Tuesday, September 18, 2012

इस साजिश का मकसद क्या है?

यूरोप ओर अमेरिका में एक गिरोह मौजूद है, जो थोड़े-थोड़े अंतराल पर बहुत सोच-समझकर पैगंबर इसलाम की निंदा करता है। कभी काटरून द्वारा तो कभी फिल्म द्वारा या फिर किसी और तरह से। सवाल यह है कि इस साजिश का मकसद क्या है?
 पैगंबर इसलाम की निंदा पर आधारित अमेरिकी फिल्म पर मुसलिम जमाअतों के पदाधिकारियों के विचारों को लगभग सभी उर्दू अखबारों ने प्रमुखता से प्रकाशित किया है। इन सभी जिम्मेदारों ने जहां इस निंदनीय फिल्म पर शांति के साथ विरोध प्रदर्शन करने का सर्मथन किया, वहीं हिंसक घटनाओं की आलोचना भी की। इसी के साथ अमेरिका से अपनी नीति पर पुनर्विचार करने का भी आग्रह किया। जमाअत इसलामी हिंद के अमीर मौलाना सैयद जलालउद्दीन उमरी ने कहा कि इसलाम और उसके पैगंबर के मान-सम्मान को पहले भी प्रभावित करने का षड्यंत्र रचा गया, जो नाकाम रहा और आज भी कोई शक्ति पैगंबर की र्मयादा को नुकसान पहुंचाने में कामयाब नहीं हो सकती। जमाअत इसलामी के अमीर ने अमेरिका की निंदनीय फिल्म पर हो रहे धरने-प्रदर्शन पर कहा कि हमें ऐसे काम से बचना चाहिए, जिससे मिल्लत की र्मयादा पर पर आंच आती हो। यह बात सही नहीं होगी कि अपराध कोई करे और सजा दूसरे को दी जाए। इससे इसलाम की छवि बिगड़ती है। मौलाना उमरी ने इसलामी संगठनों से अपील की कि वे दीन-ए-इसलाम को दूसरों तक पहुंचाने की अपनी जिम्मेदारी पहले से अधिक महसूस करें, ताकि आम लोग इसलाम की वास्तविक शिक्षाओं से परिचित हो सकें और अमेरिकी फिल्म जैसी घटना न दोहराईजा सके।

दैनिक ‘जदीद मेल’ में जफर आगा ने पहले पेज पर प्रकाशित अपने विशेष लेख ‘खुदा के लिए पश्चिमी देशों की साजिश का शिकार मत बनिए’ शीर्षक से लिखा है कि पैगंबर की निंदा का मुद्दा मुसलमानों की वह नस है, जो थोड़ा-सा दबाते ही फड़क उठती है। इस परिप्रेक्ष्य में दो बातें बिल्कुल साफ उभरकर सामने आती हैं। एक यह कि यूरोप ओर अमेरिका में एक गिरोह मौजूद है, जो थोड़े-थोड़े अंतराल पर बहुत सोच-समझकर पैगंबर की निंदा करता है। कभी काटरून द्वारा तो कभी फिल्म द्वारा या फिर किसी और तरह से। सवाल यह है कि इस षड्यंत्र का मकसद क्या है? पैगंबर की निंदा के बाद की घटनाओं में मुसलमानों की प्रतिक्रिया पर नजर डालिए। लाखों या हजारों की भीड़ गुस्से से बेकाबू, अमेरिकी उच्चायोग पर धावा बोल रही है। पूरी भीड़ में किसी को होश नहीं, तोड़फोड़, पुलिस से जंग में व्यस्त एक ऐसा दृश्य नजर आता है, जैसे यह वहशी भीड़ हो, जो गुस्से में होश खोकर वहशी अंदाज में आतंक पर उतर आया है। पैगंबर की निंदा का यही मकसद है। यही तो षड्यंत्र है। पहले फिल्म बनाओ, काटरून बनाओ और जब मुसलमान विरोध-प्रदर्शन में अपना आपा खो बैठें, तो उसकी फिल्म बनाओ और विभिन्न संचार माध्यमों से इसका प्रचार करो।

‘आर्थिक आत्महत्या की ओर बढ़ते कदम’ शीर्षक से दैनिक ‘इंकलाब’ ने संपादकीय में लिखा है कि अर्थव्यवस्था का मामला भी बिल्कुल अलग है। सरकार ने जब डीजल के दाम बढ़ाए और रसोई गैस की सुविधा कम की, तब आर्थिक विशेषज्ञों ने सरकार की इस जनविरोधी पहल का स्वागत करते हुए यहां तक कहा कि यह सही दिशा में उठाया जाने वाला छोटा-सा कदम है। सरकार को और कड़े कदम उठाने होंगे। जनता की चमड़ी उधेड़कर यदि कोई अर्थव्यवस्था और इसके चलते कोई लोकतांत्रिक सरकार पनप सकती है, तो यह अपनी तरह का पहला और नया मामला होगा। लोकतंत्र में जनता की भावनाओं के साथ-साथ उसके हितों का भी ख्याल रखा जाता है। जहां तक सवाल आर्थिक घाटे का है, जिसके कारण हमारी आर्थिक अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है और वैश्विक संस्थानों ने हमें तीखी नजरों से देखना शुरू कर दिया है, तो इस घाटे को कम करने के और भी उपाय हो सकते हैं। सरकार उन पर अमल क्यों नहीं कर रही है? सरकार अपने खचरें में कटौती करे। सरकार जनता के वोटों से चुनी जाती है या पेट्रोलियम कंपनियों के वोटों से?

दैनिक ‘जदीद खबर’ ने भी अपने संपादकीय में डीजल की बढ़ी कीमतों पर चर्चा करते हुए लिखा है कि जनता को दी जाने वाली सब्सिडी के बारे में तो कहा जाता है कि इसके कारण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है, लेकिन भ्रष्टाचार में लाखों-करोड़ों रुपयों का घोटाला हो रहा है, वह किसी को दिखाई नहीं देता। इसका कारण यह है कि यह रुपया कॉरपोरेट घराने, नेता और दलाल हजम कर जाते हैं। आम आदमी को चंद सौ रुपयों की सब्सिडी दी जाती है, तो इसे न तो सरकार सहन करने को तैयार है और न योजना आयोग को अच्छा लगता है। सरकार भूल गई कि जब फैसले का अधिकार जनता के हाथ में होगा, तो वह भी सख्त फैसला करने से परहेज नहीं करेगी।

इसके विपरीत दैनिक ‘अखबारे मशरिक’ ने अपने संपादकीय में लिखा है कि सरकार ने डीजल की कीमत में वृद्धि और रसोई गैस पर से बड़ी हद तक सब्सिडी खत्म करके एक मजबूत कदम उठाया है। सरकार अपने फैसले पर अडिग है। इस पर सरकार को जमे रहना चाहिए और दाएं-बाएं न देखकर सीधे रास्ते पर अपनी गाड़ी हांकते रहना चाहिए।

यूरोप ओर अमेरिका में एक गिरोह मौजूद है, जो थोड़े-थोड़े अंतराल पर बहुत सोच-समझकर पैगंबर इसलाम की निंदा करता है। कभी काटरून द्वारा तो कभी फिल्म द्वारा या फिर किसी और तरह से। सवाल यह है कि इस साजिश का मकसद क्या है?

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