Saturday, April 2, 2011

सहाबा की महानता पर अमेरिकी हितों का संरक्षण

इमाम हरम के भारत आगमन पर उर्दू अखबारों ने काफी कुछ लिखा है। जिस तरह उनका प्रचार-प्रसार किया जा रहा था उस पर चर्चा करते हुए एक अखबार ने लिखा है कि यह सुनामी है। सुनामी गुजर जाने के बाद देखिएगा, कैसे-कैसे दृश्य नजर आते हैं। पेश है इस बाबत उर्दू के कुछ अखबारों की राय।

`इमाम हरम का दौरा देवबंद' के शीर्षक दैनिक `उर्दू नेट' में सम्पादक असगर अंसारी ने लिखा है कि मक्का और मदीना की मस्जिद में इमामत के लिए योग्य होना ऐसा ही है जैसा दिल्ली की शाही मस्जिद का मामला है, बाप के बाद बेटा उसके बाद पोता। जिस तरह जामा मस्जिद के शाही इमाम की योग्यता पूर्व इमाम का बेटा होना है उसी तरह मक्का में स्थित हरम का इमाम होना मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब के रिश्तेदारों से होना है। सऊदी अरब ने अपने यहां जारी आंदोलन की लहर को टालने के लिए मसलकी रंग दे दिया है और अमेरिका के इशारे पर इस्राइली हितों को संरक्षण देने हेतु बहरीन में सैनिक हस्तक्षेप कर दिया है। दूसरी ओर सऊदी अरब के धार्मिक विभाग के मंत्रालय ने आम मुसलमानों को यह समझाने की जिम्मेदारी दी है कि सऊदी अरब में इस्लाम के अनुसार शरई सरकार है और इसके खिलाफ गतिविधियां इस्लाम के खिलाफ और गैर शरई हैं। सभी इमामों से कहा गया है कि वह आंदोलनकारियों को शिया करार देकर इस्लामी जगत के लिए खतरा करार दें ताकि सुन्नी मुसलमान इस आंदोलन के खिलाफ एकजुट हो जाएं। सऊदी अरब के सामने सबसे बड़ा मिशन यही है और उसके मंत्री, दूत एवं धार्मिक व्यक्ति इस समय दुनियाभर के दौरे पर हैं। शेख अबुर्दुरहमान बिन अब्दुल अजीज असुदैस का दौरा भी इसी सिलसिले की कड़ी मालूम होता है। कांफ्रेंस के लिए विषय का चयन भी ऐसा है जो मुसलमानों में बहरहाल विवादित है।

`और कितना नीचे उतरेंगे अरशद मियां?' के शीर्षक से वरिष्ठ पत्रकार हफीज नोमानी ने `जदीद' खबर में लिखा है कि उनके प्रेस में सैयद सालार मसूद गाजी के उर्स का पोस्टर छपवाने एक साहब आते थे। एक बार जब वह आए तो उन्होंने कहा कि इस बार पोस्टर में आधे में मेरा फोटो और तीन इंच की मोटी पट्टी में नाम सहित आधे में उर्स का विवरण और कैलेंडर होगा। इसकी संख्या एक लाख होगी। यह पूछने पर कि इस बार ऐसा अलग क्यों हैं, उन्होंने कहा कि वह चुनाव लड़ना चाहते हैं इसीलिए आधे में फोटो और आधे में कैलेंडर है ताकि लोगों के घर में लगा रहे और सालभर लोग मुझे देखकर याद करते रहें। इस उदाहरण को देने के बाद वह लिखते हैं अगर हमारी बात गलत है तो माफ कर दीजिएगा। हमें बिल्कुल ऐसा लग रहा है कि जैसे हमारे दोस्त सैयद सालार मसूद गाजी की गोद में बैठकर संसद में पहुंचना चाहते हैं। मौलाना अरशद मदनी बिना जरूरत और बिना किसी कारण पैगम्बर मोहम्मद के महान साथियों (सहाबा) को जमीअत उलेमा के लिए इस्ताल कर रहे हैं। दिल्ली में लाख दो लाख मुसलमानों को जमा करके अपनी लोकप्रियता का प्रदर्शन कर राज्यसभा की सदस्यता के लिए रास्ता साफ कर रहे हैं।

`सहाबा की महानता के नाम पर अमेरिकी हितों का संरक्षण' के तहत डॉ. मुजफ्फर हुसैन गजाली ने `सेकुलर कयादत' में लिखा है। हिन्दुस्तानी मुसलमान यह महसूस करते हैं कि ऐसे समय में सहाबा की महानता पर कांफ्रेंस करना जबकि मुस्लिम देशों में तानाशाहों के खिलाफ लोकतंत्र के हक में एक जबरदस्त इंकलाब आया हुआ है जिसकी शुरुआत ईरान से हुई थी। इत्तेहाद मिल्लत (मुस्लिम एकता) को नुकसान पहुंचाना है। मुस्लिम दुनिया में जो हालात पैदा हो रहे हैं उनसे ईरान के लिए मुसलमानों में गुंजाइश पैदा हुई है और शिया-सुन्नी करीब आए हैं। अरशद मदनी की सहाबा की महानता कांफ्रेंस मुस्लिम हित की नहीं बल्कि इस्राइल एवं अमेरिका के हित के संरक्षण की कांफ्रेंस है। सऊदी अरब में लोकतांत्रिक सरकार अमेरिका के हित में नहीं है। ऐसा करने से उसकी पकड़ कमजोर पड़ जाएगी। हो सकता है कि मौलाना मिल्ली इत्तेहाद को नुकसान पहुंचाकर इस अवसर का फायदा उठाने की रणनीति के तहत मैदान में उतरे हों। इससे मौलाना के दो मकसद पूरे हो सकते हैं। एक कांग्रेस उन्हें राज्यसभा में भेज दे तो उनकी मंजिल है दूसरे उन्हें आने वाले चुनावों में मुसलमानों का वोट कांग्रेस के हक में डलवाने का ठेका मिल जाए। `हमारा समाज' में सालिक धामपुरी ने `देखने हम भी पर तमाशा न हुआ' के शीर्षक से लिखा है। इमाम हरम के हमारे देश में आने की सूचना कारोबारी मकसद से निकलन वाले अखबारात में दीनी व मिल्ली जमाअतों बल्कि हमारे उलेमा की ओर से दिए गए लाखों रुपये के विज्ञापनों से पढ़ने को मिली। इमाम हरम का हमारे देश में आने का मकसद क्या है यह हम नहीं जानते, लेकिन इनके आगमन पर हमारी मिल्ली जमाअतों ने अपनी पब्लिसटी का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दिया। 26 मार्च को इमाम हरम को जमाअत इस्लामी हिन्द के मुख्यालय स्थित गुबंद वाली मस्जिद में जोहर की नमाज पढ़ानी थी इसके लिए एक दिन पहले से ही रिक्शे पर ऐलान कराया गया और अखबारों में विज्ञापन दिया गया जिसके कारण भीड़ इतनी हो गई कि वह मस्जिद के अन्दर नहीं जा सके और उन्हें बिना नमाज पढ़ाए ही वापस जाना पड़ा। माना कि भीड़ के कारण वह नमाज नहीं पढ़ा सके लेकिन जमाअत इस्लामी हिन्द कैडर आधारित संगठन होने का दावा करती है। देश की व्यवस्था की तब्दीली की इच्छा रखने वाली जमाअत एक मामूली से कार्यक्रम को कंट्रोल नहीं कर सकी। सुबह से इमाम हरम के जोहर की नमाज अदा कराने का एक मुबारक तमाशे का जो ऐलान हो रहा था, अफसोस कि वह तमाशा न हो सका। `इमाम हरम के दौरे पर सियासी रोटियां सेकने की कोशिश तेज' के तहत देवबंद से रिजवान सलमानी ने `हमारा समाज' में लिखा है कि राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र की यूपीए सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अमेरिका की ओर झुकाव से कांग्रेस की मुसलमानों और सेकुलर लोगों में जो छवि बनी है, इमाम हरम के दौरे से इसमें बदलाव आएगा। कांग्रेस और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने आगे बढ़कर इस कार्यक्रम में भाग लिया और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने उनके लिए अशोका होटल में भोज दिया। उससे कांग्रेस के इरादे किसी से छिपे नहीं रह सके। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि गत कुछ समय से उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से तोड़ने में जीजान से कांग्रेस लगी है। वर्तमान कार्यक्रम को कांग्रेस की इसी नीति का हिस्सा माना जा रहा है।

`इमाम हरम की राजनीति' के शीर्षक से दैनिक `हमारा समाज' में ख्वाजा मजनू ने लिखा है। राजधानी वालों के लिए यह सप्ताह काफी मुबारक था। हर तरफ पवित्र हलचल थी। लोग जा-ए-नमाज (जमीन पर बिछाकर नमाज पढ़ने का कपड़ा) लेकर भागते नजर आ रहे थे। जिन्होंने कभी खुदा का घर नहीं देखा वह भी भगवान राम के मैदान सिजदा करने के लिए बेचैन थे। कोई इसे आधा हज का दर्जा दे रहा था तो कोई हज से भी ज्यादा महत्व देने में लगा था। दिल्ली में इमाम साहब कहां जाएंगे और कहां नहीं जाएंगे इसके लिए अन्दर ही अन्दर खूब खींचातानी हुई। आईटीओ स्थित मस्जिद अब्दुल नबी से 24 घंटे कंट्रोलिंग की कोशिश की जा रही थी।

यहां मुंबई के एक साहब हैं, जिन्हें कुछ लोग मोबाइल आफिस भी कहते हैं। वह एक ट्रेवल एजेंट हैं लेकिन छोटे बाबू की सेवा करना अपना कर्तव्य समझते हैं। छोटे बाबू ने वह कर दिखाया जिससे उनके पूर्वज वर्षों से नहीं करना चाहते थे। सऊदी सरकार के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के लिए मशहूर इनके पूर्वजों की आत्मा को कितनी तकलीफ हुई होगी जब एक सरकारी इमाम के लिए शेखुल इस्लाम का नारा लगा रहे हों। एक ऐसा व्यक्ति कदमों में एक कर्मचारी के गिर पड़ा हो जिनके पूर्वजों के कदमों में पूरा शासन नतमस्तक हुआ हो और उन्होंने उसे ठोकर मार दी हो। खैर, यह तो समय-समय की बात है। हालात सदैव एक जैसे नहीं रहते और बुद्धिजीवी वही है जो हालात के अनुसार फैसला करे, जो अपनी बरतरी के लिए किसी का कदम चूमें और किसी के दर पर माथा टेके।

1 comment:

  1. very nice & important article regarding Muslims.

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