Monday, January 31, 2011

मौलाना वस्तानवी मोदी समर्थक और बाल ठाकरे के मुरीद हैं

बीते सप्ताह इस लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रहा कि सभी ज्वलंत मुद्दों पर दारुल उलूम के नए मोहतामिम (वाइस चांसलर) मौलाना गुलाम वस्तानवी का गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के सन्दर्भ में दिया गया बयान एवं उनके द्वारा गत दिनों महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को मूर्ति पेश किए जाने का आरोप सब पर हावी रहा। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ उर्दू अखबारों ने तो इस प्रकरण से पूरा पेज ही भर दिया जबकि कुछ अन्य ने इसे अपने अखबार की पहली खबर बनाई।

हैदराबाद से प्रकाशित दैनिक `मुनसिफ' ने अखबार की पहली खबर लगाकर तीन फोटो के साथ चार कॉलम में पुरी की है। पहला फोटो गुलाम वस्तानवी और दूसरा फोटो नरेन्द्र मोदी का है जिन्हें प्रसन्न मुद्रा में दिखाया गया है जबकि बीच में लगे फोटो में दंगे से प्रभावित रोते हुए हाथ जोड़े हुए एक मुसलमान को दिखाया गया है। एक एजेंसी द्वारा वस्तानवी से लिए गए साक्षात्कार के हवाले से कहा गया है कि गुजरात दंगों में दोनों समुदाय का नुकसान हुआ है किसी का कम, किसी का ज्यादा। अब अदालत का काम है कि पीड़ितों को इंसाफ दिलाए और उन्हें मुआवजा दिलाए। मोदी सरकार को चाहिए कि वह हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव पैदा करने की कोशिश करें। मौलाना ने भाजपा को यह कहते हुए प्रमाणपत्र दे दिया कि इस पार्टी की सोच में तब्दीली हो रही है विशेषकर गुजरात के सन्दर्भ में उसने यह महसूस कर लिया है कि मुसलमानों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने अपनी इस बात के तर्प में कहा कि गत दिनों निकाय चुनावों में भाजपा ने 100 मुस्लिमों को निर्वाचित कराया। मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी के इस बयान को मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने निरस्त कर दिया। मौलाना वस्तानवी इसके पूर्व यह कह चुके हैं कि गुजरात में मुसलमान खुश हैं और उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा रहा है। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है। इस पर पूरे देश में उलेमा सहित अन्य की ओर से तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सदस्य एवं लखनऊ स्थित ऐश बाग ईदगाह के नायब इमाम मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा कि नरेन्द्र मोदी ने ही मुसलमानों का नरसंहार कराया। उनके इस अपराध पर अमेरिका ने मोदी को अपने यहां का वीजा देने से इंकार कर दिया। सेकुलर हिन्दू भी पीड़ितों के इंसाफ के लिए लड़ रहे हैं। उनका कहना था कि मौलाना वस्तानवी ने गुजरात के जिस विकास का जिक्र किया है वह अल्पसंख्यकों के नरसंहार की कीमत पर हुआ है। हम ऐसे किसी विकास का गुणगान नहीं कर सकते जिसके लिए बेकसूरों का खून बहा हो, इस्लाम में यह हराम है। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन कमाल फारुकी ने कहा कि मौलाना वस्तानवी का काम फतवों को जारी करना है न कि मोदी को क्लीन चिट देना। सेकुलर भारत में कोई भी हिन्दू मौलाना के इस बयान की प्रशंसा नहीं करेगा। जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने सचेत किया कि मोहतामिम दारुल उलूम ने तुरन्त क्षमा नहीं मांगी तो अन्य उलेमाओं की सहायता से उनका मुकाबला किया जाएगा।

सोनिया गांधी के राजनीतिज्ञ सलाहकार अहमद पटेल की प्रतिक्रिया को दैनिक `सहाफत' ने लिखा कि `मोहतामिम के लायक नहीं वस्तानवी, मौलाना वस्तानवी की पाचन क्रिया सही नहीं।' अहमद पटेल ने मौलाना वस्तानवी से अपने किसी संबंध का खंडन किया है। उनका कहना है कि जिस तरह आम मुसलमान मुझसे मिलने आते हैं उसी तरह वस्तानवी आए थे। मौलाना वस्तानवी के सुपुत्र मुफ्ती हुजैफा ने अहमद पटेल को अपना नाना बताते हुए राजनीतिक स्तर पर कई दावे कर डाले थे। उनका दावा था कि गुजरात और महाराष्ट्र की कांग्रेस इकाई में जो चाहते वही होता। टिकट के बंटवारे से लेकर अन्य प्रशानिक कार्य में इनकी कोई अनदेखी नहीं कर सकता। अखबार के अनुसार आज यह सभी दावे बेनकाब हो गए। मौलाना वस्तानवी के मोहतामिम बनने के बाद अहमद पटेल से मिलने उनके निवास पर गए थे जिससे यह समझा जा रहा था कि मौलाना वस्तानवी का कांग्रेस और अहमद पटेल से गहरा रिश्ता है। लेकिन जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के हक में बयान आया तो अंदाजा हुआ कि दाल में कुछ काला जरूर है। अखबार के मुताबिक अहमद पटेल ने कहा कि जिस आलिम का संबंध मुसलमानों के कातिल नरेन्द्र मोदी से हो, वह भला हमारा कैसे हो सकता है। इतनी बड़ी संख्या दारुल उलूम के लिए किसी योग्य व्यक्ति को जिम्मेदारी देनी चाहिए, क्योंकि मौलाना वस्तानवी दारुल उलूम देवबंद के मोहतामिम बनने योग्य नहीं हैं।

मौलाना वस्तानवी द्वारा अपने बयान का स्पष्टीकरण दिए जाने पर दैनिक `जदीद खबर' ने दारुल उलूम को बचाइए के शीर्षक से पहले पेज पर सम्पादक मासूम मुरादाबादी ने अपने विशेष सम्पादकीय में लिखा है कि मौलाना वस्तानवी की इस क्षमा याचना और स्पष्टीकरण के आ जाने के बाद होना तो यह चाहिए था कि इस विवादित अध्याय को यहीं बन्द कर दिया जाता। लेकिन अफसोस की बात यह है कि वह तत्व जो मौलाना वस्तानवी के दारुल उलूम के मोहतामिम बनाए जाने से नाराज थे, उन्होंने इस विवाद की आग पर लगातार तेल डालने का काम जारी रखा और इसके नतीजे में जो शोले भड़के वह दारुल उलूम तक जा पहुंचे। पत्रकारिता के नाम पर गंदगी फैलाने वाले कुछ बदनाम अखबार इस विवाद को मिल्लत में बेचैनी, अविश्वास फैलाने का कारण बना रहे हैं। इन अखबारों का संरक्षण वही ताकतें कर रही हैं, जिन्होंने हमेशा पेट्रोल उपलब्ध कराया है। ऐसा लगता है कि इन लोगों को मौलाना वस्तानवी की नियुक्ति से दारुल उलूम पर अपनी पारिवारिक पकड़ खत्म होती हुई नजर आती है। मौलाना वस्तानवी के दारुल उलूम के मोहतामिम पद से त्यागपत्र पर दैनिक `सहाफत' ने अपनी पहली खबर लगाई। `कौम व मिल्लत के सौदागर मौलाना वस्तानवी का त्यागपत्र, मौलाना मुस्तकीम आजमी की प्रतिक्रिया, दारुल उलूम की कार्यकारिणी के फैसले का इंतजार किए बिना मोहतामिम की कुर्सी छोड़कर इज्जत बचाने का सुझाव।' अखबार लिखता है कि समाचार के अनुसार आगामी 15 दिन में कार्यकारिणी की आपातकाल बैठक बुलाकर नए मोहतामिम की घोषणा कर दी जाएगी। मौलाना मुस्तकीम के हवाले से अखबार ने लिखा है कि उन्हें मौलाना वास्तानवी की इस बात पर सख्त आपत्ति है कि यदि कार्यकारिणी कहेगी तो त्यागपत्र दूंगा। उनका कहना है कि मौलाना वस्तानवी को चाहिए कि वह कार्यकारिणी के फैसले का इंतजार किए बिना कार्यकारिणी और मोहतामिम के पद से त्यागपत्र देकर यहां से चले जाएं। मौलाना आजमी का कहना है कि मौलाना वस्तानवी बुनियादी तौर पर तालीम के कारोबारी हैं जैसे महाराष्ट्र में बहुत सारे मंत्रियों ने इंजीनियरिंग और मेडिकल की शिक्षा के कॉलेज खोल रखे हैं उसी तरह से मौलाना वस्तानवी भी हैं। वह डोनेशन लेकर अपने कॉलेजों में दाखिला कराते हैं और यदि कोई गरीब हो तो उसके साथ दो फीसदी की भी छूट नहीं देते। शमा रहबर महाराष्ट्र के हवाले से लिखा है `मोदी समर्थक वस्तानवी अब हिन्दू हृदय सम्राट बाल ठाकरे की गोद में, कट्टर मुस्लिम दुश्मन शिवसेना मुख पत्र `सामना' में उमर बिन खत्ताब वैलफेयर ट्रस्ट की ओर से शिवसेना सुप्रीमो की वर्षगांठ पर मुबारकबाद।' औरंगाबाद (महाराष्ट्र) से फहमी अहमद कादरी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है `24 जनवरी 2011 के शिवसेना मुख पत्र `सामना' में वस्तानवी की एक संस्था उमर बिन खताब वैलफेयर ट्रस्ट का एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ है। इस संस्था के नाजिम फारुक वस्तानवी मौलाना गुलाम वस्तानवी के भतीजे हैं। यह एक डीएड कॉलेज है। आमतौर पर शैक्षिक संस्थानों में दाखिला एवं जरूरी सूचना, आदि प्रकाशित की जाती है लेकिन वस्तानवी के इस अमूबाई अल्लाना वुमेन्स डीएड कॉलेज के विज्ञापन में इस बाबत कुछ नहीं है इसमें शिवसेना सुप्रीमो को उनकी वर्षगांठ पर बधाई दी गई है। अखबार ने `सामना' में छपे विज्ञापन को छापकर सवाल किया है कि इस विज्ञापन का मकसद क्या है...?? काबिलेगौर बात यह है कि मौलाना गुलाम वस्तानवी के सुपुत्र मौलाना सईद अहमद वस्तानवी उमर बिन खताब वैलफेयर ट्रस्ट के उपाध्यक्ष हैं और मौलाना फारुक वस्तानवी जो मौलाना गुलाम वस्तानवी के भतीजे हैं, इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। इस ट्रस्ट के अधीन दो और मदरसे चल रहे हैं जिनके जिम्मेदार मौलाना फारुक वस्तानवी हैं। रिपोर्ट में आगे है कि इससे स्पष्ट है कि वस्तानवी न केवल मोदी समर्थक हैं बल्कि वह बाल ठाकरे के मुरीद भी हैं।

1 comment:

  1. This is very knowledgeable article. i appreciate it. good keep it up your journay

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