Wednesday, February 9, 2011

मोदी को क्लीन चिट से इंसाफ की आशा धूमिल

गुजरात एसआईटी द्वारा गुजरात मुख्यमंत्री को क्लीन चिट दिए जाने, Šजी स्पेक्ट्रम घोटाले पर संसद में गतिरोध, फ्रांस राष्ट्रपति की भारत यात्रा, सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के बारे में व्यक्त की गई टिप्पणी, भारत-पाक संबंध, नीति का निर्धारण जैसे अन्य मुद्दों सहित विकिलीक्स के गोपनीय दस्तावेजों को उजागर करने एवं बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जीत पर समीक्षा का सिलसिला जारी है। `हमारा समाज' ने गुजरात मुख्यमंत्री को क्लीन चिट दिए जाने पर चर्चा करते हुए लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम कर रही एसआईटी ने गुजरात मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को 2002 की गोधरा घटना के बाद हुए दंगों में जिस तरह क्लीन चिट दी है उससे इंसाफपसंद लोगों को बड़ा धक्का लगा है। नरेन्द्र मोदी के आदेश पर दंगों के दौरान हजारों मुसलमानों का कत्ल हुआ, इससे पूरी दुनिया परिचित है। इसके बावजूद एसआईटी ने उन्हें क्लीन चिट देकर उन लाखों शांतिप्रिय लोगों के मुंह पर ताला लगा दिया जो गोधरा घटना के बाद हुए मुसलमानों के नरसंहार का दोषी नरेन्द्र मोदी को करार देते हैं। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जिसे `मौत का सौदागर' कहा, ऐसे व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट की अगुवाई में काम कर रही एसआईटी ने क्लीन चिट दी है। जिस पर कई तरह के सवालात खड़े हो रहे हैं। गुजरात के पूर्व डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस आरबी श्री कुमार के आरोप से इसकी शुरुआत हो चुकी है कि गुजरात दंगों की तफ्तीश कर रही विशेष टीम (एसआईटी) वास्तव में गुजरात पुलिस की बी टीम के तौर पर काम कर रही है। अखबार लिखता है कि मोदी को क्लीन चिट मिलने के बाद अब यह आशा भी धूमिल हो गई कि गुजरात दंगों के निर्दोषों को इंसाफ मिल सकेगा।
Šजी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच जेपीसी से कराने की मांग पर जिस तरह संसद में गतिरोध है उसको लेकर पक्ष, विपक्ष एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। दैनिक मुनसिफ लिखता है कि इस दौरान जनता की समस्याओं और संसद के दैनिक खर्चा की हो रही तबाही का किसी को भी ख्याल तक नहीं है और इस भारी रकम का भरपायी भी जनता से की जाएगी। यह तो किसी शिक्षित देश के जनप्रतिनिधियों का व्यवहार नहीं हो सकता। देश की परम्परा ही निराली है जो नेता जितना बड़ा घोटाला करता वह उतना ही सीना ठोंक कर चलता है। सभी तरह के कानूनी प्रतिबंध और सजा केवल चोर-उच्चकों के लिए रह गई हैं जो कि संविधान की मर्यादा के खिलाफ ही नहीं बल्कि संविधान का उल्लंघन है। `अखबारें मशरिक' ने फ्रांस राष्ट्रपति के भारत आगमन पर लिखा है कि फ्रांस के राष्ट्रपति सर्कोजी ने वादा किया है कि फ्रांस भारत के संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्य की उम्मीदवारी का हर तरह से समर्थन करेगा। जहां तक संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का सवाल है तो परिषद के पांच में से चार सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ने पहले ही भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का समर्थन कर रखा है केवल चीन को इस मामले में संकोच है जो भारत को अपना प्रतिद्वंद्वी समझता है। बहरहाल जब संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में सुधार का एजेंडा आगे बढ़ाया जाएगा और यह चारों देश भारत के समर्थन में उठ खड़े होंगे तो चीन का विरोध निप्रभावी हो जाएगा। ओबामा की तरह सर्कोजी ने भी भारत का समर्थन कर इस काज को आगे बढ़ाया है। भविष्य में हमें अच्छी उम्मीद रखनी चाहिए।
विकिलीक्स द्वारा गोपनीय दस्तावेजों को उजागर करने की समीक्षा करते हुए `सह रोजा दावत' ने लिखा है कि इन रहस्योद्घाटन को एक सप्ताह हो गया लेकिन अभी तक किसी भी मुस्लिम देश अथवा शासक की ओर से दूसरे देश अथवा शासक के खालफ ऐसी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है जिससे कहा जा सके कि विकिलीक्स का तार निशाने पर लग गया और इसने संबंध खराब करने का अपना काम कर दिया। जैसा कि सभी ने देखा कि अमेरिका ने पहले इराक पर ईरान को आपस में लड़ाकर उन्हें कमजोर किया, फिर इराक द्वारा कुवैत पर हमला कर खुद ही इस पर धावा बोल दिया और देखते ही देखते सभी खाड़ी देशों को अपनी चपेट में कर लिया। यही खेल उसने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में खेला और अब ईरान एवं शान और पर्दों के पीछे इंडोनेशिया एवं मलेशिया को भी अपने निशाने पर रख लिया। इसलिए विकिलीक्स के रहस्योद्घाटन की यह कहकर अनदेखी नहीं की जा सकती कि इसमें सभी अहम देशों विशेषकर अमेरिका को निशाना बनाया गया है बल्कि यह मुस्लिम देशों और शासकों के खिलाफ योजनाबद्ध षड्यंत्र है और इस रहस्योद्घाटन में अन्य देशों को इसलिए शामिल किया गया है ताकि मुस्लिम देश भ्रम में रहें। इसलिए सचेत रहने की जरूरत अमेरिका एवं पश्चिमी देशों को नहीं है बल्कि मुस्लिम देशों को है जिनके खिलाफ नए खेल के लिए भरपूर सामान उपलब्ध करा दिया गया है। बनारस के बम धमाकों पर `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' ने लिखा है कि हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि इन धमाकों के पीछे वही तत्व हैं जो पहले भी देश में इस प्रकार के बम धमाके करा के सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़काने का खेल खेलते आए हैं। यह एक अटल सच्चाई है कि हर बम धमाके के बाद इंडियन मुजाहिद्दीन अथवा लश्कर-ए-तोयबा और सिमी का नाम लिया गया लेकिन बाद में इनमें से कुछ के पीछे अभिनव भारत और आरएसएस अथवा इसी की शाखाओं के कार्यकर्ताओं का हाथ निकला, हैदराबाद से अजमेर और मालेगांव से सूरत तक इनके खिलाफ बेशुमार सुबूत हैं जिनका खंडन नहीं किया जा सकता। यह सोच कर एक ओर से आंखें फेर लेना कि किसी मंदिर अथवा घाट पर बम धमाके होते हैं तो यह मुजाहिद्दीन की कार्यवाही होगी या किसी मस्जिद एवं गुरुद्वारा में आतंकवाद के लिए एक विशेष समुदाय के लोग ही जिम्मेदार हो सकते हैं, किसी तरह सही नहीं है। 2006 में बनारस के संकट मोचन मंदिर और कैंट रेलवे स्टेशन पर होने वाले बम धमाकों का सुराग आज तक नहीं मिल सका। यह सोच बेबुनियाद नहीं है कि एक बार फिर इंडियन मुजाहिद्दीन की आड़ में विशेष समुदाय के लोगों की शामत आएगी, पुलिस और खुफिया एजेंसियों का कहर इन बेगुनाहों पर टूटेगा और ऊपरी तौर पर देखने से बम धमाकों को अंजाम देने वालों का मकसद भी यही है। सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट पर की गई टिप्पणी पर `सहरोजा दावत' ने लिखा है कि इससे लॉ कमीशन की रिपोर्ट प्रमाणित हो गई जिसमें कहा गया है कि बेलाग इंसाफ को लोग तरसते जा रहे हैं और वह उनसे दूर होता जा रहा है। कमीशन ने अपनी 230वीं रिपोर्ट में अदालतों की गतिविधियों की समीक्षा कर वर्तमान स्थिति को उजागर करने के लिए एक विशेष शब्दावली का इस्तेमाल किया है। इसमें एक विशेष शब्दावली अंकल जज की है। कमीशन का भी यही कहना है कि यह अंकल जज दो ही काम जानते हैं या तो अपने करीबी रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाना चाहते हैं या अपने विरोधियों को सबक सिखाना जानते हैं। निश्चय ही दोनों स्थिति में पद का गलत इस्तेमाल हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नोटिस लिया है तो कोई गलत नहीं किया है।

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