Saturday, March 17, 2012

उर्दू पत्रकार काजमी की गिरफ्तारी इजरायल के इशारे पर

इजरायली राजनयिक की गाड़ी पर हमले के आरोप में पुलिस द्वारा सैयद मोहम्मद अहमद काजमी को गिरफ्तार करने पर जहां देशभर में विभिन्न मुस्लिम एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी है वहां उर्दू अखबारों ने इस पर अपने सम्पादकीय लिखे, आलेख और रिपोर्ट प्रकाशित की। पेश है कुछ उर्दू अखबारों की राय।
`इजरायली राजनयिक पर हमले में ईरानी पत्रकार की गिरफ्तारी?' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा कि दरअसल बैंकाक में हुए विस्फोट के बाद वहां से कुछ संदिग्ध ईरानी फरार हो गए थे जिसमें एक महिला भी शामिल थी। बैंकाक पुलिस को उस महिला के घर की तलाशी में एक टेलीफोन डायरी मिली थी जिसमें मोहम्मद अहमद काजमी का मोबाइल नम्बर था। काजमी के खिलाफ कई महत्वपूर्ण सुबूत मिले हैं। आशंका जताई जा रही है कि हमलों के पीछे ईरानी सेना की स्पेशल फोर्स है जिसे खासतौर से ईरान-इराक युद्ध के समय गठित किया गया था। मोहम्मद अहमद काजमी को सूचनाएं जुटाने के लिए डालर में भुगतान किया गया था। ब्लास्ट में जिस मोटर साइकिल का इस्तेमाल किया गया वह करोल बाग इलाके से किराये पर ली गई थी। हमलावर विदेश से आकर पहाड़गंज के एक होटल में ठहरे थे। बताया जा रहा है कि स्टिकी बम इसी होटल में तैयार किया गया।
पूरे मामले का दुःखद पहलू यह है कि विदेशी बाम्बर जिसने औरंगजेब रोड में कार पर बम लगाया था वह गृह मंत्रालय की सुस्ती के कारण उसी दिन इन्दिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से दक्षिण एशिया के किसी देश की फ्लाइट से भाग गया। गृह मंत्रालय या किसी और सरकारी एजेंसी ने हवाई अड्डे पर इमिग्रेशन को सूचित नहीं किया कि अमूक व्यक्तियों को रोका जाए, पूछताछ की जाए। गृह मंत्रालय की यह चूक इसलिए भी चिन्ता का विषय है कि बम धमाका होने के तुरन्त बाद इजरायल ने कह दिया था कि हमले के पीछे ईरान का हाथ है।
`संघी-यहूदी-राजनीति' के शीर्षक से लखनऊ सहित कई शहरों से प्रकाशित दैनिक `अवधनामा' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि मोहम्मद अहमद काजमी की गिरफ्तारी का मामला सादा नहीं बहुत पेचीदा है, जिसको समझने के लिए यहूदी राजनीति का समझना जरूरी है। आरएसएस के एक थिंक टैंक के अनुसार शीत युद्ध के खत्म होने और फिर
9/11 के बाद दुनिया एक बार फिर दो ब्लॉकों में विभाजित हो चुकी है। दक्षिणी ईसाई ब्लॉक और पूर्वी मुस्लिम ब्लॉक। इस थिंक का कहना है कि 6 दिसम्बर 1992 के संदर्भ में संघ परिवार ने बहुत कोशिश की थी कि ईसाई ब्लॉक (जिसमें यहूदी भी शामिल हैं) और मुस्लिम ब्लॉक की तरह दुनिया में एक तीसरे हिन्दू ब्लॉक को भी स्वीकार कराया जाए लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिल सकी। इसलिए भारत जो एक हिन्दू बहुसंख्यक देश है जिसमें सांस्कृतिक प्रभाव ब्राह्मणों का है उसका प्रतिशत भारत में उतना नहीं है जो पूरी दुनिया में यहूदियों का है। इसके सिवाय कोई उपाय नहीं कि वह ईसाई ब्लॉक का साथ दे क्योंकि वह कई कारणों से मुस्लिम ब्लॉक में शामिल नहीं हो सकता। संघ परिवार के इसी उच्चस्तरीय फैसले के बाद ही भारत की विदेश नीति तब्दील हुई और लगभग आधी सदी के विरोध के बाद वह इजरायल समर्थक हो गई। इसी फैसले के तहत प्रधानमंत्री नरसिंह राव के समय में इजरायल को व्यावहारिक तौर पर तसलीम करके इससे राजनयिक रिश्ते कायम किए गए। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद शहीद हुई जिसमें संघ परिवार को यहूदी इजरायल की लॉजिस्टक सहायता भी शामिल थी। इजरायल जो मुसलमानों के प्रथम किबला बैतुल मकद्दस को गिराकर हैकल में तब्दील करना चाहता है यह देखना चाहता था कि बाबरी मस्जिद की शहादत इस्लामी जगत पर क्या प्रभाव डालती है ताकि वह मस्जिद की शहादत के बाद पेश आने वाले संभावित घटनाओं से निपटने की योजना बना सके। गत 32 वर्षों के दौरान भारत-इजरायल संबंध जितने गहरे और पेचीदा हो चुके हैं, जनता को छोड़िए खास को भी इसके बारे में अनुमान नहीं है। उर्दू पत्रकार मोहम्मद अहमद काजमी की गिरफ्तारी इसी संघी यहूदी रणनीति के तहत है।
दैनिक `जदीद मेल' ने `कलम पर साम्राजी हमला' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि मोहम्मद अहमद काजमी को अंतर्राष्ट्रीय आतंक रोधी कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है। शायद इसीलिए दिल्ली की स्पेशल सेल के लोगों ने उनकी पुलिस रिमांड 20 दिन की ली है और पुलिस ने जिन स्रोतों से अखबार और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में यह समाचार प्रसारित किया गया कि इसमें काजमी को उत्तर-पूर्व आतंकी संगठन से जुड़ा बताया गया है। लेकिन यह बात समझ में नहीं आती कि अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठन से संबंध रखने वाले किसी व्यक्ति की जांच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल कर रही है। अभी तक आतंकी जो घटनाएं सामने आई हैं उसमें छोटी से छोटी घटना में लिप्त किसी भी संदिग्ध से पूछताछ `आईबी', `रॉ' या `एनआईए' के लोग ही करते हैं। जाहिर है कि एटीएस और एनआईए का गठन ही आतंकवाद से जुड़े मामलों की छानबीन के लिए हुआ है फिर यह एजेंसियां मोहम्मद अहमद काजमी मामले से दूर क्यों हैं? सबसे ज्यादा दुःखद बात तो यह है कि मोहम्मद अहमद काजमी की गिरफ्तारी के बाद इजरायली राजनयिक की कार विस्फोट मामले को हल करने का दावा स्पेशल सेल के जिन अधिकारियों ने किया है इनमें से एक तो खुद भ्रष्टाचार के मामले में विजीलेंस जांच के दायरे में है। सवाल यह है कि क्या ईरान के हक में लेख लिखना और समीक्षा करना गुनाह है और इजरायल व अमेरिका की निन्दा व भर्त्सना करना जुर्म है।
`वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद अहमद काजमी की गिरफ्तारी' के शीर्षक से मौलाना अली हैदर गाजी कुमी ने दैनिक `सहाफत' में प्रकाशित अपने लेख में लिखा है कि बात दरअसल यह है कि काजमी ने सीरिया का दौरा किया और वहां की सूरतेहाल पर कलम उठाया। इजरायल के षड्यंत्र को उजागर किया। गाजा और फलस्तीन के मुसलमानों को सताया जा रहा है, पर लिखा और दिल्ली बम विस्फोट की समीक्षा की और इजरायल के षड्यंत्र की पोल खोल दी जिसके कारण काजमी को तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया ताकि पत्रकारिता की दुनिया को इन डायरेक्ट पैगाम दिया जाए कि बस वह लिखो जो मोसाद चाहे, वह पढ़ो जो वह पढ़ाएं, वह देखो जो इजरायल दिखाए, वह सोचो जो यहूदी सोचें तो ठीक है अन्यथा काजमी जैसे पत्रकारों को दबोचा जा सकता है तो फिर दूसरे पत्रकार भी अपनी खैर मनाएं। अपनी गिरफ्तारी से ठीक दो घंटे पूर्व उन्होंने एक बयान दिया था जिसकी कीमत उन्हें गिरफ्तारी से चुकानी पड़ी।
मोहम्मद अहमद की यह गिरफ्तारी आखिरी कदम नहीं बल्कि पहला कदम है दूसरा कदम मैं या मेरे जैसा कोई दूसरा हो, अभी कुछ कहना समय पूर्व होगा लेकिन होगा जरूर, क्योंकि भारत में मोसाद ने अपने पंजे जिस तरह गाड़ रखे हैं इसे हर कोई जानता है। मोहम्मद अहमद काजमी से अपने इस बयान में विश्लेषण किया और फिर इसी विश्लेषण की रोशनी में इजरायली षड्यंत्र की पोल खोल दी जिससे बौखलाकर इजरायल ने हिन्दुस्तान पर दबाव बनाया और फिर क्या था कि काजमी पर बेबुनियाद, झूठे आरोप लगा दिए गए। उनकी गिरफ्तारी इजरायल के इशारे पर हुई है।

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