Saturday, May 5, 2012

`यौन संबंध के लिए सही उम्र क्या है?'


बीते दिनों विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर उर्दू अखबारों ने अपने विचार प्रस्तुत किए और विशेष लेख प्रकाशित किए। दिल्ली की एक अदालत द्वारा यौन संबंधों को लेकर दिया गया फैसला भी चर्चा का विषय रहा। दैनिक `प्रताप' ने `यौन संबंध के लिए सही उम्र क्या है?' के शीर्षक से सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है कि दिल्ली की रोहिणी जिला अदालत की अतिरिक्त न्यायाधीश डॉ. कामिनी लॉ अपने फैसलों के लिए अकसर चर्चा में रहती हैं। उन्होंने अब एक केस में सांसदों से कहा है कि उन्हें सामाजिक व्यवहार में आए बदलाव को ध्यान में रखते हुए यौन संबंधों के लिए उपयुक्त आयु से जुड़े मौजूदा कानून पर विचार करना चाहिए। अदालत की यह टिप्पणी एक लड़की के कथित अपहरण के मामले में युवक को बरी करते हुए की गई। अदालत ने कहा कि आरोपी युवक और लड़की के बीच प्रेम संबंध थे। प्रेम कर रहे नौजवानों को दंडित करने के लिए हमारे देश में कानून तंत्र का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। खासकर जब उनके बीच उम्र का फासला स्वीकार्य सीमा तक है। अदालत ने कहा कि मामले को यहीं विराम देना चाहिए।
किसी भी परिस्थिति में इन नौजवानों का भविष्य उनके अतीत को उजागर करके बर्बाद नहीं किया जा सकता। दस्तावेजी जांच के बाद पता चला कि घटना के वक्त लड़की की उम्र 18-19 साल थी और आरोपी युवक के खिलाफ कुछ नहीं मिला। डॉ. लॉ का फैसला इसलिए विवादास्पद माना जाए क्योंकि किसी भी देश में इस विषय पर एक राय नहीं है। कनाडा में कसैंट की उम्र मई 2008 तक 14 होती थी अब उसे 16 वर्ष कर दिया गया पर जहां दोनों पार्टनरों की उम्र में 5 साल से कम का फर्प है तो यौन संबंध अपराध माना जाएगा।
इसी तरह अमेरिका में 50 राज्यों में यौन संबंध की उम्र 16 से 18 वर्ष है। लगभग हर राज्य में डेटिंग, हगिंग, हाथ पकड़ना व किसिंग अपराध नहीं है। सिनेमा और टीवी में बढ़ती अश्लीलता भी यौन संबंधों में आई तेजी का एक प्रमुख कारण है।
दैनिक `अखबारे मशरिक' ने `यौन संबंधों के लिए 18 साल की उम्र तय करने का सरकार का फैसला बिल्कुल सही और उचित है' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि गत दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दो व्यस्कों के बीच इच्छा से यौन संबंधों की आयु कम करके 18 साल का सुझाव दिया है। संभव है कि यह विधेयक संसद के वर्तमान सत्र में मंजूर हो जाए। खुले विचार वाले इसके लिए 16 साल की उम्र तय करने के पक्ष में हैं और हिन्दुस्तान द्वारा 18 साल की उम्र तय करने पर बड़ी घृणा दृष्टि से अफ्रीकी देशों खांडा और उगांडा का हवाला देते हुए कहते हैं कि ऐसा करके वह ओंगाडा और खांडा क्लब में दाखिल हो जाएगा। यह तर्प भी दिया जा रहा है कि गांव देहात में तो 18 साल से कम उम्र में शादियों का चलन है इसलिए 18 साल तय करना शहरों में रहने वालों के खिलाफ एक प्रकार का भेदभाव है। इस कानून के नतीजे में आत्महत्या और आनर किलिंग बढ़ जाएगी। देश में बच्चों के अधिकारों के विशेषज्ञ, शिक्षक और शोधकर्ता भी इस कानून के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि यही सबसे बड़ा मसला है और यदि इसे इनकी इच्छानुसार हल नहीं किया गया तो कयामत टूट पड़ेगी। जो लोग शादी के बिना यौन संबंध के समर्थन हैं और उसके लिए 16 साल की आयु पर जोर दे रहे हैं। वास्तव में उनके सिर पर यौन का भूत सवार है। आज 16 तो क्या 18 और 20 साल की आयु में भी कोई व्यक्ति आर्थिक तौर पर अपने पांव पर खड़ा नहीं हो सकता। शिक्षा और दक्षता हासिल करने में 30 से 35 साल लग जाते हैं, फिर देश की जनसंख्या भी बढ़ रही है जिस पर काबू पाने की सख्त जरूरत है। इन हालत में 18 साल का सरकार का फैसला बिल्कुल सही और उचित है जिसका अनुमोदन और समर्थन किया जाना चाहिए।
दैनिक `जदीद मेल' में एमए हक ने `कांग्रेस और दिल्ली मदरसों की सहायता' की शीर्षक से लिखे पत्र में लिखा है कि दिल्ली एमसीडी में हार के बाद दिल्ली सरकार ने 2013 के विधानसभा चुनाव के लिए मुसलमानों के रिझाने की रणनीति शुरू कर दी है ताकि विधानसभा चुनाव में मुसलमानों का वोट कांग्रेस की झोली में जा सके। मुस्लिम शैक्षिक संस्थानों में केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने मुसलमानों को बेवकूफ बनाते हुए सेंध मारा है। मुस्लिम शैक्षिक संस्था, कालेज, मदरसा बोर्ड या संगठन जो भी सरकारी अनुदान पाते हैं उनको आरटीई के दायरे में लाकर राज्यसभा ने भी इस विधेयक को पास कर दिया। इसका अंदाजा बहुत से नेताओं को है या नहीं या जानते हुए इसकी अनदेखी कर रहे हैं ताकि चुनाव के समय उन्हें मुस्लिम समस्याओं पर रोटी सेंकने का मौका मिल सके। दिल्ली सरकार ने मदरसों को कहा है कि वह अपने मदरसों का पंजीकरण कराएं ताकि उन्हें अनुदान दिया जा सके। क्या दिल्ली सरकार अपनी अकेली शैक्षिक संस्था मदरसा आलिया, फतेहपुरी मस्जिद की शैक्षिक गतिविधियों, पाठ्यक्रम एवं स्तर को दिल्ली के मुसलमानों को उदाहरण के तौर पर पेश कर सकती है।
आज तक मदरसा आलिया के प्रमाण पत्र को न तो दिल्ली सरकार ने अपने सरकारी विभागों में मंजूरी दी और न उसका अब तक सही पाठ्यक्रम तैयार किया जैसा कि अन्य राज्यों के मदरसा बोर्ड के प्रमाण पत्र की मंजूरी है जिसके आधार पर आप सरकारी, प्राइवेट नौकरी और शैक्षिक गतिविधियां जारी रख सकें। अनुदान देकर वोट लेना कांग्रेस की परम्परा रही है।
`राजग गठबंधन भी खतरे में' के शीर्षक से दैनिक `राष्ट्रीय सहारा' ने अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है कि इस गठबंधन को पहला धक्का 2004 में उस समय लगा था जब उसे आशा के विपरीत बुरी तरह से पराजय हुई थी। इसके बाद उमर फारुक ने कहा कि उनकी नेशनल पार्टी ने बाजपा से हाथ मिलाकर गलती की थी। इसके बाद नवीन पटनायक की बीजू जनता दल इससे अलग हो गई। अम्मा जयललिता ने सरपरस्ती से हाथ खींच लिया। एक अन्य सहयोगी दल चन्द्र बाबू नायडू ने भी कह दिया कि तेलुगूदेशम का भाजपा से हाथ मिलाना सबसे बड़ी गलती थी। इसके बावजूद एनडीए का वजूद बरकरार रहा। कम से कम तीन अहम पार्टियां अर्थात् अकाली दल, जनता दल (यू) और शिवसेना इसमें शामिल रहीं। राष्ट्रपति चुनाव ने इस गठबंधन के लिए भी खतरे की घंटी बजा दी है। भाजपा नेता सुषमा स्वराज के इस कथन के बाद कि हामिद अंसारी राष्ट्रपति पद के उपयुक्त उम्मीदवार नहीं हैं, एनडीए गठबंधन में शामिल दलों में दरार पैदा कर दी है। एनडीए अब्दुल कलाम के हक में भी पूरी तरह नहीं है। दूसरे यह जरूरी नहीं कि भाजपा द्वारा बताया गया नाम गठबंधन में शामिल सहयोगियों के लिए स्वीकार्य हो। भाजपा ने अभी तक खुलकर कोई नाम नहीं पेश किया है। यह संभव नहीं रहा कि भाजपा अपने तौर पर किसी का नाम तय कर सके। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि एनडीए की अगुवाई अब भाजपा के हाथ में न रह सके और तकनीकी तौर पर अब भी नहीं है।

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