Friday, June 8, 2012

`कैसे रुकेंगी मुस्लिम युवाओं की बेजा गिरफ्तारियां'


`भारतीय जनता पार्टी में जारी संकट' पर चर्चा करते हुए उर्दू दैनिक `प्रताप' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि इन दिनों भाजपा में जो संकट चल रहा है वह भाजपा का नहीं बल्कि वह स्पष्ट रूप से संघ का संकट है, संघ के द्वारा पैदा किया गया है और संघ के लिए पैदा किया गया है। संघ बिल्कुल नहीं चाहता कि भाजपा में कोई नेता इतना लोकप्रिय बन जाए कि वह संघ के नेताओं से कभी न दबे और उसका हस्तक्षेप बर्दाश्त न करें। सच तो यह है कि भाजपा में एक की वजह से ही कोई लोकतंत्र नहीं है और जो भी लोकतंत्र दिख रहा है वह संघ निर्देशित है और संघ का कार्यक्षेत्र लगातार सिकुड़ रहा है इसलिए वह अपने लाभ की इकाई मानकर भाजपा पर नियंत्रण बनाए रखना चाहता है और यह तभी सम्भव है जब आडवाणी जैसे नेताओं को नियंत्रित या अलग-थलग करके निप्रभावी कर सके और अपने इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने अपने मोहरे सक्रिय कर दिए हैं। किन्तु सवाल यह है कि जो भाजपा सरकार को सोनिया गांधी का मोहरा बताकर सरकार की आलोचना करती है उसे क्या अधिकार है कि वह सरकार का पावर सेंटर किसी और को बताकर सरकार की आलोचना करे। आखिर भाजपा का भी पावर सेंटर तो संघ है। संघ के अधिनायकवाद एवं कांग्रेस वंशवादी अधिनायकवाद में फर्प क्या है? शायद इस सवाल का जवाब भाजपा और संघ दोनों के पास नहीं है किन्तु यह सवाल उससे पूछा जरूर जाएगा क्योंकि आंतरिक लोकतंत्र का तो दोनों पार्टियों में आभाव है।
`भाजपा का संकट, मोदी और आरएसएस' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि इन दिनों भाजपा के अन्दर जो कुछ हो रहा है उसका प्रभाव सभी राज्यों की यूनिटों पर पड़ा है। लाल कृष्ण आडवाणी जो भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं, ने अपने ब्लाग पर लिखा था कि देश की जनता यूपीए की मनमोहन सरकार से नाराज है तो भाजपा से भी उसे उम्मीद नहीं है, क्योंकि मीडिया ने घोटालों के लिए यूपीए सरकार को कठघरे में खड़ा किया तो भाजपा इसका फायदा उठाने में बुरी तरह नाकाम रही और इसकी अगुवाई वाला राजग इन हालात में भी खरा साबित नहीं हुआ। आरएसएस मुखपत्र `पाञ्जन्य' में कहा गया है कि उड़ीसा, हरियाणा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पश्चिमी बंगाल में भी मोदी पार्टी के वोटों को बढ़ाने में कामयाब रहेंगे। मोदी को लेकर आरएसएस कुछ भ्रम में है। गुजरात दंगों में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि मोदी ने राज धर्म नहीं निभाया। अब मोदी की तुलना उन ही से की जा रही है इससे स्पष्ट है कि संघ के लोग मानसिक रूप से भ्रमित नजर आ रहे हैं और उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि मोदी और भाजपा के बारे में क्या किया जाए।
वरिष्ठ पत्रकार शकील रशीद ने दैनिक `हमारा समाज' में प्रकाशित अपने लेख `कैसे रुकेंगी मुस्लिम युवाओं की बेजा गिरफ्तारियां' में चर्चा करते हुए लिखा है कि भारत न इस्लाम दुश्मन देश न मुस्लिम दुश्मन देश बल्कि एक सेकुलर देश है। लेकिन इस देश के मुसलमानों की एक बड़ी संख्या भय एवं आतंक के साए में जिन्दगी गुजारने पर बिल्कुल उसी तरह विवश है जैसे कि किसी `मुस्लिम दुश्मन' देश के मुसलमान। गत 15 वर्षों से यहां मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारियों का एक ऐसा सिलसिला शुरू है जिसने इस देश के मुसलमानों में `भय की मानसिकता' पैदा कर दी है। मौलाना अरशद मदनी और मौलाना महमूद मदनी से लेकर मौलाना सैयद अहमद बुखारी और जफरुल इस्लाम खां तक मुस्लिम नेतागणों और मुस्लिम बुद्धिजीवियों का मानना है कि पुलिस को मुसलमानों के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। एक मकसद तो यह है कि मुसलमानों को उन्नति से रोका जाए और दूसरा मकसद यह है कि उच्च शिक्षा के रास्ते में रुकावट डाली जाए। इसका नतीजा यही निकलेगा कि मुस्लिम पीछे हो जाएंगे। मुसलमानों को `हाशिए' पर पहुंचाने के इस खेल में हमारी खुफिया एजेंसियां तो शामिल हैं ही शासक वर्ग भी शामिल है। हेमंत करकरे के बाद न कोई `हिन्दू आतंकवादी' गिरफ्तार किया गया और न ही हेमंत करकरे की तफ्तीश को आगे बढ़ाया गया। कई ऐसी घटनाएं हुईं जिनकी छानबीन होनी चाहिए थी। 2009 में जलगांव और कोहलापुर आदि से भारी मात्रा में बम और विस्फोटक सामग्री के साथ गैर मुस्लिमों की गिरफ्तारी हुई और 2010 में कोहलापुर और औरंगाबाद में कुछ लोग पकड़े गए, लेकिन सबके सब रिहा कर दिए गए। ऐसा क्यों किया गया, कोई जवाब देने वाला नहीं है। उलेमा कोई `समाधान' नहीं बता पा रहे हैं। हां कुछ फतवे जरूर आए हैं कि इस्लाम में आतंकवाद हराम है लेकिन यह फतवे मुसलमानों की गिरफ्तारी को नहीं रोक सके हैं।
 कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार सैयद अली ने दैनिक `अखबारे मशरिक' के अपने स्तंभ में `क्या एटीएस का गठन मुसलमानों को तबाह करने के लिए किया गया है' के शीर्षक से लिखा है कि बेकसूर मुसलमानों की अंधाधुंध गिरफ्तारी के खिलाफ अब दिल्ली से दरभंगा तक हाहाकार मची हुई है, रैलियां निकाली जा रही हैं लेकिन गिरफ्तारियां नहीं रुक रही हैं। देश की खुफिया एजेंसियां विशेषकर एटीएस ने पूरे मुस्लिम क्षेत्रों में ऐसा आतंक फैला रखा है कि तौबा ही भली। पहले आईएसआई, लश्कर तैयबा, जैश मोहम्मद और हूजी का नाम लेकर इसके साथ मुसलमानों का रिश्ता जोड़ा जाता था आजकल इंडियन मुजाहिद्दीन जैसा संगठन तलाश कर लिया गया है। आज तक यह पता नहीं चला कि इंडियन मुजाहिद्दीन कौन हैं, कहां पाए जाते हैं और हैं भी या केवल पुलिस की मानसिक पैदावार है। पुलिस को छूट मिली हुई कि वह जो चाहें करें उनसे कोई पूछताछ नहीं हो सकती। इनके खिलाफ बोलने और इन पर मुकदमा चलाने वाला कोई नहीं है और कानून में भी यह कमी है कि पुलिस झूठे आरोप लगाकर किसी की भी जिन्दगी बर्बाद कर दे। गिरफ्तार कर बन्द कर दे लेकिन अदालत में उसे पेश न करे और जब पेश करे तो सबूत पेश करने में असमर्थ हो और उसे रिहा कर दिया जाए लेकिन पुलिस के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो कि उसने झूठे आरोप की बुनियाद पर किसी को क्यों बन्द कराया और न किए गुनाह की सजा दिलाई।
वरिष्ठ टिप्पणीकार एवं भारतीय दर्शन के विशेषज्ञ मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी ने दैनिक `इंकलाब' के अपने स्तंभ में `संघ का फलसफा और मोदी की सुनामी देश को कहां ले जाएगी?' के शीर्षक से लिखा है कि आश्चर्यजनक बात है कि मोदी के आफिस और ड्राइंग रूम में विवेकानंद का फोटो लगा हुआ है लेकिन वह उनका सही हवाला देकर बात करने के बजाए सरकार को आगे बढ़ाने और देश के आम घाटे में लाने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। यदि मोदी माडल देश में कामयाब हो जाएगा तो इसका नक्शा और दिशा क्या होगी। भाजपा और संघ के लोग बहुत पहले से सेकुलर व्यवस्था के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से मुहिम चला रहे हैं। राज्यसभा में भाजपा सदस्य बलबीर पुंज की शायद ही कोई लेखनी ऐसी हो जिसमें सेकुलरों को निशाना न बनाया जाता हो।

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