Tuesday, January 8, 2013

महिलाओं पर बढ़ता अत्याचार, कानून से ज्यादा समाज सुधार की जरूरत


समाजवादी पार्टी द्वारा संसद में मुस्लिम आरक्षण उठाए जाने की मांग पर चर्चा करते हुए दैनिक `सियासी तकदीर' में जावेद कमर ने अपनी समीक्षा में लिखा है कि सलमान खुर्शीद के समय में 4.5 फीसदी जो आरक्षण दिया गया था सरकार उसमें वृद्धि करने के लिए तैयार नहीं है वह तो ओबीसी कोटे को लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन करने पर ही तैयार नहीं हैं। गत दिनों कांग्रेस के ही एक वरिष्ठ  नेता रशीद मसूद ने राज्यसभा में जब इस बाबत एक लिखित सवाल किया तो अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री न्योंग अरंग ने इसका जवाब नहीं में दिया था। एक बड़ा तर्प यह दिया जा रहा है कि मंडल आयोग के सुझाव पर पिछड़े वर्गों को जो 27 फीसदी आरक्षण दिया गया था उसमें मुसलमानों की पिछड़ी जातियां शामिल हैं और उन्हें इसका फायदा भी मिल रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि 27 फीसदी में मुसलमानों के लिए कोई कोटा निर्धारित नहीं है। इसलिए उन्हें इससे कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। हमें दुख इस बात पर है कि जब यह कोटा निर्धारित किया गया था तो उस समय हमारे किसी नेता ने सरकार से यह पूछने का साहस क्यों नहीं किया कि हमें हक की जगह भीख क्यों दी जा रही है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान की प्रेस कांफ्रेंस में जब किसी पत्रकार ने उनका ध्यान मुलायम सिंह यादव की मांग की ओर दिलाया तो उनका कहना था कि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जो वादा किया है वह हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। हमने अपने घोषणा पत्र में मुसलमानों को केरल और कर्नाटक की तर्ज पर आरक्षण देने का वादा किया है उनकी आबादी की बुनियाद पर नहीं। के. रहमान खां की जुबानी मनमोहन सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह मुसलमानों को उनका हक नहीं भीख ही दे सकती है, तो क्या मुसलमान इस भीख को कुबूल करने के लिए तैयार हैं?
केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे द्वारा यह कहने पर आईपीएस अधिकारी एएस इब्राहिम को आईबी का डायरेक्टर सोनिया गांधी की वजह से  बनाया है, पर चर्चा करते हुए `सहरोजा दावत' ने लिखा है कि शिंदे ने यह कहकर आईपीएस अधिकारी की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। इसके जरिये उन्होंने सोनिया की खुशी हासिल करने की कोशिश की तो दूसरी ओर मुसलमानों पर एहसान जताया और उन्हें उनकी हैसियत बता दी कि वह बिना आशीर्वाद के किसी उच्च पद पर नहीं पहुंच सकते। लेकिन इसी के साथ उन्हें  यह भी बताना चाहिए कि अब तक मुसलमान इस एजेंसी का हेड नहीं बन सका तो उसका जिम्मेदार कौन था? यदि यह मान लिया जाए कि इब्राहिम की उन्नति में किसी की भूमिका है, तो सरकार की होगी, उसमें सोनिया गांधी की क्या भूमिका? दूसरी बात यह है कि एक दो मुसलमानों को उच्च पदों पर पदासीन कर देने से क्या मुसलमानों की समस्याएं हल हो जाएंगी? इनके पास क्या अधिकार होते हैं या उन्हें कौन-सी ऐसी जादू की छड़ी दी जाती है कि उनकी वजह से मुसलमानों के काम आसानी से हो जाएंगे। मुसलमानों की समस्याएं हल होंगी तो नीति और सोच में तब्दीली से, जिसके लिए सरकार कभी तैयार नहीं होती। गृहमंत्री आईबी का मुस्लिम हेड बनाने का केडिट तो ले रहे हैं लेकिन यह क्यों नहीं बताते कि इससे मुस्लिम कौम का क्या भला होगा।
`क्या 21 दिसम्बर को दुनिया खत्म हो जाएगी?' के शीर्षक से दैनिक `अखबारे मशरिक' में नजीम शाह ने अपने लेख में लिखा है कि 21 दिसम्बर को दुनिया खत्म हो जाएगी, यह आस्था एक प्राचीन सभ्यता `माया' के मानने वालों का है। यह लैटिन अमेरिका के अधिकतर देशों की सबसे प्राचीन सभ्यता में गिनी जाती है। यह सभ्यता हजरत ईसा की पैदाइश से  बहुत पहले से इस दुनिया में मौजूद थी। मैक्सिको के कुछ नागरिक अब भी प्राचीन माया भाषा बोल सकते हैं। माया कौम भाषा, गणित और नक्षत्र विज्ञान में बहुत शिक्षित थी। इस सभ्यता के अनुयायियों ने अमेरिका में लिखने की शुरुआत की जबकि इनके लिखने का तरीका मिस्र की सभ्यता से मेल खाता है। माया सभ्यता के कैलेंडर में 18 महीने और हर महीने में 20 दिन होते हैं अर्थात् साल में 360 दिन। वास्तव में इनके बनाए हुए कैलेंडर आज के ईस्वी कैलेंडर से बहुत ज्यादा सही हैं। इस सभ्यता का बड़ा कारनामा इनका कैलेंडर माना जाता है। माया कौम पर शोध करने वालों का मानना है कि यह दुनिया पांच युगों में बंटी है और माया लोग चौथे युग में जी रहे हैं। उनके कैलेंडर के अनुसार 21 दिसम्बर को चौथा युग खत्म हो जाएगा और पांचवां युग शुरू होगा। कयामत (प्रलय) के बारे में इस्लामी आस्था अन्य धर्मों की धारणा को निरस्त करती है। इस्लामी आस्था के अनुसार कयामत के बारे में अल्लाह ही जानता है कि कब आएगी?
दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं पर दैनिक `सहाफत' ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि `फांसी इलाज नहीं है।' दुष्कर्म की सामूहिक घटना जो गत रविवार को हुई उस पर गुस्से का इजहार करते हुए मांग की गई कि अपराधियों को फांसी दी जाए लेकिन क्या इस भावुक मांग पर अमल संभव है। हमारा देश चूंकि अपनी मर्जी से लोकतांत्रिक बना है इसलिए कानून द्वारा बताई गई प्रक्रिया को पूरा किए बिना किसी को सजा नहीं दी जा सकती। सरकार ने फैसला किया है कि मुकदमों की सुनवाई के लिए जल्द फैसला करने वाली `फास्ट ट्रैक' अदालतें कायम की जाएं, इस तरह जल्द फैसला हो सकेगा लेकिन क्या गुंडों में इससे भय पैदा हो सकेगा? अपराध के पहलू से हटकर विचार करने की जरूरत है कि हमारे समाज में औरत की क्या हैसियत है। आम विचार यही है कि औरत ऐसी मशीन है जिसके द्वारा ज्यादा से ज्यादा रकम वसूली जा सकती है। दहेज विरोधी कानून बनने के  बावजूद औरत की हालत खराब बनी हुई है। घर के अन्दर टीवी पर और सिनेमा में औरत को जिस अंदाज में दिखाया जाता है उससे युवाओं का प्रभावित होना स्वाभाविक है। संसद में बहस के दौरान किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि औरत की हद से ज्यादा बढ़ी आजादी उसके लिए हानिकारक हो सकती है। लिव इन पार्टनर के फैशन ने औरत के सम्मान को खत्म कर दिया है। औरत अपनी मर्जी से अपनी इज्जत किसी के हवाले कर सकती है। को-एजुकेशन से बिगाड़ शुरू होता है और आजादी से लड़के-लड़कियों के मिलने-जुलने और संबंधों से समाज बिखर जाता है। इन घटनाओं को रोकने के साथ-साथ समाज सुधार पर भी नजर डालनी जरूरी है।
`मुलायम व अखिलेश को दिया सुप्रीम कोर्ट ने तगड़ा झटका' के शीर्षक से दैनिक`प्रताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि यह फैसला मुलायम और अखिलेश के लिए राजनीतिक दृष्टि से असहज स्थिति जरूर पैदा करेगा और बाद में केंद्र सरकार के साथ उनके रिश्तों के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगा। मुख्य न्यायाधीश अल्तमश कबीर व न्यायमूर्ति एचएल दत्तू ने गुरुवार को मुलायम सिंह की याचिका को ठुकराते हुए मुलायम, अखिलेश और प्रतीक यादव के खिलाफ सीबीआई की प्रारम्भिक जांच के फैसले को बरकरार रखा है। पीठ ने कहा है कि सीबीआई अपनी जांच उसे सौंपेगी, केंद्र सरकार को नहीं। इस फैसले ने सूबे की सियासत को हवा दे दी है। एक ओर जहां इसे अब सियासी चश्मे से देखते हुए सीबीआई के अब तक हुए इस्तेमाल के मद्देनजर समाजवादी पार्टी द्वारा कांग्रेस को समर्थन दिए जाने की नई मजबूरी माना जा रहा है, वहीं उत्तर प्रदेश में बहुमत की सरकार बनने के बाद दिल्ली की गद्दी पर राज करने का सपना देखने वाले मुलायम सिंह यादव की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। यह भी तय हो गया है कि भ्रष्टाचार के सवाल पर चारों ओर से घिरी कांग्रेस को सपा की ओर से तीर और ताने नहीं सहने होंगे। भाजपा ने तो अखिलेश यादव से इस्तीफा मांगते हुए डिम्पल यादव को मुख्यमंत्री बनाने का सुझाव तक दे डाला है।

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