Sunday, August 5, 2012

`कश्मीरी मुसलमान ईसाई बन रहे हैं'


`कश्मीरी मुसलमान ईसाई बन रहे हैं' के शीर्षक से दैनिक `हमारा समाज' में प्रकाशित शकील रशीद ने अपने लेख में लिखा है एक अनुमान के अनुसार 1990 में घाटी कश्मीर में अति विचारधारा की शुरुआत के बाद से अब तक कोई 20 हजार कश्मीरियों ने ईसाई धर्म स्वीकार किया है। ईसाई पत्रिका `क्रिशचिनटी-टुडे' ने 2006 में यह दावा किया था कि अब तक कश्मीर में 15 हजार लोग ईसाई धर्म कुबूल कर चुके हैं, बाद के छह वर्षों में इस संख्या में और अधिक वृद्धि हुई है। गत वर्ष ईसाई धर्म पुबूल करने वालों की एक सीडी भी जारी की गई थी जो एक चर्च के अंदर की है। सीडी रमजान के दिनों की ईसाई बनाने की परम्परा `बपतिसमा' का दृश्य था, एक एक करके मुस्लिम युवक आए और पानी के एक छोटे से हौज में डुबकी लगाते और ईसाई पादरी के सामने शपथ लेते कि वह हजरत ईसा के रास्ते (जो अल्लाह के अंतिम दूत पैगम्बर मोहम्मद के आने के बाद निरस्त हो चुका है) के रास्ते पर चलेंगे, सीडी में मर्द भी दिखाए गए और औरतें भी। इस सीडी के आने के बाद मुसलमानों में काफी नाराजगी फैल गई और समय-समय पर इनके खिलाफ गुस्से का इजहार भी होता है लेकिन इसके बावजूद ईसाई मिशनरी अपने कामों में व्यस्त हैं क्योंकि राज्य सरकार और खुद मुस्लिम नेताओं की ओर से यह आवाज आज तक नहीं उठी कि ईसाई मिशनरियों को कश्मीर से निकाल बाहर किया जाए। मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी सहित अन्य मामलों को लेकर जमीअत उलेमा हिंद (अरशद मदनी ग्रुप) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी द्वारा प्रधानमंत्री से मुलाकात किए जाने पर सालिक ने अपने पत्र में  लिखा है कि मौलाना ने इस सिलसिले में दो या तीन बार प्रधानमंत्री से मुलाकात की है और परम्परानुसार हमारे प्रधानमंत्री ने उनको हर बार की तरह भविष्य में सब कुछ ठीक हो और करने का वादा किया है। हमारे मुस्लिम नेता कितने भोले हैं कि वह हर बार वादों से खुश हो जाते हैं उनको यह भी नहीं मालूम कि जिन शासकों से वह गुहार  लगा रहे हैं वह तो स्वयं इस अत्याचार के जिम्मेदार हैं। हमारे नेता गणों की नजर में जून में लखनऊ में होने वाली एक कांफ्रेंस में पूर्व पुलिस अधिकारी का यह बयान नहीं गुजरा कि मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारियां केंद्र और राज्य सरकारों की मर्जी से की जाती हैं और उनको इसकी जानकारी होती है। प्रधानमंत्री से बार-बार मिलकर आपने कितने मामले हल करा लिए? लोगों को याद होगा कि जामिया नगर में अहले हदीस मस्जिद में तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल को बुलाकर मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी पर विरोध किया गया तो उसके जवाब में एक महीने के अंदर 1-18 की मुठभेड़ सामने आ गई। इसी तरह जब कुछ मुस्लिम नेताओं ने मई में गृहमंत्री पी. चिदम्बरम से कड़े शब्दों में विरोध किया तो उनका गुस्सा भी बाद में बिहार के दरभंगा जिले के मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी की शक्ल में सामने आया। एक अजीब बात यह है कि  पीड़ित मुसलमानों की समस्याएं हल कराने वाली जमाअतें बेहतर मालदार और खुशहाल हैं लेकिन आम मुसलमान तंगी की जिंदगी गुजार रहा है। इसलिए मुस्लिम नेतृत्व को चाहिए कि वह उन कुसूरवार पुलिस अधिकारियों जो उनकी गिरफ्तारी में लिप्त हैं, उन मंत्रियों और अन्य सरकारी  मिशनरी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें। आखिर कौम की यह दलौत इस काम में तो खर्च की जाए।
दैनिक `राष्ट्रीय सहारा' में कासिम सैयद ने मुस्लिम संगठनों पर कटाक्ष करते हुए लिखा है कि बेगुनाह युवकों की रिहाई प्रस्तावों एवं सेमिनारों से नहीं होगी, सियासी लड़ाई के साथ कानूनी जंग भी जरूरी है मुस्लिम नेतृत्व की एकता के बिना ठोस नतीजा संभव नहीं। पहले पेज पर प्रकाशित अपने समीक्षात्मक लेख में कासिम सैयद लिखते हैं दुर्भाग्य से मुस्लिम जमाअतों की बहुसंख्या हथेली पर सरसों उगाना चाहती हैं। उदाहरण के तौर पर इनमें से अधिक के पास पूरे देश में आतंकवाद के आरोप में जेलों में  बंद मुस्लिम युवाओं के आंकड़े तक नहीं। उन्हें जानकारी ही नहीं कि आखिर कितने युवक  गिरफ्तार हैं, कब से हैं, उन पर क्या आरोप हैं और क्या उनके मुकदमे की पैरवी हो रही है? आडवाणी साहस करके प्रज्ञा से मिलकर आए और पीएम को इस पर हो रही ज्यादतियों से संबंधित मांग पत्र भी दिया, लेकिन यहां मैदान खाली है, क्योंकि साहस की कमी है। सियासी नेता संसद के अंदर कहने से डरते हैं, चाहे वह मुसलमान हो या कोई और, किसी मुस्लिम सांसद ने इस मामले पर बहस के लिए स्पीकर को नोटिस नहीं दिया। इससे उनकी गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। सच्चाई यह है कि जब तक बेगुनाह मुस्लिम युवाओं की रिहाई के लिए सरकार पर दबाव बनाने की खातिर कानूनी जंग के साथ हर लोकतांत्रिक तरीका नहीं अपनाया जाएगा, तब तक मामला हल नहीं होगा।
अमेरिकी पत्रिका `टाइम' द्वारा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर की गई कवर स्टोरी पर चर्चा करते हुए दैनिक `प्रताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि पत्रिका ने अपने ताजा अंक में कहा है कि सिंह उन सुधारों पर सख्ती से आगे बढ़ने के इच्छुक नहीं  लगते जिनसे देश एक बार फिर उच्च आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर लौट सकता है। पत्रिका में `ए मैन इन शैडो' शीर्षक से प्रकाशित लेख में सवाल किया गया है कि क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने काम में खरे उतरे हैं, रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक वृद्धि में सुस्ती, भारी वित्तीय घाटा और लगातार रुपए की चुनौती का सामना कर रही कांग्रेस नीत गठबंधन सरकार खुद को भ्रष्टाचार और घोटालों में घिरा पा रही है। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले इसी पत्रिका ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में लम्बे चौड़े पुल बांधे थे। कहा गया था कि मोदी के नेतृत्व में चौतरफा विकास हुआ है। टाइम मैग्जीन की इस कवर स्टोरी के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों में हलचल बढ़ी। प्रतिक्रिया पार्टी  लाइन के मुताबिक रही। अपने चिर-परिचित स्टाइल में लालू प्रसाद यादव ने टिप्पणी की कि अन्ना और उनकी टीम के सदस्य अरविंद केजरीवाल जैसे लोगों ने अमेरिकी पत्रिका को यह लेख बोलकर लिखवाया है। अमेरिका की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, वह यह बात कैसे कह सकता है।
`पहले  मोदी ने फिर सोनिया ने क्यों दी हर्ष मंदर को सच बोलने की सजा' के शीर्षक से साप्ताहिक `नई दुनिया' ने लिखा है कि हर्ष मंदर ने अपने संगठन सीईएस द्वारा छानबीन के बाद मुसलमानों के बारे में एक रिपोर्ट पेश की जिसमें कहा गया था कि मुसलमानों के उत्थान के लिए चलने वाली सरकारी योजनाएं पूरी तरह नाकाम हैं और इनसे मुसलमानों की बजाय दूसरों को फायदा पहुंच रहा है। यह बात सोनिया गांधी को पसंद नहीं थी। इसलिए उन्हें काउंसिल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

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