Saturday, May 5, 2012

मुसलमान वोट बैंक नहीं हैं


दिल्ली एमसीडी चुनाव में भाजपा की जीत पर दैनिक `जदीद मेल' ने `एमसीडी चुनाव के नतीजों' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है कि दिल्ली निगम (एमसीडी) को तीन भागों में विभाजित करने के बाद यह पहला चुनाव था। विभाजन के बाद होने वाले इस चुनाव में इस कारण ज्यादा उत्साह था कि अलग-अलग वार्डों में विभिन्न पार्टियां यदि सत्ता में आईं तो फिर दिल्ली में निगम के कामकाज में निश्चित रूप से बेहतरी आएगी जिसका फायदा आम आदमी को ही मिलेगा और बिजली, पानी, सड़कें, नालियां और नालों की सफाई आदि जैसे विकास कार्यों में तेजी आएगी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। भाजपा ने अपने पांच वर्षीय शासनकाल में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया जिसके आधार पर उसे सत्ता में दोबारा लाया जाता लेकिन भाजपा ने इस चुनाव में महंगाई, बिजली और पानी को ही चर्चा का विषय बनाया जिसके नकारात्मक प्रभाव कांग्रेस पर पड़े और दिल्ली की जनता ने कांग्रेस के खिलाफ मतदान किया। एमसीडी में मिली हार के बाद कांग्रेस के ही कुछ नेता मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर निशाना साध रहे हैं। ऐसा तो हर पराजय के बाद होता है लेकिन कांग्रेस को यह समझना होगा कि बिजली और पानी का निजीकरण प्राइवेट कम्पनियों की मनमानी एवं दैनिक उपभोग की वस्तुओं के बढ़ते दाम का बोझ आम आदमी पर पड़ रहा है और इसका खामियाजा पार्टी को कहीं न कहीं तो उठाना ही पड़ेगा।
दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' ने एमसीडी चुनाव में ओखला रार्ड 205 का विश्लेषण करते हुए रागिब आसिम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि आज जियादी रहमान की हार ने राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों को बदनाम करने का काम किया है क्योंक जिया को चुनावी जंग में झोंकने वाले व्यक्तियों ने अपने घोषणा पत्र और पब्लिक मीटिंग में बार-बार इस गिरी सोच को उजागर किया था कि हम इस चुनाव द्वारा यह जानना चाहते हैं कि ओखला को बटला हाउस एनकाउंटर को किस दृष्टि से देखते हैं, जनता इसे सही मानती है या इसे दिल्ली पुलिस का षड्यंत्र बताती है? नतीजे सामने आ चुके हैं अपने हितों के लिए पीड़ित जियाउर्रहमान को जहां पराजय की सूली पर चढ़ा दिया वहीं बटला हाउस एनकाउंटर को गलत मानने वाले लाखों भारतीयों को बदनाम करने का काम किया है। जिया का दुर्भाग्य यह था कि इसकी अगुवाई में एल-18 के शहीदों को किराए पर फ्लैट दिलाया गया था। यही कारण है कि घटना के बाद जिया अपने पिता अब्दुर्रहमान के साथ किरायेदारों द्वारा लिए गए वेरीफिकेशन फार्म दिखाने जामिया नगर थाने पहुंचे। पुलिस ने पिता पर आरोप लगाया कि उन्होंने फर्जी वेरीफिकेशन फार्म बनवाए हैं और जिया पर बम ब्लास्ट का आरोप लगाया जिसके बाद से वह साबरमती जेल में बंद है। सौ फीसदी न्यायप्रिय भारतीय इस एनकाउंटर को गलत मानते हैं और मानते रहेंगे।
दैनिक `हमारा समाज' ने `कांग्रेस की लगातार पराजय' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में एमसीडी चुनाव का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि इस निगम के चुनाव में एक अच्छी बात यह है कि गत बार के मुकाबले इस बार मुस्लिम पार्षदों की संख्या 11 से बढ़कर 16 हो गई है लेकिन यह संख्या अभी कम है। दिल्ली में यह संख्या कम से कम 25 होनी चाहिए। निगम पर 15 साल से भाजपा का कब्जा है। वार्डों में सफाई नहीं हुई है और गंदगी भरी हुई है, इसके बावजूद निगम चुनाव में भाजपा की हैट्रिक आश्चर्यजनक है। इससे अंदाजा होता है कि दिल्ली की जनता कांग्रेस से खुश नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि शीला दीक्षित ने दिल्ली को बहुत कुछ दिया है लेकिन अल्पसंख्यकों के मामले में वह कभी गंभीर नहीं रहीं। विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यक को उन्होंने हमेशा धोखा दिया। दिल्ली सरकार ने हर जिले में दिल्ली अल्पसंख्यक वित्तीय निगम कायम कर रखा है जिसका काम गरीब अल्पसंख्यकों को कर्ज उपलब्ध कराना है लेकिन इसमें ऐसी शर्त रखी गई है कि 95 फीसदी मुसलमान इन शर्तों का पूरा नहीं कर पाता। उन्होंने हर बार वादा किया कि हम जल्द उन शर्तों को आसान करेंगे।
यह मुसलमानों के साथ धोखा है। इसी तरह उर्दू भाषा के लिए हर बैठक में कहती हैं कि उर्दू से मुझे प्यार है इसलिए मैं चाहती हूं कि उसकी उन्नति हो, लेकिन उनका यह ऐलान हमेशा ऐलान ही रहा और उनसे भविष्य में कोई अच्छी आशा भी नहीं की जा सकती। जाहिर है इंसान कब तक झूठ के सहारे खुद को कामयाब करेगा। एक न एक दिन तो उसे पराजय का मुंह देखना ही पड़ेगा।
`कांग्रेस की पराजय' की समीक्षा करते हुए दैनिक `जदीद खबर' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में कांग्रेस को नाकामी का मुंह देखना पड़ा। मुस्लिम क्षेत्रों में मटियामहल, बल्लीमारान और तुर्पमान गेट में राष्ट्रीय लोक दल के उम्मीदवार कामयाब हुए हैं जबकि ओखला की दो सीटों में से एक समाजवादी ने जीती है और दूसरी पर कांग्रेस के वर्तमान पार्षद शोएब दानिश ने 500 के मामूली वोटों से जीती है। इसके अलावा जाफराबाद, सुंदर नगरी, उस्मानपुर, मौजपुर, कर्दमपुरी में भी कांग्रेस की हार हुई है। दिल्ली के मुसलमान कांग्रेस की कार्यप्रणाली से खुश नहीं हैं। एक ओर जहां महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे हैं वहां दिल्ली पुलिस द्वारा मासूम युवाओं को आतंकवाद के आरोप में फंसाने की एक के बाद एक घटना का उन पर बहुत ज्यादा प्रभाव है।
दिल्ली में वक्फ बोर्ड हो या हज कमेटी हर जगह नेतृत्व की कमी है। वर्षों से हज कमेटी बिना किसी स्थायी चेयरमैन के चल रही है। कांग्रेस पार्टी मुसलमानों के वोट तो लेना चाहती है लेकिन वह उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखना चाहती है।
दैनिक `इंकलाब' में शकील शम्सी ने अपने स्तंभ में लिखा है कि भाजपा अपनी जीत की खुशी मना रही है जबकि उसने ऐसी कोई भी कामयाबी हासिल नहीं की है जिस पर उसको गर्व करना चाहिए। उल्टे भाजपा की कुछ सीटें ही कम हुई हैं। इसलिए वह इस भ्रम में न रहें कि जनता उसके साथ है। एक दिलचस्प बात यह है कि एमसीडी के इस चुनाव में भाजपा ने महंगाई, भ्रष्टाचार को तो चुनावी मुद्दा बनाया लेकिन राम मंदिर का जिक्र नहीं किया और न ही मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला, दिल्ली में भाजपा ने अपनी सोच के विपरीत चुनावी मुहिम चलाई। मुस्लिम बहुल क्षेत्र कसाबपुरा में मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया और नूरबानों को जिता दिया। मुसलमानों ने फिर यह बात जता दी कि वह वोट बैंक नहीं हैं और एक जगह उनके वोट पड़ने का कोई ठेका नहीं ले सकता। उन्होंने यह भी साबित कर दिया कि भावनात्मक मुद्दों द्वारा उनको अपनी सोच बदलने पर मजबूर नहीं किया जा सकता।

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