Saturday, September 10, 2011

`धमाकों पर धमाके'

बीते सप्ताह अमर सिंह की जेल यात्रा सहित अनेक मुद्दों पर उर्दू अखबारों ने चर्चा की है लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के गेट नं. 5 पर हुए बम धमाके ने देशवासियों को सकते में डाल दिया है। सभी की इच्छा है कि ऐसी आतंकी घटना को अंजाम देने वालों को सरेआम फांसी दी जाए ताकि कोई दूसरा ऐसा काम करने की हिम्मत न कर सके। पेश है इस बाबत कुछ उर्दू अखबारों की राय। दैनिक `इंकलाब' ने `धमाकों पर धमाके' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है कि जब भी कोई ऐसी घटना होती है, घूम-फिरकर वही चन्द सवालात नए सिरे से उभरते हैं जिनका संतोषजनक जवाब पिछली वारदातों के बाद भी नहीं मिला था। मिसाल के तौर पर हमारा खुफिया विभाग क्या करता है? यदि खुफिया विभाग ने अपनी जिम्मेदारी पूरी की तो संबंधित विभाग क्या करते रहे? हमारी सुरक्षा व्यवस्था इतनी फुसफुसी क्यों है कि उसकी आंखों में किसी भी समय धूल झोंकी जा सकती है। राजधानी में मोटे तौर पर अब तक बम धमाकों की डेढ़ दर्जन से अधिक वारदातें हो चुकी हैं। अब तक किसी धमाका केस में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है। यही कारण है जिससे आतंकवादियों के हौंसले बुलंद होते हैं। हर धमाके के बाद `हमारा संकल्प कि हम कसूरवारों को नहीं बख्शेंगे' जैसे बयानात अपनी छाप खोते जा रहे हैं क्योंकि अब तक हमारे सामने केवल बयानात ही हैं कोई ठोस तफ्तीश नहीं है।
`इंसाफ का मंदिर लहुलूहान' के शीर्षक से `हमारा समाज' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि देश व कौम और समाज के दुश्मनों द्वारा इंसाफ के मंदिर को लहुलूहान करने, 12 मासूमों को मौत के घाट उतारने और 83 लोगों को मौत व जिन्दगी के फंदे पर लटकाने के बाद सरकार की आंखें खुली हैं और सभी राज्यों में हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है लेकिन इस तरह की आतंकी घटनाओं और बम धमाकों से सरकार पर सवाल उठते हैं कि आखिर अब तक सरकार इतनी बेबस क्यों है? जब चार महीने पूर्व आतंकवादियों ने रिहर्सल के तौर पर हाई कोर्ट को निशाना बनाया था तो इसके बाद सरकार और सुरक्षा विभाग की आंखें क्यों नहीं खुल सकीं?
दिल्ली जैसे कई शहरों में आतंकवादी हमले हो चुके हैं, विशेषकर दिल्ली को तो हमेशा ही आतंकवादी अपना निशाना बनाते रहे हैं। ऐसे में आतंकवादियों से निपटने के लिए सरकार के पास किसी की रणनीति का न होना दुःखदायी है।
दैनिक `जदीद मेल' में `फिर वही बर्बरता' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि गुजरी 25 मई को भी मौत के सौदागरों ने हाई कोर्ट के बाहर आतंक फैलाने की कोशिश की थी लेकिन तब कोई जानी व माली नुकसान नहीं हुआ था लेकिन आज के धमाके से साबित हुआ है कि आतंकियों ने हाई कोर्ट को अपना निशाना बनाया था जिसमें वह किसी हद तक सफल हो गए। यह धमाके क्यों और किसने कराए, अभी सरकार और एजेंसियां कुछ भी कहने से बच रही हैं। एक ईमेल पुलिस को जरूर मिला है जिसमें किसी हरकातुल जिहाद इस्लामी नामी संगठन ने धमाके की जिम्मेदारी ली है। इसका कारण भी बताया है कि संसद पर हुए आतंकवादी हमले में अपराधी करार पाए अफजल गुरु की सजाए मौत यदि माफ नहीं की जाती है तब तक अदालतों के बाहर इसी तरह के धमाके होते रहेंगे। इसलिए इस दिशा में तफ्तीश की काफी गुंजाइश है। वर्तमान में सजाए मौत का मामला देश के राजनैतिक एवं सामाजिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि देश के तीन अहम मामलों के अपराधियों की सजाए मौत का दिन करीब आ चुका है। यह तीनों मामले आतंकवाद से जुड़े हुए हैं लेकिन इन तीनों को अलग-अलग नजरिये से देखा जा रहा है। बहरहाल जुल्म करने वालों को सजा देना इंसाफ की मांग है।
दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' ने `ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि यह अपनी जगह कड़वी हकीकत है कि नोट के बदले वोट मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ था और उस समय तक दिल्ली पुलिस खरगोश की नींद सोती रही जब तक अदालत ने उसे झिंझोड़ कर जगाया नहीं। इस मामले में पुलिस स्वयं सक्रिय नहीं हो सकी तो इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आम मामलों में पुलिस का रवैया किस हद तक जिम्मेदारी वाला हो सकता है। अदालत की फटकार के बाद पहले सक्सेना गिरफ्तार हुए फिर हिन्दुस्तानी पकड़े गए। पहले अमर सिंह से पूछताछ हुई और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। देखने की बात यह होगी कि सफेदपोश जमाअतों से संबंध रखने वाले अन्य किन-किन काले चेहरों को गिरफ्त में लिया जाता है। अभी भाजपा नेता अमर सिंह की गिरफ्तारी पर झूम रहे हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि वह भविष्य में भी इसी तरह झूमते रहेंगे। क्योंकि ऐसे इशारे मिले हैं कि भाजपा के भी कुछ नेताओं को खुफिया एजेंसियां गिरफ्त में ले सकती हैं। मनमोहन सरकार को अविश्वास प्रस्ताव से बचाने की कोशिश के तहत सांसदों की खरीदने की कोशिश वास्तव में की गई थी या फिर यह सरकार को बदनाम करने की कोशिश। तफ्तीश द्वारा सारे बिन्दु निकलकर सामने न आ जाएं इसके बाद ही पता चलेगा कि सच्चाई क्या है?
`बेचारे अमर सिंह गए थे जमानत के लिए मिली जेल' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अमर सिंह को बलि का बकरा बना दिया गया है। पैसे किसने अमर सिंह को दिए, किसलिए दिए, पूरे मामले में फायदा किसको हुआ। जब तक इन सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं मिल जाता हमारी नजर में यह मामला अधूरा है।
उनका कसूर क्या था? बस यही कि उन्होंने पूरे षड्यंत्र का राज फाश कर दिया। इस गिरफ्तारी का जबरदस्त फाल आउट हो सकता है। यदि अमर सिंह ने सारा राज खोल दिया तो कांग्रेस के कई चोटी के नेता फंस सकते हैं और यही चीज कांग्रेस को सताएगी।
यही कारण है कि कांग्रेस ने अपना डैमेज कंट्रोल शुरू कर दिया है इससे पहले कि अमर सिंह मुंह खोलें, कांग्रेस रणनीतिकारों ने अपना मोर्चा सम्भाल लिया है। संसदीय मामलों के मंत्री पवन कुमार बंसल का कहना है कि उस समय कांग्रेस को वोट खरीदने की जरूरत नहीं थी। वाम मोर्चा द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बावजूद यूपीए के पास उचित बहुमत था। बंसल का तर्प इसलिए भी जरूरी दिखाई पड़ता है क्योंकि अदालत में सबसे पहला सवाल यही उठेगा कि आखिर पूरे मामले में फायदा किसे मिला?

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