Saturday, February 11, 2012

क्या नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हो सकते हैं?

हैदराबाद से प्रकाशित उर्दू दैनिक `ऐतमाद' में मीना मैनन ने अपने लेख में बाल ठाकरे द्वारा मुसलमानों के संबंध में पूर्व में की गई टिप्पणी पर चर्चा करते हुए लिखा है कि केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल इंटरनेट पर घृणित और आपत्तिजनक एवं भेदभाव पैदा करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करना चाहते हैं। इनके मंत्रालय ने गत सप्ताह `फेसबुक, गूगल और अन्य वेबसाइटों' के खिलाफ कार्यवाही की इजाजत भी दे दी है। लेकिन पार्टी की अगुवाई वाली महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार शिवसेना सुप्रीम बाल ठाकरे के खिलाफ कार्यवाही करने से बच रही है। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद हुए दंगों के लिए श्रीकृष्णा आयोग ने बाल ठाकरे की लेखनी को इसके लिए जिम्मेदार बताया है। बाल ठाकरे `सामना' अखबार के सम्पादक हैं, उसी में उनके भड़काऊ लेख प्रकाशित हुए। जिस पर उनके खिलाफ कई मुकदमें कायम हुए, लेकिन प्रसासन ने कोई कार्यवाही नहीं की। आरटीआई द्वारा जो विवरण सामने आया है उसके अनुसार 1995 से 1996 तक सत्तासीन शिवसेना और भाजपा सरकार ने और न ही इसके बाद सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में तीन टर्म शासन में रही सरकार ने बाल ठाकरे के खिलाफ कार्यवाही की। दायर किए गए मुकदमें या तो बन्द कर दिए गए या फिर आरोपी की गिरफ्तारी के लिए सरकारी आदेश के इंतजार में ठंडे बस्ते में पड़े हैं।
`यूपी के मुसलमान भाजपा के निशाने पर' शीर्षक से साप्ताहिक `नई दुनिया' ने अपने लखनऊ के विशेष संवाददाता के हवाले से रिपोर्ट में लिखा है कि आरएसएस की पिट्ठू जमाअते मुसलमानों को टिकट देकर अपना उम्मीदवार बना रही है। मुस्लिम संगठन और मुसलमानों की राजनैतिक पार्टियां एकता का भी नाटक रचा रही हैं ताकि मुसलमान इस भ्रम में रहें कि फ्लां मुसलमान को इस पार्टी का वोट भी मिल रहा है और वह इस उम्मीदवार को अपना वोट देकर खुद की निर्णायक हैसियत को खो दें। भाजपा एक ओर मुस्लिम दुश्मनी को बढ़ाने का षड्यंत्र कर रही है, क्योंकि वह जानती है कि जब तक फूट नहीं पड़ेगी, उसकी दाल नहीं गल सकती। तीसरी तरफ वह मुसलमानों को आपस में बांटने का जाल बिछा रही है। संयोगवश कांग्रेस को भी यही रणनीति भाती नजर आ रही है क्योंकि जब तक समाजवादी पार्टी कमजोर नहीं होगी, इसके दिन फिरते नजर नहीं आते। इसलिए वह भी इस खेल में जुटी है और पूरी ताकत से इस जाल को मजबूत कर रही है।
`क्या देश के अगले पीएम नरेन्द्र मोदी हो सकते हैं?' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अगर आज लोकसभा चुनाव हो जाएं तो एक जनमत सर्वेक्षण के दावे के अनुसार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है और कांग्रेस की अगुवाई करने वाले राहुल गांधी के मुकाबले गुजरात मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में बढ़त मिल सकती है। ओआरजी-नील्सन द्वारा कराए इस राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार जाहिर किया गया है कि आज की स्थिति में चुनाव होने पर एनडीए को 180 से 190 सीटें और तीसरे मोर्चों को भी इतनी ही सीटें मिलेंगी जबकि यूपीए को 168-178 सीटें मिलने की उम्मीद जाहिर की गई है। सर्वेक्षण में एक दिलचस्प सवाल यह भी था कि अगर अन्ना हजारे और राहुल गांधी आमने-सामने एक ही सीट पर मुकाबला कर रहे हों तो आप किसको वोट देंगे। इस सवाल पर 60 फीसदी लोगों ने अन्ना के समर्थन में अपना मत दिया जबकि राहुल गांधी को 24 प्रतिशत ने वोट दिया। सबसे दिलचस्प प्रश्न था कि प्रधानमंत्री किसको देखना चाहेंगे? प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में अगस्त 2010 के सर्वेक्षण के मुकाबले राहुल गांधी की लोकप्रियता का ग्रॉफ 24 प्रतिशत से घटकर 17 प्रतिशत पर आ गया है जबकि नरेन्द्र मोदी का ग्रॉफ 12 से बढ़कर 45 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह सर्वेक्षण ऐसे समय सामने आया है जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। सर्वेक्षण में 19 राज्यों में अटकल से चुने गए 90 संसदीय क्षेत्रों के 12 हजार से अधिक लोगों की राय ली गई। नरेन्द्र मोदी आज जनता की नम्बर वन च्वाइस हैं।
`मोदी को राहत' के शीर्षक से दैनिक `जदीद खबर' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि नरेन्द्र मोदी की छत्रछाया में गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार हुआ था। मुख्यमंत्री की इस नरसंहार में जो भूमिका थी वह शासन पर कलंक है। यही कारण है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अहमदाबाद के सहायता शिविरों में पीड़ितों की सुनकर कहा था कि `मोदी को राज धर्म निभाना चाहिए था।' गुजरात नरसंहार में नरेन्द्र मोदी की भूमिका का मामला सुप्रीम कोर्ट में एक से अधिक बार बाहर आ चुका है। लेकिन 2002 में हुए नरसंहार की जांच करने वाले जस्टिस नानावती आयोग ने अभी तक मोदी से कोई पूछताछ नहीं की है। इस आयोग को खुद मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही अत्याधिक दबाव के बाद कायम किया था। आयोग नरेन्द्र मोदी से जिरह करने से परहेज क्यों कर रहा है? यह समझ से परे है। देखना यह है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अख्तियार करता है।
`आधी हकीकत आधा फसाना' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने गत दिनों कहा था कि भाजपा ने अपने शासन काल में प्रसासन अथवा सरकारी तंत्र में संघी-मानसिकता के लोगों को भर दिया था और वही अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों की उन्नति में रुकावटें पैदा करते रहे। लेकिन सच्चाई यह है कि संघी मानसिकता के अधिकारी तो सरकारी तंत्र में पहले से मौजूद हैं। भाजपा को तो सत्ता बाद में मिली। इस रतह राहुल गांधी ने पूरी सच्चाई नहीं बताई है। इसके अतिरिक्त खुद कांग्रेस के अन्दर संघी मानसिकता के लोग मौजूद थे और शायद अब भी हैं जो वास्तव में अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों का विकास नहीं चाहते थे। इस मानसिकता का प्रतिनिधित्व सरदार वल्लभ भाई पटेल, पंडित गुरु गोविंद सिंह और इन जैसे अन्य नेता करते थे लेकिन राहुल गांधी ने इस सिलसिले में कुछ नहीं किया। अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अवसर पर कांग्रेस का जो घोषणा पत्र जारी हुआ है, उसमें भी अल्पसंख्यकों और मुसलमानों से बहुत से वादे किए गए हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि यह वादे कैसे पूरे होंगे क्योंकि प्रशासन और सरकारी तंत्र में तो संघी मानसिकता के लोग अब भी मौजूद हैं और प्रभावशाली हैं। इस मानसिकता से निपटने के बारे में कांग्रेस नेतृत्व विशेषकर राहुल को कुछ बताना चाहिए। संघी मानसिकता को निप्रभावी करने के लिए कांग्रेस ने क्या रणनीति बनाई है, यह स्पष्ट होना चाहिए।

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