Thursday, February 2, 2012

शहीदों के लिए जमा राशि किसकी जेब में

बीते दिनों बटला हाउस मुठभेड़ सहित इत्तेहाद पंट और ऑल इंडिया उलेमा मशाएख बोर्ड जैसे अनेक मुद्दे चर्चा का विषय रहे। बटला हाउस मुठभेड़ के बाद मारे गए लड़कों के परिजनों की सहायता राशि की घोषणा पर चर्चा करते हुए बटला हाउस के शहीदों की सहायता राशि को क्या जमीन निगल गई? के शीर्षक से दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सपेस' में रागिब आलिम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि मुठभेड़ में तुरंत बाद उस समय के समाजवादी पार्टी नेता अमर सिंह ने मजलुमों की सहायता के नाम पर जामिया ओल्ड ब्याज एसोसिएशन को 10 लाख रुपए दिए थे एवं जामिया में शिक्षा पाप्त कर रहे छात्रों ने अपने जेब खर्च से बचाकर लगभग 95 हजार रुपया सहायता के नाम पर जमा किया था। इसके अतिरिक्त जामिया टीचर्स एसोसिएशन ने अपनी एक दिन की पगार सहायता के नाम पर दी थी लेकिन दिलचस्प बात यह है कि आज तक यह राशि न साजिद और आतिक के परिजनों को दी गई और न ही जियाउर रहमान और साकिब निसार के मां-बाप को कानूनी सहायता के लिए उपलब्ध कराई गई। इतना ही नहीं बटला हाउस मुठभेड़ के बाद जामिया में पढ़ रहे आतिक और साजिद के बारे में जामिया मिलिया इसलामियां ने इस मामले में कानूनी सहायता का आश्वासन दिया था लेकिन आज तक किसी पीड़ित को कानूनी इमदाद तो दूर की बात है जामिया पशासन ने पीड़ितों से हमदर्दी का इजहार करना भी जरूरी नहीं समझा। इस बाबत आरटीआई कार्यकर्ता अफरोज आलम साहिल द्वारा फण्ड के बारे में पूछे गए सवाल पर जामिया ने किसी भी तरह की जानकारी देने से इंकार किया।
घटना या षड्यंत्र के शीर्षक से दैनिक `जदीद खबर' ने अपने सम्पादकीय में सुपीम कोर्ट द्वारा बाबरी मस्जिद को मात्र घटना माने जाने पर चर्चा करते हुए लिखा है कि हम सुपीम कोर्ट से पूरे आदर के साथ कहना चाहेंगे कि बाबरी मस्जिद की शहादत को षड्यंत्र करार देना बुनियादी सच्चाई से मुंह छुपाने के बराबर है। यह बात साफ है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस एक षड्यंत्र था और इसके पीछे संघ परिवार की एक सुनियोजित और लम्बा राजनैतिक षड्यंत्र शामिल था। हम यह बात भावना में बहकर नहीं कह रहे हैं बल्कि सरकार ने जस्टिस लिब्राहन की अगुवाई में जो जांच आयोग गठित हुआ था उसने अपनी लम्बी जांच रिपोर्ट में इस षड्यंत्र की सभी कड़ियों को जोड़कर अपराधियों को बेनकाब कर दिया है। इन मुजरिमों को सजा दिलाने के लिए सीबीआई ने रायबरेली की विशेष अदालत में जो आरोप पत्र दाखिल किया था उसके आरोपी अपनी जान बचाने के लिए कानूनी रास्तों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस सिलसिले में सीबीआई ने जो ताजा कार्यवाही की है, उसे लालकृष्ण आडवाणी ने अदालती पकिया को हनन करार दिया है। आडवाणी न केवल बाबरी मस्जिद की शहादत के समय घटना स्थल पर मौजूद थे बल्कि वह अन्य नेताओं के साथ कारसेवकों का मनोबल भी बढ़ा रहे थे। इसकी तसदीक आडवाणी की सुरक्षा पर तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मिसेज गुप्ता ने अपने शपथ-पत्र में भी की है।
देवबंदिया की दुश्मनी में हिन्दू परस्त हो गए कछोछवी के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' में पकाशित अनीस अहमद खां ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि बरेलवी सुन्नी मुसलमानों के आल इंडिया उलेमा मशाएख बोर्ड ने अपने समर्थकों को आदेश दिया है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में जहां भी देवबंदी उम्मीदवार खड़े हों उन्हें पराजित किया जाए। यही नहीं बोर्ड के राष्ट्रीय सचिव बाबर अशरफ ने यहां तक कह दिया है कि वह अब देवबंदियों के साथ खुली जंग शुरू कर रहे हैं। इसका पहला स्तर चुनाव से शुरू कर रहे हैं।
साथ ही यह जंग उन सियासी पार्टियों के साथ भी है जो देवबंदियों को अपना उम्मीदवार बनाती हैं। अशरफ यहीं नहीं रुकते उनका कहना है कि हम देवबंदी उम्मीदवारों का न केवल विरोध करेंगे बल्कि उनको जड़ से भी उखाड़ फेकेंगे। रायबरेली से कांग्रेस को जीतने नहीं देंगे और यदि राहुल गांधी यह समझते हैं कि वह केवल देवबंदियों को खुश करके चुनाव जीत लेंगे तो यह उनकी भूल है। क्योंकि रायबरेली में देवबंदी नहीं बरेलवी रहते हैं। ज्ञात रहे आल इंडिया उलेमा मशाएख बोर्ड ने अक्टूबर 2011 में एक कांपेंस कर वहां भी आतंकवाद का कार्ड दिखाया था, वहीं मुरादाबाद की एक कांपेंस में उसके अध्यक्ष सैयद मोहम्मद अशरफ कछोछवी ने देवबंदियों को इस्लाम से खारिज करने तक की मांग कर डाली थी।
यूपी में होगा सोशल इंजीनियरिंग का असली इम्तेहान के शीर्षक से दैनिक `पताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि उत्तर पदेश चुनाव में हर सियासी पार्टी को तथाकथित सोशल इंजीनियरिंग का इमतेहान होने वाला है।
बसपा सुपीमो मायावती द्वारा विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की सूची जारी करते गिनाना शुरू कर दिया कि एससी 88, ओबीसी 113, ब्राह्मण 74, ठाकुर 33 और 85 मुसलमान हैं। जाति-पाति का विवरण देना कोई नई बात नहीं है लेकिन बहन जी की पेस कांपेंस के कुछ घण्टों बाद ही भाजपा की पेस कांपेंस में पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अहमद अब्बास नकवी ने भी विवरण पेश किया कि अब तक जारी भाजपा की सूची में कितने पिछड़ों, एससी और ब्राह्मणों को टिकट दिया गया है। कांग्रेस जो ब्राह्मणों की पार्टी मानी जाती हैं उसने भी 325 उम्मीदवारों में से 39 ब्राह्मणों, 51 ठाकुरों, एससी 82 और मुसलमानों को 52 टिकट दिए हैं। समाजवादी पार्टी ने भी टिकट वितरण में अपनी सोशल इंजीनियरिंग का पूरा ख्याल रखा है। कुल मिलाकर दिलचस्प सूरतेहाल बनी हुई है देखें, यूपी में सोशल इंजीनियरिंग कितनी सफल साबित होती है अथवा किस पार्टी का जाति आंकलन फिट बैठता है।
लखनऊ से पकाशित दैनिक `अवधनामा' में हिसाम सिद्दीकी ने पैसों के लालच में डटा सलमान का इत्तेहाद पंट के शीर्षक से लिखा है कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड सदस्य और दारुल उलूम नदवातुल उलेमा लखनऊ और मौलाना अली मियां परिवार के एक सदस्य सलमान हसनी नदवी ने जिन एक दर्जन कागजी पार्टियों को जोड़कर एक बेमेल शादी की भी उसमें केवल तेरह दिनों में ही तलाक हो गया। तलाक भी काले धन के बंटवारे के कारण हुआ। सलमान नदवी ने ऐलान किया कि पीस पार्टी आल इंडिया ने मनमाने तरीके से अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया। पीस पार्टी में मोटी रकमें लेकर टिकट दिए गए इसालिए पीस पार्टी को इत्तेहाद पंट से निकाल दिया गया।
पीस पार्टी का कहना है किसलमान नदवी ने केवल अफवाहों की बुनियादों पर मान लिया था और वह कह रहे थे कि उम्मीदवारों से ली गई रकम में उन्हें भी उचित हिस्सा दिया जाए। पार्टी ने जब पैसा लिया ही नहीं था, तो उन्हें थैली कहां से पहुंचाई जाती। पीस पार्टी के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सलमान नदवी के रुख से मौलवियों की बेइमानी और लालची होने का यकीन हो गया।

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