Sunday, October 31, 2010

इराक से अमेरिकी वापसी की वास्तविकता

इराक में 18माह पूर्व शुरू हुई अमेरिकी फौजियोंकी वापसी का अंतिम जत्था 31अगस्त 2010को अमेरिका ने इराक की जंग जीत ली के नारे के साथ इराक से निकल गया। साढ़े सात साल चली इस जंग पर 748 अरबडालर खर्च हुएऔर 4414 अमरिका फौजियों सहित डेढ़ लाख बेगुनाह इराकी नागरिक मारे गए।इराक से 94हजार अमेरिकी फौजियोंकी वापसी के बाद भी वहां अमेरिका के 50हजार फौजी बने रहेंगे। इस फौज का नाम बदल दिया गया है। वह अब जंगी फौज नहीं, बल्कि प्रशिक्षण फौज कहलाएगी। जो इराकी फौज को प्रशिक्षण देगी और इराक में अमेरिकी हितों का संरक्षण करेगी, जिसमें इराकी तेल पर कब्जा सर्वप्रथम है। अमेरिकी रक्षा समीक्षकों का मानना है कि इराकी फौज को बड़े लंबे समय तक इसकी जरूरत रहेगी क्योंकि आगामी दस वर्षों तक यह आशा नहीं की जा सकती कि, इराकी फौज आंतरिक सुरक्षा के साथ-साथ देश की हिफाजत की भी जिम्मेदारीपूरे तौर पर संभाल सकेगी।
वरिष्ठपत्रकार आसिफ जिलानी(लंदन) लिखते हैं कि इराक से अमेरिकी फौज की वापसी एक ढोंग है और यह बताने के लिएकिया गया है कि राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस साल 31अगस्त तक इराक से अमेरिकी फौज की वापसी का जो वादा किया था, वह निर्धारितसमय में पूरा हो गया। इस समय यह ढोंग वास्तव में नवंबर में होने वाले मध्यावधि चुनाव के लिएरचा गया है। नवंबर में अमेरिकी कांग्रेस के अतिरिक्त सीनेट की 100में से 34सीटों के लिएऔर 50में से 34राज्यों के राज्यपाल के लिएचुनाव होंगे। वे इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है कि इन्हें राष्ट्रपति की कार्यप्रणाली पर जनमत संग्रह माना जाएगा औरइसके नतीजों का आगामी राष्ट्रपति चुनाव पर गहरा प्रभाव पडे़गा।
गैलपपोल के ताजा सर्वे के अनुसार ओबामा की लोकप्रियता गोरे (श्वेत) मतदाताओं में घटी है और जनवरी 2009में 62फीसदी के मुकाबले वर्तमान में मात्र 38फीसदी रह गई है। जो कि बहुत ही चिंताजनक है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस अवसर पर अमेरिकी फौजों की वापसी से यह बताना संभव हो सकेगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने जो वादा किया था, वह पुरा कर दिखाया। अमेरिकी गृह मंत्रालय का मानना है कि 50हजार अमेरिकी फौज के अलावा निजी संस्थानों की सुरक्षा हेतु लगभग सात हजार निजी सुरक्षा कर्मियों की तुरंत आवश्यकता होगी, जिनमें ब्लैक वॉटरके जो अब जी सर्विसेज कहलाती है और डाएनकोर जैसी संस्थानों के सुरक्षाकर्मी शामिल होंगे।
2003में जब अमेरिका ने इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन पर बड़े पैमाने पर तबाही फैलाने वाले हथियारों के झूठे आरोपों की बुनियाद पर अपने ऑफिसरों के साथ इराक पर हमला किया था, तो इसे ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ का नाम दिया था। यह सही है कि इस जंग के नतीजे में सद्दाम हुसैन का तख्ता उलट कर सदैव के लिएउससे मुक्ति हासिल कर ली गई, लेकिन इस मकसद के लिएइराक में जिस तरह तबाही और बरबादी की गइ,ऱ् उसे विश्व के मुसलिम समुदाय किसी भी सूरत में आजादी या आजादी की संज्ञा देने के लिएतैयार नहीं हैं। अमेरिकी फौजों के आने से पहले इराक में शिया-सुन्नीएक साथ रहते थे, लेकिन अमेरिकी फौजों के आने के बाद से दोनों एक -दूसरेके खून के प्यासे हो गए।इसी के साथ अरब-कुर्दसंघर्ष ने भी इराकी एकता, अखंडता को चूर-चूरकर दिया है। अमेरिका का दावा है कि उसने इराक पर कब्जे के तुरंत बाद चुनाव कराए और लोकतंत्र स्थापित किया, लेकिन वास्तविकता यह है कि साढ़े सात साल के दौरान अमेरिकी फौजियोंने इराकियों को आपस में इस बुरी तर लड़ाया है कि पांच महीने पूर्व हुएआम चुनाव के बाद अभी तक नई सरकार नहीं बन सकी है।
गत दिनों यह रहस्योद्घाटनहुआ कि ओबामा ने निराशा के चलते इराक के शिया धर्म गुरु अयातुल्ला उजमीअली सिसतंयानीको एक पत्र लिखकर अनुरोध किया गया था कि वह नई सरकार के गठन में पैदा हुई रुकावटोंको दूर करने में सहायता करें। अभी तक इस निवेदन पर कोई सुनवाई नहीं हुई। इस कटु सत्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि सद्दाम हुसैन के दौर में धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद दूर-दूरतक नहीं था, लेकिन समाचारों के अनुसार अब इराक अल कायदा और अन्य आतंकवादी संगठनों का केंद्र बन चुका है, जिससे पूरे मध्य पूर्व को खतरा पैदा हो गया है। इस प्रसंग में अमेरिका के लिएइराक ऑपरेशन एक बड़ी जीत हो सकती है। लेकिन लुटे-पिटेउजड़े इराकवासियों के लिएतो यह भयानक डरावनी रात जैसा साबित होगा।
अब ओबामा की लोकप्रियता गोरे (श्वेत) मतदाताओं में पहले से घटी है, जिसकी वजह से वर्तमान में मात्र 38 फीसदी ही रह गई है ।
  • खुर्शीद आलम

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