बाबरी मसजिद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ काफैसला आने के बाद मुसलमानों में दो दृष्टिकोण पाए जा रहे हैं। एक समूह, जिसमें ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी शमिल है, जो फैसले केखिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहा है, तो वहीं कुछ मुसलिम नेता बातचीत द्वारा इस मसले को हल करना चाहते हैं। गत दिनों इस बाबत बंद कमरे में हुई बैठक केबाद यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि ये मिल्ली नेता किसका एजेंडा पूरा कर रहे हैं?
बंद कमरे की यह बैठक दिल्ली केलोधी रोड स्थित इंडिया इसलामिक कल्चरल सेंटर में हुई थी। सर्वसम्मेलन समाज की ओर से आयोजित इस बैठक में ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड केसदस्य एवं दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेरयमैन कमाल फारूकी, ख्याति प्राप्त आलिमेदीन मौलाना वहीदउद्दीन खां, जमीअत उलेमा हिंद केपूर्व महासचिव एवं मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड सदस्य मौलाना महसूद मदनी, आर्य समाज के स्वामी अग्निवेश, आर्ट ऑफ लिविंग केश्री श्री रविशंकर और आरएसएस नेता इंद्रेश शामिल थे। इस बैठक में ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल महासचिव डा. मोहम्मद मंजूर आलम को भी बुलाया गया था, पर उन्होंने इसमें भाग लेने से साफ इनकार कर दिया।
इस बैठक में सबसे गंभीर मामला जमीअत केपूर्व महासचिव मौलाना महमूद मदनी का था। उन्होंने बातचीत से मसला हल करने का बयान लखनऊ में पर्सनल लॉ बोर्ड की 16 अक्तूबर को हुई कार्यकारिणी की बैठक से एक दिन पहले दिया था, जिस पर काफी हंगामा हुआ और खुद जमीअत उलेमा केअंदर यह सवाल उठ खड़ा हुआ था कि क्या जमीअत का भी यही दृष्टिकोण है। उनकेइस बयान से सर्वप्रथम दारूल उलूम देवबंद ने पल्ला झाड़ा। देवबंद के नायब मोहतामिम मौलाना अबदुल खालिक मदरासी ने स्पष्ट किया कि इस बयान से दारूल उलूम का संबंध नहीं है। यदि यह उनका व्यक्तिगत बयान है, तो उन्हें 19 अक्तूबर को होने वाली जमीअत कार्यकारिणी की बैठक से पूर्व यह कहने की क्या जरूरत थी?
बंद कमरे की यह बैठक जमीअत कार्यकारिणी केदो दिन बाद हुई। लिहाजा सवाल यह है कि पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक से एक दिन पूर्व बयान और जमीअत कार्यकारिणी केदो दिन बाद बैठक में भाग लेने का औचित्य क्या है, जबकि वह पर्सनल बोर्ड द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जाने के सुर में सुर मिला रहे हैं। जमीअत बाबरी मसजिद के पहलू को लेकर प्रस्ताव कर स्पष्ट कर चुकी है कि एक बार मसजिद बन जाने के बाद जमीन से आसमान तक और कयामत (प्रलय) तक मसजिद रहेगी। जमीअत नेता इस सोच के विपरीत विचारधारा केलोगों से मुलाकात कर किस मिशन पर हैं? इस तर्क से बचाव किया जा सकता कि शायद उन्हें नहीं मालूम हो कि बैठक में कौन-कौन आ रहे थे और वे तो स्वामी अग्निवेश के फोन करने पर चले गए थे। पर काबिल-ए-गौर बात यह है कि बैठक का आयोजन करने वाली संस्था की मुसलमानों में सिरे से कोई पकड़ ही नहीं है और न ही उसकेबारे में लोग जानते हैं। उसकेफोन करने से कोई मुसलिम नेता आने के लिए तैयार नहीं होते, इसलिए संस्था ने स्वामी अग्निवेश का सहारा लिया और उनसे फोन कर लोगों को बैठक में बुलाया। उर्दू समाचार-पत्रों ने बैठक की रिपोर्ट छापी और फोटो छापकर उपस्थित जनों को बेनकाब कर दिया। इसके विपरीत एक प्रमुख अंगरेजी दैनिक केसंवाददाता द्वारा मौलाना महमूद मदनी को बैठक का हिस्सा नहीं थे, लिखे जाने पर इंडिया इसलामिक कल्चरल सेंटर के अध्यक्ष सिराजउददीन कुरैशी के मीडिया सचिव आश्चर्यचकित हैं। उनकेअनुसार मौलाना महमूद मदनी बैठक का हिस्सा थे और वहां उन्होंने बातचीत में हिस्सा लिया और लगभग सवा घंटा तक का वक्त वहां गुजारा। यह बात उक्त समाचार पत्र केपत्रकार को भलीभांति मालूम थी, लेकिन उसने अपनी रिपोर्ट में मदनी को क्लीन चिट दे दिया।
वैसे यह भी चर्चा है कि कहीं इस पूरे घटनाक्रम के पीछे ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन तो नहीं है। वह इस घटना पर पूरी तरह मौन है और अब तक उसकी ओर से किस तरह का खंडन भी नहीं आया है, जबकि ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल ने काउंसिल सदस्य के तौर पर कमाल फारुकी का नाम आने पर स्थित स्पष्ट कर दी है कि उसकी कार्यकारिणी ने किसी भी व्यक्ति को इस तरह की बातचीत में भाग लेने के लिए अधिकृत नहीं किया है।
No comments:
Post a Comment