Sunday, August 5, 2012

पब्लिक स्कूलों में मुस्लिम बच्चों के दाखिले पर दिल्ली सरकार ने खींचे हाथ


कोलकाता से प्रकाशित उर्दू दैनिक `आजाद हिन्द' ने `देश में हिन्दुत्व व्यवस्था के क्रियान्वयन की फिर कोशिश' के शीर्षक से अपने सम्पादकीय में लिखा है कि विश्व में भारत की पहचान एक सेक्यूलर देश के तौर पर की जाती है लेकिन इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि स्वाधीनता पूर्व से ही देश में एक ऐसी शक्ति है जो घृणा और हिंसा के आधार पर हिन्दुत्व नामी विचारधारा के लिए सक्रिय है। कई गैर मुस्लिम बुद्धिजीवी जिनमें भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रय गृह एवं वित्त मंत्री जसवंत सिंह भी शामिल हैं, का दावा है कि पाकिस्तान की मांग भी जनसंघी शक्तियों के सक्रियता की प्रतिक्रिया में की गई थी, अन्यथा मोहम्मद अली जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के बड़े समर्थक थे। स्वाधीनता के बाद इन जनसंघी शक्तियों का मनोबल और बढ़ गया और बड़े स्तर पर देश को हिन्दू राष्ट्र में तब्दील करने की कोशिश की जाने लगी। गांधी जी का वध, बाबरी मस्जिद की शहादत, सांप्रदायिक दंगों के दौरान एक लाख से अधिक मुसलमानों की मौत पर अरबों-खरबों की बर्बादी इसी हिन्दू राष्ट्र बनाने की मुहिम का हिस्सा है। लेकिन यहां की जनता बधाई की पात्र है जिन्होंने घृणा और हिंसा के आधार पर देश की सेक्यूलर व्यवस्था से खिलवाड़ करने वालों को निरस्त कर दिया।
इसके बावजूद कुछ तथाकथित हिन्दू कौम परस्त संगठन ताकतें अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही हैं। अभी हाल में गोवा में एक पांच दिवसीय सम्मेलन हिन्दू जागरण समिति के नेतृत्व में हुआ है जिसमें देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने पर विचार-विमर्श हुआ। यह बात ध्यान रहे कि यह सब वह संगठन हैं जिनसे जुड़े दर्जनों व्यक्ति आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार हैं। एक दूसरी खबर राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात से है कि यहां कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर ऐसे बोर्ड लगे हैं कि `आपका हिन्दू राष्ट्र में स्वागत है।'
महाराष्ट्र की जेलों में बन्द मुसलमानों पर महाराष्ट्र अल्पसंख्यक आयोग की इच्छा पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस द्वारा कराए गए सर्वे पर चर्चा करते हुए दैनिक`सहाफत' में अनीस अहमद खां ने लिखा है कि 141 पेज की इस सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि महाराष्ट्र की जेलों में बन्द 96 फीसदी मुस्लिम कैदियों पर न तो किसी आपराधिक गिरोह के साथ संबंध का आरोप है और न ही किसी आतंकवादी संगठन के साथ सम्पर्प का। वहीं 25 फीसदी ऐसे भी हैं जिनका कोई वकील भी नहीं हैं। महाराष्ट्र में मुस्लिम कैदियों पर अत्याचार का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 38 फीसदी मुस्लिम कैदियों को उनके परिवार से मिलने नहीं दिया जाता जो कि डीके बासु गाइडलाइंस का खुला उल्लंघन है। केवल 44 फीसदी कैदियों को ही अपने परिवार से मिलने की इजाजत है। अफसोस की बात तो यह है कि 33 फीसदी कैदियों को तो यह भी नहीं पता कि वह अब किस जेल में बन्द हैं जबकि 61 फीसदी कैदियों से तो एनजीओ भी नहीं मिलती हैं। वहीं एक अहम बात यह भी है कि ऐसे 50 फीसदी मुसस्लम कैदियों की 2012-13 में रिहाई होने वाली है जिनके लिए महाराष्ट्र अल्पसंख्यक आयोग के पास पुनर्वास की कोई योजना नहीं है। सर्वे करने वाले प्रोफेसर विजय राघवन और प्रोफेसर डॉ. रौशनी नायर के अनुसार इनमें से ज्यादातर झूठे मामलों में फंसाए गए मुसलमान हैं या फिर ऐसे हैं जिन्होंने पुलिस अत्याचार के खिलाफ उच्चाधिकारियों से शिकायत कर रखी थी।
लोक जन शक्ति पार्टी महासचिव अब्दुल खालिक द्वारा दिल्ली के पब्लिक स्कूलों में मुस्लिम बच्चों को दाखिला नहीं देने पर 4 फरवरी 2012 को अपनी एक रिपोर्ट में सरकार का ध्यान दिलाया था जिस पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने संज्ञान लेते हुए मामले को देखने के लिए आयोग सदस्या सैयदा इमाम को जिम्मेदारी दी थी। दैनिक`जदीद मेल' में मोहम्मद अहमद खां की रिपोर्ट के अनुसार आयोग सदस्या और मुख्यमंत्री दिल्ली के इस बाबत हुई बैठक में कोई नतीजा नहीं निकला। सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री ने इस पूरे मामले पर अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार इस मामले में बेबस है और वह किसी तरह का दबाव पब्लिक स्कूलों पर नहीं बना सकती। पाठकों को बता दें कि स्कूलों में भेदभाव से जुड़े मामलों का जवाब देने में भी मुख्यमंत्री को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने अपने जवाब में असली सवाल का जवाब देने के बजाय अपनी सरकार का अल्पसंख्यकों से संबंधित उन उपलब्धियों को उजागर करने की कोशिश की थी जो कागजों में हैं, लेकिन जमीन पर उनका कोई वजूद नहीं है।
`ममता के बंगाल में मुसलमान' के शीर्षक से साप्ताहिक `चौथी दुनिया' में डॉ. कमर तबरेज ने अपने लेख में लिखा है कि ममता बनर्जी ने 75 हजार मुस्लिम बच्चों को एजुकेशन लोन और छात्रवृत्ति देने का ऐलान तो किया ही साथ उन्होंने पिछड़े वर्गों के विकास मंत्री ओपेन्दर नाथ बिस्वास को गत महीने यह जिम्मेदारी सौंपी है कि वह एक महीने के अन्दर सरकार को रिपोर्ट दें कि मुस्लिम ओबीसी के अन्दर ऐसे कितने लोग हैं, जिनको सरकारी नौकरियों में पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया जा सकता है। ममता का तर्प है कि बुद्धादीप भट्टाचार्य की पिछली सरकार ने मुस्लिम ओबीसी के लिए 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा तो कर दी लेकिन कानूनी तौर पर उसे क्रियान्वित करना मुश्किल है। इसीलिए उन्होंने अपने मंत्री को मुस्लिम ओबीसी की सही स्थिति जानने के लिए सर्वे कराने का आदेश दिया है। यहां कांग्रेस और ममता बनर्जी के काम करने के तरीकों में फर्प स्पष्ट नजर आता है। कांग्रेस पांच राज्यों के चुनाव पूर्व 4.5 फीसदी मुस्लिम आरक्षण की घोषणा यह जानते हुए की कि धर्म के नाम पर मुसलमानों को आरक्षण दिया ही नहीं जा सकता। कांग्रेस को ममता बनर्जी से सबक लेने की जरूरत है।
दैनिक `राष्ट्रीय सहारा' में मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार सईद हमीद `सीआईए आधुनिक युग की ईस्ट इंडिया कम्पनी' के शीर्षक से लिखे अपने लेख में लिखते हैं। बड़ी विचित्र बात है कि जो देश आतंकवाद के खिलाफ जंग और मादक पदार्थों के खिलाफ जंग के नाम पर बड़ी-बड़ी मुहिम चला रहे हैं और पूरी दुनिया को अपनी फौजों के जूतों तले रौंद रहे हैं, उन पर ही यह आरोप बार-बार लगाया जा रहा है कि दुनिया में आतंक और मादक पदार्थों की स्मगलिंग के वही जिम्मेदार हैं जो ग्लोबलाइजेशन, वर्ल्ड आर्डर और अन्य नामों की आड़ लेकर एक बार फिर पूरी दुनिया पर अपना शासन स्थापित करना चाहते हैं। यह और बात है कि कल तक इस टोले का नेतृत्व ब्रिटिश के हाथों में था और अब अमेरिका  इस टोले का नेता बन चुका है। अफगानिस्तान आज निशाना क्यों बना हुआ है। तालिबान की मुल्ला उमर की सरकार का दोष यह था कि उसने अफगास्तान में मादक पदार्थों की पैदावार बिल्कुल खत्म कर दी थी तो क्या इस काली कमाई से तबाही, बर्बादी फैलाने की इजाजत दी जा सकती है?

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