिंग परिवर्तन करने वाले डाक्टर को दिखाया गया। लेकिन डाक्टर ने पूरा आपरेशन न करके ज्यादती की है। यदि इजाजतनामा और फतवा की जरूरत थी तो उसे पहले बताना चाहिए था। लिंग परिवर्तन न करने वाली लड़की ने बताया कि उसकी दो और बहनें हैं आपरेशन से पूर्व उसे खुशी थी कि वह अपनी बहनों का भाई बन जाएगा। लेकिन अब डाक्टर ने एक नई आजमाइश में डाल दिया है। डाक्टर का कहना है कि इस्लामी शिक्षा के मुताबिक लिंग बनाना खुदा के अधिकार में हैं, किसी इंसान के हाथ में नहीं। ऐसे मामलों में धर्म क्या हिदायत देता है, यह बात उलेमा ही बता सकते हैं, इसलिए वह जामिया अजहर के फतवे के बिना इस आपरेशन को आगे नहीं बढ़ा सकते।