Friday, August 19, 2011

रमजान में भिखारियों का जमावड़ा

बीते सप्ताह जहां राजनैतिक मुद्दों पर उर्दू अखबारों ने अपना पक्ष रखा वहां पवित्र रमजान महीने के लिहाज से कुछ ऐसे मुद्दों को भी छेड़ा है जो दिलचस्प होने के साथ-साथ विचारणीय भी हैं। `रमजान में भीख मांगने के लिए महत्वपूर्ण सड़कों की नीलामी होती है' के विषय पर हैदराबाद से प्रकाशित उर्दू दैनिक `मुनसिफ' ने विशेष रिपोर्ट प्रकाशित कर बताया है कि किस तरह देश के विभिन्न शहरों से पेशावर भिखारियों की एक बड़ी संख्या हैदराबाद पहुंच चुकी है।
भिखारियों की इस टोली में ईसाई और हिन्दू भिखारी भी मुसलमानों के रूप में भीख मांगते हैं। रमजान के शुरू होते ही हिन्दुस्तानभर के पेशावर भिखारियों ने हैदराबाद का रुख कर लिया है। इनमें वह सफेदपोश भी शामिल हैं जो हाथों में रसीद लिए दीनी मदरसों और मस्जिद निर्माण के लिए चन्दे की अपीलें करते हैं। एक भिखारी ने बताया कि आम दिनों में वह अपने गांव में एक दुकान पर काम करता है लेकिन रमजान के सीजन में भीख मांगने के लिए हैदराबाद आ जाता है, जहां आम दिनों में उसे 800 रुपये से 1100 रुपये रोज मिल जाते हैं। भीख मांगने की जगह उसे ठेके पर मिलती है। ठेकेदार को रकम देकर और खाने-पीने का खर्च निकालकर वह ईद पर 15 से 20 हजार रुपये लेकर वापस जाता है। इसी तरह नाम पल्ली चौराहे के बाहर फुटपाथ पर एक टांग से विक्लांग भिखारी ने बताया कि वह गत सात साल से रमजान में भीख इकट्ठा करने आता है। अंधा भिखारी अकेला नहीं है उसके साथ इस काम में परिवार के 9 सदस्य रमजान में भीख मांग रहे हैं।
`जकात व्यवस्था के बावजूद मुसलमान सबसे ज्यादा गरीब हैं' के शीर्षक से दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' में नूर उल्लाह जावेद अपने लेख में लिखते हैं। निसंदेह भारत जैसे देश में जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हों वहां सामूहिक जकात व्यवस्था मुश्किल है लेकिन यह देश और राज्य स्तर पर नहीं हो सकता तो मोहल्ला की स्तर पर हम यह कोशिश कर ही सकते हैं। हमारे सामने मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका की मिसाल है। मलेशिया में सरकार की निगरानी में जकात की रकम ली जाती है और इसको खर्च किया जाता है लेकिन दक्षिण अफ्रीका में यह व्यवस्था स्वयं मुसलमानों ने कायम कर रखी है। वास्तव में भारत में आज जकात की रकम पहले से कहीं ज्यादा निकलती है। सच्चर कमेटी रिपोर्ट के अनुसार भारतीय बैंकों में मुसलमानों की जो रकम जमा है उसका अनुमान 23657 करोड़ रुपये है। यदि इस रकम की जकात निकाली जाए तो कुल 5914 करोड़ रुपये जकात निकलेगी। यह केवल अनुमान है जबकि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग ब्याज रहित लेन-देन के चलते अपनी रकम बैंकों में जमा नहीं करता है। यदि इस वर्ग की जकात को भी इसमें मिला लिया जाए तो हिन्दुस्तान में हर वर्ष 10829 करोड़ रुपये की जकात निकलेगी। यदि हम इसकी व्यवस्था करने में सफल हो जाते हैं तो निश्चय ही कुछ सालों में भारतीय मुसलमानों की बहुसंख्यक जकात देने वाली हो जाएगी।
ग्रीनलैंड जहां गर्मी के दिनों में दिन 16 घंटों का होता है वहां अगस्त के महीने में सूर्य अस्त रात 11 बजे होता है। दैनिक `अखबारे मशरिक' ने अरब टीवी `अल-अरबिया' के हवाले से लिखा है कि वसाम आजीकार नामी व्यक्ति गत कई वर्षों से यहां अपना होटल चलाते हैं और अकेले रोजेदार हैं, उनके आसपास कोई दूसरा मुस्लिम रोजेदार नहीं है। 21 घंटे के रोजे में उसके लिए सबसे मुश्किल समय अफतार का होता है यदि अफतार में जल्दी न की जाए तो मगरिब की नमाज कजा हो जाती है और एक रोजेदार के लिए रोजा रखकर मगरिब की नमाज कजा कर देना किसी सूरत स्वीकार्य नहीं है। लगभग 12 बजे रात ईशा की नमाज के समय शुरू होता है और फिर एक घंटे और कुछ मिनट के बाद ही सेहरी का समय शुरू हो जाता है। ग्रीनलैंड के इस इकलौते रोजेदार को लगभग तीन घंटे के अन्दर-अन्दर रोजा खोलने के बाद मगरिब और ईशा की नमाज अदा करना होता है।
ग्रीनलैंड में जिन्दगी सूरज के साथ नहीं चलती बल्कि घड़ी के साथ चलती है। इसलिए खाने-पीने का समय भी रात या दिन के हिसाब से नहीं होते बल्कि आमतौर पर लोग घड़ी देखकर जागने की हालत में हर छह घंटे बाद कुछ न कुछ खाते हैं। सर्दियों के मौसम में सूरज ज्यादा से ज्यादा केवल चार घंटे तक दिखाई देता है।
`अन्ना की आंधी है, यह दूसरे गांधी हैं' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' ने अपने सम्पादकीय में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने लिखा है कि मंगलवार 16 अगस्त का दिन हमेशा याद रहेगा। यह कोई फिल्म से कम नहीं था। पूरे दिन सस्पेंस, ड्रामा, एमोशन सभी देखने को मिले। सारे देश की नजरें अन्ना पर लगी हुई थीöदेखें आज अन्ना क्या करते हैं। अन्ना अपने कहे पर खरे उतरे। मंगल की सुबह दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी लगभग ढाई सौ जवानों को लेकर मूयर विहार फेज-1 में स्थित सुप्रीम एन्क्लेव में प्रशांत भूषण के फ्लैट पहुंचे, लगभग आधा घंटा बातचीत में कोई नतीजा नहीं निकला तो अन्ना को उसी फ्लैट में जहां वह रुके थे, हिरासत में ले लिया।
अन्ना की गिरफ्तारी की खबर पूरे देश में फैल गई। कुछ माहौल वैसा ही था जो एक जमाने में जेपी आंदोलन के समय बना था। अन्ना आंदोलन अब पूरा रंग दिखा चुकी है। अन्ना मुद्दा, बाबा रामदेव जैसा मुद्दा नहीं बल्कि असल मुद्दा भ्रष्टाचार और महंगाई है। गिरफ्तारी के बाद अन्ना ने कहा कि यह परिवर्तन की लड़ाई है जब तक परिवर्तन नहीं आएगा तब तक जन समर्थन हासिल नहीं होगा।
`अन्ना हजारे का आंदोलन और सोनिया की अनुपस्थिति' के शीर्षक से पहले पेज पर प्रकाशित विशेष सम्पादकीय में दिल्ली संस्करण के सम्पादक हसन शुजा दैनिक `सहाफत' में लिखा है कि अन्ना हजारे के आंदोलन को एक तरफ आरएसएस परिवार, देसी और विदेशी ताकतें हवा दे रही हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी और सरकार इससे निपटने में नाकाम रही है। इस समय सोनिया गांधी की अनुपस्थिति बुरी तरह महसूस हो रही है जो अपने ईलाज के लिए अमेरिका के एक अस्पताल में दाखिल हैं। अन्ना आंदोलन को जिस तरह आरएसएस और भाजपा का समर्थन हासिल है उससे स्पष्ट है कि इस आंदोलन को पूरी तरह सांप्रदायिक ताकतों ने हाइजैक कर लिया है। भाजपा का खेल यह है कि वह इसका रुख मोड़कर सत्ता पर काबिज होना चाहती है। यदि भाजपा इसमें कामयाब हो जाती है तो यह सेकुलरिज्म के लिए बड़ा नुकसान होगा।

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