Monday, February 7, 2011

`जेपीसी और आरएसएस का आतंकवाद सिक्के के दो रुख'

बीते सप्ताह जहां 2जी स्पेक्ट्रम और महंगाई का मुद्दा छाया रहा वहां अजमेर बम धमाके के आरोपी स्वामी असीमानंद का इकबालिया बयान सभी मुद्दों पर हावी पड़ गया और इकबालिया बयान के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा का सिलसिला शुरू हो गया है। पेश है इस बाबत उर्दू अखबारों की राय।

हैदराबाद से प्रकाशित दैनिक `एतमाद' ने `जेपीसी और आरएसएस का आतंकवाद एक सिक्के के दो रुख' के शीर्षक से लिखा है। आरएसएस का आतंकवाद जैसे-जैसे बेनकाब होने लगा है और आतंकवाद में लिप्त इसके नेता गण इकबाले जुर्म करने लगे हैं। 2जी स्पेक्ट्रम की ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी (जेपीसी) द्वारा कराने की जांच के लिए भाजपा की मांग जोर पकड़ती जा रही है। महसूस यह होता है कि आरएसएस का आतंकवाद और जेपीसी के लिए भाजपा की मांग में कोई आपसी संबंध है। आरएसएस नेताओं को जो आतंकवाद में लिप्त हैं। भाजपा कानून के शिकंजे से छुटकारा दिलाना चाहती हैं ताकि `हिन्दू राष्ट्रभक्त' आरएसएस का शरीर जो खून से भरा है है उसे दूध से नहलाया जा सके। गोहाटी में भाजपा कार्यकारिणी में पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने जिस भाषा का प्रयोग किया है वह यह जाहिर करता है कि आरएसएस को आतंकवाद के आरोप से मुक्ति दिलाने के लिए भाजपा सरकार से सौदेबाजी करना चाहती है। असम में गडकरी ने मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस धमाकों के बारे में असीमानंद के रहस्योद्घाटन को सोनिया और राहुल गांधी के संरक्षण में एक षड्यंत्र करार दिया और कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से ध्यान हटाने के लिए हिन्दू आतंकवाद का हव्वा खड़ा किया जा रहा है और जो भी हो रहा है, वह सोनिया और राहुल गांधी का षड्यंत्र है।

`हिन्दू आतंकवाद का नेटवर्प' के तहत दैनिक `सियासत' ने लिखा है। भारत में हिन्दू आतंकवाद के विषय पर संघ परिवार ने खुद को पाक साफ और राष्ट्रीय होने का दावा किया था। संघ परिवार के सभी छोटे-बड़े कार्यकर्ता भारत को अपनी जागीर समझते हुए अन्य नागरिकों विशेषकर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हुए अपना दबदबा कायम करने की कोशिश की। सरकार की आंख में धूल झोंक कर आतंकवादी हमलों का आरोप अल्पसंख्यकों के सिर थोपने में सफल हुआ। इस घटना से कई मुस्लिम बच्चे जेल में हैं और उनका भविष्य अंधकारमय बन चुका है। मक्का मस्जिद बम धमाके में खुफिया एजेंसियों की कार्यवाहियों ने संघ परिवार के काले चेहरे को बेनकाब कर दिया है। मक्का मस्जिद के आरोपी असीमानंद के इकबाले जुर्म के साथ यह सच्चाई भी उजागर हुई है कि आतंकवाद गतिविधियों के पीछे संघ परिवार का बड़ा नेटवर्प काम कर रहा है। देश में आतंकवाद फैलाने और भय के साथ-साथ मुसलमानों को संदिग्ध बनाने के लिए एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत नेटवर्प सक्रिय है। मस्जिस्ट्रेट के सामने भारतीय दंड संहिता की धारा 164 के तहत कलमबंद बयान में असीमानंद ने संघ परिवार के हिन्दुत्व आतंकवादी नेटवर्प को बेनकाब किया है तो सरकार का यह दायिव है कि इस मामले में पूरी जांच कर संघ परिवार पर पाबंदी लगाए।

सह रोजा `दावत' ने `आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने के नाम पर गिरफ्तारियों की हककीत' में लिखा है। देश की खुफिया एजेंसियों की तफ्तीश से यह राज् ा खुलने लगा है कि गत कुछ वर्ष से देश के अंदर जो आतंकी गतिविधियां हुई हैं उन सबके पीछे सलमानों का हाथ नहीं था। न केवल उन्हें रिहा कर दिया जाना चाहिए बल्कि इनकी इज्जत पर जो दाग लगा है उसको धोने की भी व्यवस्था की जानी चाहिए एवं उन्हें उचित मुआवजा भी दिया जाना चाहिए ताकि वहअपना भविष्य संवार सकें। `खबरो नजर' के अपने स्तंभ में परवाज रहमानी ने `दो बिन्दु विचारणीय हैं' के शीर्षक से लिखा है। असीमानंद के इस बयान की मूल प्रति मीडिया को पुलिस ने उपलबध कराई है, अर्थात् मीडिया से स्वामी की बात सीधे तौर पर नहीं हुई है अन्यथा शायद और भी बहुत विस्तृत विवरण सामने आता। लेकिन जो कुछ बताया गया है वह भी अत्यंत महत्वपूर्ण और कई पहलुओं से विचारणीय है। दो बिन्दु विशेष तौर पर विचारणीय हैं। (1) कलीम का प्रशंसीय कार्य जो निश्चिय ही उसके मुस्लिम पारिवारिक पृष्ठभूमि का नतीजा था। इस कार्य ने स्वामी के सामने दावते हक (सत्यता) का काम किया। (2) एक कट्टर स्वामी का हृदय जिससे यह हकीकत उजागर थी कि हर व्यक्ति के हृदय में कहीं न कहीं मानवता, शराफत और अल्लाह से डर छिपा होता है जो किसी भी घटना के नतीजे में उभकर सामने आ सकती है। अभी पूरे विश्वास से कुछ नहीं कहा जा सकता कि स्वामी असीमानंद का यह इकबालिया बयान आने वाले दिनों में क्या रूप लेगा, क्या रंग लाएगा। हृदय स्वामी को अपने बया न पर कायम रहने देगा या आंतरिक दबाव अपना काम कर जाएगा। इसके बावजूद (1) यह घटना अपनी तरह की पहली घटना नहीं है। (2) `मुस्लिम आतंकवाद' के शोर में यह बयान बहरहाल अच्छा काम करेगा चाहे इसे दबाने या नजरंदाज करने की कितनी ही कोशिशें की जाएं। स्वामी के वकील ने बयान का खंडन करने की कोशिश की है लेकिन खंडन से सच्चाई का पहलू निकल रहा है।

दिल्ली, कोलकाता और रांची से एक साथ प्रकाशित होने वाले दैनिक `अखबारे मशरिफ' में डॉ. परवेज अहमद `असीमानंद का इकबालिया जुर्म ः वास्तविकता का द्योतक' में लिखते हैं। पाप का घड़ा भर कर फूट पड़ता है अब पता नहीं आतंकवाद के मामलों में गिरफ्तार असीमानंद के इकबालिया बयान से हिन्दू आतंकवादी और उसके संरक्षणकर्ताओं के पापों का घड़ा भर चुका है या सेकुलरिज्म के नाम पर सांप्रदायिकता के पापों को दूध पिलाने वालों का घड़ा फूट रहा है लेकिन यह तो तय है कि भगवा आतंकवादी और आरएसएस के संबंध में स्वामी असीमानंद के इकबालिया बयान से खुल रहा है कि हमलों के लिए इन्द्रsश कुमार प्रचारकों का चयन और आर्थिक सहायता उपलब्ध कराता था। सेकुलरिज्म के हंगामे के दौरान अक्सर सुनता रहा हूं कि सरकार सांप्रदायिकता को बर्दाश्त नहीं करेगी लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है।

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