Sunday, October 31, 2010

जनता के पैसे पर ‘सरकारी हज’

देश में हुए  कॉमनवेल्थ गेम्स में ही जनता के टैक्स का दुरुपयोग नहीं हुआ है, बल्कि हज जैसी पवित्र यात्रा में सब्सिडी देने और हज डेलीगेशन को सऊदी अरब भेजने के नाम पर भी यही कुछ हो रहा है। सब्सिडी और डेलीगेशन सदस्यों की प्रति वर्ष बढ़ती संख्या के चलते हर साल इसके बजट में भारी वृद्धि हो रही है। कैगने अपनी रिपोर्ट में इस पर सवाल उठाए हैं और डेलीगेशन सदस्यों के चयन और भेजने की पूरी प्रक्रिया पर प्रश्न चिह्न लगाया है।
हज के समय सरकार द्वारा हज डेलीगेशन भेजने का सिलसिला 1966में शुरू हुआ था, तब सरकार ने पहली बार पांच लोगों को डेलीगेशन में भेजा था। जिसके बाद यह सिलसिला साल-दर-सालबढ़ता गया और अब स्थिति यह है कि इसके सदस्यों की संख्या 40का आंकड़ा पार कर चुकी है। हज डेलीगेशन को लेकर मुसलमानों में समय-समयपर चर्चा होती रहती है। वह यह समझ पाने में असमर्थ हैं कि हज डेलीगेशन का औचित्य क्या है? जबकि हज जिंदगी में एक बार फर्ज है, वह भी आर्थिक रूप से संपन्नमुसलमानों पर इसी के साथ उसकी कमाई पाक और हलाल होनी चाहिए। शायद ही इसीलिएआम मुसलमान सरकार द्वारा हज पर जाने वालों को सरकारी हाजी की उपाधि देते हैं। हज डेलीगेशन विदेश मंत्रालय द्वारा तैयार किया जाता है। सरकार इसमें अपने शुभ चिंतकों को शामिल करती है। डेलीगेशन में केवल राजनेता ही नहीं बल्कि, पत्रकार, उलेमा,बुद्धिजीवी आदि शामिल हैं। बताया जाता है कि सरकार इन्हें हज पर भेजकर एक वार से दो शिकार करती है। एक तो उसके विरोधी स्वर को खत्म कर देती है और दूसरा जब कभी सत्ता असनपार्टी मुसलमानों में स्वयं को घिरा महसूस करती है, वहीं माहौल को अनुकूल बनाने के लिएइन्हें ही इस्तेमाल करती है। हज डेलीगेशन की सऊदी अरब में क्या भूमिका है और इस गुडविल डेलीगेशन में किसी को शामिल करने का पैमाना क्या है, जैसे सवालों को विदेश मंत्रालय के पास कोई जवाब नहीं है, तभी तो उसने सूचना अधिकार अधिनियम 2005के तहत पूछे गएइस सवाल को टाल दिया है। कैगने भी इस सवाल को अपनी रिपोर्ट में उठाया है। कैगने गुडविल डेलीगेशन का साइज कम करने और उसकी भूमिका निर्धारित करने का सुझाव दिया है।
18से 20दिन तक चलने वाले इस हज डेलीगेशन में शामिल व्यक्तियों का पूरा खर्च सरकार वहन करती है। इसके बावजूद इनका वहां कोई काम तय नहीं है। आरटीआई द्वारा हासिल सूची से स्पष्ट होती है कि इसमें शामिल होने वाले कई व्यक्ति दो-दो, तीन-तीनबार सरकारी हज करते रहे हैं। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के अध्यक्ष और रेलवे राज्य मंत्री ई अहमद तीन बार सरकारी खर्च पर हज पर जा चुके हैं। पहली बार वह राजद शासन काल में गए थे, दूसरी बार 2004और तीसरी बार 2006में जब वह विदेश राज्य मंत्री थे। भाजपाके सैयद शाहनवाज हुसैन 2002और 2003में लागतारदो बार हज पर जा चुके हैं। इसी सूची में कांग्रेस सांसद (राज्यसभा) अहमद सईद मलिहाबादी(2001और 2007),सांसद शफीर्कुरहमानवर्क (2005और 2007)और सेवा निवृत्त आईएएस लुतुर्फरहमानलशकर(2000और 2007)भी शामिल हैं।
आरटीआई जवाब के मुताबिक इस हज डेलीगेशन पर सरकार का छह करोड़ रुपये का बजट है। डेलीगेशन के प्रत्येक सदस्य पर आठ लाख रुपये का खर्च आता है, जो एक हाजी पर आने वाले खर्च से चार से पांच गुना ज्यादा होता है। यह खर्च 2008में बढ़कर 13लाख रुपये प्रतिहाजी तक पहुंच गया है। 2005में यह डेलीगेशन 34सदस्यों पर आधारित था। जबकि अगले साल दो-दो डेलीगेशन भेजे गए,जिसमें से हर एक में 24व्यक्ति शरीक थे । 2007में 29और 2008में 34व्यक्ति शामिल थे।
यह बात कम महत्वपूर्ण नहीं है कि एक तरफ तो सरकार दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर से सब्सिडी खत्म करने की बात कर रही है, जिसका सीधा असर गरीबों पर पड़ेगा। लेकिन दूसरी तरफ वह मुसलमानों द्वारा करोड़ों की हज सब्सिडी को खत्म करने की मांग को मानने के बजाय हर साल उसमें वृद्धि करती जा रही है। टैक्स की रकम को हज सब्सिडी और डेलीगेशन में खर्च करके धार्मिक कार्यों को जिस तरह राजनीतिक रंग दिया जा रहा है, वह निश्चय ही निंदा का विषय है। क्योंकि सरकारी पैसे से हज की इसलाम में कोई मान्यता नहीं हैं।
सरकार मुसलमानों द्वारा करोड़ों की हज सब्सिडी को खत्म करने की मांग को मानने के बजाय हर साल उसमें वृद्धि करती जा रही है ।
  • खुर्शीद आलम

No comments:

Post a Comment