Sunday, November 18, 2012

`राबर्ट वाड्रा को आरोपों का सामना करना चाहिए'


प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी की दावेदारी को संघ द्वारा निरस्त किए जाने पर दैनिक `हमारा समाज' ने अपने संपादकीय में लिखा है कि राजग की भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर अन्य सभी पार्टियों को उस समय बड़ी ताकत मिली जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया। संघ का मानना है कि यदि नरेन्द्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री के लिए आगे बढ़ाया जाता है तो भाजपा और संघ को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। भाजपा जिन मुद्दों  पर यूपीए और कांग्रेस को घेरती चली आई है और पूरे देश में यूपीए और कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर जनता को अपने पक्ष में करती रही है यह सभी मुद्दे मोदी के कारण खत्म हो जाएंगे और कांग्रेस एवं यूपीए को यह कहने का मौका मिल जाएगा। भाजपा ने नरेन्द्र मोदी का नाम पेश किया है वह गुजरात में मुस्लिम नरसंहार का जिम्मेदार है। इससे केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि बहुत से हिन्दू वोटों का भी नुकसान होगा एवं मोदी के नाम पर एनडीए पार्टियां भी सहमत नहीं हैं। पर्दे के पीछे के इस खेल में एलके आडवाणी का हाथ साफ नजर आ रहा है क्योंकि वह एक लम्बे समय से प्रधानमंत्री पद पर पहुंचने की आशा रखते हैं लेकिन जिन सीढ़ियों पर चढ़कर वह प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं वह सीढ़ियां उन्हें आसमान से जमीन पर ला सकती हैं। नरेन्द्र मोदी भी आडवाणी के इस खेल को समझते होंगे। देखना यह है कि संघ के दरबार से मायूस होकर नरेन्द्र मोदी मौन धारण करते हैं या अपने ही लोगों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाते हैं।
तालिबान द्वारा 14 साल की मासूम लड़की मलाला पर हमले की कड़े शब्दों में भर्त्सना एवं निंदा करते हुए काजी हुसैन अहमद ने साप्ताहिक `खबरदार' में लिखा है कि यह तो मानवता, इस्लामी शिक्षा और पख्तून परम्परा के भी खिलाफ है। मलाला पर हमले का अफसोसजनक पहलू यह है कि इसका पुण्य खुद हत्यारे ले रहे हैं। मासूम बच्ची को तीन साल पहले जब इसकी उम्र 11 साल थी, बीबीसी के एक नुमाइंदे ने एक वीडियो डिसमिस्ड स्कूल द्वारा दुनिया से परिचित कराया। यह वीडियो न्यूयार्प टाइम्स की वेबसाइट पर देखी जा सकती है जिसमें वह फर्जी दृश्य भी शामिल है कि एक व्यक्ति को भीड़ के सामने उलटा लिटाकर कोड़े मारे जा रहे हैं और यह मशहूर कर दिया कि तालिबानी औरतों को कोड़े मार रहे हैं। इस बच्ची के मुंह में यह बात डाल दी गई और यह न्यूज पर इंटरव्यू में प्रसारित हुआ कि बेनजीर, बापा खान और ओबामा मेरे आइडियल हैं। बेनजीर और बापा खान की हद तक तो ठीक है कि हमारे देश में बहुत से लोग उनके भक्त हैं लेकिन सवात की एक मासूम बच्ची के मुंह में यह बात डालना कि ओबामा मेरे आइडियल हैं किन तत्वों का कारनामा है जबकि ओबामा के हाथों अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों जगह बहुत से लोग मारे जा रहे हैं जिसमें मासूम बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं। जहां तक तालिबान का मामला है उन्हें किसी ने इस्लाम के प्रतिनिधित्व के तौर पर स्वीकार नहीं किया है और न ही उनके सारे कामों का समर्थन किसी विख्यात दीनी जमाअत ने स्वीकार किया है।
`राबर्ट वाड्रा को आरोपों का सामना करना चाहिए' के शीर्षक से साप्ताहिक `चौथी दुनिया' के संपादक संतोष भारतीय ने अपने संपादकीय में लिखा है कि शायद राबर्ट वाड्रा को इस बात पर भरोसा है कि जनता उनके जुर्म की सारी कहानियां जानने के बाद भी चुन ली। राबर्ट वाड्रा ने अपनी वर्तमान बीवी प्रियंका गांधी  का भी नुकसान कर दिया है। प्रियंका गांधी अपने आगे राबर्ट वाड्रा शब्द लगाने से हिचकिचाती हैं लेकिन राबर्ट वाड्रा इस शब्द को बहुत लोकप्रिय करना चाहते हैं। लोगों को लगने लगा है कि शायद प्रियंका गांधी का दिमाग अपने भाई राहुल गांधी की तरह तेज और तकनीक अपने पति राबर्ट वाड्रा से ज्यादा फुल प्रूफ है। लोगों का इस तरह सोचना प्रियंका गांधी के लिए शुभ संकेत नहीं है। राबर्ट वाड्रा को कुछ अन्य सवालों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। उदाहरण के तौर पर वह क्या हालात थे जिनकी वजह से उनके पति रायबरेली से उनकी सास के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गए और वह भी भाजपा के टिकट पर। नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बावजूद अंतिम समय में चुनाव लड़ने से पीछे क्यों हट गए और इसके कुछ महीनों के अंदर उन्होंने आत्महत्या क्यों की? इसी तरह क्यों इनके भाई ने आत्महत्या की? इनकी बहन की मौत एक सड़क दुर्घटना में हुई और इनकी बहन के कई दोस्तों ने भी आत्महत्या कर ली? यह सभी संयोग हो सकते हैं, लेकिन इन संयोग के पीछे यदि कोई कहानी है तो वह कहानी अब राबर्ट वाड्रा के लिए परेशानियां पैदा कर सकती है।
`मुस्लिम पिछड़ेपन को दूर करने के लिए नौकरियों में आरक्षण' से दैनिक `अखबारे मशरिक' में आरिफ अजीज ने अपने लेख में लिखा है कि 1980 में इंदिरा गांधी ने मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों की स्थिति जानने के लिए डॉ. गोपाल सिंह की अगुवाई में एक हाई पावर पैनल कायम किया था जिसने अपनी रिपोर्ट में नौकरियों में आबादी के अनुपात में आरक्षण की सिफारिश की थी और पुलिस बल में भी आरक्षण पर जोर दिया था। सरकार जंगलों में रहने वाले भेल और आदिवासियों के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए प्रयासरत है लेकिन न तो मुसलमानों को स्वयं फिक्र है और न सरकार को। आपातकाल के समय इंदिरा गांधी मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए तैयार हो गई थीं लेकिन जिन लोगों के सुपुर्द यह काम किया गया वह उसको आगे नहीं बढ़ा सके। 1984 के शुरू में असम के मुख्यमंत्री-हिथेश्वर सैकिया अपने राज्य के मुसलमानों को आबादी के अनुपात में 24 फीसदी आरक्षण देने पर तैयार हो गए थे लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ, न ही इसके बाद बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री भगवत झा आजाद की यह घोषणा व्यावहारिक रूप ले सकी कि सरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यकों के लिए दस फीसदी कोटा निर्धारित किया जाएगा। इसके लिए जरूरी था कि बिहार के सभी मुसलमानों को पिछड़ा मान लिया जाता, क्योंकि संविधान में ऐसी किसी पहल की गुंजाइश नहीं थी लेकिन यह काम बाद की राजीव सरकार चाहती तो कर सकती थी उसको संसद में बहुमत प्राप्त था।
`सुभाष पार्प में अवैध निर्माण पर हाई कोर्ट का साहसी, सराहनीय फैसला' के शीर्षक से दैनिक `प्रताप' में संपादक अनिल नरेन्द्र ने अपने संपादकीय में लिखा है कि दिल्ली हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच  के जस्टिस संजय किशन, जस्टिस एमएल मेहता और जस्टिस राजीव शंकधर ने एक साहसी फैसला किया। मामला था दिल्ली के सुभाष पार्प में अवैध मस्जिद बनाने का। उल्लेखनीय है कि मेट्रो लाइन निर्माण के दौरान सुभाष पार्प में एक दीवार मिली थी, जिसे एक समुदाय ने कथित रूप से अकबराबादी मस्जिद का अवशेष बताते हुए वहां रातोंरात निर्माण कर दिया। इस मुद्दे को लेकर कुछ संगठन दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचे और इस अवैध निर्माण को हटाने की मांग की। हाई कोर्ट ने 30 जुलाई को पुलिस को यह अवैध निर्माण हटाने के लिए एमसीडी को फोर्स उपलब्ध करवाने का निर्देश दिया था।
बेंच ने स्पष्ट किया कि यदि उक्त स्थल पर सर्वे में मस्जिद हे की पुष्टि होती है तो भी वह संरक्षित इमारत होगी और ऐसे में वहां नमाज अदा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसे में वहां नमाज अदा करने का सवाल ही नहीं है। हम हाई कोर्ट की पीठ का स्वागत करते हैं। सवाल एक अवैध निर्माण का ही नहीं बल्कि कानून की धज्जियां उड़ाने का भी है। ऐसे में रातोंरात कई पूजा स्थल खड़े हो जाएंगे। अब देखना यह है कि जो साहस हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच ने दिखाया है, क्या दिल्ली पुलिस भी ऐसा ही साहस दिखाएगी?

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