Friday, January 21, 2011

मदरसों में अमेरिकी शिक्षक!

मदरसे आतंकवाद के अड्डे नहीं हैं और न ही भारतीय मुसलमानों का आतंकवादी संगठन अल-कायदा से कोई संबंध है। लेकिन अब यहां के मदरसों में पढ़ाने के लिए अमेरिका अपने शिक्षक भेजना चाहता है। इस संदर्भ में उसने एक परियोजना तैयार की है, जो विदेश मंत्रालय में विचाराधीन है। मदरसों में अमेरिकी शिक्षकों की भरती का कारण है। दरअसल महाशक्ति देश अपने प्रति मुसलमानों की गलत छवि दूर करना चाहता है। लेकिन क्या मामला इतने तक ही सीमित है या फिर यह मदरसों के पाठ्यक्रम में किसी परिवर्तन का संकेत है? या मदरसों की विचारधारा में, जिसका स्रोत कुरआन व हदीस है, संशोधन करने अथवा उसे प्रभावित करने की मंशा है?

यह प्रस्ताव ओबामा की भारत यात्रा से कोई चार महीने पहले बना था। तब अमेरिकी सरकार के विशेष दूत राशद हुसैन भारत आए थे। यहां उन्होंने पटना, मुंबई, दिल्ली और हैदराबाद सहित अन्य शहरों का भ्रमण करते हुए कॉलेजों, विश्वविद्यालयों का दौरा किया और लोगों को संबोधित भी किया। उन्होंने सरकारी अधिकारियों और बुद्धिजीवियों से मुलाकातें कर आतंकवाद के विरूद्ध लड़ाई, वैश्विक स्वास्थ्य सहित शिक्षा और उद्यम क्षेत्र पर विस्तृत चर्चा की थी। यह प्रस्ताव उनके दौरे के बाद ही सामने आया।

अब यह मामला बेशक विदेश मंत्रालय के अधीन है, लेकिन विशेषज्ञ इस पूरी प्रक्रिया को केंद्रीय मदरसा बोर्ड के गठन के बदले स्वरूप के तौर पर देख रहे हैं। उनका कहना है कि मदरसा बोर्ड का प्रस्ताव सरकार ने अमेरिका के इशारे पर पेश किया था, जिसका मदरसों सहित उलेमा ने विरोध किया था। ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तो इसके खिलाफ बाकायदा मुहिम भी चलाई थी, जिसकेचलते सरकार की यह मुहिम परवान न चढ़ सकी। इस नाकामी के बाद अमेरिका ने अपने शिक्षकों को मदरसों में पढ़ाने हेतु भरती करने की योजना बनाई है।

ओबामा के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी प्रशासन में भारतीय मूल की फराह पंडित, रशद हुसैन एवं उमर खालिदी ने यहां का दौरा कर मुसलमानों से संवाद किया, लेकिन ये सभी अपने मिशन में नाकाम रहे। ओबामा के ये दूत अपने दौरे के दौरान हमारे देश के मुसलमानों को इराक पर हमला, अफगानिस्तान पर बमबारी और फलस्तीन मामले में अमेरिकी नीति को लेकर पूछे गए सवालों का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। उलटे कई जगहों पर ये खुद संकोच का शिकार नजर आए, जिसके चलते मुसलिम समाज ने उनके विचारों को कोई महत्व नहीं दिया।

तसवीर का दूसरा पहलू भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इन दोनों कड़ियों को जोड़ने से जो समीकरण बनता है, वह काफी चौंकाने वाला है। मदरसा बोर्ड को लेकर दारुल उलूम सहित सभी बड़े मदरसों ने इसका विरोध किया था। दारुल उलूम, देवबंद के मोहतामिम के निधन के बाद वहां की कार्यकारिणी (मजलिस शुरा) ने शुरा सदस्य मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी को मोहतामिम बनाया है। मौलाना वस्तानवी दीनी शिया के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा प्राप्त हैं और गुजरात के रहने वाले हैं। वह कई मदरसों का संचालन करते हैं। बताया जाता है कि उन पर हवाला मामले को लेकर भी आरोप लगे हैं। कहते हैं कि उनके कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से भी करीबी रिश्ते हैं। मौलाना वस्तानवी ने मोहतामिम का पद संभालने के बाद कहा है कि आने वाले दिनों में शिक्षा का एक नया चेहरा सामने होगा।

बाबरी विध्वंस के बाद से कांग्रेस लगातार मुसलमानों की नाराजगी झेल रही थी और बार-बार उसे अपने करीब लाने की कोशिश में लगी थी। बताते हैं कि ‘मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून’ से मदरसों को बाहर रखने का सुझाव अहमद पटेल का ही था। इसके द्वारा कांग्रेस ने मुसलमानों को अपने करीब लाने की कोशिश की थी। तब तो वह कोशिश नाकाम हो गई, लेकिन मौलाना वस्तानवी के मोहतामिम बनने के बाद कांग्रेस की मदरसों पर कब्जा करने की पुरानी इच्छा पूरी हो गई हो, तो आश्चर्य नहीं। अब यह देखना दिलचस्प है कि मदरसों में अमेरिकी शिक्षकों की भरती मामले में नए मोहतामिम मौलाना वस्तानवी की अगुवाई में दारुल उलूम, देवबंद इसे निरस्त करता है या बदले हुए परिदृश्य में दोनों एक दूसरे को गले लगाते हैं।

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