Friday, August 26, 2011

अन्ना मुहिम और मुस्लिम दृष्टिकोण

बीते सप्ताह जहां राजनैतिक परिदृश्य पर अन्ना हजारे और उनकी टीम द्वारा जन लोकपाल का मुद्दा छाया रहा, वहां उर्दू के कई समाचार पत्रों ने इस आंदोलन को सांप्रदायिक ताकतों से जोड़ते हुए इसे देश के लिए खतरनाक बताया। इतना ही नहीं, रामलीला मैदान में अन्ना समर्थन में उमड़ी भीड़ के इलैक्ट्रॉनिक मीडिया का कमाल बताते हुए अन्ना को जनता से मायूसी हुई और उनके समर्थकों को अन्ना की जिद झेलनी पड़ रही है, जैसी खबरें भी उनके संवाददाताओं के नाम से प्रकाशित की गईं। `अन्ना आंदोलन पर मुसलमानों को संदेह' के शीर्षक से लगभग सभी उर्दू अखबारों ने सैयद अहमद बुखारी, पर्सनल लॉ बोर्ड सदस्य जफरयाब जीलानी, वैलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के महासचिव कासिम रसूल इलियास, दारुल उलूम देवबंद के मोहतामिम अबुल कासिम नोमानी, फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मुफ्ती मुकरम अहमद, इमाम आर्गेनाइजेशन अध्यक्ष उमैर इलियासी के बयान को प्रमुखता से प्रकाशित किया। पर्सनल लॉ बोर्ड ने यह कहकर इस मुहिम से पीछा छुड़ाया है कि भ्रष्टाचार बोर्ड के कार्य क्षेत्र में नहीं है। कासिम रसूल इलियास ने कहा कि संसद के अधिकारों को कमजोर करने की कोशिश न तो लोकतंत्र के लिए अच्छी है और न ही देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के लिए। अन्ना जिस चीज के लिए मुहिम चला रहे हैं, हम इससे सहमत हैं लेकिन संसद को अपनी शर्तें मनवाने पर मजबूर करने के हक में नहीं हैं। लोकपाल बिल और जन लोकपाल बिल पर संसद जल्द फैसला कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचे।
`मुस्लिम नेताओं ने सदैव कांग्रेस की डूबती किश्ती बचाई है' के शीर्षक से दैनिक `अखबारे मशरिक' ने ऑल इंडिया उलेमा काउंसिल और तनजीम अबनाए कदीम देवबंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष एजाज अहमद रज्जाकी के हवाले से लिखा है कि कांग्रेस अपने हमाम में नंगी है। `अन्ना की ललकार, बिल लाना पड़ेगा... या जाना पड़ेगा' के शीर्षक से दैनिक `हिन्द समाचार' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है। 28 जुलाई को केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से टीम अन्ना के प्रस्तावित सख्त `जन लोकपाल बिल' को निरस्त कर सरकारी लोकपाल बिल के नरम विधेयक को मंजूरी देने के बाद बुजुर्ग समाजसेवी अन्ना हजारे पहले से घोषणा अनुसार 16 अगस्त से भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। इसी दौरान अन्ना ने लोकपाल के अपने एजेंडे को पालिका को एक ताकतवर लोकपाल के अधीन लाने की बात कही गई लेकिन अन्ना के वर्तमान अनशन को गलत बताया गया। मुस्लिम नेताओं ने मैदान में निकलना शुरू कर दिया है। मौलाना रज्जाकी ने कहा कि दारुल उलूम देवबंद को जमीयत उलेमा हिन्द से अलग कर दें। दोनों संगठनों का सुर में सुर मिल रहा है जो सदस्य दारुल उलूम की कार्यकारिणी में शामिल हैं लगभग वही लोग जमीयत उलेमा के सदस्य भी हैं। इसी के साथ मौलाना रज्जाकी ने उलेमा काउंसिल और तनजीम अबनाए कदीम की ओर से अन्ना के समर्थन की घोषणा की।
दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने `अन्ना के जन लोकपाल बिल पर भाजपा का दृष्टिकोण क्या है?' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि अन्ना के अनशन को लगभग नौ दिन गुजर चुके हैं और भाजपा ने अभी तक जन लोकपाल पर अपने पत्ते नहीं खोले? भाजपा के दो सांसदों ने खुलकर जन लोकपाल बिल का समर्थन किया है। इनमें एक वरुण गांधी दूसरे राम जेठमलानी। वरुण का कहना है कि अन्ना का बिल प्राइवेट बिल के तौर पर संसद में पेश करेंगे। राज्यसभा में भाजपा सांसद राम जेठमलानी ने भी अन्ना टीम के बिल का समर्थन किया है। उनका कहना था कि अन्ना के बिल को पूरी तरह नजरंदाज करना अब राजनेताओं के लिए सम्भव नहीं है। जेठमलानी जन लोकपाल बिल के दो अहम बिन्दुओं से पूरी तरह सहमत हैं। इनमें प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाना और न्यायिक व्यवस्था को शामिल करना है। काबिले गौर है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल में लाने की मांग तो भाजपा कर रही है लेकिन न्यायाधीशों के लिए वह अलग से संस्था बनाए जाने के पक्ष में है। समय आ गया है कि टीम अन्ना और जनता चाहती है कि भाजपा हर बिन्दु पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करे। चाहे संसद के बाहर अथवा संसद के अन्दर।
`अन्ना की ललकार' बिल लाना पड़ेगा... या जाना पड़ेगा' के शीर्षक से दैनिक `हिन्द समाचार' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है। 28 जुलाई को केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से टीम अन्ना के प्रस्तावित सख्त `जन लोकपाल बिल' को निरस्त कर सरकारी लोकपाल बिल के नरम विधायक को मंजूरी देने के बाद बुजुर्ग समाजसेवी अन्ना हजारे पहले से घोषणा अनुसार 16 अगस्त से भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। इसी दौरान अन्ना ने लोकपाल के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए जमीन अधिग्रहण और चुनाव सुधार की बात कर सरकार पर चारों तरफ से दबाव बना दिया है। उन्होंने चुनाव व्यवस्था की खामियों को दूर करने का भी आह्वान किया, क्योंकि इसी के कारण 150 अपराधी संसद में पहुंचे। एक ओर जहां जन लोकपाल सरकार के गले की फांस बना हुआ है वहीं कैग ने 40 हजार करोड़ रुपये के घोटाले की दो और रिपोर्ट तैयार कर ली है जिससे आने वाले दिनों में सरकार की परेशानी बढ़ जाएगी।
दैनिक `इंक्लाब' द्वारा सरकारी बिल में मदरसे और गैर सरकारी संगठन भी आते हैं, का समाचार प्रकाशित किए जाने के बाद पहली बार मुस्लिम संगठनों ने दबी जुबान से सरकारी बिल को खतरा बताया लेकिन इसी स्वर में उन्होंने अन्ना पर भी कटाक्ष कर उन्हें गलत बताया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (मौलाना सालिम ग्रुप) के महासचिव इलियास मलिक ने सरकारी लोकपाल बिल को अस्वीकार करार देते हुए कहा कि सरकारी बिल के अध्याय छह की धारा `ई' में जो कुछ कहा गया है उसके तहत सभी सरकारी व गैर सरकारी संगठन विशेषकर हमारे मदरसे भी आ जाएंगे। जब हम अपने मदरसों के लिए कल नहीं तैयार हुए तो आज किस तरह तैयार हो जाएंगे कि इनमें हस्तक्षेप का दरवाजा खुले। जहां तक मदरसों में भ्रष्टचार का मामला है तो इसके लिए प्रबंधक कमेटियां होती हैं जो ट्रांसपैरेंसी के लिए प्रयासरत रहती हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना सैयद निजामुद्दीन ने सरकारी लोकपाल बिल में गैर सरकारी संगठनों और संस्थानों को इसके तहत लाने की बात पर कहा कि सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। ऐसा कानून नहीं बनना चाहिए जिससे समाज में बेचैनी पैदा हो।
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत (सैयद शहाबुद्दीन ग्रुप) ने अपनी बैठक में निर्णय लिया कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए किसी बड़ी संस्था के गठन की जरूरत नहीं है, क्योंकि इतनी बड़ी संख्या खुद अपने बोझ तले दब जाएगा और भ्रष्टाचर दूर करने के बजाय भ्रष्टाचार फैलाने का कारण बनेगा। बैठक में मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त सीजीआई(एम) के प्रतिनिधि को विशेष रूप से बुलाया गया था। बैठक में राजनेताओं सहित प्रधानमंत्री, ब्यूरोकेसी और न्यायपालिका को एक ताकतवर लोकपाल के अधीन लाने की बात कही गई लेकिन अन्ना के वर्तमान अनशन को गलत बताया गया।

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