Saturday, May 12, 2012

इमाम काबा के आगमन से सियासी मकसद हासिल करने की कोशिश


बीते दिनों सऊदी अरब स्थित पवित्र काबा (हरम) के इमाम  6 दिवसीय पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के दौर पर आए। उनके आगमन पर जहां मुसलमानों ने चौंकते हुए उनके लिए पलकें बिछाईं वहां कुछ मुस्लिम नेताओं द्वारा इससे सियासी फायदा उठाने की कोशिश की गई। इस बाबत चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार हफीज नेमानी जो प्रसिद्ध आलिम स्वर्गीय मौलाना मोहम्मद मंजूर नोमानी के सुपुत्र हैं, ने अपने स्तम्भ में मिर्जा गालिब के शेर की इस पंक्ति `रखियो गालिब मुझे इस तलख नवाई में माफ' के शीर्षक से समीक्षा करते हुए लिखा है कि सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि इमाम काबा का दौरा दारुल उलूम नदवातुल उलेमा लखनऊ के निमंत्रण पर नहीं बल्कि करौली (मलिहाबाद) स्थित जामिया सैयद अहम शहीद के मोहतमिम मालना सैयद सलमान हुसैनी की दावत पर हुआ है। मौलाना हुसैनी नदवा के शिक्षक भी हैं। मौलाना सलमान हुसैनी एक यूनानी मेडिकल कालेज चलाते हैं जिस पर गत दिनों छापा पड़ा था। इस पर एक हिन्दी दैनिक ने पूरे पेज पर छापे की कार्यवाही छापी थी। उसमें फर्जी मरीज, फर्जी दवाएं, फर्जी अस्पताल सब कुछ फर्जी या केवल कालेज और मौलाना हुसैनी के। यह सारा घपला वह बहन जी के खास सतीश चन्द्र मिश्रा की छत्रछाया में करते थे। यही कारण है कि चुनाव के समय जब नमक का हक अदा करने का समय आ गया तो मौलाना सलमान हुसैन ने कोई दर्जन मुस्लिम सियासी पार्टियों का मोर्चा बनाकर मुस्लिम वोटों को निप्रभावी करने की कोशिश की, लेकिन इसमें वह सफल नहीं हो सके। राज्य में सत्ता बदलने पर यह अनुमान लगाया जा रहा था कि सरकार इनके काले कारनामों को उजागर करेगी। इस खतरे को महसूस करते हुए मौलाना हुसैनी ने इमाम हरम को बुला लिया। उनके पीछे नमाज पढ़ती भीड़ को दिखाकर सरकार को चेता दिया कि मुसलमान उनके साथ हैं। इसी के साथ एक ऐसे इंजीनियरिंग और अटल बिहारी वाजपेयी की बनाई हुई यूनिवर्सिटी में जहां न किसी मुस्लिम बच्चे के दाखिला लेनी वाली घूस और वार्षिक फीस में कोई छूट की जाती हो वहां इमाम काबा का कार्यक्रम रखाना क्या ऐसा नहीं है जैसे यह भी आपस में सगे भाई हों।
`इमाम काबा के लखनऊ आगमन से सियासी उद्देश्य हासिल करने की कोशिश' के शीर्षक से दैनिक `जदीद खबर' ने पहले पेज पर प्रकाशित खबर में लिखा है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इमाम हरम के आगमन पर परम्परागत तरीके से उनका स्वागत किया था, एयरपोर्ट उन्हें लेने गए थे और यह घोषणा की थी कि इमाम हरम राज्य के मेहमान हैं और उन्हें किसी तरह की परशानी नहीं होने दी जाएगी। 4 मई को मौलाना अली मियां के नाम पर बने एफआई मेडिकल कालेज में मेहमान के तौर पर अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव को शरीक होना था लेकिन कार्यक्रम में न तो मुख्यमंत्री आए और न ही मुलायम सिंह यादव। इस बाबत जब जानकारी ली गई तो मालूम हुआ कि गत चुनाव में मौलाना हुसैनी ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी के साथ मिलकर बहुजन समाज पार्टी का चुनाव लड़ाया था। इसी तरह ईदगाह कन्वेंशन सेंटर में भी कुछ इसी कारण से मुख्यमंत्री शरीक नहीं हुए। मुख्यमंत्री मौलाना सलमान हुसैनी के एकता मोर्चों से काफी नाराज नजर आ रहे हैं। मौलाना ने सभी कार्यक्रम ऐसे लोगों को दिए हैं जो गत सरकार में बसपा कार्यालय के करीब रहे और समाजवादी पार्टी को हराने में सक्रिय भूमिका निभाई। इमाम काबा के आने पर चली सियासत के उपरांत स्टूडेंट्स इस्लामिक आर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया (एसआईओ) ने भी अपना कार्यक्रम निरस्त कर दिया और इसकी सूचना सऊदी उच्चायोग की दे दी गई है।
`इजरायल में अमेरिकी हथियारों का भंडार, मकसद क्या है?' के शीर्षक से `सहरोजा दावत' ने अपने विशेष लेख में लिखा है कि समाचार के मुताबिक अमेरिका इजरायल को खतरनाक हथियार सप्लाई तो करता ही है, साथ ही इसने इजरायल में 80 करोड़ डालर का हथियार भी जमा कर रखा है जिसमें समय और जरूरत के तहत वृद्धि की जाती है। हथियारों को जमा करने का सिलसिला 1990 में शुरू हुआ था, जब हमास ने इजरायल के खिलाफ तहरीक इनतिफाजा शुरू की थी। हथियारों के जमा करने से यह सवाल पैदा हो रहा है कि आखिर अमेरिका वहां किसलिए हथियार जमा कर रहा है? क्या यह हथियार अमेरिका के लिए है या इजरायल के लिए। यदि यह हथियार अमेरिकी इस्तेमाल के लिए होते तो इनका इस्तेमाल इराक के खिलाफ जंग में जरूर किया जाता लेकिन ऐसा देखने में नहीं आया। इसलिए संभावना यही है कि हथियारों का भंडार इजरायल के लिए किया जा रहा है। गौरतलब बात यह है कि जब रूस अपने पड़ोसी यूरोपीय देशों में अमेरिका के सुरक्षा प्रेक्षपास्त्र का विरोध कर सकता है तो मुस्लिम देश अपने सबसे बड़े शत्रु इजरायल में अमेरिकी हथियारों के भंडार का विरोध क्यों नहीं कर सकते।
`मदरसों में हस्तक्षेप, नई बिदअत (बुराई) के लिए सफदर खां जिम्मेदार, मदरसों को आर्थिक सहयोग देने का उपाय करने में लगे हैं लेकिन मिस्टर खान को नहीं मालूम कि कैसा होगा मदरसों की आर्थिक सहयोग व्यवस्था' के शीर्षक से दैनिक `हमारा समाज' में आमिर सलीम खां ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि मदरसा बोर्ड को लेकर दो ग्रुप हैं एक इसके बनाने की मांग कर रहा है तो दूसरा इसका विरोध कर रहा है, उसका तर्प है कि इससे मदरसों में हस्तक्षेप की राह आसान हो जाएगी। दिल्ली अल्पसंख्यक चेयरमैन सफदर हुसैन खां इन दोनों के बीच मध्यस्या की भूमिका  में रहे हैं लेकिन उन्हें भी नहीं मालूम कि मदरसों की दी जाने वाली आर्थिक सहयोग की रूपरेखा क्या होगी? इस सवाल पर कि मदरसा बोर्ड के गठन के बिना मदरसों को किस तरह सहायता दी जाएगी, के सवाल पर सफदर खां ने कहा कि अभी प्रक्रिया चल रही है। वैसे मदरसे अल्पसंख्यक आयोग को पंजीकरण के लिए आवेदन करें, आयोग उनकी संसुति शिक्षा विभाग से कराएगा, इसके बाद उन्हें सहायता दी जाएगी।
`जमीअत उलेमा हिन्द का 31वां आम अधिवेशन' पर फोकस करते हुए साप्ताहिक `अल जमीअत' ने अपनी कवर स्टोरी बनाई है। अखबार लिखता है कि हमें कोशिश करनी चाहिए कि समस्याओं के समाधन हेतु यह अधिवेशन एक यादगार अधिवेशन बन जाए जिसके बाद हमें बार-बार समस्याओं के लिए रोना न पड़े। यह सातवां अवसर है जब राजधानी दिल्ली इन अधिवेशन की मेजबानी कर रही है। मुसलमानों की पहली और सक्रिय संगठन जमीअत उलेमा हिन्द का पहला अधिवेशन 19, 20, 21 नवम्बर 1920 को हुआ था जिसमें जमीअत के विचारक शेखुल हिन्द मौलाना महमूद हसन देवबंदी मालटा की जेल से छूट कर आए थे और साफ-साफ कहा था कि `देशवासियों के सहयोग के बिना स्वाधीनता सम्भव नहीं है।'

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