Sunday, August 5, 2012

मदरसा बोर्ड की आड़ में लीडरी चमकाने की होड़


राजधानी दिल्ली में मदरसा बोर्ड  को लेकर चल रही राजनीति पर चर्चा करते हुए दैनिक`हमारा समाज' में आमिर सलीम खां ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इस बहाने मौलाना अंसार रजा और मजाज मूगेंरी अपनी लीडरी चमकाने में लगे हुए हैं। ज्यादातर नेताओं को इस बात से कोई लेना देना नहीं होता कि उनकी मुहिम कामयाब होगी या नहीं, उन्हें तो बस अपनी लीडरी चमकाने का मौका मिलना चाहिए, उनका कद ऊंचा हो जाए, दुनिया जाए चुल्हे भाड़ में। दिल्ली में मदरसा बोर्ड या मदरसों को सरकारी सहायता पहुंचाने की योजना के लिए सक्रिय नेताओं के बारे में भी यही देखने को मिल रहा है। मदरसा बोर्ड पर सक्रिय इंटरनेशनल अवंकिंनिग सेंटर के अध्यक्ष मजाज मूगेंरी और गरीब नवाज फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना अनसार रजा खां का मकसद यह है कि प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय कार्यक्रम के तहत निर्धारित राशि दिल्ली के मदरसों के आधुनिकरण के लिए उपलब्ध हो लेकिन दोनों में मकसद से ज्यादा अपना-अपना ग्रुप मजबूत करने की बीमारी देखी जा रही है। यह बात भी कम दिलचस्प नहीं है कि दोनों नेता जुबानी तौर पर दावा एक साथ होने का करते हैं लेकिन उनकी करनी कथनी पर फिट नहीं बैठती। वह इसलिए कि दोनों नेताओं को गत 7-8 महीने से मदरसों को सहायता पहुंचाने वाली योजना का सेहरा अपने सिर बंधवाने के लिए मीडिया बयानों की होड़ रहती है। उधर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन सफदर हुसैन खां का कहना है कि वह इस योजना के बारे में उस समय तक कुछ नहीं कह सकते जब तक उनके पास दिल्ली सरकार की ओर से मंजूरी न मिल जाए। बहरहाल दोनों नेता अपनी-अपनी चमकाने में लगे हुए हैं ताकि सियासी गलियारों में उनके कदमों की ऊंचाई लोग दूर से देख सकें।
दिल्ली से 70 किलोमीटर दूर `अपना घर में बच्चियों के साथ हुए दुर्व्यवहार और एक अन्य खबर कि जेल में बंद कैदियों को बीवियों से संबंध बनाने की इजाजत हो, पर चर्चा करते दैनिक `जदीद खबर' में अजीम उल्लाह सिद्दीकी ने अपने समीक्षात्मक लेख में लिखा है कि यह जरूरत जो पंजाब के कैदियों के लिए महसूस की जा रही है, क्या दीनी संगठनों में काम करने वालों को भी ऐसी सुविधा मिल सकेगी? मदरसों और दीनी संगठनों में काम करने वालों को महीनों छुट्टी नहीं मिलती है, उनकी बुनियादी शारीरिक जरूरत कैसे पूरी होगी? क्या मदरसों के शिक्षकों की बुनियादी जरूरत आम इंसानों से अलग है? क्या उनकी शादी नहीं होती? क्या इस्लामी शरीयत ने इस सिलसिले में मदरसों और दीनी संगठनों में काम करने वालों के लिए कोई व्यवस्था दी है? किसी मदरसें के शिक्षक ने बताया कि पांच महीने बाद भी छुट्टी लेने जाएं तो छुट्टी हासिल करना संभव नहीं होता है। पूरे साल या कम से कम छह महीने तक शादीशुदा होकर भी अकेले जिंदगी गुजारना पड़ता है। मेरे विचार से इस्लामी दृष्टिकोण से इसका कोई औचित्य नहीं है। ऐसी सूरत में इन जिम्मेदारों को इस खबर से जरूर नसीहत हासिल करना चाहिए। काम करने वालों का यह बुनियादी हक है और हक से वंचित रखना हमेशा किसी बगावत का कारण होता है। अब हमें फैसला करना है कि हम खुद को किस खाने में रखना पसंद करेंगे।
हैदराबाद से प्रकाशित दैनिक `मुनसिफ' में इब्ने हमीद चांदपुरी ने `मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारियां और मोसाद' के शीर्षक से लिखा है कि `यदि गिरफ्तारी के पैटर्न का जायजा लिया जाए तो यह नतीजा निकालना मुश्किल नहीं कि यह सुनियोजित रणनीति का हिस्सा है। यदि देश के पिछले कुछ महीने के सियासी सूरतेहाल पर नजर डालें तो यह अनुचित नहीं कि इस्राइली गुप्तचर एजेंसी मोसाद हमारे घर में पूरी तरह घुसपैठ करती है। सुरक्षा एजेंसियों में आरएसएस के लोग भरे हुए हैं। सरकार चाहे कांग्रेस की हो या किसी और की, एजेंसियां वही करेंगी जो आरएसएस में  बैठे उनके आका उनसे चाहेंगे। हमारे प्रधानमंत्री बेबस हैं जबकि केंद्रीय गृहमंत्री झूठे और मक्कार। गृह मंत्री टूजी स्पेक्ट्रम मामले में इतने ज्यादा घिरे हुए हैं कि आरएसएस और भाजपा से खुफिया साजबाज करके उन्होंने भगवा ब्रिगेड बल्कि मोसाद को खुली छूट दे रखी है। मेरी नजर में मुस्लिम युवाओं को इसी साजबाज और मोसाद के दबाव के चलते बलि का बकरा बनाया जा रहा है।'
`मिस्र के नए राष्ट्रपति मुर्सी की चुनौतियां' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि मिस्र में 30 साल तक बिना रोकटोक शासक करने वाले हुस्नी मुबारक के सत्ता से हटने के बाद पहली बार हुए राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुर्सी को जीत हासिल हुई है। उन्हें 51.73 प्रतिशत वोट हासिल हुए हैं जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी पूर्व प्रधानमंत्री अहमद शफीक को 48.2 प्रतिशत वोट मिले। मुर्सी के लिए मुर्सी को पूरी तरह एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाने में सबसे बड़ी बाधा सेना हो सकती है। सैन्य सर्वोच्च परिषद के अब तक के रवैये से जाहिर हो गया है कि वह इस लोकतांत्रिक संक्रमण से भयभीत है। मुर्सी के लिए सेना से समन्वय बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी और सेना इतनी आसानी से अपनी ताकत कम नहीं होने देगी। मुर्सी ने इस्लामिक लोकतंत्र के साथ सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की घोषणा भी की है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनके नेतृत्व में मिस्र में लोकतांत्रिक व्यवस्था बहाल होगी और समृद्धि का सर्वथा नया दौर शुरू होगा। देश के इस्लामिक कट्टरता से रोकने की चुनौती भी उनके सामने होगी। `यूपी पुलिस बगावत की राह पर' के शीर्षक से दैनिक`सहाफत' में प्रकाशित यूसुफ रामपुरी ने अपने लेख में लिखा है कि उत्तर प्रदेश में जारी इन दंगों का एक पहलु यह है कि यूपी पुलिस बगावत की राह पर चलती नजर आ रही है जबकि सरकार की कोशिश यह है कि दंगों न हों और पुलिस अपना कर्तव्य निभाए लेकिन ऐसा लगता है कि पुलिस सरकार की एक सुनने के लिए तैयार नहीं है बल्कि पूरी तरह से सरकार को नजरअंदाज कर रही है। उसने सरकार से टक्कर लेने की ठान रखी है। यदि ऐसा है तो सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि क्या यूपी सरकार पुलिस के विरोधी तेवर को कुचलने और उस पर लगाम कसने में कामयाब हो सकेगी? ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है, इसलिए कि सरकार ने अभी तक या तो पुलिस के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया और यदि उठाया भी तो बहुत हल्के अंदाज में। इसके दो कारण हो सकते हैं एक तो यह कि सरकार स्वयं पुलिस से डरी हुई है दूसरे यह कि पुलिस को सरकार के कुछ सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। दोनों की परिस्थितियों की अनदेखी नहीं की जा सकती। वैसे दूसरे कारण के सुबूत अभी से मिलने शुरू हो गए हैं। प्रतापगढ़ दंगे को भड़काने में एसपी के एक सांसद ने घिनौनी भूमिका निभाई है। ऐसे में पुलिस के विरोधी तेवर कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

No comments:

Post a Comment