Friday, October 14, 2011

अन्ना हजारे का असली चेहरा

बीते सप्ताह विभिन्न राजनैतिक और सामाजिक घटनाओं सहित अनेक ज्वलंत मुद्दों पर उर्दू अखबारों ने अपना पक्ष रखा। अन्ना हजारे की मुहिम का विशेष रूप से नोटिस लिया। लगभग सभी उर्दू अखबारों ने इस पर सम्पादकीय लिखे और लेख प्रकाशित किए। हैदराबाद से प्रकाशित दैनिक `मुनसिफ' ने `अन्ना हजारे की कांग्रेस विरोधी अपील' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है कि अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम पर जनता की सकारात्मक प्रतिक्रिया कोई ढकी छिपी बात नहीं है। जन लोकपाल बिल के मंजूर किए न किए जाने पर कांग्रेस को वोट न देने की अपील का कांग्रेस गंभीरता से नोटिस ले। यदि इस अपील के नतीजे में भाजपा अगुवाई वाली एनडीए सत्ता में वापस होती है तो यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही कहलाएगा। दूसरी बात यह कि भाजपा कोई दूध की धूली पार्टी नहीं है। जब तक सत्ता हाथ नहीं आई यह अपनी साफ छवि का दावा करती रही लेकिन विभिन्न राज्यों और विशेषकर कर्नाटक में सत्ता संभालने के बाद भाजपा मुख्यमंत्री और मंत्रियों के अवैध खनन में विभिन्न घोटालों में लिप्त होना इस बात का सुबूत है कि भाजपा भी भ्रष्टाचार में लिप्त है। हजारे यदि कांग्रेस को वोट न देने की अपील के साथ-साथ भाजपा को भी वोट न देने की अपील करते तो सांप्रदायिक ताकतों के प्रति इनके झुकाव का संदेह दूर हो जाता। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। अन्ना को यह बात समझ लेना चाहिए कि इसी सत्ता भोग का फायदा उठाकर नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार किया। हजारे जब अपने आपको गांधी उसूलों पर चलने वाला बताते हैं तो उनके लिए जरूरी है कि वह इस देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह को नजरंदाज न करें।
`...तो यह है अन्ना जी का असली चेहरा' के शीर्षक से सना उल्ला सादिक तैमी ने दैनिक `हमारा समाज' में प्रकाशित अपने लेख में लिखा है कि अन्ना हजारे के इस आंदोलन को लेकर कुछ वर्गों के अन्दर शुरू से एक प्रकार का असंतोष देखा गया, यदि साफ तौर पर कहा जाए तो मुसलमानों और दलितों ने लगभग इस पूरे आंदोलन से खुद को अलग रखा। व्यक्तिगत तौर पर हम न तो कांग्रेस को दूध की धुली हुई पार्टी समझते हैं और न ही हम इसके पक्षधर हैं कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध साथ न दें। यह तो लोकतंत्र का अपहरण करने जैसा है। अन्ना का कहना यह है कि भाजपा भी भ्रष्टाचार में वैसी ही लिप्त है जैसे अन्य राजनैतिक पार्टियां। ऐसा लगता है कि अन्ना जाने-अनजाने में किसी और के इशारों पर चल रहे हैं, वोट किसको देना है और किसको नहीं, यह फैसला हर भारतीय खुद कर सकता है। उनकी इस बात से अन्ना जी के चाहने वाले भी उनसे नाराज हो रहे हैं।
दैनिक `जदीद मेल' ने `गलत दिशा में आंदोलन' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अन्ना हजारे हो या उनकी टीम के दूसरे सदस्य, उनकी बातों पर उसी समय विश्वास करेंगे जब वह राजनैतिक पार्टियों से समान दूरी बनाकर अपने आंदोलन को आगे बढ़ाएंगे। यह सही है कि किसी भी जन आंदोलन में शामिल होने के लिए कोई भी आगे आ सकता है लेकिन आंदोलन का नेतृत्व करने वालों का दामन पाक-साफ होना जरूरी है। यदि हरियाणा में कांग्रेस को कामयाबी हासिल हो जाती है तो फिर अन्ना हजारे की पोजीशन कमजोर पड़ जाएगी और वह इस आंदोलन को जन आंदोलन होने का भी दावा नहीं कर सकते और यदि कांग्रेस वहां से हार जाती है तो अन्ना हजारे पर भाजपा के संरक्षण का आरोप लगेगा। इसलिए दोनों स्थिति में अन्ना की ही हार होगी। चुनावी जंग में कूद कर अन्ना ने बड़ी गलती की है। लोकपाल बिल संसद के आगामी अधिवेशन में पेश होगा इसके अतिरिक्त कई अन्य बिल भी पेश होंगे जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल कानून के सहायक बनेंगे तो फिर आगामी अधिवेशन तक अन्ना को इंतजार करने में कोई हर्ज नहीं था। अब लोग इस बात को देख रहे हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ और चुनावी सुधारों को लागू करने में कौन ईमानदार है और कौन ड्रामेबाजी कर रहा है।
`अन्ना हजारे का आंदोलन, बिल्ली थैले से बाहर आ गई' के शीर्षक से दैनिक `इंकलाब' में `हिन्दुस्तान नाम' के अपने स्तम्भ में नाके किदवई ने लिखा है कि अन्ना हजारे की कांग्रेस दुश्मनी स्पष्ट है कि उन्होंने कांग्रेस हटाओ का तो नारा दिया लेकिन उत्तर प्रदेश जिसकी गिनती आज देश के भ्रष्टाचार राज्यों में की जाने लगी है और शायद मुख्यमंत्री मायावती सबसे बड़ी भ्रष्टाचारी राजनेता भी हैं। यूपी की मंत्रिपरिषद लगभग भ्रष्टाचार मंत्रियों पर आधारित है, मायावती अरबपति हैं तो उनकी मंत्रिपरिषद का हर व्यक्ति करोड़ों में खेल रहा है। उत्तर प्रदेश के लोक आयुक्त एनके मेहरोत्रा अब तक तीन मंत्रियों को भ्रष्टाचार, बेइमानी के संगीन मामलों में कसूरवार ठहरा चुके हैं। इन मंत्रियों को मायावती ने अपने मंत्रिपरिषद से निकाल बाहर भी कर दिया लेकिन खुद मायावती ने अभी तक अपनी जवाबदेही नहीं की है। अन्ना हजारे ने मायावती, बीएसपी के उम्मीदवारों को हराने की कोई अपील नहीं की और न ही अन्ना हजारे को मुलायम सिंह यादव और उनकी समाजवादी पार्टी नजर आ रही है जो अतीत से लेकर आज तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। यही सूरते हाल भाजपा का है लेकिन इन पार्टियों को अन्ना हजारे ने छोड़ दिया है। इनको हराने की कोई अपील जारी नहीं की। इससे साफ जाहिर है कि अन्ना आंदोलन का मकसद कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर लाल कृष्ण आडवाणी अथवा नरेन्द्र मोदी जैसे नेता को प्रधानमंत्री का ताज पहनाना चाहते हैं।
दैनिक `सहाफत' ने अपने सम्पादकीय में अन्ना हजारे की मुहिम पर चर्चा करते हुए लिखा है कि अन्ना हजारे ने धमकी दी है कि आने वाले दिनों में कुछ राज्यों में जो चुनाव होने वाले हैं, उनमें वह उन सभी पार्टियों और उम्मीदवारों के खिलाफ चुनावी मुहिम में भाग लेंगे जो जन लोकपाल बिल के विरोधी हैं। आने वाले साल में जहां चुनाव होने हैं उनमें पांच राज्यों के अतिरिक्त मुंबई नगर निगम का चुनाव भी शामिल है। मुंबई नगर निगम का बजट कई राज्यों के बजट से ज्यादा बड़ा है। इसलिए हमें नहीं मालूम कि अन्ना हजारे की सूची में मुंबई निगम का चुनाव शामिल है या नहीं, यदि नहीं शामिल है तो बड़ी आश्चर्य की बात होगी क्योंकि इसका मतलब यह होगा कि अन्ना हजारे यह समझते हैं कि सारा भ्रष्टाचार विधानसभा और संसद तक सीमित है। नगर निगम भ्रष्टाचार से बिल्कुल पाक साफ होती है और यदि मुंबई नगर निगम भी इनकी सूची में शामिल हैं तो हमें यह भी नहीं मालूम कि शिवसेना और उसके उम्मीदवारों के प्रति इनका रवैया क्या होगा? मुंबई नगर निगम पर भाजपा-शिव सेना का कब्जा है। मुंबई की सड़कों के गड्ढे गवाह हैं कि मुंबई नगर निगम ने गत पांच सालों में कितना `शानदार' काम किया। शिव सेना एक बार नहीं कई बार अन्ना हजारे और उनके आंदोलन का मजाक बना चुकी है। देखना यह है कि शिव सेना और उसके उम्मीदवारों के खिलाफ चुनावी मुहिम चलाएंगे? यदि ऐसा नहीं होता है तो इसका मतलब यह है कि चिराग तले अंधेरा है।

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