Friday, July 15, 2011

मुसलमानों का कांग्रेस से मोहभंग

बीते सप्ताह कई मुद्दों को उर्दू अखबारों ने चर्चा का विषय बनाया है। `देश में मस्जिद असुरक्षित, अजान और नमाज पर रोक' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' में मोहम्मद आतिफ ने एक सर्वे रिपोर्ट के हवाले से यह रहस्योद्घाटन किया है। जमीअत उलेमा हिन्द द्वारा सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ और गाजियाबाद का सर्वे कर यह जानकारी एकत्र की है। रिपोर्ट के अनुसार जहां बहुत-सी मस्जिदें गैर-आबाद हैं वहां ऐसी मस्जिदें भी हैं जिन पर कुछ लोगों का कब्जा है और वह उसको स्टोर के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। मेरठ शहर जहां मुसलमानों की जनसंख्या काफी है वहां भी मस्जिद में अजान और नमाज अदा करने की इजाजत नहीं दी जाती है। मिलिट्री एरिया की मस्जिद हाथी खाना इसका उदाहरण है। इस मस्जिद में तीन साल पूर्व नमाज होती थी लेकिन अब हाल यह है कि इसमें किसी को अन्दर तो क्या कैम्पस में भी जाने की इजाजत नहीं है। बहुत सी मस्जिदों के कागजात गायब हैं। यह सूरतेहाल सहारनपुर और मुजफ्फरनगर की कई मस्जिदों की है। सूत्रों के अनुसार जमीअत के वर्किंग ग्रुप में विचार-विमर्श कर आगे की रणनीति तय की जाएगी। सर्वे के मुताबिक प्रशासन के भेदभाव के चलते मस्जिदों की हालत खराब होती जा रही है। सारे सुबूत मुसलमानों के हक में हैं और सारे कागजात मौजूद हैं फिर भी सरकार इसके निर्माण में रुकावट डाल रही है। इस सर्वे के हवाले से जमीअत उलेमा हिन्द सचिव मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मौलाना महमूद मदनी की कोशिश और हिदायत पर सर्वे कराया गया है और वह इस सिलसिले में गंभीरता से रणनीति बनाने पर विचार कर रही है इसके लिए जमीअत उलेमा हिन्द बड़े स्तर पर आंदोलन भी चला सकती है।
`हज घपला से सामाजिक कार्यकर्ता बेचैन' के शीर्षक से मोहम्मद अंजुम ने लिखा है कि हज घपले के रहस्योद्घाटन से लोगों में बेचैनी फैल गई है। ज्यादा कीमत वाली कम्पनी को टेंडर करने वाले मामलों को किसी ने मंत्रालय और अधिकारियों की मिलीभगत बताया और इस भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच कराने की मांग करते हुए इसे 2जी स्पेक्ट्रम से भी बड़ा घोटाला बताया। मुस्लिम पॉलिटिकल कौंसिल के अध्यक्ष डा. तसलीम अहमद रहमानी ने हज सब्सिडी को खत्म करने की मांग करते हुए कहा कि हज कमेटी को खत्म करके एक ग्लोबल कारपोरेशन बनाया जाए जो सभी तरह के अधिकार रखता हो इसके बाद टेंडर भी ग्लोबल स्तर पर हो और जिस कम्पनी का रेट कम हो उसे टेंडर दिया जाए। इससे न केवल हाजियों को आसानी होगी बल्कि सरकार पर भी बोझ कम पड़ेगा। रहमानी के अनुसार टेंडर दिए जाने में नागरिक अड़चन मंत्रालय से लेकर संबंधित अधिकारियों को घूस कमीशन के तौर पर दी जाती थी, पहले यह कमीशन 30 डालर प्रति हाजी था जो अब बढ़कर 70 डालर प्रति हाजी हो गया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि एक लाख 40 हजार हाजी जाते हैं तो यह कमीशन कितना हो जाएगा।
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की टीम में हुई फेरबदल में एक भी मुस्लिम को शामिल नहीं किए जाने पर दैनिक `हमारा समाज' में आमिर सलीम खाँ ने कुछ मुस्लिम नेताओं के वक्तव्यों को प्रकाशित किया है। कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर मुसलमानों के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा है, सलमान खुर्शीद को तरक्की जरूर दी गई लेकिन मंत्रिमंडल में लिए 8 नए चेहरों में एक भी मुस्लिम नहीं है जबकि मुसलमानों को यूपीए प्रथम और यूपीए द्वितीय से काफी उम्मीदें थीं। फिलहाल मनमोहन सिंह की टीम में वही पांच पुराने मुस्लिम चेहरे हैं। मुसलमानों का प्रतिनिधित्व अब गुलाम नबी आजाद, सलमान खुर्शीद, ई. अहमद और फारुक अब्दुल्ला तक सीमित होगा। यदि मुसलमानों का प्रतिशत सरकार के मुताबिक लगभग 15 फीसदी मान लिया जाए तब भी 67 मंत्रिमंडल मंत्रियों में मुसलमानों की संख्या 8 होनी चाहिए। यूपीए द्वितीय के गठन के समय मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने मंत्रिमंडल में 11 मुसलमानों के प्रतिनिधित्व की सिफारिश की थी लेकिन उन्हें मायूसी हाथ लगी। कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को ठेंगा दिखाने पर मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने कटाक्ष करते हुए कहा कि अब हमें सरकार से उम्मीदें छोड़ देनी चाहिए।
दैनिक `अखबारे मशरिक' ने अपने दूसरे सम्पादकीय में `अल्लाह के नाम पर' चर्चा करते हुए लिखा है कि हाल ही में पड़ोसी देश बंगलादेश में संविधान में संशोधन कर `अल्लाह' की जगह `खालिक' (बनाने वाला) शब्द इस्तेमाल किया गया है। इस पर बंगलादेश में कई स्थानों पर हिंसा भड़क उठी है जिसमें कम से कम एक सौ व्यक्ति जख्मी हुए।
यह मुहिम बंगलादेश की जमीअत इस्लामी चला रही है जिसे विपक्षी पार्टी बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बेगम खालिदा जिया) का समर्थन हासिल है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि संविधान में `खालिक' के बजाय पूर्व की भांति `अल्लाह' शब्द रखा जाए। बंगलादेश की 95 फीसदी जनसंख्या मुसलमानों की है। इन हालात में संविधान से शब्द `अल्लाह' निकाल देना सही नहीं है। बंगलादेश में काफी समय से दो बेगमें, बेगम खालिदा जिया और शेख हसीना वाजिद का शासन रहा है। बेहतर था कि बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी इसको अपना आगामी चुनावी मुद्दा बनाती और कामयाब होने की सूरत में संशोधन करती। बंगलादेश पहले ही गरीबी की मार झेल रहा है यह और ज्यादा हिंसा सहन नहीं कर सकता। इसलिए सारा ध्यान सकारात्मक कार्यों पर केंद्रित होना चाहिए।
`मकतबा जामिया के साथ `जंग' का मजाक' के शीर्षक से मुमताज आलम रिजवी ने लिखा है कि उर्दू किताबें छापने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय मकतबा जामिया दिल्ली के साथ जिस तरह का मजाक किया जा रहा है वह पूरी उर्दू बिरादरी के लिए निन्दनीय घटना है। मकतबा जामिया का दुर्भाग्य यह है कि जामिया मिलिया इस्लामिया की सरपरस्ती होने के बावजूद यह संस्था खस्ता हाल है।
बड़े-बड़े प्रोफेसर और उर्दू प्रेमियों की निगरानी के बावजूद इसकी व्यवस्था खराब से खराब हो चुकी है। कौमी काउंसिल बराए फरोग उर्दू जुबान (एनसीपीयूएल) के साथ हुई संधि से पूर्व मकतबा जामिया के बारे में यह बात आम थी कि यह अपनी जिन्दगी की अंतिम सांसें गिन रहा है। आखिर क्या वजह है कि जामिया मिलिया इस्लामिया इस संस्था की मालिक (स्वामी) होने के बावजूद इसको टेकओवर नहीं कर रही है? जामिया के वर्तमान वाइस चांसलर नजीब जंग से पहले जब प्रोफेसर मुशीरुल हसन जामिया के वीसी और मकतबा जामिया के चेयरमैन थे, उन्होंने भी इस संस्था को बर्बाद करने का काम किया।
22 मई 2011 को जामिया के वीसी नजीब जंग और एनसीपीयूएल के डायरेक्टर हमीद उल्ला भट्ट के बीच जो संधि हुई उसके मुताबिक मकतबा जामिया की किताबों को छापने और इन दोनों संस्थानों के सहयोग से बेचने की बातें तय हुईं। किताबों को बेचने से जो मुनाफा मिलेगा उसका आधा-आधा दोनों संस्था लेंगी। सूत्रों के अनुसार एनसीपीयूएल ने मकतबा जामिया को टेकओवर करने का इरादा किया था जिस पर वीसी नजीब जंग का कहना था कि यह क्या बात हुई कि कल वह कहेगा कि हम जामिया मिलिया इस्लामिया को टेकओवर करना चाहते हैं तो क्या हम जामिया दे देंगे।

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