Tuesday, September 18, 2012

गुमराह युवकों को समझाना मिल्ली नेतृत्व का दायित्व


बम धमाकों के आरोप में मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी पर चर्चा करते हैदराबाद से प्रकाशित दैनिक `मनसिफ' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि पुणे धमाके के सिलसिले में जैसा ही जांच एजेंसियों और मीडिया को इसके नाम का पता चला तो उन्हें अफसोस हुआ कि यह हिन्दू है अर्थात् दयानंद पाण्डेय इसका नाम है। यदि यह मुसलमान होता तो इसका संबंध किसी न किसी `कागजी' मुस्लिम आतंकी संगठन से जोड़ दिया जाता और फिर तुरन्त गिरफ्तारियों का न खत्म होने वाला सिलसिला चल पड़ता। महाराष्ट्र में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने चार मुसलमानों को गिरफ्तार किया और फिर बाद में दो को रिहा कर दिया गया।  पुलिस का कहना है कि यह गिरफ्तारियां आतंकवाद के विभिन्न मुकदमों में पूछताछ करना एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है। सूत्रों का कहना है कि जांच एजेंसियां पुणे धमाके के सिलसिले में मुस्लिम युवाओं को लिप्त करने में व्यस्त हैं और मीडिया विशेषकर मराठी समाचार पत्रों की झूठी खबरों की बुनियाद पर बीड़ से इन मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया था। सवाल यह है कि सिर्प मुसलमानों को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है। गत 8 सालों में हुई आतंकी घटनाओं के संबंध में यह साबित हो चुका है कि इनमें ज्यादातर हिन्दू आतंकी शामिल थे। इसलिए जांच एजेंसियों को केवल एक ही नजरिये की बुनियाद पर जांच नहीं करना चाहिए। आखिर यह सब बेबुनियाद हरकतें कब तक होती रहेंगी? क्या सिर्प इसलिए कि सरकार यूरोपीय दुनिया विशेषकर अमेरिका को बताना चाहती है कि हम भी उन ही की तरह `कागजी' आतंकियों से परेशान हैं।
अमेरिका को खुश करने की कोशिश में अरब देशों से भी संबंध खराब होने की संभावना पैदा हो रही है जिससे भविष्य में हमारी आर्थिक गतिविधियों पर चोट भी लग सकती है। सरकार को चाहिए कि वह मुस्लिम विरोध पर आधारित नीति का त्याग करे और देश से प्रेम के नाम पर हिंसा और दंगा फैलाने वाले हिन्दू आतंकी संगठनों के खिलाफ भी अपने घेरे को और अधिक सख्त करते हुए देश की सुरक्षा और सौहार्द को निश्चित करे।
`गुमराह युवकों के संबंध में मिल्ली नेतृत्व का दायित्व, जोश में होश खो देना बिल्कुल गलत रणनीति' के शीर्षक से दैनिक `अखबारे मशरिक' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि इधर एक वर्ष के अंदर देशभर में पुलिस ने तथाकथित आतंकी कहकर बहुत से मुसलमानों को गिरफ्तार किया है जिनमें से ज्यादातर युवा और शिक्षित हैं। अदालतों ने बहुत से गिरफ्तार लोगों को बाइज्जत तौर पर रिहा भी किया है जो इस बात का सबूत हैं कि पुलिस ने बहुत से लोगों को गिरफ्तार किया है। मुस्लिम नेतृत्व ने मुसलमानों की अंधाधुंध गिरफ्तारियों के खिलाफ विरोध भी किया है और कानूनी कार्रवाई भी की है और यह हर तरह से सही और जायज है क्योंकि यह हमारा संवैधानिक हक है। मुस्लिम संगठनों ने आतंकवाद के खिलाफ आम सभा, सम्पोजियम और सेमिनार भी किया जिसमें बिना कारण किसी की हत्या को गैर इस्लामी बताते हुए इसकी भर्त्सना भी की गई लेकिन किसी मिल्ली संगठन ने मुस्लिम युवाओं से सीधे तौर पर संबोधित करते हुए उनकी आतंकी गतिविधियों के मुस्लिम मिल्लत पर होने वाले हुए प्रभाव से उन्हें अवगत नहीं कराया है। हम एक बार फिर मिल्ली नेतृत्व से अपील करते हैं कि वह इस बाबत सक्रिय हों और जोश में आए हुए लोगों को होश की नसीहत करें।
तीसरे मोर्चा की आहट के बीच मुलायम सिंह की रणनीति पर चर्चा करते हुए दैनिक`प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने `मुलायम सिंह एक एक तीर से कई शिकार करने के लिए चला सियासी दांव' के शीर्षक से लिखा है कि मुलायम सिंह ने कैग रिपोर्ट पर संसद के गतिरोध को तोड़ने के लिए तेलुगूदेशम के साथ एक नया फार्मूला पेश किया कि वह लोग कोयला प्रकरण में किसी की तरफदारी नहीं कर रहे, इतना भर चाहते हैं कि इस गंभीर मामले में संसद के अंदर खुली बहस हो जबकि भाजपा के लोग जिद पर उतारू हैं जो कि सही नहीं है। उन्होंने कोयला आवंटन में हुईं गड़बड़ियों के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश से जांच कराने की मांग की। जहां मुलायम ने एक तरफ कांग्रेस को अपने स्टैंड से प्रसन्न किया वहीं विपक्षी एकता तोड़ने का प्रयास कर कांग्रेस की मदद करने का प्रयास किया है। दरअसल मुलायम 2014 की रणनीति पर अमल करने का प्रयास कर रहे हैं।
वाम मोर्चा, तेलुगूदेशम को साथ लेकर वह 2014 के लिए एक नया मोर्च बनाने की जुगाड़ में हैं। इस तथाकथित तीसरा मोर्चा बनाने के प्रयास का एक फायदा मुलायम सिंह को यह हुआ कि उन्होंने अपने आपको भाजपा से दूर कर लिया है। मुलायम सिंह यादव ऐसे पहले नेता हैं जिन्होंने मध्यावथि चुनाव की बात कही थी। मुलायम का यह सियासी दांव है। पता नहीं, कांग्रेस को यह समझ आएगा या नहीं? भाजपा के लिए भी यह एक चुनौती है।
`हथियारों के सौदागर दुनिया में शांति कैसे स्थापित कर सकते हैं' के शीर्षक से `दावत सहरोजा' ने लिखा है कि अमेरिकी कांग्रेस के थिंक टैंक सीआरएस की रिपोर्ट एक ऐसे समय सामने आई है जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून हथियारों के बेचने और खरीदने से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय नियम बनाने की बात कर रहे थे जिसमें अमेरिका सबसे बड़ी रुकावट है क्योंकि इसकी अर्थव्यवस्था या आर्थिक उन्नति बहुत हद तक हथियारों के बेचने पर आधारित है और वह हर वर्ष अपनी इस गैर इंसानी व्यापार को हर वर्ष दो गुना और तीन गुना करने की नीति पर अमल कर रहा है। सीआरएस की रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि गत वर्ष 2011 में केवल अमेरिका ने दूसरे देशों को 66 अरब 30 करोड़ के हथियार बेचे और दुनिया में बेचे हथियारों का इसका अनुपात 78 फीसदी रहा। यह एक सच्चाई है कि ज्यादा हथियारों की खरीद से दुनिया में ताकत का बैलेंस बिगड़ता रहता है। टिप्पणीकारों का यह भी कहना है कि अमेरिका केवल हथियार बनाने और बेचने का ही काम नहीं करता है बल्कि वह खतरनाक खेल खेल कर अपने हथियारों को बेचने के लिए माहौल भी बनाता है जैसा कि वह ईरान की फौजी ताकत और इसके परमाणु कार्यक्रम का हव्वा खड़ा करके कई वर्षों से खाड़ी देशों को हथियार बेच रहा है।
`बिना मर्द के बच्चा पैदा कर सकेंगी कुंआरी लड़कियां, आश्चर्य की बात यह है कि वह फिर भी पुंआरी ही रहेंगी' के शीर्षक से साप्ताहिक `नई दुनिया' ने अपनी सांझी रिपोर्ट में लिखा है कि लिंग की पहचान अब पुरानी होने लगी है। अब एक नई शुरुआत के लिए दुनिया को तैयार रहने की जरूरत है। वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि पुंआरी लड़कियां मर्द से मिले बिना बच्चे पैदा कर सकेंगी। प्रकृति ने जो व्यवस्था बनाई है, इंसान अब उसको चैलेंज करने के लिए तैयार नजर आ रहा है। यूरोप में महिलाएं आजादी की सभी हदें पार कर चुकी हैं, उनका कहना है कि हमें बच्चा हासिल करने के लिए मर्दों का गुलाम बनने की जरूरत नहीं है।
 हम आजाद हैं, हमें बच्चे की इच्छा हो तो हम मर्द से मिले बिना बच्चा पैदा कर सकेंगे। वैज्ञानिकों का मानना है कि उन्होंने अपने परीक्षण का बड़ा हिस्सा पूरा कर लिया है। ऐसे उदाहरण भी हैं जिनको वह अपने दावे के सबूत में दुनिया के सामने पेश कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो जमीन पर एक नई पीढ़ी वजूद में आएगी जो बिन बाप के होगी। ऐसे बच्चों की देखभाल कौन करेगा और पारिवारिक व्यवस्था कैसे बनी रहेगी, के सवाल ने बुद्धिजीवियों को परेशान कर रखा है।

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