Friday, September 23, 2011

बटला हाउस की तीसरी वर्षगांठ

बीते सप्ताह बटला हाउस एनकाउंटर की तीसरी बरसी और नरेन्द्र मोदी के उपवास ने प्रिंट और इलैक्ट्रानिक मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। दोनों ही मुद्दे राष्ट्रीय स्तर के हैं और इन पर राजनीति होती है। यही कारण है कि इनसे संबंधित जब कोई बात सामने आती है तो वह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन जाती है। पेश है इस बाबत कुछ उर्दू अखबारों की राय।

उर्दू दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में `बटला हाउस की तीसरी वर्षगांठ' के शीर्षक से चर्चा करते हुए लिखा है कि इस अवसर पर धरना प्रदर्शन के लिए आजमगढ़ से एक विशेष ट्रेन द्वारा राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल सदस्य आए थे। इन्होंने घटना की सीबीआई जांच की मांग की। दिलचस्प बात यह रही कि उलेमा ने हजारों समर्थकों के बीच कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह पर खास निशाना लगाया। उलेमा काउंसिल चेयरमैन मौलाना जाकिर रशीद मदनी ने कहा कि दिग्विजय ने मुझसे खुद कहा था कि उन्होंने इस मुठभेड़ के फर्जी होने की बात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कही थी, लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी। मुझे लगता है कि दिग्विजय नौटंकी करते हैं, उन्हें मुसलमानों से कोई हमदर्दी नहीं है। इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की शहादत को जिस तरह संदेह के कठघरे में खड़ा किया गया, उससे निश्चित तौर पर दिल्ली पुलिस के जवानों का ही नहीं बल्कि पूरे देश के सुरक्षा बलों का हौंसला टूटा होगा। इसका नकारात्मक प्रभाव यह जरूर हुआ कि पुलिस एवं अन्य सुरक्षा बलों के जवान अच्छी तरह से समझ चुके हैं कि आतंक के खिलाफ चुप बैठना और सांप निकलने के बाद लकीर पीटना इसका पहला दायित्व है आतंकियों को पकड़ना नहीं। नतीजे के तौर पर अब राजधानी दिल्ली में कोई भी बम धमाका हो इसमें पुलिस के हाथ खाली थे और खाली हैं।

मोर्चा के इंचार्ज जेके जैन की उपस्थिति आश्चर्यजनक रही। इस रैली में जेके जैन ने मुसलमानों को लुभाने के लिए बड़ी लच्छेदार तकरीर की, जिसे तकरीर के शौकीन मुसलमानों ने खूब चटखारे लेकर सुना। जैन ने एनकाउंटर की अदालती जांच कराने की मुसलमानों की मांग का खुलकर समर्थन किया। जैन ने इस स्थिति के लिए मुसलमानों के कांग्रेस प्रेम को कसूरवार करार दिया, क्योंकि उन्होंने आज तक भाजपा को एक बार भी मौका नहीं दिया। भाजपा का मुस्लिम प्रेम केवल बटला हाउस एनकाउंटर की जांच तक ही सीमित नहीं है बल्कि अभी भरतपुर में हुई पुलिस मुठभेड़ में मुसलमानों के नुकसान का जायजा लेने और मामले की तहकीकात के लिए भाजपा ने दो सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल भेजा है। इस प्रतिनिधिमंडल में भाजपा के मुस्लिम शाहनवाज हुसैन भी मौजूद थे। उन्होंने वापसी पर बयान दिया कि वहां पुलिस ने मुस्लिम युवकों को कत्ल किया और एक मस्जिद में तोड़फोड़ की।

यह बयान देते समय शाहनवाज यह भूल गए कि जिस भीड़ के साथ पुलिस ने भरतपुर में मुसलमानों पर अत्याचार किया, वह संघ परिवार के गुंडों की भीड़ थी। उन्होंने ही कब्रिस्तान की जमीन पर कब्जा किया था जिसके खिलाफ मुस्लिम विरोध कर रहे थे। बाद में संघ परिवार के गुंडों ने पुलिस के साथ मिलकर मुसलमानों की जान व माल से ऐसा ही खिलवाड़ किया जैसा कि गुजरात में किया गया था।

गुजरात मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन दिन के उपवास पर दैनिक `हमारा समाज' में `उपवास बनाम बकवास' के शीर्षक से लिखा है कि मोदी का यह उपवास मुसलमानों के नरसंहार को नहीं धो सकता, इसलिए कि यह पूरी तरह बकवास है और `नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली' की जीती जागती तस्वीर है। इस तरह की बकवास से यदि मोदी यह समझते हैं कि हम मुसलमानों का दिल जीत लेंगे अथवा 2014 में प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल करने के लिए जमीन तैयार कर सकेंगे तो यह उनकी भूल है, वैसे कुछ खरीदारों को खरीदने में शायद उन्हें कुछ कामयाबी मिल जाए, तब भी यह उनके गुनाहों को नहीं धो सकती। उन्हें अब उपवास करने के बजाय वनवास में जाकर मजलूमों की पुकारों को आसमान से टकराने का इंतजार करना चाहिए। इसलिए इस उपवास से किसी तरह की आशा न कर मोदी को प्राकृतिक मार का इंतजार करना चाहिए और बस।

दैनिक `इंकलाब' ने `उपवास और इंसाफ' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि इस संदर्भ में हमें विश्वास है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के `उपवास' पर बहुत से लोग दिल ही दिल में मुस्कुरा रहे होंगे कि दूसरों को बेवकूफ समझने वाला यह व्यक्ति खुद कितना बेवकूफ है। सद्भावना की बात उस व्यक्ति की जुबान से अच्छी लगती है जो सद्भावना पर विश्वास रखता हो।

यदि वह पूर्व में ऐसा नहीं था तब भी उसे सद्भावना की बात करना जब देगा शर्त यह है कि वह अपने तौर-तरीके बदल चुका हो और अपनी हरकतों पर उसे आत्मग्लानि महसूस हो। मोदी `उपवास' पर बैठे हुए हैं और सद्भावना की बातें कर रहे हैं। यह मुंह और मसूर की दाल।

मोदी ने जनता को बांटकर अतीत में राजनैतिक और चुनावी फायदे तो हासिल कर लिए लेकिन धीरे-धीरे ही सही, अब वह समय आ रहा है जो उन्हें कठघरे में खड़ा करके उनसे गुजरात नरसंहार का न केवल जवाब मांगेगा बल्कि बेगुनाहों के कत्ल का हिसाब मांगेगा। अपनी गर्दन को इस तरह फंसता देखकर मोदी बौखला गए हैं।

`तीन साल बाद भी...' के शीर्षक से दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि बटला हाउस एनकाउंटर के तीन साल पूरे हो गए। तीन साल पूर्व जो सवालात उठाए गए थे वह आज भी उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं क्योंकि इन सवालों का कोई उपयुक्त जवाब अभी तक नहीं दिया जा सका है। इस बीच विभिन्न अवसरों पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से यह मांग की जाती रही कि इस घटना की अदालती जांच होनी चाहिए लेकिन इस जांच का यह कहकर विरोध किया जाता रहा कि इससे पुलिस का मनोबल गिरेगा। विशेष बात यह भी थी कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इसी बटला हाउस एनकाउंटर के मामले में अपनी साख खो चुका है। यह वही संस्था है जिसने पुलिस की कहानी को सही करार देते हुए घर बैठे अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली थी और अपनी टीम को घटनास्थल पर वास्तविकता जानने के लिए नहीं भेजी। सवाल यह है कि मानवाधिकार आयोग ने किसके इशारे पर अपनी जिम्मेदारी से फरार की कोशिश की थी।

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