Sunday, November 18, 2012

क्या भाजपा व एनडीए संप्रग सरकार का विकल्प है?


अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका `न्यूज वीक' द्वारा `मुस्लिम गुस्से' को कवर स्टोरी बनाने पर साप्ताहिक `नई दुनिया' ने इसे मुसलमानों के जख्मों पर नमक छिड़कने वाला बताते हुए लिखा है कि मुस्लिम गुस्सा एक ऐसी स्टोरी है जिसका मकसद पत्रिका को दोबारा खड़ा करना था, लेकिन न्यूज वीक का दांव उलटा पड़ गया। ब्रिटिश अखबार `द टेलीग्राफ' के अनुसार हरसी अली की लेखनी घटिया पत्रकारिता का नमूना है, जिसने अतीत की एक बड़ी पत्रिका को सस्ता और घटिया बना दिया है। हर कोई हैरान है कि जब पैगम्बर इस्लाम पर निंदनीय फिल्म की भर्त्सना हो रही है और इस्लामी जगत जल रहा है तो हरसी अली इसको झूठा गुस्सा कह रही हैं। इस्लाम के खिलाफ जहर उगल रही सोमाली महिला का कहना है कि हम लोगों को सिर उठाकर जीना होगा। एक अधर्मी काली महिला बता रही है कि हम मुस्लिम गुस्से का किस तरह मुकाबला कर सकते हैं और उसे किस तरह खत्म करें। हरसी अली को अपनी इस्लाम दुश्मनी के कारण उसके बाप ने उसे अपने से अलग कर दिया है। हरसी अली को हालैंड की नागरिकता गंवानी पड़ी और वह अब इस्लाम दुश्मनी पर रोटियां तोड़ रही हैं। दुनिया में बहुसंख्यक ने मुस्लिम गुस्से को निरस्त कर दिया है जिसके कारण पत्रिका फिर उसी अंधकार में गिर गई है। हरसी अली तो पहले से ही गिरी हुई थीं इसलिए उनके बारे में कुछ कहना बेकार है।
`पुलिस बल में मुस्लिमों की नुमाइंदगी' के शीर्षक से हैदराबाद से प्रकाशित दैनिक`ऐतमाद' ने अपने सम्पादकीय में चर्चा करते हुए लिखा है कि नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ने गत ढाई महीने पूर्व देश में पुलिस बल में मुसलमानों की संख्या के बारे में जो आंकड़े जारी किए थे उनसे पता चलता है कि देश में मुस्लिम पुलिस अधिकारियों की संख्या कुछ ज्यादा नहीं है। आंकड़ों के अनुसार देश में कुल 16 लाख 80 हजार पुलिस बल में मुस्लिम पुलिस अधिकारियों की संख्या एक लाख 8 हजार 389 से अधिक नहीं है अर्थात् कुल पुलिस बल में मुसलमान केवल 6 फीसदी हैं। जहां तक नई दिल्ली का मामला है, दिल्ली पुलिस में सिर्प 1521 अधिकारी हैं जबकि कुल पुलिस बल 57,117 है अर्थात् दिल्ली में मुस्लिम आबादी के अनुपात में केवल 2 फीसदी नुमाइंदगी है। यह शुभ समाचार है कि केंद्र सरकार ने अर्ध सैनिक बलों में अल्पसंख्यक समुदाय को उचित नुमाइंदगी देने के लिए विशेष मुहिम चलाने का फैसला किया है। इसके अलावा सरकार सुरक्षाबलों में महिलाओं की संख्या भी बढ़ा रही है। अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों को इसके लिए स्वयं को तैयार करना पड़ेगा।
`क्या भाजपा व एनडीए संप्रग सरकार का विकल्प है' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय में लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी की तीन दिवसीय राष्ट्रीय परिषद की बैठक के आखिरी दिन पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने कार्यकर्ताओं को खरी-खरी सुनाई। कर्नाटक सहित भाजपा शासित कुछ राज्यों में भ्रष्टाचार के आरोपों की पृष्ठभूमि में आडवाणी ने कहा कि हमारे नेताओं, मंत्रियों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, कार्यकर्ताओं को ऐसा आचरण करना चाहिए कि जब कभी भी लोग भाजपा के बारे में सोचें तो उन्हें भाजपा के इस यूएसपी की याद आए। यदि आडवाणी एनडीए का कुनबा बढ़ाने की कवायद करते हैं तो कुछ लोग इसे भाजपा की आंतरिक राजनीति और पीएम पद की दावेदारी से जोड़ देते हैं। यह इसलिए भी हो रहा है कि आगामी चुनाव में नेतृत्व का सवाल अभी भी उलझा हुआ है। नरेन्द्र मोदी को पार्टी कार्यकर्ताओं का व्यापक समर्थन प्राप्त है उन्हें केंद्रीय नेतृत्व पर काबिज नेता दिल्ली नहीं आने देना चाहते। बहाना यह है कि इससे गठबंधन साथी बिदक जाएंगे। ऐसे में धर्मनिरपेक्षता के आग्रह को मोदी का पत्ता साफ करने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। वैसे अभी तक एनडीए कांग्रेस नीत गठबंधन सरकार के विकल्प के रूप में खुद को स्वीकार नहीं करा सका है।
दिल्ली वक्फ बोर्ड निकाह पंजीकृत करने के फैसले पर एक बार फिर उलेमा ने इसका विरोध कर इसे निरस्त किया है। दैनिक `राष्ट्रीय सहारा' ने दारुल उलूम देवबंद और मजाहिरुल उलूम सहारनपुर सहित अनेक बुद्धिजीवियों के विचारों को प्रमुखता से प्रकाशित किया है। दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासमी ने कहा कि शरीअत में तो निकाह को लिखित रूप में लिखने पर पाबंदी नहीं लगाई है लेकिन पंजीकृत से निकाह में पेचीदगी और परेशानी खड़ी हो जाएगी। जामिया मजाहिरुल उलूम सहारनपुर के नाजिम मौलाना सैयद सुलेमान मजाहिरी ने दारुल उलूम के दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए कहा कि दिल्ली वक्फ बोर्ड और इस तरह के अन्य संस्थानों की ओर निकाह अनिवार्य पंजीकृत को गैर जरूरी समझता है। मदरसा मजाहिरुल उलूम वक्फ सहारनपुर के मोहतमिम मौलाना मोहम्मद सईदी कहते हैं कि पंजीकृत का कानून एक तरह से शरीअत में हस्तक्षेप का दरवाजा खोलता है जो मुसलमानों को स्वीकार नहीं है। इंस्टीट्यूट ऑफ मुस्लिम लॉ के डायरेक्टर अनवर अली एडवोकेट कहते हैं कि हिन्दुस्तान के कई राज्यों में निकाह का पंजीकरण कानूनी और अनिवार्य है जैसे कश्मीर, गोवा, असम और केरल आदि। कुछ इस्लामी देशों में भी निकाह का पंजीकरण होता है फिर आखिर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीअत उलेमा और जमाअत इस्लामी इस पर क्यों जोर देती हैं कि पंजीकरण न हो। तहरीक वहदत इस्लामी के अमीर मौलाना अताऊर रहमान वजदी कहते हैं कि काजी द्वारा जो निकाहनामा भरा जाता है वह अपने आप में एक तरह पंजीकरण है, इसको ही काफी माना जाए। कानूनी तौर पर पंजीकरण सिर दर्द साबित होगा।
`बंगलादेशी घुसपैठ के नाम पर समाज का सांप्रदायिक विभाजन' के शीर्षक से साप्ताहिक`अल-जमीअत' में भारतीय दर्शन के विशेषज्ञ मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी अपने विशेष लेख में लिखते हैं कि बंगलादेशी घुसपैठ और इस्लामी राज्य की स्थापना का शिगूफा बेवक्त और गैर जरूरी तौर से छेड़ा गया है, इसका मकसद इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं है कि देश के गैर मुस्लिम समुदाय के मन में भय एवं हिंसा पैदा करके अपना सियासी उल्लू सीधा किया जाए।
इस मसले का यह पहलू भी विचारणीय है कि मीडिया के एक ताकतवर ग्रुप की इस तरह के प्रोपेगंडा  को जबरदस्त समर्थन प्राप्त है। वह बिना किसी सबूत के बंगलादेशी घुसपैठ के प्रचार में लग जाता है और असल मसले से किसी न किसी तरह से ध्यान हटाने में कामयाब हो जाता है, अब यही देखिए कि असम में बोडो और गैर बोडो के बीच जिन बातों को लेकर टकराव हुआ, उन पर बहस करने के बजाय बड़ी चालाकी से बंगलादेशी घुसपैठ का प्रोपेगंडा सबसे ऊपर ले आया गया और बोडो काउंसिल में गैर बोडो का उचित प्रतिनिधित्व और केंद्र का इससे संधि के सही गलत होने का मामला पीछे चला गया। भाजपा और आरएसएस वाले इसकी ओर से ध्यान हटाने में मीडिया के सहयोग से सफल नजर आते हैं। उन्हें मालूम है कि यदि संधि की बात पर चर्चा होगी तो यह सवाल सामने आएगा कि आखिर भाजपा अगुवाई वाली एनडीए सरकार के गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने किस उद्देश्य के तहत बोडो ग्रुप से संधि करके इसे 70 फीसदी गैर बोडो पर लाद दिया है।

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