Wednesday, October 26, 2011

मुस्लिम महापंचायत की अनॉप-शनॉप

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय संस्थापक सर सैयद अहमद के जन्म दिवस पर 17 अक्तूबर 2011 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आयोजित समारोह में केंद्रीय कानून एवं इंसाफ मंत्री सलमान खुर्शीद को शरीक नहीं होने दिया गया, पर चर्चा करते हुए दैनिक `अखबारे मशरिक' ने अखबार की पहली खबर बनाई है। अलीगढ़ के संवाददाता ए. समन सवॉ के हवाले से अखबार ने लिखा है कि सर सैयद का 194वां जन्म दिवस पारम्परिक जोश खरोश से मनाया जाना था। इस कार्यक्रम में मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति ने सलमान खुर्शीद को विशेष मेहमान क sतौर पर बुलाया था लेकिन उनका सपना एक डरावने ख्वाब की तरह बिखर गया। छात्र और शिक्षक संघ ने इसका विरोध करते हुए पहले ही घोषणा कर दी थी कि वह किसी भी कीमत पर सलमान खुर्शीद को इस समारोह में शरीक नहीं होने देंगे। सर सैयद कार्यक्रम शाम चार बजे शुरू होना था लेकिन वीसी लाज पर छात्र और शिक्षकों की भीड़ काले झंडे लिए हुए सलमान खुर्शीद मुर्दाबाद और वाइस चांसलर मुर्दाबाद के नारे लगा रही थी। जिला और प्रशासन ने स्थिति को देखते हुए केंद्रीय मंत्री को एक होटल में ठहरा दिया और इनको यूनिवर्सिटी में दाखिल होने की इजाजत नहीं दी। जिसके नतीजे में साम साढ़े छह बजे अर्थात् दो घंटे बाद वाइस चांसलर और रजिस्ट्रार किसी गोपनीय रास्ते से समारोह स्थल पर आए जहां रजिस्ट्रार ने बताया कि पुलिस ने सलमान खुर्शीद को यहां आने से रोक दिया है।
आल इंडिया उलेमा मशाएख के बैनर तले मौलाना मोहम्मद अशरफ द्वारा मुसलमानों के एक सप्रदाय को निशाना बनाए जाने पर दैनिक `हमारा समाज' में आमिर सलीम खां ने अपनी विशेष रिपोर्ट में लिखा है कि एमएलबी की सीट और कुछ विधानसभा टिकटों के लिए मौलाना मिल्लत में फूट डाल रहे हैं इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश की एक अहम राजनैतिक पार्टी के बड़े नेता से गोपनीय संधि भी की है। कुर्सी और कुछ टिकटों के बदले पूरे मुस्लिम समुदाय को बांटने की नीति अपना सकते हैं। गत दिनों दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस और फिर बाद में बरेली की महापंचायत को इसी पार्टी ने स्पांसर किया था। मौलाना अशरफ ने प्रेस कांफ्रेंस और महापंचायत में मिल्लत इस्लामिया के संबंध में जो विचार जाहिर किए हैं उससे सुन्नी उलेमा भी हैरान हैं। इस बात से हैरान नहीं होना चाहिए कि वह राजनैतिक कद बढ़ाने के लिए वहाबी विचारधारा के खिलाफ काम कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार प्रेस कांफ्रेंस के लिए दिल्ली का चयन भी इन नेता जी की गोपनीय बैठक और निर्देश का नतीजा था क्योंकि दिल्ली से जो बात चलेगी वह दूर तक चलेगी। दूसरी ओर मुरादाबाद में भी हुई महापंचायत में भी वही बातें सामने आई हैं जिससे मुसलमानों में काफी गुस्सा पाया जा रहा है।
मुरादाबाद की महापंचायत में वक्ताओं द्वारा अनॉप-शनॉप बातें करने पर मुसलमानों द्वारा तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की जारी है। दैनिक `सहाफत' ने अपनी पहली खबर में जमीअत उलेमा हिन्द (अरशद ग्रुप) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी, दिल्ली उर्दू अकादमी के वाइस चेयरमैन प्रोफेसर अखतारुल वासे, जमाअत इस्लामी हिन्द सचिव मौलाना रफीक कासमी, जमीअत अहले हदीस के महासचिव मौलाना असगर इमाम मेहंदी खलफी और मुस्लिम मजलिस अमल के महासचिव राहत मदमूद चौधरी सहित अनेक बुद्धिजीवियों के विचारों को प्रमुखता से प्रकाशित कर उनकी निन्दा की है और उन्हें कुरआन एवं हदीस की शिक्षा से अनभिज्ञ बताया है। मुरादाबाद की मुस्लिम महापंचायत में जिस तरह मुसलमानों को सुन्नी वहाबी में विभाजित कर वहाबी सप्रदाय पर आरोप लगाया गया है, वह बिल्कुल बेबुनियाद हैं। राहत महमूद चौधरी के अनुसार इस तरह का आरोप तो आरएसएस, भाजपा, शिवसेना, बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद भी आज तक नहीं लगा सकी है। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि इस महापंचायत में सऊदी अरब में कब्रिस्तान और मस्जिद की अवमानना का तो जिक्र किया गया लेकिन देश में वीरान पड़ी मस्जिदों और बाबरी मस्जिद तक का कोई जिक्र नहीं किया गया।
मौलाना अरशद मदनी ने महापंचयात के आरोप को नकारते हुए स्पष्ट किया कि इस्लाम दुनिया में मुसलमानों को जोड़ने के लिए आया है, तोड़ने के लिए नहीं। इसलिए दारुल उलूम देवबंद से कभी कोई आवाज मिल्लत के किसी सप्रदाय को तोड़ने के लिए नहीं उठाई जाती है। जोड़ने की यह कोशिश 150 साल से जारी है और हम इसमें पूरी तरह कामयाब हैं।
`सूचना अधिकार पर तलवार' के शीर्षक से दैनिक `जदीद मेल' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि सूचना का अधिकार एक बार फिर चर्चा में है और इसके कुछ बिन्दुओं पर फिर से विचार-विमर्श की बात की जा रही है। इस बार यह चिन्ता स्वयं प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा की ओर से की जा रही है। उनका कहना है कि इस कानून का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि इसके द्वारा ईमानदारी और सही ढंग से काम करने वाले लोग परेशान हों। प्रधानमंत्री की चिन्ता इसलिए है कि गत दिनों आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा इस कानून के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय से वह पत्र हासिल कर लिया गया था जो 2जी मामले में वित्त मंत्रालय ने उन्हें लिखा था जिसके बाद केंद्र सरकार संकट में पड़ गई थी। इसके अतिरिक्त जितने बड़े घोटाले सामने आए हैं उसमें सूचना अधिकार कानून का बड़ा योगदान है इसलिए सरकार अब इस कानून को कमजोर करना चाहती है। नौकरशाही व्यवस्था पर लगाम कसने वाला यह कानून अब सरकार के निशाने पर है।
दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने `अन्ना और उनकी टीम पर चौतरफा हमला' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अन्ना हजारे और उनकी टीम गत कुछ दिनों से चारों ओर से समस्याओं से घिरती जा रही है। एक-एक करके कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं। उत्तर प्रदेश में अन्ना का संदेश लेकर दौरा कर रहे उनके सिपाहसालार अरविन्द केजरीवाल पर हमला हुआ। टीम अन्ना के दो वरिष्ठ सदस्य पीवी राजगोपाल और राजेन्द्र सिंह ने मुहिम के राजनैतिक रंग लेने पर कोर कमेटी से त्यागपत्र दे दिया है। कांग्रेस से सुलह कराने के प्रयासों पर उस समय पानी फिर गया जब समय देकर राहुल गांधी अन्ना के प्रतिनिधियों से नहीं मिले। रामदेव ने प्रशांत भूषण के खिलाफ मामला दर्ज करने की बात कही। अन्त में टीम अन्ना को एक झटका उस समय लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने अन्ना के हिन्द स्वराज ट्रस्ट को मिलने वाले सरकारी पैसे का गलत इस्तेमाल की छानबीन के लिए सीबीआई की अर्जी को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया। अन्ना खुद तो बेदाग हैं लेकिन उनके साथी निश्चित रूप से अन्ना आंदोलन को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

No comments:

Post a Comment