Monday, June 13, 2011

उर्दू प्रेस की माफियागिरी

बीते दिनों उर्दू समाचार पत्रों ने विभिन्न विषयों पर रिपोर्ट प्रकाशित कर पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कराया है। दिल्ली, मुम्बई और लखनऊ से एक साथ प्रकाशित उर्दू दैनिक `सहाफत' में मोहम्मद आतिफ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पिछले कुछ दिनों से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हवाले से जिस तरह की खबरें आ रही हैं उससे ऐसा महसूस हो रहा है कि बोर्ड में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और जो खबरें भी आ रही हैं वह असल मामले में 10 फीसदी से ज्यादा नहीं हैं। जानकार मानते हैं कि बोर्ड के अन्दर पाई जाने वाली यह बेचैनी व्यक्तिगत हितों के लिए है तभी तो इस पूरे में राजनीति हो रही है। कहने को तो बोर्ड महासचिव की गतिविधियों को लेकर उन्हें कठघरे में खड़ा किया जा रहा है लेकिन यदि बिटविन द लाइन जाकर समीक्षा की जाए तो यह सच्चाई सामने आती है कि वह एक तीर से दो शिकार करना चाहते हैं। किसी भी संस्था में यदि महासचिव पर से भरोसा खत्म हो जाए अथवा उसकी कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ जाए तो निश्चित रूप से केवल महासचिव को ही इसके लिए आरोपी नहीं ठहराया जा सकता बल्कि इस संस्था का अध्यक्ष भी इस आरोप में इनके साथ शरीक माना जाएगा। ऐसी स्थिति में यदि महासचिव को उसके पद से मुक्त किया जाता है तो बोर्ड अध्यक्ष अपने पद पर कैसे बने रह सकेंगे। बुनियादी सवाल यह है कि अचानक ऐसी क्या बात हो गई कि महासचिव की योग्यता और कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे और जो लोग सवाल उठा रहे हैं, वह कौन हैं और क्या चाहते हैं?

उर्दू दैनिक `हमारा समाज' में सादिक शेरवानी ने `उर्दू प्रेस क्लब की बेबुनियाद हवाबाजी, पदाधिकारी पत्रकार नहीं, कोई पत्रकार नहीं, कार्यालय का पता नहीं, सरपरस्तों का उर्दू का कोई अखबार नहीं, फिर भी नाम है उर्दू प्रेस क्लब' पर चर्चा करते हुए लिखा है कि आए दिन खबरें आती हैं कि फ्लां नकली कम्पनी से ठगी का मामला सामने आया है। उर्दू की यह संस्था भी ऐसी है जो अपने नाम से कोसों दूर मेल नहीं खाती लेकिन इसकी कागजी कार्यवाहियां चलती रहती हैं जिससे इनके सरपरस्तों का भला होता रहता है। इसका नाम उर्दू प्रेस क्लब है लेकिन इस संस्था का उर्दू पत्रकारिता से कुछ भी लेना-देना नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि उर्दू प्रेस क्लब में किसी उर्दू अखबार का कोई पत्रकार सदस्य नहीं है, इसके पदाधिकारियों में किसी का संबंध वर्तमान उर्दू पत्रकारिता से नहीं है। लगभग तीन वर्ष पूर्व कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित इसके एक कार्यक्रम में एक गैर उर्दू पत्रकार ने न केवल पैगम्बर इस्लाम की शान में गुस्ताखी की थी बल्कि यहां तक कह दिया कि कुरान से सूरा जिहाद और सूरा तलाक को निकाल दिया जाए। इस पर काफी हंगामा हुआ था। उर्दू प्रेस क्लब इन दिनों उर्दू माफिया बना हुआ है और अब वह देश में पत्रकारिता का शोषण करते हुए विदेश भी पहुंच गया है। सूचना के अनुसार इन दिनों दुबई में इसकी माफियागिरी चल रही है।

दिल्ली, कोलकाता और रांची से एक साथ प्रकाशित होने वाला उर्दू दैनिक `अखबारे मशरिक' ने अपने पहले पेज पर रहस्योद्घाटन करते हुए यह रिपोर्ट छापी है। `मौलाना अरशद मदनी के अतिविश्वास पात्र ने 50 लाख का चूना लगाया, फजलुर रहमान ने सऊदी उच्चायोग से मिली रकम जमा नहीं की। रिपोर्ट के अनुसार जमीयत उलेमा हिन्द (मौलाना अरशद मदनी) की कार्यकारिणी सदस्य और मुख्यालय के एक अहम जिम्मेदार मालना फजलुर रहमान के बारे में यह चर्चा है कि उन्होंने जमीयत उलेमा हिन्द का 50 लाख रुपया हजम कर लिया है। मौलाना अरशद मदनी के विश्वास पात्र समझे जाने वाले मौलाना फजलुर रहमान का संबंध मुंबई से है जहां वह टेवल एजेंसी चलाते हैं लेकिन गत दो वर्ष से जमीयत उलेमा मुख्यालय में रह रहे थे और जमीयत उलेमा हिन्द की आंतरिक और विदश नीतियों में अहम भूमिका निभा रहे थे। गत दिनों पैगम्बर इस्लाम के महान साथियों (सहाबा) की महानता पर कांफ्रेंस के सिलसिले में दिल्ली स्थित सऊदी अरब उच्चायुक्त से मामला इनके ही द्वारा चल रहा था। इस कांफ्रेंस के बारे में आम धारणा थी कि सऊदी सरकार पूरी दुनिया में इस तरह की कांफ्रेंस कर रही है और वही इसका सारा खर्च वहन करती है। सऊदी उच्चायुक्त से अपने सम्पर्प के चलते कांफ्रेंस के अवसर पर अखबार में प्रकाशित विज्ञापन का 50 लाख रुपया मिला था जिसे मौलाना फजलुर रहमान ने जमा नहीं किया और वापस अपने वतन चले गए जिसकी वजह से उनके और मौलाना अरशद मदनी के बीच विवाद पैदा हो गया है।'

उर्द दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' में हज कमेटी में घोटाले और भर्तियों में घपले पर हज कमेटी उपाध्यक्ष हसन अहमद से बात करते हुए लिखा है कि फाइनेंस के मामले में सूरत-ए-हाल काफी खराब है और सदस्यों को पूरी तरह अंधेरे में रखा जाता है। हज कमेटी में हाजियों के भेजे हुए लगभग डेढ़ करोड़ रुपये के ड्राफ्ट ऐसे पड़े हैं जिन्हें हज खाते में जमा नहीं कराया गया और न ही सदस्यों को इस बारे में कुछ बताया गया, उन्होंने सवाल किया कि यह रुपया कहां जाएगा। यह हाजियों का रुपया है और यदि इसमें घपला होता है तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? हसन अहमद ने कहा कि चीफ एक्जीक्यूटिव प्रशासन के मुखिया हैं और उन्होंने भी एक साल से यह नहीं देखा कि इतनी बड़ी रकम के ड्राफ्ट हज कमेटी के खाते में जमा नहीं हुए। उनके अनुसार पिछले कुछ वर्षों के दौरान हुई भर्तियों की जांच होनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि भर्ती में तय मानकों का पालन हुआ या नहीं? इस बाबत एक कमेटी गठित करने का फैसला किया गया है जो तीन महीने में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। जहां तक एक सऊदी अरब में हाजियों के लिए मकान हासिल करने का मामला है। कहने को तो हज कमेटी के सदस्य बिल्डिंग सैलेक्शन कमेटी (बीएससी) वहां जाते हैं, उन्हें कुछ मकान दिखाए जाते हैं और इनमें कुछ सदस्य यदि कुछ मकान बना लेते हैं तो वहां कौंसल जनरल और कौंसल हज इसकी संधि तुरन्त नहीं करते और कह देते हैं कि अभी देखेंगे, हज कमेटी के सदस्य वापस भी आ जाते हैं और मकान की संधि नहीं होती है। उनका कहना था कि बीएससी सदस्यों का सऊदी अरब भेजने का क्या फायदा? इसलिए मकान लेने की पूरी जिम्मेदारी वहां के कौंसल जनरल और कौंसल हज पर ही डाल दी जाए और उन्हें ही जवाबदेह बनाया जाए।

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