Friday, October 28, 2011

`पेड न्यूज पर चुनाव आयोग की ऐतिहासिक पहल'

केंद्र सरकार द्वारा 1400 आईपीएस भर्ती के लिए डीएसपी और सेना के मेजर/कैप्टन रैंक के अधिकारी ही भाग ले सकेंगे, की प्रधानमंत्री कार्यालय के सुझाव पर मुस्लिम संगठनों ने आजित करते हुए इसे मुसलमानों के हक पर संवैधानिक डाका डालने के बराबर बतया है। दैनिक `सहाफत' ने जकात फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. सैयद जफर महमूद, जमाअत इस्लामी हिन्द अध्यक्ष मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी, दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राजेन्द्र सच्चर और ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस के कार्यवाहक अध्यक्ष एवं पाक्षिक अंग्रेजी `मिल्ली गजट' के सम्पादक डॉ. जफरुल इस्लाम खां के संयुक्त बयान को प्रकाशित कर इनके विचारों को प्रमुखता से उजागर किया है। बयान के अनुसार इस तरह की भर्ती के नतीजे में आईपीएस में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व अगले तीन-चार दशकों के लिए और भी कम हो जाएगा क्योंकि सशस्त्र बल में मुसलमानों का अनुपात आईपीएस से भी कम है और डीएसपी के पद पर मुसलमान गिनती के हैं। इंडियन पुलिस सर्विस और अन्य सिविल सर्विस में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व केवल 2.3 फीसदी है जबकि 2001 की जनगणना के अनुसार इनका अनुपात 13.4 फीसदी है। नए आईपीएस अधिकारियों की भर्ती के लिए ओपन परीक्षा न लेने का फैसला मुसलमानों के हित के खिलाफ होगी। इस फैसले से सरकारी रोजगार के समान अवसर के संवैधानिक हक की अवहेलना होती है जिसकी जमानत धारा 16 में दी गई है। जस्टिस सच्चर के अनुसार यह संविधान की धारा 15 के भी खिलाफ है जिसमें धर्म के आधार पर सरकार की ओर से भेदभाव वर्जित है।
`आडवाणी की आखिरी यात्रा' के शीर्षक से साप्ताहिक `नई दुनिया' ने पटना से अपने विशेष संवाददाता के हवाले से लिखा है कि आडवाणी जी गुजरात के बजाय बिहार को नमूना बता रहे हैं, मोदी के बजाय नीतीश कुमार को आइडियल मुख्यमंत्री कह रहे हैं, जो मोदी को अपने राज्य में घुसने नहीं देते और साफ-साफ कह देते हैं कि बिहार में इसका अपना मोदी मौजूद है। किसी अन्य मोदी की जरूरत नहीं है। आडवाणी की यात्रा गुजरात से शुरू हुआ करती थी लेकिन यह उनकी पहली यात्रा है जो पूरब से पश्चिम को हो रही है। यह देश के सोशलिस्ट नेता के जन्म स्थल से नई दिल्ली की ओर शुरू की गई है और इसको हरी झंडी जय प्रकाश नारायण के चेले नीतीश कुमार ने दिखाई है। सोमनाथ से अयोध्या की रथयात्राओं के लिए बदनाम आडवाणी की यात्रा हर बार देश में सांप्रदायिक वातावरण को खराब करती रही है लेकिन पहली बार वह भ्रष्टाचार जैसे गैर सांप्रदायिक मुद्दे पर यात्रा कर रहे हैं। विशेषज्ञों का यह विचार गलत नहीं है कि यह आडवाणी की आखिरी यात्रा है, उनके सामने करो या मरो की चुनौती है।
`पेड न्यूज पर चुनाव आयोग की ऐतिहासिक पहल' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के दसौली विधानसभा क्षेत्र के विधायक उरमिलेश यादव पर तीन वर्ष तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी है। आयोग ने अपने फैसले में कहा कि पेड न्यूज मामले पर आरोप साबित होने के चलते यादव पर 20 अक्तूबर 2011 से 19 अक्तूबर 2014 तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी है। ऐसी स्थिति में उर्मिलेश यादव 2012 में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाग नहीं ले सकेंगी। इसी सीट से योगेन्द्र कुमार ने भी इनके खिलाफ चुनाव लड़ा था। उन्होंने एक जुलाई 2010 को चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई कि चुनाव से ठीक पहले 17 अप्रैल 2007 को उर्मिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के दो बड़े हिन्दी दैनिक में अपने हक में समाचार प्रकाशित कराए हैं। इसी के साथ उन्होंने यह शिकायत प्रेस परिषद में भी दर्ज कराई थी। चुनाव आयोग ने इस मामले की जांच की और दोनों पक्षों की दलीलें भी सुनीं और तफ्तीश के बाद आयोग ने पाया कि उर्मिलेश ने चुनाव से ठीक पहले समाचार प्रकाशित कराने के लिए 21250 रुपये खर्च किए लेकिन इस खर्च को चुनावी खर्च में नहीं दिखाया गया था। उम्मीदवार को अपना प्रचार करने का पूरा हक है लेकिन उसे खर्च दिखाना पड़ेगा। ऐसी खबरें प्रकाशित करने वाले अखबारों और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया को भी आखिर में यह लिखना और दिखाना होगा कि यह विज्ञापन है और वह भी पेड विज्ञापन। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा पर भी पेड न्यूज के आरोप हैं। इन दोनों नेताओं को भी चुनाव आयोग द्वारा नोटिस दिया जा चुका है। दैनिक `जदीद खबर' ने `मोदी के खिलाफ सुबूत' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है कि गुजरात की जमीन पर मुसलमानों के नरसंहार में मोदी किस हद तक शरीक थे, इसका अभी तक कोई दस्तावेजी सुबूत सामने नहीं आ सका है। इस बाबत जकिया जाफरी की अपील पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष तफ्तीशी टीम ने भी नरेन्द्र मोदी के खिलफ ठोस सुबूत उपलब्ध करने से इंकार कर दिया था और ऐसा महसूस होने लगा था कि इतिहास के इस बड़े नरसंहार के सबसे बड़े अपराधी पर कोई आंच नहीं आएगी और वह अपनी गर्दन में बेगुनाही का हार डलकर इसी तरह इंसाफ और कानून का मजाक उड़ाता रहेगा। लेकिन अब अदालत के एक निरपेक्ष सलाहकार ने अपनी जांच में यह रहस्योद्घाटन किया है कि नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मुकदमा चलाने के सुबूत मौजूद हैं। इन सुबूतों की बुनियाद पर मोदी के खिलाफ संगीन मुकदमा तो कायम नहीं हो पाएगा लेकिन सांप्रदायिक घृणा, भड़काऊ और जनता को हंगामे पर उसकाने जैसी धारा के तहत मुकदमा कायम हो सकता है। यदि ट्रायल कोर्ट ने विशेष वकील रामचन्द्रन के विचार को स्वीकार कर लिया तो मोदी के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही जल्द शुरू होगी।
`मोदी के खिलाफ शिकंजा' के शीर्षक से दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी एक बार फिर मुश्किल में दिखाई दे रहे हैं क्योंकि इनके खिलाफ धारा 153 और 163 के तहत मुकदमा चलाने की पैरवी कर दी गई है, इसके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि गुजरात दंगों के मामले में मोदी के खिलाफ शिकंजा कसा ही जाएगा लेकिन अदालत के सलाहकार ने यह महसूस कर स्पष्ट कर दिया है कि मोदी का गुनाह माफी लायक नहीं है। इसके बावजूद एक बार फिर यह बात साफ हो गई है कि मोदी के लिए यह रिपोर्ट भारी पड़ सकती है। कल तक मोदी इस बात पर गर्व करते रहे हैं कि सुबूत न होने के आधार पर उन्हें क्लीन चिट मिल सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की गठित कमेटी की रिपोर्ट की रोशनी में यह बात उभरकर सामने आ गई है कि मोदी को राहत दिया जाना अब संभव नहीं है। देखना यह है कि 10 वर्षों से इंसाफ की राह देख रहे पीड़ितों को कब इंसाफ मिलता है। `मुसलमानों के लिए आरक्षण दुश्वार, कांग्रेस का मायूस कुन जवाब' के शीर्षक से दैनिक `अखबारे मशरिक' ने कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अलवी के हवाले से लिखा है कि मुसलमानों के लिए आरक्षण का मामला बहुत गंभीर है जब इस मसले पर कोई फैसला लिया जाएगा तो मीडिया को सूचित कर दिया जाएगा। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में मुसलमानों को आरक्षण देने का वादा किया था और कहा था कि केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के मॉडल पर विचार किया जाएगा। राशिद अलवी ने कहा कि घोषणा पत्र में बहुत सारे वायदे किए गए हैं। मुस्लिम आरक्षण भी इन वायदों में से एक है।

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