प्रधानमंत्री निवास के पास हुए बम विस्फोट को लेकर जहां विभन्न मुस्लिम संगठनों ने इजराइल द्वारा किया जाना बताया वहां उर्दू अखबारों ने इस पर सम्पादकीय भी लिखे। मुस्लिम संगठनों के पदाधिकारियों के बयानों को दैनिक `इंकलाब' ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है। जामा मस्जिद यूनाइटेड फोरम के अध्यक्ष यह्या बुखारी ने कहा है कि इसमें संदेह नहीं कि ईरान पर हमले का माहौल बनाया जा रहा है। ईरान इस तरह का धमाका कर छिछोरी हरकत नहीं करता। सारी दुनिया इजराइल के बारे में अच्छी तरह जानती है। इस हमले में इजराइल का ही हाथ है। वह ईरान को बदनाम करके इस पर हमले का माहौल बना रहा है। ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल महासचिव डॉ. मोहम्मद मंजूर आलम ने इस मानवता विरोधी घटना की निन्दा करते हुए कहा कि यह मैग्नेटिक बम विस्फोट है। इससे पूर्व यह विस्फोट ईरान में किया गया था जिसमें ईरान का एक वैज्ञानिक मारा गया था।
आज का विस्फोट इसको चिन्हित करता है। इस तरह का विस्फोट के विशेषज्ञ सीआईए और मोसाद हैं। मुस्लिम पॉलिटिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. तसलीम रहमानी ने कहा कि इस धमाके की जांच कराई जाए तो इसमें इजराइल का ही हाथ निकलेगा। ईरान और इजराइल की लड़ाई में भारत का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। मजलिस उलेमा हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद कल्बे जव्वाद ने कहा कि ईरान पर इस तरह का आरोप लगाना बिल्कुल गलत है क्योंकि ईरान कभी आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त नहीं रहा है। इजराइल दूतावास की कार में जो धमाका किया गया है वह इजराइल ने खुद ही कराया है। वैलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के महासचिव डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास ने कहा कि इजराइल बुनियादी तौर पर आतंकी देश है। इसने विभिन्न देशों में आतंक फैला रखा है। दूसरे देशों में आतंक फैलाना इसका मिजाज है। आज की घटना इजराइल के किए की प्रतिक्रिया हो सकती है।
यह भी संभव है कि यह विस्फोट भी इसी ने कराया हो। इसके लिए हर चीज संभव है वह इस तरह के षड्यंत्र में लिप्त रहता है। जमाअत उलेमा हिन्द महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने विस्फोट की भर्त्सना करते हुए कहा कि आज के धमाके और अरब देशों एवं ईरान में वहां के वैज्ञानिकों को मारे जाने वाले धमाकों में समानता पाई जाती है। इजराइल आज की तारीख में आतंकवाद का द्योतक बन चुका है। इस संदर्भ में इस तरह के विस्फोट से बहुत से अर्थ निकाले जा सकते हैं।
`बेशक धमाका दिल्ली में हुआ पर निशाने पर इजराइल' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है कि प्रधानमंत्री निवास से महज 400 मीटर की दूरी पर सोमवार दोपहर इजराइली दूतावास की कार में जोरदार विस्फोट हो गया। धमाके के बाद कार में आग लग गई जिससे उसमें सवार एक इजराइली महिला अधिकारी सहित चार लोग घायल हो गए। मोटरसाइकिल सवार आतंकी ने मैग्नेटिक डिवाइस (स्टिकी बम) से चलती इनोवा गाड़ी में धमाका किया। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक जिस तरह के बम का इस्तेमाल इस हमले में हुआ है वह पहली बार देखा गया है। इसे स्टिकी बम कहा जाता है, जिसके चलते इसे किसी वाहन पर चिपका दिया जाता है। इसमें चिपकन का काम बम के साथ लगी मैग्नेट यानि चुम्बक करती है जो कार की लोहे की बॉडी पर हल्के से छूते ही सख्ती से चिपक जाती है। दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक इसमें प्लास्टिक विस्फोटक का इस्तेमाल हल्केपन के लिए किया गया है। साथ ही बम फटने की टाइम सेटिंग मैकेनिज्म भी अपने में नया है।
इस प्रकार के बम का इस्तेमाल होना सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती है। अब तक इस तरह के बमों का उपयोग ईरान और कुछ अरब देशों में होता पाया गया है। सूत्रों की मानें तो दिल्ली में हुए इस हमले में नाइट्रेग्लिसरीन, सल्फर व पोटेशियम क्लोरेट का इस्तेमाल किया गया है। अरब देशों और इजराइल के बीच की लड़ाई में अब भारत भी आ गया है। ईसाई बनाम इस्लाम लड़ाई आज की नहीं, हजारों वर्ष पुरानी है। ईरान पर किसी भी समय अब इजराइल-अमेरिका हमला कर सकते हैं। कहीं दिल्ली के इस विस्फोट से मामले और ज्यादा न बढ़ जाए?
`झूठ के सुपर पॉवर' के शीर्षक से दैनिक `इंकलाब' ने सम्पादकीय में लिखा है कि नई दिल्ली में इजराइली उच्चायोग की कार धमाके का शिकार हुई ही थी कि तेल अबीब ने तेहरान को जिम्मेदार करार दिया जैसे उसके पास धमाके की जांच, धमाका होने के पहले से ही मौजूद ही हो या फिर उसे मालूम हो कि ऐसी कोई घटना होने वाली है। इसीलिए इधर घटना हुई और उधर उसने तेजी से ईरान को दोषी ठहरा दिया। अतीत की घटनाओं पर विचार किया जाए तो मालूम होता है कि तुरन्त आरोप लगाना आतंकी ताकतों का काम है। मकसद यह होता है कि झूठ इतनी बार बोला जाए कि हर कोई इसे सच मान ले। अमेरिकी राष्ट्रपति जब मुस्लिम जगत को संबोधित करता है तो यह साबित करने में लगा रहता है कि उसके हृदय में मुस्लिम जगत का दर्द कूट-कूट कर भरा है, लेकिन उसका आतंक? मुस्लिम देशों के खिलाफ उसका आतंक कभी नहीं रुकता। नई दिल्ली में होने वाले बम धमाके के पीछे ईरान विशेषकर हिजबुल्ला का हाथ देख लिया (क्योंकि वह वही हाथ देखना चाहता था) और अब देखिए किस तरह वाशिंगटन भी पैंतरा बदलता है। इन ताकतों की आंख में ईरान एक लम्बे समय से खटक रहा है। इसलिए किसी न किसी बहाने से उसे निशाना बनाने और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अकेला करने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए भी झूठ का सहारा लिया जा रहा है और इसी का प्रचार किया जा रहा है, यह भूलकर कि तेहरान यदि चाहे तो मिनटों में तेल अबीब को तिगनी का नाच नचा दे।
दैनिक `राष्ट्रीय सहारा' ने `इजराइली सरकार की आपराधिक अन्तरआत्मा' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है कि इजराइली प्रधानमंत्री बिनजामिन नेतनयाहू ने पहले यह बयान दिया कि इन घटनाओं में ईरान का हाथ है, लेकिन चन्द मिनटों में अपना बयान बदल दिया और कहा कि इन घटनाओं को लेबनान की हिजबुल्ला ने अंजाम दिया है। बयान की यह अचानक तब्दीली इजराइली सरकार की अजीब व गरीब लगती है जिसका दावा है कि मोसाद विश्व की सबसे अच्छी गोपनीय एजेंसी है। क्या दुनिया की बेहतरीन एजेंसी यह भी पता नहीं लगा सकी कि इन वारदातों में किसका हाथ है?
लेकिन बयान की यह तब्दीली रसमी नहीं है, सोची-समझी रणनीति का नतीजा है। इजराइल बड़े जोर-शोर से यह प्रचार कर रहा है कि हिजबुल्ला 9/11 जैसे बड़े आतंकवादी हमले की तैयारियां कर रहा है। नई दिल्ली और तेल बेसी में हमले किसने किए यह तो नहीं मालूम, लेकिन इन घटनाओं की रोशनी में इजराइल विशेषकर मोसाद को यह जरूर अहसास हो जाना चाहिए कि कभी-कभी जैसे को तैसा जवाब भी मिल सकता है।
A Blog is specially build for minorities. Where you can find a latest article as well as Issues. there is no need to recognize a muslim but there is a lot of work for humanity.
Friday, February 17, 2012
Saturday, February 11, 2012
क्या नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हो सकते हैं?
हैदराबाद से प्रकाशित उर्दू दैनिक `ऐतमाद' में मीना मैनन ने अपने लेख में बाल ठाकरे द्वारा मुसलमानों के संबंध में पूर्व में की गई टिप्पणी पर चर्चा करते हुए लिखा है कि केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल इंटरनेट पर घृणित और आपत्तिजनक एवं भेदभाव पैदा करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करना चाहते हैं। इनके मंत्रालय ने गत सप्ताह `फेसबुक, गूगल और अन्य वेबसाइटों' के खिलाफ कार्यवाही की इजाजत भी दे दी है। लेकिन पार्टी की अगुवाई वाली महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार शिवसेना सुप्रीम बाल ठाकरे के खिलाफ कार्यवाही करने से बच रही है। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद हुए दंगों के लिए श्रीकृष्णा आयोग ने बाल ठाकरे की लेखनी को इसके लिए जिम्मेदार बताया है। बाल ठाकरे `सामना' अखबार के सम्पादक हैं, उसी में उनके भड़काऊ लेख प्रकाशित हुए। जिस पर उनके खिलाफ कई मुकदमें कायम हुए, लेकिन प्रसासन ने कोई कार्यवाही नहीं की। आरटीआई द्वारा जो विवरण सामने आया है उसके अनुसार 1995 से 1996 तक सत्तासीन शिवसेना और भाजपा सरकार ने और न ही इसके बाद सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में तीन टर्म शासन में रही सरकार ने बाल ठाकरे के खिलाफ कार्यवाही की। दायर किए गए मुकदमें या तो बन्द कर दिए गए या फिर आरोपी की गिरफ्तारी के लिए सरकारी आदेश के इंतजार में ठंडे बस्ते में पड़े हैं।
`यूपी के मुसलमान भाजपा के निशाने पर' शीर्षक से साप्ताहिक `नई दुनिया' ने अपने लखनऊ के विशेष संवाददाता के हवाले से रिपोर्ट में लिखा है कि आरएसएस की पिट्ठू जमाअते मुसलमानों को टिकट देकर अपना उम्मीदवार बना रही है। मुस्लिम संगठन और मुसलमानों की राजनैतिक पार्टियां एकता का भी नाटक रचा रही हैं ताकि मुसलमान इस भ्रम में रहें कि फ्लां मुसलमान को इस पार्टी का वोट भी मिल रहा है और वह इस उम्मीदवार को अपना वोट देकर खुद की निर्णायक हैसियत को खो दें। भाजपा एक ओर मुस्लिम दुश्मनी को बढ़ाने का षड्यंत्र कर रही है, क्योंकि वह जानती है कि जब तक फूट नहीं पड़ेगी, उसकी दाल नहीं गल सकती। तीसरी तरफ वह मुसलमानों को आपस में बांटने का जाल बिछा रही है। संयोगवश कांग्रेस को भी यही रणनीति भाती नजर आ रही है क्योंकि जब तक समाजवादी पार्टी कमजोर नहीं होगी, इसके दिन फिरते नजर नहीं आते। इसलिए वह भी इस खेल में जुटी है और पूरी ताकत से इस जाल को मजबूत कर रही है।
`क्या देश के अगले पीएम नरेन्द्र मोदी हो सकते हैं?' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अगर आज लोकसभा चुनाव हो जाएं तो एक जनमत सर्वेक्षण के दावे के अनुसार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है और कांग्रेस की अगुवाई करने वाले राहुल गांधी के मुकाबले गुजरात मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में बढ़त मिल सकती है। ओआरजी-नील्सन द्वारा कराए इस राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार जाहिर किया गया है कि आज की स्थिति में चुनाव होने पर एनडीए को 180 से 190 सीटें और तीसरे मोर्चों को भी इतनी ही सीटें मिलेंगी जबकि यूपीए को 168-178 सीटें मिलने की उम्मीद जाहिर की गई है। सर्वेक्षण में एक दिलचस्प सवाल यह भी था कि अगर अन्ना हजारे और राहुल गांधी आमने-सामने एक ही सीट पर मुकाबला कर रहे हों तो आप किसको वोट देंगे। इस सवाल पर 60 फीसदी लोगों ने अन्ना के समर्थन में अपना मत दिया जबकि राहुल गांधी को 24 प्रतिशत ने वोट दिया। सबसे दिलचस्प प्रश्न था कि प्रधानमंत्री किसको देखना चाहेंगे? प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में अगस्त 2010 के सर्वेक्षण के मुकाबले राहुल गांधी की लोकप्रियता का ग्रॉफ 24 प्रतिशत से घटकर 17 प्रतिशत पर आ गया है जबकि नरेन्द्र मोदी का ग्रॉफ 12 से बढ़कर 45 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह सर्वेक्षण ऐसे समय सामने आया है जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। सर्वेक्षण में 19 राज्यों में अटकल से चुने गए 90 संसदीय क्षेत्रों के 12 हजार से अधिक लोगों की राय ली गई। नरेन्द्र मोदी आज जनता की नम्बर वन च्वाइस हैं।
`मोदी को राहत' के शीर्षक से दैनिक `जदीद खबर' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि नरेन्द्र मोदी की छत्रछाया में गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार हुआ था। मुख्यमंत्री की इस नरसंहार में जो भूमिका थी वह शासन पर कलंक है। यही कारण है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अहमदाबाद के सहायता शिविरों में पीड़ितों की सुनकर कहा था कि `मोदी को राज धर्म निभाना चाहिए था।' गुजरात नरसंहार में नरेन्द्र मोदी की भूमिका का मामला सुप्रीम कोर्ट में एक से अधिक बार बाहर आ चुका है। लेकिन 2002 में हुए नरसंहार की जांच करने वाले जस्टिस नानावती आयोग ने अभी तक मोदी से कोई पूछताछ नहीं की है। इस आयोग को खुद मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही अत्याधिक दबाव के बाद कायम किया था। आयोग नरेन्द्र मोदी से जिरह करने से परहेज क्यों कर रहा है? यह समझ से परे है। देखना यह है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अख्तियार करता है।
`आधी हकीकत आधा फसाना' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने गत दिनों कहा था कि भाजपा ने अपने शासन काल में प्रसासन अथवा सरकारी तंत्र में संघी-मानसिकता के लोगों को भर दिया था और वही अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की उन्नति में रुकावटें पैदा करते रहे। लेकिन सच्चाई यह है कि संघी मानसिकता के अधिकारी तो सरकारी तंत्र में पहले से मौजूद हैं। भाजपा को तो सत्ता बाद में मिली। इस रतह राहुल गांधी ने पूरी सच्चाई नहीं बताई है। इसके अतिरिक्त खुद कांग्रेस के अन्दर संघी मानसिकता के लोग मौजूद थे और शायद अब भी हैं जो वास्तव में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों का विकास नहीं चाहते थे। इस मानसिकता का प्रतिनिधित्व सरदार वल्लभ भाई पटेल, पंडित गुरु गोविंद सिंह और इन जैसे अन्य नेता करते थे लेकिन राहुल गांधी ने इस सिलसिले में कुछ नहीं किया। अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अवसर पर कांग्रेस का जो घोषणा पत्र जारी हुआ है, उसमें भी अल्पसंख्यकों और मुसलमानों से बहुत से वादे किए गए हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि यह वादे कैसे पूरे होंगे क्योंकि प्रशासन और सरकारी तंत्र में तो संघी मानसिकता के लोग अब भी मौजूद हैं और प्रभावशाली हैं। इस मानसिकता से निपटने के बारे में कांग्रेस नेतृत्व विशेषकर राहुल को कुछ बताना चाहिए। संघी मानसिकता को निप्रभावी करने के लिए कांग्रेस ने क्या रणनीति बनाई है, यह स्पष्ट होना चाहिए।
`यूपी के मुसलमान भाजपा के निशाने पर' शीर्षक से साप्ताहिक `नई दुनिया' ने अपने लखनऊ के विशेष संवाददाता के हवाले से रिपोर्ट में लिखा है कि आरएसएस की पिट्ठू जमाअते मुसलमानों को टिकट देकर अपना उम्मीदवार बना रही है। मुस्लिम संगठन और मुसलमानों की राजनैतिक पार्टियां एकता का भी नाटक रचा रही हैं ताकि मुसलमान इस भ्रम में रहें कि फ्लां मुसलमान को इस पार्टी का वोट भी मिल रहा है और वह इस उम्मीदवार को अपना वोट देकर खुद की निर्णायक हैसियत को खो दें। भाजपा एक ओर मुस्लिम दुश्मनी को बढ़ाने का षड्यंत्र कर रही है, क्योंकि वह जानती है कि जब तक फूट नहीं पड़ेगी, उसकी दाल नहीं गल सकती। तीसरी तरफ वह मुसलमानों को आपस में बांटने का जाल बिछा रही है। संयोगवश कांग्रेस को भी यही रणनीति भाती नजर आ रही है क्योंकि जब तक समाजवादी पार्टी कमजोर नहीं होगी, इसके दिन फिरते नजर नहीं आते। इसलिए वह भी इस खेल में जुटी है और पूरी ताकत से इस जाल को मजबूत कर रही है।
`क्या देश के अगले पीएम नरेन्द्र मोदी हो सकते हैं?' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अगर आज लोकसभा चुनाव हो जाएं तो एक जनमत सर्वेक्षण के दावे के अनुसार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है और कांग्रेस की अगुवाई करने वाले राहुल गांधी के मुकाबले गुजरात मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में बढ़त मिल सकती है। ओआरजी-नील्सन द्वारा कराए इस राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार जाहिर किया गया है कि आज की स्थिति में चुनाव होने पर एनडीए को 180 से 190 सीटें और तीसरे मोर्चों को भी इतनी ही सीटें मिलेंगी जबकि यूपीए को 168-178 सीटें मिलने की उम्मीद जाहिर की गई है। सर्वेक्षण में एक दिलचस्प सवाल यह भी था कि अगर अन्ना हजारे और राहुल गांधी आमने-सामने एक ही सीट पर मुकाबला कर रहे हों तो आप किसको वोट देंगे। इस सवाल पर 60 फीसदी लोगों ने अन्ना के समर्थन में अपना मत दिया जबकि राहुल गांधी को 24 प्रतिशत ने वोट दिया। सबसे दिलचस्प प्रश्न था कि प्रधानमंत्री किसको देखना चाहेंगे? प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में अगस्त 2010 के सर्वेक्षण के मुकाबले राहुल गांधी की लोकप्रियता का ग्रॉफ 24 प्रतिशत से घटकर 17 प्रतिशत पर आ गया है जबकि नरेन्द्र मोदी का ग्रॉफ 12 से बढ़कर 45 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह सर्वेक्षण ऐसे समय सामने आया है जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। सर्वेक्षण में 19 राज्यों में अटकल से चुने गए 90 संसदीय क्षेत्रों के 12 हजार से अधिक लोगों की राय ली गई। नरेन्द्र मोदी आज जनता की नम्बर वन च्वाइस हैं।
`मोदी को राहत' के शीर्षक से दैनिक `जदीद खबर' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि नरेन्द्र मोदी की छत्रछाया में गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार हुआ था। मुख्यमंत्री की इस नरसंहार में जो भूमिका थी वह शासन पर कलंक है। यही कारण है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अहमदाबाद के सहायता शिविरों में पीड़ितों की सुनकर कहा था कि `मोदी को राज धर्म निभाना चाहिए था।' गुजरात नरसंहार में नरेन्द्र मोदी की भूमिका का मामला सुप्रीम कोर्ट में एक से अधिक बार बाहर आ चुका है। लेकिन 2002 में हुए नरसंहार की जांच करने वाले जस्टिस नानावती आयोग ने अभी तक मोदी से कोई पूछताछ नहीं की है। इस आयोग को खुद मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही अत्याधिक दबाव के बाद कायम किया था। आयोग नरेन्द्र मोदी से जिरह करने से परहेज क्यों कर रहा है? यह समझ से परे है। देखना यह है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अख्तियार करता है।
`आधी हकीकत आधा फसाना' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने गत दिनों कहा था कि भाजपा ने अपने शासन काल में प्रसासन अथवा सरकारी तंत्र में संघी-मानसिकता के लोगों को भर दिया था और वही अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की उन्नति में रुकावटें पैदा करते रहे। लेकिन सच्चाई यह है कि संघी मानसिकता के अधिकारी तो सरकारी तंत्र में पहले से मौजूद हैं। भाजपा को तो सत्ता बाद में मिली। इस रतह राहुल गांधी ने पूरी सच्चाई नहीं बताई है। इसके अतिरिक्त खुद कांग्रेस के अन्दर संघी मानसिकता के लोग मौजूद थे और शायद अब भी हैं जो वास्तव में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों का विकास नहीं चाहते थे। इस मानसिकता का प्रतिनिधित्व सरदार वल्लभ भाई पटेल, पंडित गुरु गोविंद सिंह और इन जैसे अन्य नेता करते थे लेकिन राहुल गांधी ने इस सिलसिले में कुछ नहीं किया। अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अवसर पर कांग्रेस का जो घोषणा पत्र जारी हुआ है, उसमें भी अल्पसंख्यकों और मुसलमानों से बहुत से वादे किए गए हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि यह वादे कैसे पूरे होंगे क्योंकि प्रशासन और सरकारी तंत्र में तो संघी मानसिकता के लोग अब भी मौजूद हैं और प्रभावशाली हैं। इस मानसिकता से निपटने के बारे में कांग्रेस नेतृत्व विशेषकर राहुल को कुछ बताना चाहिए। संघी मानसिकता को निप्रभावी करने के लिए कांग्रेस ने क्या रणनीति बनाई है, यह स्पष्ट होना चाहिए।
Thursday, February 2, 2012
शहीदों के लिए जमा राशि किसकी जेब में
बीते दिनों बटला हाउस मुठभेड़ सहित इत्तेहाद पंट और ऑल इंडिया उलेमा मशाएख बोर्ड जैसे अनेक मुद्दे चर्चा का विषय रहे। बटला हाउस मुठभेड़ के बाद मारे गए लड़कों के परिजनों की सहायता राशि की घोषणा पर चर्चा करते हुए बटला हाउस के शहीदों की सहायता राशि को क्या जमीन निगल गई? के शीर्षक से दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सपेस' में रागिब आलिम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि मुठभेड़ में तुरंत बाद उस समय के समाजवादी पार्टी नेता अमर सिंह ने मजलुमों की सहायता के नाम पर जामिया ओल्ड ब्याज एसोसिएशन को 10 लाख रुपए दिए थे एवं जामिया में शिक्षा पाप्त कर रहे छात्रों ने अपने जेब खर्च से बचाकर लगभग 95 हजार रुपया सहायता के नाम पर जमा किया था। इसके अतिरिक्त जामिया टीचर्स एसोसिएशन ने अपनी एक दिन की पगार सहायता के नाम पर दी थी लेकिन दिलचस्प बात यह है कि आज तक यह राशि न साजिद और आतिक के परिजनों को दी गई और न ही जियाउर रहमान और साकिब निसार के मां-बाप को कानूनी सहायता के लिए उपलब्ध कराई गई। इतना ही नहीं बटला हाउस मुठभेड़ के बाद जामिया में पढ़ रहे आतिक और साजिद के बारे में जामिया मिलिया इसलामियां ने इस मामले में कानूनी सहायता का आश्वासन दिया था लेकिन आज तक किसी पीड़ित को कानूनी इमदाद तो दूर की बात है जामिया पशासन ने पीड़ितों से हमदर्दी का इजहार करना भी जरूरी नहीं समझा। इस बाबत आरटीआई कार्यकर्ता अफरोज आलम साहिल द्वारा फण्ड के बारे में पूछे गए सवाल पर जामिया ने किसी भी तरह की जानकारी देने से इंकार किया।
घटना या षड्यंत्र के शीर्षक से दैनिक `जदीद खबर' ने अपने सम्पादकीय में सुपीम कोर्ट द्वारा बाबरी मस्जिद को मात्र घटना माने जाने पर चर्चा करते हुए लिखा है कि हम सुपीम कोर्ट से पूरे आदर के साथ कहना चाहेंगे कि बाबरी मस्जिद की शहादत को षड्यंत्र करार देना बुनियादी सच्चाई से मुंह छुपाने के बराबर है। यह बात साफ है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस एक षड्यंत्र था और इसके पीछे संघ परिवार की एक सुनियोजित और लम्बा राजनैतिक षड्यंत्र शामिल था। हम यह बात भावना में बहकर नहीं कह रहे हैं बल्कि सरकार ने जस्टिस लिब्राहन की अगुवाई में जो जांच आयोग गठित हुआ था उसने अपनी लम्बी जांच रिपोर्ट में इस षड्यंत्र की सभी कड़ियों को जोड़कर अपराधियों को बेनकाब कर दिया है। इन मुजरिमों को सजा दिलाने के लिए सीबीआई ने रायबरेली की विशेष अदालत में जो आरोप पत्र दाखिल किया था उसके आरोपी अपनी जान बचाने के लिए कानूनी रास्तों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस सिलसिले में सीबीआई ने जो ताजा कार्यवाही की है, उसे लालकृष्ण आडवाणी ने अदालती पकिया को हनन करार दिया है। आडवाणी न केवल बाबरी मस्जिद की शहादत के समय घटना स्थल पर मौजूद थे बल्कि वह अन्य नेताओं के साथ कारसेवकों का मनोबल भी बढ़ा रहे थे। इसकी तसदीक आडवाणी की सुरक्षा पर तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मिसेज गुप्ता ने अपने शपथ-पत्र में भी की है।
देवबंदिया की दुश्मनी में हिन्दू परस्त हो गए कछोछवी के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' में पकाशित अनीस अहमद खां ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि बरेलवी सुन्नी मुसलमानों के आल इंडिया उलेमा मशाएख बोर्ड ने अपने समर्थकों को आदेश दिया है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में जहां भी देवबंदी उम्मीदवार खड़े हों उन्हें पराजित किया जाए। यही नहीं बोर्ड के राष्ट्रीय सचिव बाबर अशरफ ने यहां तक कह दिया है कि वह अब देवबंदियों के साथ खुली जंग शुरू कर रहे हैं। इसका पहला स्तर चुनाव से शुरू कर रहे हैं।
साथ ही यह जंग उन सियासी पार्टियों के साथ भी है जो देवबंदियों को अपना उम्मीदवार बनाती हैं। अशरफ यहीं नहीं रुकते उनका कहना है कि हम देवबंदी उम्मीदवारों का न केवल विरोध करेंगे बल्कि उनको जड़ से भी उखाड़ फेकेंगे। रायबरेली से कांग्रेस को जीतने नहीं देंगे और यदि राहुल गांधी यह समझते हैं कि वह केवल देवबंदियों को खुश करके चुनाव जीत लेंगे तो यह उनकी भूल है। क्योंकि रायबरेली में देवबंदी नहीं बरेलवी रहते हैं। ज्ञात रहे आल इंडिया उलेमा मशाएख बोर्ड ने अक्टूबर 2011 में एक कांपेंस कर वहां भी आतंकवाद का कार्ड दिखाया था, वहीं मुरादाबाद की एक कांपेंस में उसके अध्यक्ष सैयद मोहम्मद अशरफ कछोछवी ने देवबंदियों को इस्लाम से खारिज करने तक की मांग कर डाली थी।
यूपी में होगा सोशल इंजीनियरिंग का असली इम्तेहान के शीर्षक से दैनिक `पताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि उत्तर पदेश चुनाव में हर सियासी पार्टी को तथाकथित सोशल इंजीनियरिंग का इमतेहान होने वाला है।
बसपा सुपीमो मायावती द्वारा विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की सूची जारी करते गिनाना शुरू कर दिया कि एससी 88, ओबीसी 113, ब्राह्मण 74, ठाकुर 33 और 85 मुसलमान हैं। जाति-पाति का विवरण देना कोई नई बात नहीं है लेकिन बहन जी की पेस कांपेंस के कुछ घण्टों बाद ही भाजपा की पेस कांपेंस में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अहमद अब्बास नकवी ने भी विवरण पेश किया कि अब तक जारी भाजपा की सूची में कितने पिछड़ों, एससी और ब्राह्मणों को टिकट दिया गया है। कांग्रेस जो ब्राह्मणों की पार्टी मानी जाती हैं उसने भी 325 उम्मीदवारों में से 39 ब्राह्मणों, 51 ठाकुरों, एससी 82 और मुसलमानों को 52 टिकट दिए हैं। समाजवादी पार्टी ने भी टिकट वितरण में अपनी सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ख्याल रखा है। कुल मिलाकर दिलचस्प सूरतेहाल बनी हुई है देखें, यूपी में सोशल इंजीनियरिंग कितनी सफल साबित होती है अथवा किस पार्टी का जाति आंकलन फिट बैठता है।
लखनऊ से पकाशित दैनिक `अवधनामा' में हिसाम सिद्दीकी ने पैसों के लालच में डटा सलमान का इत्तेहाद पंट के शीर्षक से लिखा है कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड सदस्य और दारुल उलूम नदवातुल उलेमा लखनऊ और मौलाना अली मियां परिवार के एक सदस्य सलमान हसनी नदवी ने जिन एक दर्जन कागजी पार्टियों को जोड़कर एक बेमेल शादी की भी उसमें केवल तेरह दिनों में ही तलाक हो गया। तलाक भी काले धन के बंटवारे के कारण हुआ। सलमान नदवी ने ऐलान किया कि पीस पार्टी आल इंडिया ने मनमाने तरीके से अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया। पीस पार्टी में मोटी रकमें लेकर टिकट दिए गए इसालिए पीस पार्टी को इत्तेहाद पंट से निकाल दिया गया।
पीस पार्टी का कहना है किसलमान नदवी ने केवल अफवाहों की बुनियादों पर मान लिया था और वह कह रहे थे कि उम्मीदवारों से ली गई रकम में उन्हें भी उचित हिस्सा दिया जाए। पार्टी ने जब पैसा लिया ही नहीं था, तो उन्हें थैली कहां से पहुंचाई जाती। पीस पार्टी के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सलमान नदवी के रुख से मौलवियों की बेइमानी और लालची होने का यकीन हो गया।
घटना या षड्यंत्र के शीर्षक से दैनिक `जदीद खबर' ने अपने सम्पादकीय में सुपीम कोर्ट द्वारा बाबरी मस्जिद को मात्र घटना माने जाने पर चर्चा करते हुए लिखा है कि हम सुपीम कोर्ट से पूरे आदर के साथ कहना चाहेंगे कि बाबरी मस्जिद की शहादत को षड्यंत्र करार देना बुनियादी सच्चाई से मुंह छुपाने के बराबर है। यह बात साफ है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस एक षड्यंत्र था और इसके पीछे संघ परिवार की एक सुनियोजित और लम्बा राजनैतिक षड्यंत्र शामिल था। हम यह बात भावना में बहकर नहीं कह रहे हैं बल्कि सरकार ने जस्टिस लिब्राहन की अगुवाई में जो जांच आयोग गठित हुआ था उसने अपनी लम्बी जांच रिपोर्ट में इस षड्यंत्र की सभी कड़ियों को जोड़कर अपराधियों को बेनकाब कर दिया है। इन मुजरिमों को सजा दिलाने के लिए सीबीआई ने रायबरेली की विशेष अदालत में जो आरोप पत्र दाखिल किया था उसके आरोपी अपनी जान बचाने के लिए कानूनी रास्तों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस सिलसिले में सीबीआई ने जो ताजा कार्यवाही की है, उसे लालकृष्ण आडवाणी ने अदालती पकिया को हनन करार दिया है। आडवाणी न केवल बाबरी मस्जिद की शहादत के समय घटना स्थल पर मौजूद थे बल्कि वह अन्य नेताओं के साथ कारसेवकों का मनोबल भी बढ़ा रहे थे। इसकी तसदीक आडवाणी की सुरक्षा पर तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मिसेज गुप्ता ने अपने शपथ-पत्र में भी की है।
देवबंदिया की दुश्मनी में हिन्दू परस्त हो गए कछोछवी के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' में पकाशित अनीस अहमद खां ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि बरेलवी सुन्नी मुसलमानों के आल इंडिया उलेमा मशाएख बोर्ड ने अपने समर्थकों को आदेश दिया है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में जहां भी देवबंदी उम्मीदवार खड़े हों उन्हें पराजित किया जाए। यही नहीं बोर्ड के राष्ट्रीय सचिव बाबर अशरफ ने यहां तक कह दिया है कि वह अब देवबंदियों के साथ खुली जंग शुरू कर रहे हैं। इसका पहला स्तर चुनाव से शुरू कर रहे हैं।
साथ ही यह जंग उन सियासी पार्टियों के साथ भी है जो देवबंदियों को अपना उम्मीदवार बनाती हैं। अशरफ यहीं नहीं रुकते उनका कहना है कि हम देवबंदी उम्मीदवारों का न केवल विरोध करेंगे बल्कि उनको जड़ से भी उखाड़ फेकेंगे। रायबरेली से कांग्रेस को जीतने नहीं देंगे और यदि राहुल गांधी यह समझते हैं कि वह केवल देवबंदियों को खुश करके चुनाव जीत लेंगे तो यह उनकी भूल है। क्योंकि रायबरेली में देवबंदी नहीं बरेलवी रहते हैं। ज्ञात रहे आल इंडिया उलेमा मशाएख बोर्ड ने अक्टूबर 2011 में एक कांपेंस कर वहां भी आतंकवाद का कार्ड दिखाया था, वहीं मुरादाबाद की एक कांपेंस में उसके अध्यक्ष सैयद मोहम्मद अशरफ कछोछवी ने देवबंदियों को इस्लाम से खारिज करने तक की मांग कर डाली थी।
यूपी में होगा सोशल इंजीनियरिंग का असली इम्तेहान के शीर्षक से दैनिक `पताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि उत्तर पदेश चुनाव में हर सियासी पार्टी को तथाकथित सोशल इंजीनियरिंग का इमतेहान होने वाला है।
बसपा सुपीमो मायावती द्वारा विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की सूची जारी करते गिनाना शुरू कर दिया कि एससी 88, ओबीसी 113, ब्राह्मण 74, ठाकुर 33 और 85 मुसलमान हैं। जाति-पाति का विवरण देना कोई नई बात नहीं है लेकिन बहन जी की पेस कांपेंस के कुछ घण्टों बाद ही भाजपा की पेस कांपेंस में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अहमद अब्बास नकवी ने भी विवरण पेश किया कि अब तक जारी भाजपा की सूची में कितने पिछड़ों, एससी और ब्राह्मणों को टिकट दिया गया है। कांग्रेस जो ब्राह्मणों की पार्टी मानी जाती हैं उसने भी 325 उम्मीदवारों में से 39 ब्राह्मणों, 51 ठाकुरों, एससी 82 और मुसलमानों को 52 टिकट दिए हैं। समाजवादी पार्टी ने भी टिकट वितरण में अपनी सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ख्याल रखा है। कुल मिलाकर दिलचस्प सूरतेहाल बनी हुई है देखें, यूपी में सोशल इंजीनियरिंग कितनी सफल साबित होती है अथवा किस पार्टी का जाति आंकलन फिट बैठता है।
लखनऊ से पकाशित दैनिक `अवधनामा' में हिसाम सिद्दीकी ने पैसों के लालच में डटा सलमान का इत्तेहाद पंट के शीर्षक से लिखा है कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड सदस्य और दारुल उलूम नदवातुल उलेमा लखनऊ और मौलाना अली मियां परिवार के एक सदस्य सलमान हसनी नदवी ने जिन एक दर्जन कागजी पार्टियों को जोड़कर एक बेमेल शादी की भी उसमें केवल तेरह दिनों में ही तलाक हो गया। तलाक भी काले धन के बंटवारे के कारण हुआ। सलमान नदवी ने ऐलान किया कि पीस पार्टी आल इंडिया ने मनमाने तरीके से अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया। पीस पार्टी में मोटी रकमें लेकर टिकट दिए गए इसालिए पीस पार्टी को इत्तेहाद पंट से निकाल दिया गया।
पीस पार्टी का कहना है किसलमान नदवी ने केवल अफवाहों की बुनियादों पर मान लिया था और वह कह रहे थे कि उम्मीदवारों से ली गई रकम में उन्हें भी उचित हिस्सा दिया जाए। पार्टी ने जब पैसा लिया ही नहीं था, तो उन्हें थैली कहां से पहुंचाई जाती। पीस पार्टी के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सलमान नदवी के रुख से मौलवियों की बेइमानी और लालची होने का यकीन हो गया।
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