Sunday, November 18, 2012

क्या है इस्लामोफोबिया, कौन है इसके पीछे?


इस्लामोफोबिया पर विश्वस्तरीय चर्चा के बीच साप्ताहिक `नई दुनिया' ने `क्या है इस्लामोफोबिया? कौन है इसके पीछे?' के शीर्षक से एक विशेष अंक प्रकाशित किया है। इस अंक में उपरोक्त विषय पर विस्तृत चर्चा की गई है। वास्तव में 1990 के बाद इस्लामोफोबिया के ऊपर उठने का सबसे अहम कारण सोवियत यूनियन का बिखरना है। सोवियत यूनियन बिखर गया तो पश्चिम ने समझ लिया कि अब मुकाबला मुसलमानों से होगा और इस्लाम ही सबसे बड़ा खतरा होगा। पश्चिम ने इस्लाम को निशाना बनाया। इसी दौरान सोवियत यूनियन के जिहाद में ओसामा बिन लादेन आ चुका था। बाद में अमेरिका के खिलाफ उठ खड़ा हुआ और पश्चिम की इस्लाम दुश्मनी के लिए ओसामा बिन लादेन सबसे बड़ा बहाना बना। सभ्यताओं के टकराव के विषय पर बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों और समीक्षाकारों ने उस समय यह दावा किया था कि इस्लाम और पश्चिम में खूनी टकराव बाकी है। इसे प्रचारित किया गया और इस पर अरबों डालर खर्च किए गए। जब इंटरनेट का दौर आया तो इंटरनेट पर इस्लामोफोबिया की जंग और ज्यादा बढ़ी। पश्चिम में इस्लामोफोबिया की मुहिम वास्तव में मुसलमानों की नई पीढ़ी की राह में रुकावटें पैदा करने की कोशिश है। 1997 में ब्रिटिश सरकार ने एक आयोग गठित किया जिसने ब्रिटिश मुसलमानों और इस्लामोफोबिया पर रिपोर्ट दी। रिपोर्ट के अनुसार इस्लामोफोबिया सब के लिए खतरनाक और ब्रिटेन के लिए चैलेंज है। इसके चलते ब्रिटेन में मुसलमानों को विभिन्न क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। साफ जाहिर होता है कि इस्लामोफोबिया के पीछे कोई ग्रुप नहीं बल्कि सरकारें भी हैं, अन्यथा आयोग ने जिन बातों का जिक्र वास्तविकता की श्रेणी में किया है वह अलग होतीं। आज इस्लामोफोबिया, ब्रिटेन हो अमेरिका या फ्रांस सबके लिए खतरनाक है, यह सोच और दृष्टिकोण दुनिया को एक बड़ी जंग की ओर ले जा रहा है।
विख्यात अंग्रेजी साहित्यकार एवं नोबल सरकार पुरस्कार से सम्मानित वीएस नायपाल को मुंबई में लेटरेरी फेस्टिवल में `लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड' दिए जाने के खिलाफ मशहूर ड्रामा निगार और हिदायत कार गिरीश कर्नाड के मोर्चा खोलने और अवार्ड दिए जाने के विरोध के चलते जिस तरह पूरा मामला बहस में आ गया है उस पर चर्चा करते हुए दैनिक `इंकलाब'  के सम्पादक शमीम तारिक ने अपने विशेष लेख `नायपाल और गिरीश कर्नाड' के शीर्षक से लिखा है कि इस बहस से हटकर कि अंग्रेजी उपन्यासकार वीएस नायपाल ने क्या लिखा और उनकी लेखनी में कौन से लेखनी फिक्शन की श्रेणी में आती है और कौन सी नहीं? या ड्रामा  निगार और हिदायत कार गिरीश कर्नाड ने लेटरेरी फेस्टिवल में नायपाल की जो आलोचना की वह किस तरह की थी, इस सवाल पर विचार किया जाना जरूरी है कि भारतीय सभ्यता को मुसलमानों ने कुछ दिया है या उसे बर्बाद किया है? गिरीश कर्नाड का दृष्टिकोण स्पष्ट है कि `नायपाल विदेशी हैं और उन्हें अपनी बात कहने की पूरी आजादी है लेकिन एक ऐसे व्यक्ति को पुरस्कार देने के लिए आखिर क्यों चुना गया जो भारतीय मुसलमानों पर धावा बोलने वाला, हमला करने वाला, लुटेरा, लूटमार करने वाला कहता है।' गिरीश कर्नाड ने बहुत सही कहा है कि पुरस्कार हासिल करने का मतलब यह नहीं है कि नायपाल को कुछ भी बोलने का हक हासिल हो गया हो।
`कुत्तों पर हुए हमलों के पीछे भी आतंकियों का हाथ' के शीर्षक से दैनिक `सियासी तकदीर' में `खबरों की खबर' स्तम्भ में जावेद कमर ने लिखा है कि अखबारी खबरों के मुताबिक गत कुछ महीने में मल्लापुरम (केरल) जिले में दर्जनों कुत्तों को निशाना बनाया गया है जिनमें से कुछ मर भी चुके हैं। इस मामले में पुलिस ने 6 मामले दर्ज किए हैं और 100 से अधिक लोगों से पूछताछ भी की है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इंटेलीजेंस ब्यूरो ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि इन कार्यवाहियों में एक विशेष धार्मिक कट्टरपंथियों का हाथ हो सकता है। ताजा खबर यह है कि केरल पुलिस अब इसी रिपोर्ट की रोशनी में अपनी जांच आगे बढ़ा रही है। कुत्तों पर हमलों की घटनाएं ज्यादातर मुस्लिम बहुल क्षेत्र मल्लापुरम के गांव और कस्बों में हुई हैं। लेकिन पिछले दिनों इसी तरह की घटनाएं कोजीकोड और पुलकड़ जिलों में भी हुई हैं। तमिलनाडु की सीमा पर स्थित वयानंद जिले में ऐसे कम से कम 30 कुत्ते मिले हैं जिनकी गर्दनों पर तलवार के गहरे जख्म हैं। इसी बुनियाद पर यह खबरें फैलाई जा रही हैं कि केरल तमिलनाडु की सीमा पर जो घने जंगल हैं उनमें कहीं कट्टरपंथियों का प्रशिक्षण शिविर चल रहा है। तर्प दिया जा रहा है कि कुत्तों पर हमले प्रशिक्षण लेने वाले युवाओं से कराए जा रहे हैं ताकि उनके अंदर से भय निकल जाए और प्रशिक्षण के बाद जब वह बाहर निकलें तो उन्हें किसी की जान लेने में किसी प्रकार का संकोच न हो।
गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी द्वारा बरेलवी मसलक के लोगों की बैठक करने पर दैनिक `हमारा समाज' में अमीर सलाम खां ने लिखा है कि यह मुसलमानों को कमजोर करने के लिए भाजपा का नया हथकंडा है, मसलक के नाम पर भिड़ाने की कोशिश है। सूत्रों के मुताबिक गुजरात के शहर गांधी नगर में बरेलवी मसलक के लगभग 45 विशिष्ठ व्यक्तियों के साथ नरेन्द्र मोदी ने एक अत्यंत गोपनीय बैठक की। इस बैठक में गुजरात के अतिरिक्त पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान से भी उलेमा, सज्जादा नशीन और दरगाहों के जिम्मेदारों को बुलाया गया था। लगभग डेढ़ घंटे तक यह बैठक चली। मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि बरेलवी पंत ही देश का वफादार है जिसकी कांग्रेस की ओर से लगातार अनदेखी हो रही है लेकिन अब  ऐसा नहीं होगा। बैठक के बाद ज्यादातर लोग इस बात को पचा नहीं पाए और एक बड़ी संख्या ने यह भांप लिया कि यह एजेंडा कहां से और क्यों लाया गया है। यह मुसलमानों को बांटने का वही एजेंडा है जो आरएसएस का है। बताया जाता है कि गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार मोदी अपने घर लगी आग से बहुत परेशान हैं जिसकी भरपाई वह मुसलमानों को बांट कर करना चाहते हैं।
उत्तर प्रदेश में आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तार मुस्लिम युवकों को छोड़े जाने के फैसले पर दैनिक `प्रताप' के सम्पादक अनिल नरेन्द्र ने अपने सम्पादकीय `किस कानून के तहत वापस लिए जा रहे हैं आतंकियों के मुकदमें' शीर्षक से लिखा है कि सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा है कि आदेश देकर अखिलेश सरकार ने मुसलमानों के साथ किए गए चुनावी वादे को पूरा किया है। इनमें से ज्यादातर आरोपियों को 2007 में वाराणसी, गोरखपुर में हुए बम विस्फोट, रामपुर स्थित सीआरपीएफ कैम्प एवं लखनऊ, बाराबंकी और फैजाबाद में आतंकी हमले की साजिश में गिरफ्तार किया गया था। इनमें से कइयों ने अपनी गिरफ्तारी के औचित्य और स्थान को अदालत में चुनौती दे रखी है।
अखिलेश सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है। राजनीतिक दृष्टि से भी और न्यायिक दृष्टि से भी। भाजपा ने इस आदेश को वोट बैंक का तुष्टीकरण का उदाहरण करार देते हुए कहा कि यह कदम कानून व्यवस्था का गला घोंटने जैसा है। उधर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रामपुर में सीआरपीएफ कैम्प पर हमला करने वाले आतंकियों से मुकदमा वापस लिए जाने पर प्रदेश सरकार से पूछा है कि वह किस कानून के तहत मुकदमे वापस ले रही है? अखिलेश सरकार के इस फैसले से सुरक्षा बलों के मनोबल पर असर पड़ सकता है।

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