Sunday, June 17, 2012

`सब कोटा संविधान के खिलाफ नहीं'


देश की गिरती अर्थव्यवस्था पर चर्चा करते हुए उर्दू दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि जो बात हम अक्सर कहा करते हैं उसकी पुष्टि अब अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एवं पुअर्स (एस एंड पी) ने कर दी है। हम अकसर कहा करते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की गलत नीतियों, अनिर्णय की आदत ने देश को कंगाली के कगार पर पहुंचा दिया है। भारत की गिरती आर्थिक साख के लिए सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह जिम्मेदार हैं। यह आरोप विपक्षी दलों का नहीं बल्कि एस एंड पी का है। एजेंसी ने भारत की केडिट रेटिंग को और कम करने की चेतावनी देते हुए सीधे शब्दों में कांग्रेस को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। बकौल एजेंसी पार्टी जहां अंदरुनी मतभेदों से भरी है वहीं संप्रग सरकार का ढांचा ही दोषपूर्ण है। एस एंड पी ने संप्रग सरकार के सियासी ढांचे पर भी गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास सर्वोच्च अधिकार है। लेकिन वह कैबिनेट में नहीं हैं जबकि बिना चुने हुए नियुक्त प्रधानमंत्री के पास राजनैतिक फैसला लेने के लिए आधार नहीं है। प्रधानमंत्री को अपने मंत्रिमंडल पर ही कंट्रोल नहीं है। वह अपने मंत्रियों से भी अपनी बात नहीं मनवा सकते, कड़े फैसले लेना तो दूर रहा। सवाल राजनीतिक मंशा पर उठाया गया है और कहा गया है कि सुधार रोकने के लिए विपक्ष या सहयोगी दल नहीं खुद कांग्रेस और सरकार जिम्मेदार है। पार्टी के अन्दर ही इसे रोका जा रहा है।
`आरएसएस और भाजपा का असल मकसद' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि भाजपा की ओर से स्पष्ट तौर पर यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि यह इस देश को हर हाल में हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहती है और यहां सदियों पुरानी वही व्यवस्था स्थापित करना चाहती है जिसके तहत यहां वर्ण व्यवस्था लागू थी। अर्थात् जाति-पाति पर आधारित एक ऐसी व्यवस्था यहां थी जिसने इंसानों को कई भागों में विभाजित कर दिया था। इसे यह भी स्वीकार करना चाहिए वह जैसी व्यवस्था भारत में कायम करना चाहती है उसमें बहुसंख्यक समुदाय के लोगों को ही वर्चस्व हासिल होगा और अल्पसंख्यकों को यहां दूसरे और मुसलमानों को तीसरे दर्जे का नागरिक बनकर रहना होगा अन्यथा उनके साथ वही सुलूक होगा जो गुजरात में 2002 में हुआ था और जो फलस्तीनियों के साथ हो रहा है। इस सिलसिले में आरएसएस बल्कि पूरा संघ परिवार भाजपा के साथ है लेकिन वह खुलकर यह स्वीकार नहीं कर रही है जबकि उसकी इच्छा यही है। भाजपा यदि खुलकर अपने गंतव्य की घोषणा कर दे तो राष्ट्रीय राजनीति की तस्वीर और स्पष्ट हो सकती है और नए राजनैतिक गठजोड़ का रास्ता खुल सकता है। भाजपा और आरएसएस ने अब यह महसूस कर लिया है कि उसके उद्देश्यों को व्यवहारिक रूप से क्रियान्वित करने का काम नरेन्द्र मोदी ही कर सकते हैं। इसीलिए मोदी के सामने आरएसएस और भाजपा एक तरह से नत मस्तक हो गए हैं।
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 4.5 फीसद मुस्लिम ओबीसी आरक्षण को निरस्त किए जाने पर दैनिक `राष्ट्रीय सहारा' ने `धोखा दिया गया या धोखा खाया गया?' के शीर्षक से लिखे अपने सम्पादकीय में लिखा है कि यदि यह सच कि देश तैयार है या नहीं, चावल का एक ही दाना चखना काफी होता है तो सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को स्टे देने से इंकार से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाकी मुकदमे का अंजाम क्या होगा। आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट इसके पूर्व दो बार आंध्र प्रदेश के आदेश को निरस्त कर चुका था जिसमें मुसलमानों को आरक्षण देने की घोषणा की गई थी। आंध्र हाई कोर्ट ने तीसरे आदेश की मंजूरी दी थी जब आंध्र सरकार ने उन मुस्लिम वर्गों को चिन्हित किया जिन्हें ओबीसी करार दिया गया था। समझने वालों को समझ लेना चाहिए था कि धर्म की बुनियाद पर आरक्षण किसी भी हाल में नहीं दिया जा सकता। सलमान खुर्शीद इस बिन्दु को क्यों भूल गए? क्या इसका कारण देश के चार राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव थे। शायद यह भ्रम जानबूझ कर रखा गया कि यह आरक्षण सभी मुसलमानों के लिए है या मुस्लिम ओबीसी के लिए। बहुत से वह तथाकथित मुस्लिम नेता जो आज बड़ी नाराजगी का इजहार कर रहे हैं कल तक खुद भी कह रहे थे कि यह आरक्षण सभी मुसलमानों के लिए है। सबसे ज्यादा भ्रम इन तत्वों ने ही फैलाया। कहा जा रहा है कि मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन होना चाहिए। लेकिन यह बात स्पष्ट नहीं है कि इस तरह का कोई संशोधन संभव भी है अथवा नहीं। क्योंकि सेकुलरिज्म संविधान की रूह है और सेकुलरिज्म में धार्मिक आधार पर किसी भेदभाव की व्यवस्था नहीं रखी गई है। सच तो यह है कि केंद्रीय सरकार और कुछ मुस्लिम नेताओं ने मिलकर मुसलमानों को धोखा दिया है।
`मुस्लिम आरक्षण पर संजीदगी दिखाए सरकार' के शीर्षक से दैनिक `हमारा समाज' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि सरकार अभी तक यह बताने में असमर्थ रही है कि देश में ओबीसी का फीसदी क्या है। क्योंकि मंडल आयोग की रिपोर्ट तो 1935 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित है और इन आंकड़ों को 75 वर्ष का समय गुजर चुका है इसलिए यह आंकड़े अब पुराने हो गए हैं। अब जबकि 13 जून को इस मामले की सुनवाई है तो सरकार को चाहिए कि वह अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों के बारे में ठोस सुबूत पेश करे यदि अदालत उसे नहीं मानती है तो सरकार का फर्ज है कि वह संसद में कानून बनाए इसके बाद मुस्लिम आरक्षण की बात करे या दूसरा तरीका वही है कि मुसलमानों को भी धारा 341 में शामिल किया जाए क्योंकि धारा 341 में मुसलमानों को शामिल न करना उनके अधिकारों का हनन है। एक पिछड़ा हिन्दू, धोबी, नाई, जुलाहा, धुनिया और खटीक को आरक्षण की सुविधा है लेकिन मुस्लिम धोबी, नाई, जुलाहा, धुनिया या कसाई को यह सुविधा नहीं है। इसलिए कांग्रेस को गंभीरता से कदम उठाना चाहिए ताकि देश की दूसरी सबसे बड़ी बहुसंख्यक समूह इससे वंचित न रह रह जाए।
मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार खालिद शेख ने दैनिक `ंइंकलाब' के अपने विशेष लेख में लिखा है कि सब कोटा संविधान के खिलाफ नहीं है। संविधान की धारा 15(4) और 16(4) में है कि यदि जनता का कोई वर्ग सामाजिक और शैक्षिक स्तर पर पिछड़ा हुआ तो उसे दूसरों के बराबर लाने में सरकार शिक्षा व रोजगार में आरक्षण दे। आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के ऐसे ही एक फैसले पर 25 मार्च 2010 को सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें कहा गया है कि मुसलमानों के कुछ वर्ग सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं, इसलिए इस बुनियाद पर कि वह मुसलमान हैं उन्हें आरक्षण से वंचित नहीं रखा जा सकता। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली का यह बयान भी कम अहम नहीं है कि संविधान बनाते समय डॉ. बीआर अम्बेडकर ने मसौदे की धारा 294 में अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की व्यवस्था रखी जिसे देश के विभाजन के बाद फाइनल करते समय निकाल दिया गया।

H � � � � �� ��ती है कि मामला न्यायालय में पहुंचते ही बच निकलने के सारे रास्ते बंद हो जायेंगे। अब सरकारी तौर पर टीम अन्ना को विदेशी हस्तक कह दिया गया है क्या टीम अन्ना इसको अवमानना का मुद्दा बनाकर सरकार को अदालत में घसीटेगी? हरीश खरे ने "ाrक ही कहा है कि मनमोहन सिंह भ्रष्ट नहीं हैं लेकिन भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के गुनाहगार हैं यह बात उनके अधीन रहते हुए कोल ब्लाक आवंटन का विवरण सामने आने से स्पष्ट हो गया है। पहले हम नारा लगाते थे सच्चे का बोलबाला झू"s का मुंह काला। अब सत्ता का नारा है भ्रष्टाचारियों का बोलबाला, सच्चे का मुंह काला। ऐसे में नैतिकता के आधार पर पद त्याग की उम्मीद रेगिस्तान में पानी ढूंढने  समान है। सुब्रह्मण्यम स्वामी की तरह अदालत में ही जाना एकमात्र उपाय है।

Friday, June 8, 2012

`कैसे रुकेंगी मुस्लिम युवाओं की बेजा गिरफ्तारियां'


`भारतीय जनता पार्टी में जारी संकट' पर चर्चा करते हुए उर्दू दैनिक `प्रताप' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि इन दिनों भाजपा में जो संकट चल रहा है वह भाजपा का नहीं बल्कि वह स्पष्ट रूप से संघ का संकट है, संघ के द्वारा पैदा किया गया है और संघ के लिए पैदा किया गया है। संघ बिल्कुल नहीं चाहता कि भाजपा में कोई नेता इतना लोकप्रिय बन जाए कि वह संघ के नेताओं से कभी न दबे और उसका हस्तक्षेप बर्दाश्त न करें। सच तो यह है कि भाजपा में एक की वजह से ही कोई लोकतंत्र नहीं है और जो भी लोकतंत्र दिख रहा है वह संघ निर्देशित है और संघ का कार्यक्षेत्र लगातार सिकुड़ रहा है इसलिए वह अपने लाभ की इकाई मानकर भाजपा पर नियंत्रण बनाए रखना चाहता है और यह तभी सम्भव है जब आडवाणी जैसे नेताओं को नियंत्रित या अलग-थलग करके निप्रभावी कर सके और अपने इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने अपने मोहरे सक्रिय कर दिए हैं। किन्तु सवाल यह है कि जो भाजपा सरकार को सोनिया गांधी का मोहरा बताकर सरकार की आलोचना करती है उसे क्या अधिकार है कि वह सरकार का पावर सेंटर किसी और को बताकर सरकार की आलोचना करे। आखिर भाजपा का भी पावर सेंटर तो संघ है। संघ के अधिनायकवाद एवं कांग्रेस वंशवादी अधिनायकवाद में फर्प क्या है? शायद इस सवाल का जवाब भाजपा और संघ दोनों के पास नहीं है किन्तु यह सवाल उससे पूछा जरूर जाएगा क्योंकि आंतरिक लोकतंत्र का तो दोनों पार्टियों में आभाव है।
`भाजपा का संकट, मोदी और आरएसएस' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि इन दिनों भाजपा के अन्दर जो कुछ हो रहा है उसका प्रभाव सभी राज्यों की यूनिटों पर पड़ा है। लाल कृष्ण आडवाणी जो भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं, ने अपने ब्लाग पर लिखा था कि देश की जनता यूपीए की मनमोहन सरकार से नाराज है तो भाजपा से भी उसे उम्मीद नहीं है, क्योंकि मीडिया ने घोटालों के लिए यूपीए सरकार को कठघरे में खड़ा किया तो भाजपा इसका फायदा उठाने में बुरी तरह नाकाम रही और इसकी अगुवाई वाला राजग इन हालात में भी खरा साबित नहीं हुआ। आरएसएस मुखपत्र `पाञ्जन्य' में कहा गया है कि उड़ीसा, हरियाणा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पश्चिमी बंगाल में भी मोदी पार्टी के वोटों को बढ़ाने में कामयाब रहेंगे। मोदी को लेकर आरएसएस कुछ भ्रम में है। गुजरात दंगों में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि मोदी ने राज धर्म नहीं निभाया। अब मोदी की तुलना उन ही से की जा रही है इससे स्पष्ट है कि संघ के लोग मानसिक रूप से भ्रमित नजर आ रहे हैं और उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि मोदी और भाजपा के बारे में क्या किया जाए।
वरिष्ठ पत्रकार शकील रशीद ने दैनिक `हमारा समाज' में प्रकाशित अपने लेख `कैसे रुकेंगी मुस्लिम युवाओं की बेजा गिरफ्तारियां' में चर्चा करते हुए लिखा है कि भारत न इस्लाम दुश्मन देश न मुस्लिम दुश्मन देश बल्कि एक सेकुलर देश है। लेकिन इस देश के मुसलमानों की एक बड़ी संख्या भय एवं आतंक के साए में जिन्दगी गुजारने पर बिल्कुल उसी तरह विवश है जैसे कि किसी `मुस्लिम दुश्मन' देश के मुसलमान। गत 15 वर्षों से यहां मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारियों का एक ऐसा सिलसिला शुरू है जिसने इस देश के मुसलमानों में `भय की मानसिकता' पैदा कर दी है। मौलाना अरशद मदनी और मौलाना महमूद मदनी से लेकर मौलाना सैयद अहमद बुखारी और जफरुल इस्लाम खां तक मुस्लिम नेतागणों और मुस्लिम बुद्धिजीवियों का मानना है कि पुलिस को मुसलमानों के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। एक मकसद तो यह है कि मुसलमानों को उन्नति से रोका जाए और दूसरा मकसद यह है कि उच्च शिक्षा के रास्ते में रुकावट डाली जाए। इसका नतीजा यही निकलेगा कि मुस्लिम पीछे हो जाएंगे। मुसलमानों को `हाशिए' पर पहुंचाने के इस खेल में हमारी खुफिया एजेंसियां तो शामिल हैं ही शासक वर्ग भी शामिल है। हेमंत करकरे के बाद न कोई `हिन्दू आतंकवादी' गिरफ्तार किया गया और न ही हेमंत करकरे की तफ्तीश को आगे बढ़ाया गया। कई ऐसी घटनाएं हुईं जिनकी छानबीन होनी चाहिए थी। 2009 में जलगांव और कोहलापुर आदि से भारी मात्रा में बम और विस्फोटक सामग्री के साथ गैर मुस्लिमों की गिरफ्तारी हुई और 2010 में कोहलापुर और औरंगाबाद में कुछ लोग पकड़े गए, लेकिन सबके सब रिहा कर दिए गए। ऐसा क्यों किया गया, कोई जवाब देने वाला नहीं है। उलेमा कोई `समाधान' नहीं बता पा रहे हैं। हां कुछ फतवे जरूर आए हैं कि इस्लाम में आतंकवाद हराम है लेकिन यह फतवे मुसलमानों की गिरफ्तारी को नहीं रोक सके हैं।
 कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार सैयद अली ने दैनिक `अखबारे मशरिक' के अपने स्तंभ में `क्या एटीएस का गठन मुसलमानों को तबाह करने के लिए किया गया है' के शीर्षक से लिखा है कि बेकसूर मुसलमानों की अंधाधुंध गिरफ्तारी के खिलाफ अब दिल्ली से दरभंगा तक हाहाकार मची हुई है, रैलियां निकाली जा रही हैं लेकिन गिरफ्तारियां नहीं रुक रही हैं। देश की खुफिया एजेंसियां विशेषकर एटीएस ने पूरे मुस्लिम क्षेत्रों में ऐसा आतंक फैला रखा है कि तौबा ही भली। पहले आईएसआई, लश्कर तैयबा, जैश मोहम्मद और हूजी का नाम लेकर इसके साथ मुसलमानों का रिश्ता जोड़ा जाता था आजकल इंडियन मुजाहिद्दीन जैसा संगठन तलाश कर लिया गया है। आज तक यह पता नहीं चला कि इंडियन मुजाहिद्दीन कौन हैं, कहां पाए जाते हैं और हैं भी या केवल पुलिस की मानसिक पैदावार है। पुलिस को छूट मिली हुई कि वह जो चाहें करें उनसे कोई पूछताछ नहीं हो सकती। इनके खिलाफ बोलने और इन पर मुकदमा चलाने वाला कोई नहीं है और कानून में भी यह कमी है कि पुलिस झूठे आरोप लगाकर किसी की भी जिन्दगी बर्बाद कर दे। गिरफ्तार कर बन्द कर दे लेकिन अदालत में उसे पेश न करे और जब पेश करे तो सबूत पेश करने में असमर्थ हो और उसे रिहा कर दिया जाए लेकिन पुलिस के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो कि उसने झूठे आरोप की बुनियाद पर किसी को क्यों बन्द कराया और न किए गुनाह की सजा दिलाई।
वरिष्ठ टिप्पणीकार एवं भारतीय दर्शन के विशेषज्ञ मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी ने दैनिक `इंकलाब' के अपने स्तंभ में `संघ का फलसफा और मोदी की सुनामी देश को कहां ले जाएगी?' के शीर्षक से लिखा है कि आश्चर्यजनक बात है कि मोदी के आफिस और ड्राइंग रूम में विवेकानंद का फोटो लगा हुआ है लेकिन वह उनका सही हवाला देकर बात करने के बजाए सरकार को आगे बढ़ाने और देश के आम घाटे में लाने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। यदि मोदी माडल देश में कामयाब हो जाएगा तो इसका नक्शा और दिशा क्या होगी। भाजपा और संघ के लोग बहुत पहले से सेकुलर व्यवस्था के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से मुहिम चला रहे हैं। राज्यसभा में भाजपा सदस्य बलबीर पुंज की शायद ही कोई लेखनी ऐसी हो जिसमें सेकुलरों को निशाना न बनाया जाता हो।