Monday, April 16, 2012

आजम और बुखारी में कौन कितना मुस्लिम हितैषी?

बीते दिनों विभिन्न मुद्दों सहित समाजवादी नेता आजम खां और शाही इमाम अहमद बुखारी के बीच नोंकझोंक का मुद्दा विशेष रूप से मीडिया में छाया रहा। उर्दू अखबारों ने इस पर सम्पादकीय लिखे और विशेष रिपोर्ट प्रकाशित की। पेश है कुछ उर्दू अखबारों की राय।

दैनिक `हमारा समाज' ने `खान साहब से छुटकारा जरूरी' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है कि अहमद बुखारी अपने दामाद या भाई के लिए राज्यसभा नहीं चाहते हैं वह चाहते हैं कि मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में उनको हक दिया जाए। उन्होंने मुसलमानों की उन्नति के लिए 15 सूत्री कार्यक्रम के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने की मांग की है। उन्होंने राज्यसभा की 6 सीटों पर आजित करते हुए कहा कि एक सीट मध्य प्रदेश से एक अनजान नाम मुनव्वर सलीम को दे दी गई। क्या उत्तर प्रदेश में कोई मुसलमान इस योग्य नहीं था जिसे राज्यसभा भेजा जाता और फिर एक सीट दी है जबकि दो सीटों पर मुसलमानों का हक बनता है एवं दर्शन सिंह यादव को राज्यसभा में भेजा है जो पार्टियां बदलने में माहिर हैं और विधान परिषद में 7 नामों में से एक नाम मुसलमान मोहम्मद उमर खां का है। हिस्सेदारी का यह क्या तर्प है जबकि उत्तर प्रदेश में मुसलमान 20 फीसदी और यादव 7 फीसदी, इसका मतलब है कि मुसलमानों को पूरी तरह नजरअंदाज किया जा रहा है। उधर मोहम्मद आजम खां जो उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल मंत्री हैं, शाही इमाम को सुझाव देते हैं कि उलेमा को सियासत में पड़ने की जरूरत क्या है, तो वह भूल रहे हैं कि सियासत उलेमा के घर से ही निकलती है। सियासत मस्जिद के मेम्बर से शुरू होती है, सियासत उलेमा की घुट्टी में होती है लेकिन वह सियासत ईमानदारी, सच्चाई और उसूलों की होती है। उलेमा की सियासत आजम खां की सियासत नहीं होती है जो कदम-कदम पर झूठ और बेइमानी के आधार पर खड़ी की जाए। समाजवादी पार्टी में आजम खां यह चाहते हैं कि किसी मुसलमान का कद उनसे बड़ा न हो। मुलायम सिंह को हमारा सुझाव है कि आजम खां को मुस्लिम मामलों से दूर ही रखो।

दैनिक `जदीद खबर' ने `शाही इमाम का सवाल' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि समाजवादी पार्टी की तरफ से मुसलमानों को सत्ता और प्रशासन में अनुपातित हिस्सेदारी न दिए जाने के खिलाफ शाही इमाम ने नाराजगी जाहिर करते हुए मुलायम सिंह यादव को पत्र लिखा। इस पर मुलायम सिंह यादव को स्वयं कोई स्पष्टीकरण देना चाहिए था लेकिन दुःखद बात यह है कि इस पत्र के सामने आने के बाद समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ मुस्लिम नेता मोहम्मद आजम खां ने इनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। उन्होंने शाही इमाम की तरफ से उठाए गए बुनियादी सवालों की अनदेखी करके व्यक्तिगत हमले शुरू कर दिए। आजम खां की सबसे बड़ी कमजोरी उनकी अपनी जुबान है जिस पर वह काबू नहीं रख पाते। जहां तक विधान परिषद में मुस्लिम प्रतिनिधित्व का सवाल है वहां समाजवादी पार्टी की भूमिका अन्य पार्टियों से भिन्न नहीं है। जिस तरह कांग्रेस और अन्य सैक्यूलर पार्टियां मुसलमानों के वोट हासिल करने के बाद उन्हें अंगूठा दिखाती हैं उसी तरह समाजवादी पार्टी ने भी सत्ता हासिल करने के बाद मुसलमानों को सियासी तौर पर इम्पावर करने में कंजूसी दिखाई। यदि मुसलमानों की सत्ता और प्रशासन में हिस्सेदारी का यही हाल रहा तो 2014 तक उनके लिए अपने हक में मुसलमानों को रोके रखना मुश्किल हो जाएगा। शाही इमाम ने मुसलमानों की हिस्सेदारी का जो सवाल उठाया है वह सही समय पर उठाया गया सही कदम है।

वसीम अहमद ने `इमाम छोड़ने और इसके बाद सियासत करने का शाही इमाम को सुझाव' के शीर्षक से अपनी रिपोर्ट में विस्तारपूर्वक समीक्षा करते हुए लिखा है कि दिल्ली के कुछ लोगों ने जब आदम सेना बनाई तो आपसे उसका सरपरस्त बनने को कहा था और आपने इसे कुबूल कर लिया था, लेकिन इसके बाद इसका क्या हश्र हुआ, इसके बाद सदस्य बनाए गए और इस रकम का आज तक पता नहीं है। सपा नेता आजम खां और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के साथ आज भी करोड़ों मुसलमान साथ हैं, वरिष्ठ पत्रकार सैयद जाहिद के अनुसार बेहट सीट से अपने दामाद उमर खां की जमानत भी न बचा सके। इससे पता चलता है कि अहमद बुखारी की मुसलमानों में कितनी पकड़ है। अहमद बुखारी का अतीत सियासी भ्रष्टाचार से भरा पड़ा है। कभी यह अपने हित के लिए भाजपा से गले मिलते हैं। यूडीएफ के लिए चुनाव लड़कर याकूब कुरैशी को भी धोखा दे चुके हैं। खुद चुनाव हार गए और याकूब कुरैशी यूडीएफ से चुनाव जीत गए। अहमद बुखारी के दामाद उमर खां की चुनाव में चौथी पोजीशन आने के बावजूद मुलायम सिंह ने उन्हें एमएलसी का तोहफा दिया। जिस पर अहमद बुखारी का कहना था कि मेरे भाई को राज्यसभा सीट दी जाए। इस पर मुलायम ने पार्टी उसूलों के चलते असमर्थता जताई तो अहमद बुखारी नाराज हो गए और एमएलसी का तोहफा शुक्रिए के साथ वापस कर दिया और यह आरोप लगाया कि मुलायम सिंह मुसलमानों को नजरअंदाज कर रहे हैं।

दैनिक `अखबारे मशरिक' ने `आजम खां इमाम बुखारी से माफी मांगने की मांग की' को अखबार के पहले पेज पर पहली खबर बनाते हुए लिखा है कि आजम खां ने मौलाना बुखारी को चैलेंज किया है कि वह मुरादाबाद में जहां उनकी पहली पत्नी रहने वाली हैं, मेयर का चुनाव जीतकर दिखाएं। यदि वह चुनाव जीत गए तो मैं सियासत छोड़ दूंगा। आजम खां ने मौलाना बुखारी पर सांप्रदायिक किरदार का व्यक्ति होने का आरोप लगाते हुए कहा कि शाइनिंग इंडिया के दावे में भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया था और जब राम नायक राजग सरकार में मंत्री थे तो उन्होंने दो पेट्रोल पम्प भी हासिल किए थे। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली वक्फ बोर्ड इस तरह की टिप्पणी पर मौलाना अहमद बुखारी के खिलाफ कार्रवाई करे और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ राज्यसभा सांसद मुनव्वर सलीम के बारे में दिए गए बयान पर मौलाना बुखारी को माफी मांगनी चाहिए।

रिजवान सलमानी ने देवबंद से अपनी रिपोर्ट में `काजी रशीद मसूद ने लगाया आजम पर निशाना, इमाम को भी सुनाई खरी-खरी' के शीर्षक से लिखा है कि कांग्रेस राज्यसभा सांसद काजी रशीद मसूद का कहना है कि न तो आजम खां को मुसलमानों से कोई मतलब है और न शाही इमाम अहमद बुखारी को, दोनों इस्लाम का लिबास ओढ़कर मुसलमानों को बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यदि दोनों को मुसलमानों से हमदर्दी थी तो उस समय क्यों नहीं बोले जब चुनाव के दौरान मुलायम सिंह ने मुसलमानों को 18 फीसदी आरक्षण दिलाने की बात कही थी जबकि यह संभव ही नहीं है।

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