Friday, August 12, 2011

मुस्लिम सांसद अपने समुदाय के लिए आवाज नहीं उठाते

बीते सप्ताह उर्दू अखबारों ने विभिन्न मुद्दों को चर्चा का विषय बनाया है। उर्दू दैनिक `सहाफत' ने मुस्लिम संगठनों को आड़े हाथ लेते हुए उन पर आरोप लगाया है कि यह संगठन मासूम युवाओं के संरक्षण में नाकाम है। मोहम्मद आतिफ ने अपनी रिपोर्ट में मुंबई से समाजवादी विधायक अबु आसिम आजमी द्वारा रमजान के अवसर पर भेजे गए एसएमएस, जिसमें उन्होंने लिखा है कि इस महीने में उन लोगों की भी खबरगीरी कीजिए जिनके बच्चे जेलों में बंद हैं और इंसाफ से वंचित हैं। अपने देश और पूरी दुनिया में शांति व्यवस्था बनी रहे, इसकी भी दुआ कीजिए। इस पर मुस्लिम पॉलिटिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष तसलीम अहमद रहमानी ने कहा कि मुझे यह स्वीकार करने में शर्मिंदगी जरूर है लेकिन संकोच नहीं है कि आतंकवाद के मामले पर मुस्लिम संगठन अपने मासूम बच्चों को संरक्षण देने में पूरी तरह नाकाम हैं। उन्होंने कहा कि हम इन बच्चों को कोई कानूनी सहायता भी नहीं दे पा रहे हैं जिससे उनकी रिहाई का रास्ता आसान हो सके। इसके अलावा बेरोजगार मां-बाप जिनके बच्चे जेलों में कैद हैं उन्हें भुखमरी से निजात दिलाने के लिए भी हमने कोई रणनीति नहीं अपनाई है जबकि उन्हीं के नाम पर हम अपनी सियासत चमका रहे हैं।
संसद के मानसून सत्र में मुसलमानों की बहुत-सी समस्याओं पर आवाज नहीं उठेगी जैसे मुद्दे पर चर्चा करते हुए दैनिक `इंकलाब' ने लिखा है कि राइट टू एजुकेशन, जामिया अल्पसंख्यक चरित्र का मामला, मुसलमानों को आरक्षण और वक्फ जैसे मुद्दों पर मुस्लिम सांसदों को सूचना उपलब्ध कराने के बावजूद हर तरफ खामोशी पर चिंन्ता प्रकट की है। संसद का मानसून सत्र में महंगाई और सीएजी रिपोर्ट के खुलासे के बाद भाजपा ने कांग्रेस के खिलाफ अपना मोर्चा खोल दिया है। इन हालात में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के मामले को संसद में उठाना काफी मुश्किल लग रहा है। विशेषकर मुस्लिम सांसदों की जो भूमिका रहती है उससे तो यही संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि इस बार भी उपरोक्त मुद्दों पर मुस्लिम सांसद कोई चर्चा नहीं करेंगे। सूत्रों के अनुसार मुसलमानों के एक बड़े संगठन की ओर से यह कोशिश की जा रही है कि इन मुद्दों पर लिखित नोट तैयार किया जाए जो उर्दू, हिन्दी और अंग्रेजी तीनों भाषाओं में हो ताकि मुस्लिम सांसदों को इन मुद्दों को समझने और सवालों का जवाब देने में किसी तरह की परेशानी न हो। जकति फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. जफर महमूद मानते हैं कि मुस्लिम सांसद अपने समुदाय के लिए आवाज नहीं उठाते हैं।
आदर्श सोसाइटी मामले में कैग रिपोर्ट पर अपने सम्पादकीय में दैनिक `हिन्द समाचार' ने लिखा है कि कारगिल जंग के शहीदों की विधवाओं और अन्य फौजियों के रहने के लिए मुंबई के कोलाबा में बनी आदर्श हाउसिंग सोसाइटी का महाघोटाला संसद में `कैग' की रिपोर्ट के बाद फिर से चर्चा में है। पहले यहां 8 मंजिल बनाने की इजाजत दी गई लेकिन बाद में पर्यावरण एवं अन्य मापदंडों की अनदेखी करते हुए इसे 31 मंजिल और 200 से ज्यादा फ्लैट वाली बिल्डिंग बना दी गई। 9 अगस्त को संसद में पेश अपनी 51 पेज की रिपोर्ट में कैग ने आदर्श सोसाइटी का कच्चा चिट्ठा खोलते हुए कहा कि इसमें दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा फौज के दो पूर्व जनरल एनसी विज और जनरल दीपक कपूर को नियम तोड़कर फ्लैट हासिल करने का कसूरवार ठहराया है। `कैग' ने कहा है कि शायद देश में ऐसा दूसरा कोई भी मामला देखने में नहीं आया है जिसमें सभी संबंधित विभाग एक राष्ट्रीय हित के लिए नहीं बल्कि व्यक्तिगत हितों के लिए एकजुट हुए। सभी ने मिलकर आम जनता का भरोसा तोड़ा और कारगिल शहीदों का अपमान किया। कैग की रिपोर्ट ने केंद्र सरकार की परेशानी बन रहे भ्रष्टाचार मुद्दों की सूची में और वृद्धि कर दी है। इसी कारण सरकार और उसके उच्चाधिकारी कैग के खुलासे से काफी परेशानी महसूस कर रहे हैं, क्योंकि इस रिपोर्ट ने साबित कर दिया है कि नेताओं, बाबुओं और फौज के सदस्यों अर्थात् सबने मिलकर नियमों को तोड़ा और साबित कर दिया कि `सब चोर' हैं।
दैनिक `राष्ट्रीय सहारा' ने अपने सम्पादकीय में आदर्श सोसाइटी पर कैग की रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार पर कैग की रिपोर्ट पर संसद और इसके बाहर हंगामा जारी है। यूपीए सरकार के लिए चैलेंज है कि वह इन सबका मुकाबला कैसे करें और संसद की कार्यवाही कैसे चले। सरकार की इन परेशानियों में आदर्श सोसाइटी में घपले पर कैग रिपोर्ट ने और भी वृद्धि कर दी है। कैग की रिपोर्ट न केवल केंद्र की यूपीए सरकार बल्कि महाराष्ट्र सरकार के लिए भी समस्या बनी हुई है क्योंकि इसके बाद दोनों सरकारों पर कसूरवार ठहराए गए नेताओं, मंत्रियों और नौकरशाहों पर कार्यवाही के लिए दबाव बढ़ जाएगा। सरकार के रुख से ऐसा लगता है कि वह कैग की रिपोर्ट को ज्यादा महत्व देने के मूड में नहीं है और अपने मंत्रियों के बचाव में उतर सकती है। शीला दीक्षित के मामले में अपनाया गया रवैया इसका सबूत है लेकिन जहां तक नौकरशाहों अथवा उच्च फौजी अधिकारियों का मामला है तो इनमें से कुछ को बलि का बकरा बनाकर इस मामले को ठंडा करने की कोशिश की जा सकती है। `सोनिया की अनुपस्थिति में पार्टी को ठीकठाक चलाना चुनौती है' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि आमतौर पर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी प्रधान तिरंगा लहराती हैं लेकिन इस वर्ष पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी देश में नहीं हैं इसलिए किसी और को उनकी अनुपस्थिति में झंडा लहराना पड़ेगा। सोनिया गांधी के बाद आशा तो यह है कि राहुल गांधी इस बार राष्ट्रीय झंडा लहराएंगे। लेकिन राहुल गांधी फिलहाल अमेरिका में अपनी मां के साथ हैं। शायद वह आज-कल में आ जाएंगे। कांग्रेस पार्टी को फिलहाल दैनिक कार्यों को ठीक-ठीक चलाने के अलावा एक अहम फैसला यूपी में टिकट बंटवारे और यूपी लीडरशिप को लेकर करना होगा। इसके लिए क्रीनिंग कमेटी की बैठक होनी है। मोहन प्रकाश की अगुवाई में होने वाली बैठक तभी होगी जब राहुल गांधी वापस आ जाएंगे। राहुल का यूपी मिशन 2012 उनकी अनुपस्थिति में अधूरा है और इनके लौटने पर ही इसमें रंग भरा जाएगा।

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