Friday, June 24, 2011

हज कमेटी के गठन पर दिल्ली सरकार और कांग्रेस आमने-सामने

बीते सप्ताह कई घटनाओं पर उर्दू समाचार पत्रों ने जो चर्चा की है। उसने निश्चय ही पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कराया है। पेश है इस बाबत कुछ उर्दू अखबारों की राय एवं रिपोर्ट। दैनिक `जदीद मेल' ने जमाअत इस्लामी द्वारा नवगठित राजनीतिज्ञ पार्टी जिसका नाम `वैलफेयर पार्टी' है में `जबरदस्त टकराव' के शीर्षक से लिखा है कि वैसे तो यह पार्टी अपनी स्थापना के दिन से ही विवादित रही है लेकिन इन दिनों बाहरी विवाद के अलावा पार्टी में भीतरी विवाद अपनी चरमसीमा पर है। उल्लेखनीय है कि पार्टी गठन के दिन ही पार्टी को भाजपा के लोगों ने आशीर्वाद देकर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. जेके जैन ने कहा था कि `जमाअत इस्लामी के अधीन वैलफेयर पार्टी जो काम करेगी वही काम मैं पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा से करूंगा।' इस बात पर पार्टी सुप्रीमो मुजतुबा फारुक नाराज भी हुए थे लेकिन जानकारों के अनुसार पार्टी के महासचिव डॉ. कासिम रसूल इलियास के सामने वह बिल्कुल बेबस थे। समाचार के मुताबिक इन दिनों पार्टी में मौजूद कुछ राजनैतिक लोग वैलफेयर पार्टी से नाराज हैं। उनका कहना है कि यदि उन्हें मालूम होता कि पार्टी गैर राजनैतिक लोगों के हाथों की कठपुतली बन जाएगी तो वह पार्टी में शामिल नहीं होते। और तो और जो बैठक दिल्ली में होनी थी, वह हैदराबाद में हो रही है और जो लखनऊ में होनी थी वह दिल्ली में हो रही है। आखिर जब उत्तर प्रदेश में चुनाव नजदीक आ रहे हैं तो पार्टी के लोग साउथ पर इतना फोकस क्यों कर रहे हैं, यह समझ से परे है।
अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले भेदभाव पर जुर्माना और कैद की सजा पर सरकार द्वारा प्रस्तावित कानून का स्वागत करते हुए उसे समय की पुकार बताया है। `जदीद मेल' ने जमाअत इस्लामी हिन्दी के अध्यक्ष मौलाना सैयद जलालउद्दीन उभरी, कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. शकील अहमद और जमीअत उलेमा हिन्द (अरशद मदनी) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी सहित नेशनल काउंसिल फार प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज के डायरेक्टर हमाद उल्ला भट्ट के विचारों को प्रमुखता से प्रकाशित किया है। भट्ट के अनुसार समान अवसर आयोग की बात सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में भी कही थी। उन्होंने कहा कि भेदभाव खत्म करने के लिए केवल प्रशासनिक आदेश काफी नहीं हैं बल्कि मुसलमानों के लिए अलग से कानून बनना चाहिए। पहले यदि विश्वविद्यालयों में दाखिला अथवा नौकरी नहीं मिलती और अपराध साबित हो जाता कि मुसलमान के साथ भेदभाव हुआ है तो सिर्प माफी से काम चल जाता लेकिन आशा है कि ऐसा करने वालों को सजा मिलेगी, देश उन्नति करेगा। संविधान ने अल्पसंख्यकों को जो अधिकार दिए हैं, वह उन्हें मिलेंगे और इससे देश मजबूत होगा।
`अल्पसंख्यकों के फण्ड को दबाए बैठी है सरकार' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' ने पहले पेज पर रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसके मुताबिक अल्पसंख्यक मंत्रालय के विभिन्न योजनाओं की मंजूरी के लिए सरकार के पास अब भी 431.77 करोड़ रुपये बचे हुए हैं। इस मंत्रालय में जो आंकड़े उपलब्ध हैं उनके मुताबिक 43780.40 करोड़ रुपये मंजूर किए गए जबकि इस योजना के तहत अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में मंजूर हुई योजनाओं की लागत 3348.62 करोड़ रुपये है। इसमें से इस वर्ष 31 मार्च तक केंद्र को जो पूरा हिस्सा दिया जा चुका है वह 3111.55 करोड़ रुपये है। अल्पसंख्यक मंत्रालय ने 31 मार्च तक 2162.02 करोड़ रुपए जारी किए हैं।
अल्पसंख्यकों के विकास हेतु यह योजना 2008-09 में शुरू की गई थी और देश की 20 राजधानी सहित केंद्र शासित राज्यों में अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों वाले 90 जिलों में इस काम काम हो रहा है। दिल्ली हज कमेटी का गठन एक ऐसा मामला है जो पिछले पांच सालों से फाइलों में बन्द है। गत दो महीने से यह आशा हो चली थी कि शायद अब कमेटी का गठन हो जाए लेकिन सदस्यों के नामों पर न केवल जनता में विरोध हो रहा है बल्कि खुद राज्य सरकार भी कुछ नामों पर अड़ी हुई है जिसके कारण यह मसला उलझा हुआ है। `महमूद जिया के विरोध में रुकी हुई है फाइल, हज कमेटी में सदस्यों को लेकर राज्य सरकार और कांग्रेस संगठन आमने-सामने' के शीर्षक से दैनिक `हमारा समाज' ने लिखा है कि यदि स्रोतों की मानें तो पार्टी हाई कमान सभी मरहले पूरे कर सात नामों पर मोहर लगा चुकी है और दिल्ली हज कमेटी के चेयरमैन के लिए नकी मल्होत्रा का नाम तय हो चुका है लेकिन अब सारा मामला सीताराम बाजार के पार्षद महमूद जिया पर आकर रुक गया है। राज्य सरकार पार्षद कोटे के लिए महिला सदस्य की जिद पकड़े हुए हैं जबकि कांग्रेस संगठन की ओर से महमूद जिया का नाम दिया गया है। बताया जाता है कि संबंधित मंत्री डॉ. अशोक कुमार वालिया और मुख्यमंत्री में भी सदस्यों के नामों को लेकर मतभेद पाए जा रहे हैं। इस तरह और भी कई अन्य कारण हैं जो हज कमेटी को एक बार फिर लूली-लंगड़ी बनाने पर तुले हैं। ऑल इंडिया रेडियो के उर्दू कार्यक्रमों के गिरते स्तर के लिए अंजुमन तरक्की उर्दू (हिन्द) के महासचिव डॉ. खलीक अंजुम ने उर्दू न जानने वाले कार्यकर्ताओं को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। इसी महीने दिल्ली से प्रकाशित होने वाले दैनिक `इंकलाब' ने उनके विचारों को पेश करते हुए लिखा है कि ऑल इंडिया रेडियो के उर्दू कार्यक्रमों से मेरा संबंध गत 30 वर्षों से है और जिस जमाने में रेडियो वाले मुझे कार्यक्रम में बुलाते थे तो मैं बड़े उत्साह से जाता था लेकिन अब मैं वहां नहीं जाता। क्योंकि वहां का स्तर उर्दू कार्यक्रम को चलाने वाले उर्दू न जानने वाले कार्यकर्ताओं के कारण काफी गिर चुका है। उनका कहना है कि उर्दू सर्विस में उर्दू के कार्यक्रम वे लोग चला रहे हैं जो उर्दू के साहित्य से भी परिचित नहीं हैं। यहां तक उर्दू साहित्यकारों और शायरों को भी नहीं जानते। अपने संबंध वालों को गेस्ट के तौर पर कार्यक्रम में बुलाते हैं और उनको चेक थमा देते हैं। उन्होंने केंद्रीय प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी पर निशाना साधते हुए कहा कि उर्दू रेडियो और उर्दू टीवी के संबंध में संबंधित मंत्री भी भाषायी भेदभाव रखती हैं। क्योंकि कई बार उनको पत्र लिखे कि आप ऑल इंडिया रेडियो के कार्यक्रमों में उर्दू जानने वालों की नियुक्ति करें लेकिन अम्बिका सोनी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।
इस सवाल पर कि आप प्रधानमंत्री से अपनी फरियाद क्यों नहीं करते, के जवाब में डॉ. अंजुम ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री उर्दू दोस्त हैं, उर्दू में भाषण देते हैं, उर्दू लिखते-पढ़ते हैं, लेकिन जिस महिला को यह जिम्मेदारी दी गई है वह इसे ठीक से अंजाम नहीं दे रही है।

No comments:

Post a Comment