Friday, August 5, 2011

महंगाई और भ्रष्टाचार में फंसी सरकार

`मुस्लिम कैसे पाएं अपना वाजिब स्थान' के शीर्षक से उर्दू दैनिक `हिन्द समाचार' ने लिखा है। दूसरी पिछड़ी जातियों से जुड़े मुस्लिमों के लिए यूपीए सरकार कुछ आरक्षण कर रही है क्योंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव समीप है और कांग्रेस का मकसद यह है कि वह दोबारा इस राज्य में पदासीन हो जाए। भारतीय मुसलमानों के सामने आरक्षण ही अहम मुद्दा नहीं है अन्य कई समस्याएं भी हैं। उनकी स्थिति तो प्रचलित फारसी कहावत `तन हम दाग, दाग सूद, पम्बा कुजा नेहाम' (पूरे बदन पर दाग ही दाग हैं) में कितनी जगह फाया रखूं। अन्य समस्याओं को छोड़कर केवल एक समस्या से ही निपटना असंतुष्टि है, इससे भले ही बुरा मकसद जाहिर न होता हो, अज्ञात कारणों से नाइंसाफी को जारी रखने की बू आती है। ऐसा लगता है कि आरक्षण की यह पेशकश बड़ी होशियारी से तैयारी की गई है। इसके बाद कांग्रेस के कुछ चहेते इसे अदालत में चैलेंज करेंगे और अदालतें इसे एक अथवा दूसरा कारण बताकर निरस्त कर देंगी। आखिर हिन्दू वोट मुस्लिम वोट के मुकाबले अहम है क्योंकि हिन्दू वोट मुस्लिम वोट के मुकाबले कहीं ज्यादा है। इसी बीच आरक्षण की इस घोषणा से कांग्रेस की चुनावी मुहिम चलाने वाले पूरा फायदा उठा लेंगे। इस प्रक्रिया में मुस्लिमों की नई राजनैतिक पार्टियों को चुनाव में नुकसान पहुंचेगा जैसा कि एआईयूडीएफ, पीस पार्टी और वैलफेयर पार्टी से जाहिर है। इसलिए मुस्लिमों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें वहीं कांग्रेस के बारे में वोट देने के लिए सोचना चाहिए जहां इन पार्टियों में किसी एक अथवा अन्य का कोई उम्मीदवार न हो। `वोटिंग कायदे के तहत बहस का जुआ' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है। जैसा कि आशा थी भारतीय जनता पार्टी ने संसद में यूपीए सरकार पर हल्ला बोल दिया है और भ्रष्टाचार व महंगाई को लेकर केंद्र की कांग्रेस अगुवाई वाली यूपीए सरकार को घेरने में लगी भाजपा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चारों तरफ से घेरने की पूरी योजना बना ली है। भाजपा ने इन पर मानसून सत्र का माहौल खराब करने का भी आरोप लगा दिया है।
भ्रष्टाचार और महंगाई पर भाजपा केवल बहस ही नहीं बल्कि वोटिंग भी चाहती है ताकि इन मुद्दों पर यह साफ हो सके कि कौन सरकार के साथ है और कौन सरकार के खिलाफ। यह दांव चलकर भाजपा कांग्रेस के साथ इसके सहयोगियों को भी बेनकाब करना चाहती है। भाजपा का अनुमान है कि इन मुद्दों पर यदि वोटिंग हुई तो यूपीए सरकार फंस सकती है। सरकार ने वोट कायदे के तहत बहस कराना स्वीकार कर लिया है। देखें इस जुए में वह कितनी कामयाब होती है?
हैदराबाद से प्रकाशित उर्दू दैनिक `ऐतमाद' में आमिर उल्लाह खां ने `सुधारों के 20 साल' के शीर्षक से समीक्षा करते हुए लिखा है कि 20 साल पूर्व भारत की प्रति व्यक्ति आय 30 डालर थी अर्थात् हर भारतीय की मासिक आय 400 रुपये से भी कम थी। लेकिन अब यह 1500 डालर अर्थात् 60 हजार रुपये को छूने लगी है। सरकार के पास अब खजाना भरा हुआ है ताकि वह गरीबों पर खर्च कर सके। मनमोहन सिंह ने 20 वर्ष पूर्व सुधारों का जब सफर शुरू किया था। यही कहा जा रहा था कि भारत संकट में आ जाएगा। गरीबी बढ़ेगी, भारतीय कम्पनियां बन्द होंगी, हर चीज इम्पोर्ट करना पड़ेगी और विदेशी कम्पनियों का भारतीय मंडियों पर कब्जा हो जाएगा। लेकिन इनमें से कोई संदेह सच साबित न हो सका। भारत में विदेशी निवेश में जितनी वृद्धि हुई, भारतीयों ने भी विदेशों में उतना ही निवेश किया।
`मस्जिदों पर गैर कानूनी कब्जों के लिए दिल्ली वक्फ बोर्ड जिम्मेदार' के शीर्षक से दैनिक `सहाफत' में मुमताज आलम रिजवी ने अपनी विशेष रिपोर्ट में आरटीआई के हवाले से लिखा है कि जमीयत इस्लामी हिन्द के सहायक सचिव इंतिजार नईम की 16 जून 2011 की आरटीआई के जवाब में वक्फ बोर्ड ने यह तो बताया कि 26 वक्फ जायदादों पर विभिन्न सरकारी संस्थानों के गैर कानूनी कब्जे हैं और 72 वक्फ जायदादों पर पुरातत्व विभाग का गैर कानूनी कब्जा है। दिल्ली वक्फ बोर्ड की लापरवाही की एक मिसाल निजामुद्दीन के पीछे रिंग रोड पर मिलिनियम पार्प से मिला हुआ 14 एकड़ कब्रिस्तान की जमीन है। 19 सितम्बर 1949 में सरकार से एक रजिस्टर्ड संधि के तहत दिल्ली के मुसलमानों के लिए 14 एकड़ जमीन कब्रिस्तान के लिए अलाट की गई थी लेकिन डीडीए ने इस 14 एकड़ में से 10 एकड़ जमीन इस शर्त पर इस्तेमाल कर लिया कि वक्फ बोर्ड को जब इसकी जरूरत होगी वह इसे इस्तेमाल कर सकेगा। आरटीआई द्वारा यह पूछे जाने पर कि वक्फ बोर्ड ने इस 14 एकड़ कब्रिस्तान की जमीन की सुरक्षा के लिए क्या उपाय किए और बोर्ड की बैठक में यह एजेंडा कब रहा? के जवाब में वक्फ अधिकारी नजमुल हसनैन ने लिखा कि इस 14 एकड़ जमीन की हिफाजत के लिए दिल्ली वक्फ बोर्ड की ओर से कोई उपाय नहीं किए गए और न ही कोई कानूनी कार्यवाही की गई।

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