Friday, June 17, 2011

बाबा रामदेव का `षड्यंत्र बेनकाब'

योग गुरु बाबा रामदेव द्वारा काला धन देश वापस लाने और राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने की मांग को लेकर रामलीला मैदान में अमरण अनशन के दौरान आधी रात को उन्हें और उनके समर्थकों को प्रशासन द्वारा खदेड़ दिया गया। उस पर चारों ओर से तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। उर्दू अखबारों ने भी इस पर अपना नजरिया पेश किया। कोलकाता, दिल्ली और झारखंड से एक साथ प्रकाशित होने वाले उर्दू दैनिक `अखबारे मशरिक' ने `बाबा रामदेव पर केक डाउन करके सरकार ने अपनी राहों में कांटें बिछा लिए' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है। सच पूछा जाए तो इस मामले में सरकार ने मुंह की खाई है। बाबा रामदेव चाहे फ्रॉड हों या आरएसएस के इशारे पर मैदान में कूदे हों लेकिन वह एक ऐसे मुद्दे (काला धन) को लेकर सामने आए हैं जिसका पूरे देश में समर्थन किया जा रहा है। सरकार ने आ बैल मुझे मार वाली नीति अपनाकर स्वयं अपनी राहों में कांटें बिछा लिए हैं। अल्लाह ही खैर करे।

उर्दू दैनिक `जदीद खबर' ने `सरकार के तेवर' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि बाबा रामदेव का आंदोलन पूरी तरह राजनीति से प्रेरित था और इसे संघ परिवार का समर्थन प्राप्त था लेकिन इसके बावजूद सरकार ने बाबा रामदेव से संवाद किया और केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई मंत्री उनसे बात करने एयरपोर्ट गए। विदेशी बैंकों में जमा काला धन को वापस लाकर गरीबों में बांटने, हजार और पांच सौ रुपये के नोटों को बन्द करने जैसी अव्यवहारिक मांगों पर सरकार ने रामदेव के साथ लम्बी बातचीत का भूत सवार था और वह खुद को अफलातून समझ बैठे थे। सरकार ने बातचीत की नाकामी और बाबा द्वारा वादा तोड़ने के बाद प्रशासनिक कार्यवाही को प्राथमिकता दी, जो ऐसे हालात में जरूरी होती है। बाबा रामदेव की कायरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह रामलीला मैदान में पुलिस का मुकाबला करने के बजाय वहां मौजूद महिलाओं के बीच घुस गए और एक महिला का लिबास पहनकर भागने की कोशिश करते हुए पकड़े गए। अखबार आगे लिखता है कि कांग्रेस वास्तव में इस मामले में गंभीर है और उसने सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने का फैसला किया है तो कोई कारण नहीं कि इन तत्वों को कमजोर न किया जा सके क्योंकि कांग्रेस की कमजोरियों और अनदेखी ने ही इन तत्वों को इतना ताकतवर बनाया है कि वह आज देश की व्यवस्था को चुनौती दे रही है। सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति बहुत जरूरी है।

दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' ने `मोदी यदि मुख्यमंत्री नहीं होते' पर चर्चा करते हुए लिखा है। सुना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने पद की गरिमा का बड़ा ध्यान रहता है, वह अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को समझते हैं। उनका कहना है कि यदि वह मुख्यमंत्री नहीं होते तो नई दिल्ली में आज इतना बड़ा तूफान खड़ा कर देते कि कांग्रेस भी क्या याद रखती, बाबा रामदेव के साथ रामलीला मैदान में रविवार की रात जो सुलूक किया गया, जिम्मेदारों को इसका मजा चखा देते। अखबार आगे लिखता है कि वो समय रहते सरकार और दिल्ली पुलिस को खतरे का अंदाजा हो गया और उसने रामलीला मैदान को जलियांवाला बाग बनने से बचा लिया। लेकिन वह जो कहते हैं कि चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए। कहां तो इसे बाबा की हरकतों पर शर्म के मारे जमीन में गढ़ जाना चाहिए लेकिन कहां यह कि वह उलटे सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर रही है।

दैनिक `हमारा मकसद' ने `षड्यंत्र बेनकाब' में लिखा है कि असल में सरकार और रामदेव के बीच जो गोपनीय समझौता हुआ था वह यह था कि रामदेव अन्ना हजारे के कैम्प को कमजोर करने का काम करेंगे जो प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सहित पूरे सरकारी तंत्र को लोकपाल के दायरे में लाए जाने पर जोर दे रहा है। दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में रामदेव और दो केंद्रीय मंत्री दिनभर इस रणनीति पर विचार करते रहे। रामेदव जिन मांगों को लेकर दिल्ली आए थे उनमें 90 फीसदी को तुरन्त मान लिया गया और रामदेव को जो कुछ करना या वह सांकेतिक था। कहानी उस समय बिगड़ गई जब सरकार को अचानक याद आया कि जब अन्ना हजारे ने भूख हड़ताल शुरू की थी तो सरकार ऐसे झुक गई थी जैसे कोई अपराधी कानून के सामने झुक जाता है। रामदेव के साथ अन्दरखाते संधि हुई थी लेकिन आम लोगों में यही संदेश जाता कि कोई भी इस सरकार को झुका सकता है। इसके बाद जो कुछ हुआ, वह दुनिया के सामने है।

हैदराबाद से प्रकाशित दैनिक `मुनसिफ' ने `बाबा रामदेव बनाम सरकार' में लिखा है कि अन्ना हजारे हों या बाबा रामदेव, उनका राजनीति से कोई संबंध नहीं है। इनका सामाजिक कार्यकर्ता और योग गुरु की हैसियत से सीमित सम्पर्प जरूर है लेकिन इन दोनों ने एक के बाद एक अपना एजेंडा पेश किया तो सरकार के कदम लड़खड़ाने लगे। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि व्यक्तियों का अपने तौर पर कोई वजूद नहीं है बल्कि इसके पीछे आरएसएस की अगुवाई कर रही संघ परिवार के विभिन्न संगठन हैं जो दिल्ली के तख्त पर बैठने के लिए विचलित नजर आती है। इसका इजहार कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने भी किया है। बाबा रामदेव अपने को नेक और सादा जिन्दगी गुजारने वाला ऋषि-मुनि के तौर पर पेश करना चाहते हैं लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है। वह एक अरबपति हैं, वो चार्टर्ड जहाजों से यात्रा करते हैं। धरना-प्रदर्शन के लिए रामलीला मैदान में जो पांच सितारा व्यवस्था की गई वह बुद्धि को हैरान कर देती है कि एक साधु के पास इतनी दौलत कहां से आई। सरकार को ऐसे व्यक्ति से भयभीत होने के बजाय जनता से सीधे बात करनी चाहिए। सरकार यदि निडरता से आरएसएस के ऐसे एजेंडों का मुकाबला करने से बचती है तो सरकार पर से जनता के विश्वास को चोट पहुंचेगी।

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