Sunday, September 18, 2011

मोदी की अग्निपरीक्षा'

बीते सप्ताह राष्ट्रीय एकता परिषद में सांप्रदायिक हिंसा रोधक संबंधी विधेयक पर राजनैतिक पार्टियों सहित यूपीए सहयोगी तृणमूल कांग्रेस का विरोध, 2002 के गुजरात नरसंहार में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले को निचली अदालत में सुनवाई के लिए भेजना, आडवाणी की रथ यात्रा एवं अन्ना हजारे का राष्ट्रव्यापी आंदोलन जैसे कई मुद्दों पर उर्दू समाचार पत्रों ने चर्चा की है। पेश है इस बाबत कुछ उर्दू अखबारों की राय।

दैनिक `अखबारे मशरिक' ने `सांप्रदायिक हिंसा विधेयक फिर खटाई में, सांप्रदायिक और सेकुलर दोनों पार्टियों ने इसका विरोध किया' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि तीन साल बाद हुई राष्ट्रीय एकता परिषद की इस बैठक में कुछ हाई प्रोफाइल मुख्यमंत्रियों जैसे नरेन्द्र मोदी, मायावती, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और जयललिता शरीक नहीं हुईं। इस बैठक में विधेयक की धज्जियां बिखेर कर रख दी गईं। नेशनल एडवाइजरी काउंसिल (एनआईसी) ने विधेयक का जो ड्राफ्ट तैयार किया था उसमें भाजपा, जनता दल (यूनाइटेड), अकाली दल, सीपीआई(एम) बीजू जनता दल, राष्ट्रीय जनता दल, यहां तक कि यूपीए समर्थक तृणमूल कांग्रेस ने इसमें सौ-सौ कीड़े निकाले स्वयं कांग्रेस के अन्दर विधेयक को लेकर कोई उत्साह नहीं था और ऐसा लगा जैसे इस महत्वपूर्ण मुद्दे को हल करने के मामले में सरकार को एक किनारे कर दिया गया है। एनआईसी इस विधेयक की रूपरेखा को फिर से तैयार करेगी।

जाहिर है इस विधेयक द्वारा अल्पसंख्यकों के आंसू पोंछने की जो कोशिश की जा रही थी उस पर पानी फिर जाएगा और उनके सिर पर पूर्व की तरह ही तलवार लटकती रहेगी। इसलिए हमें सबसे पहले सांप्रदायिक मानसिकता पर चोट करनी होगी जिसने एक अहम कानून से देश को वंचित करा दिया।

`प्रस्तावित धार्मिक हिंसा विधेयक का विरोध' के शीर्षक से दैनिक `राष्ट्रीय सहारा' ने अपने सम्पादकीय में भाजपा द्वारा अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों को बांटने के आरोप पर चर्चा करते हुए लिखा है कि यूपीए सरकार को अल्पसंख्यकों के अधिकारों एवं इंसाफ दिलाने वाले किसी प्रस्ताव पर भाजपा से सकारात्मक आशा नहीं की जा सकती। भाजपा के इस विचार कि प्रस्तावित विधेयक अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक को विभाजित करता है, को निरस्त कर देना चाहिए। क्योंकि यह साबित हो चुका है कि दंगों में धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किया जाता है इसलिए ऐसे कानून बनाए जाएं जो अल्पसंख्यकों को सुरक्षा का एहसास दिला सकें। भाजपा अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में फर्प के खिलाफ तो है लेकिन दंगों के दौरान इस आधार पर हो रहे नंगे नाच पर वह हमेशा मौन रहती है। इस बात को समझना होगा कि जो जख्म समाज के नीचे स्तर तक पहुंच गया है उसकी अनदेखी से स्थिति नहीं बदलेगी बल्कि इस नासूर का ऑपरेशन करके समाज को सांप्रदायिकता से मुक्ति दिलाना जरूरी है। इसलिए जरूरी है कि सरकार इस विधेयक को संसद में पेश कर इसे अंजाम तक पहुंचाए।

दैनिक `इंकलाब' ने `गुलबर्ग सोसाइटी और सुप्रीम कोर्ट' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि इस बाबत सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही जो लोग खुशियां मना रहे हैं, वह हमारी समझ से परे है। सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं कहा कि अब अहमदाबाद का मजिस्ट्रेट जो भी फैसला सुनाएगी उसके आगे जकिया जाफरी समेत इंसाफ चाहने वाले सभी नतमस्तक हो जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी नहीं कहा कि अब वह कोई अपील नहीं सुनेगा। इस केस को निचली अदालत के पास भेजने का जो कारण हमारी समझ में आता है वह यह कि इसका संबंध हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था से है। यदि निचली अदालतों के फैसलों से जनता की बेचैनी बढ़ती रही और हर बड़ा और संगीन केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचता रहे और उसी से आशा होने लगी तो निचली अदालतों की जरूरत क्या रह जाएगी और यदि निचली अदालतें ऐसे ही फैसले सुनाने लगे जिससे इंसाफ चाहने वालों को मायूसी हो तो फिर इस तरह के सभी केस सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचेंगे जिससे सुप्रीम कोर्ट के पास देशभर से मुकदमों की भीड़ लग जाएगी, वैसे भी सुप्रीम कोर्ट में आवेदन करने वालों की कमी नहीं है। इस अदालत ने यह तो कहा है कि अब उसे गुलबर्ग सोसाइटी केस पर नजर रखने (श्दहग्tदग्हु) की जरूरत नहीं है लेकिन यह नहीं कहा है कि अब वह इस केस की सुनवाई नहीं करेगा।

`नरेन्द्र मोदी की अग्निपरीक्षा' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र के राजनैतिक विरोधियों को पूरी आशा थी कि सुप्रीम कोर्ट सोमवार के दिन मोदी को 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों पर मुकदमे में लपेट लेगी और उन्हें कठघरे में खड़ा कर देगी। लेकिन मोदी को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे इनके विरोधियों को सुप्रीम कोर्ट से मायूसी हाथ लगी। बड़ी अदालत ने दंगा रोकने में इनकी भूमिका में लापरवाही पर कोई फैसला सुनाने से इंकार कर दिया। जस्टिस डीके जैन की अगुवाई वाली तीन जजों की खंडपीठ ने मोदी और अन्य सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के लिए भी कोई विशेष हिदायत जारी करने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए जेटली ने कहा कि भाजपा शुरू से ही कहती रही है कि मोदी पर लगाए गए आरोप झूठे हैं और इनकी दंगों में कोई भूमिका नहीं थी। इससे साबित हुआ कि केवल प्रोपेगंडा और झूठे आरोप कभी सच नहीं हो सकते। मोदी का नाम एक भी चार्जशीट में नहीं है और न ही विशेष जांच टीम ने उन्हें कसूरवार पाया है। सुषमा ने कहा कि मोदी ने अग्निपरीक्षा पास कर ली है, सत्यमेव जयते।

जमीअत उलेमा हिन्द के एक धड़े जिसके अध्यक्ष मौलाना अरशद हैं, के बारे में विकीलीक्स का यह बयान कि मौलाना अमेरिका के लिए सकारात्मक व्यक्तित्व है, को अमेरिका द्वारा उन्हें बदनाम करने का षड्यंत्र है, के विषय पर आमिर सलीम खाँ ने `हमारा समाज' में लिखा है कि उपरोक्त कथन 2008 में भारत में अमेरिकी दूत मलफोर्ड का है जिसका रहस्योद्घाटन विकीलीक्स ने अपने केबल में किया है जिसमें कहा गया है कि यदि जमीअत पर मौलाना अरशद मदनी का वर्चस्व रहता है तो यह बात अमेरिका के हित में बेहतर होगी, क्योंकि दूसरे ग्रुप के मौलाना महमूद मदनी ने आतंकवाद विरोधी मुहिमों के दौरान अमेरिका की कड़ी आलोचना की है जबकि इनके मुकाबले मौलाना अरशद मदनी सुलझे हुए हैं और उनकी तरफ से कभी अमेरिका का विरोध नहीं हुआ है। भारत स्थित अमेरिकी उच्चायोग ने पूरी स्थिति को उजागर करते हुए कहा है कि दारुल उलूम देवबंद में 25 फरवरी 2008 में आतंकवाद विरोधी कांफ्रेंस में जहां एक तरफ मौलाना अरशद मदनी ने आतंकवाद को चर्चा का विषय बनाया था वहीं मौलाना महमूद मदनी और इनके समर्थकों ने आतंकवाद विरोध के साथ-साथ अमेरिका के खिलाफ खूब हंगामा किया।

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