Monday, February 14, 2011

अल्ला के दरबार में पांच सितारा होटल

किसी उपासना स्थल का निर्माण एवं उसकी देखभाल और वहां आने वाले आगंतुकों का विशेष रूप से ध्यान रखना हर लिहाज से सराहनीय कार्य है। यदि वह उपासना स्थल केंद्रीय दर्जा रखता हो तो उसका महत्व और भी बढ़ जाता है। ऐसे में उपासना स्थल की देखभाल करने वालों से यह आशा की जाती है कि वे निःस्वार्थ भाव से यह काम करें। कोई ऐसा काम न करें जिससे उसकी अध्यात्मिकता और पवित्रता पर आंच आए। बात चाहे जिस धर्म अथवा संप्रदाय की हो, हर जगह यही भावना पाई जाती है। इस मामले में किसी भी धर्म में कोई भेद-भाव नहीं है। पवित्रता के प्रभावित होते ही आध्यात्मिकता का पहलू भी कमजोर पड़ने लगता है जो किसी भी लिहाज से एक सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है।
इस परिप्रेक्ष्य में सऊदी अरब के शहर मक्का में स्थित ‘खाना-ए-काबा’ (अल्लाह का घर) और उसकी देखभाल करने वालों की सक्रियता से इसकी महत्ता का अनुमान भली भांति लगाया जा सकता है। मुसलमानों के लिए यह स्थल बहुत महत्वपूर्ण है। इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक स्तंभ के तौर पर इसका उल्लेख मिलता है। हर साल अरबी महीने जिलहिज्जा में यहां हज संपन्न होता है। विश्व भर से मुसलमान यहां आकर हज करते हैं और कुर्बानी देते हैं। आर्थिक रूप से संपन्न हर मुसलमान के लिए जीवन में एक बार उस घर तक जाना अनिवार्य है। काबा भौगोलिक दृष्टि से दुनिया के मध्य में स्थित है। हज के दिनों को छोड़कर बाकी दिनों में विश्व भर से मुसलमान उमरा करने यहां आते हैं। इस लिहाज से पूरे साल ही यहां चहलपहल और गहमागहमी रहती है।
हज के लिए हर साल लगभग 25 लाख व्यक्ति काबा में हाजिरी के लिए उपस्थित होते हैं। अकेले भारत से एक लाख से अधिक लोग हज कमेटी के माध्यम से हज के लिए जाते हैं। जबकि प्राइवेट आपरेटरों के माध्यम से जाने वाले लोगों की संख्या इसके अतिरिक्त है जो लगभग 50 हजार के करीब है। सऊदी सरकार ने हज के दौरान जहां हाजी आते हैं, बढ़ती भीड़ को देखते हुए उन स्थानों का विस्तार किया है। यहां तक कि हाजियों के रहने के लिए पुराने भवनों को तोड़कर नए भवन बनाए जा रहे हैं। इससे हाजियों को और भी आसानी हो रही है। लेकिन इसी के साथ काबा के चारों तरफ जिस तरह ऊंचे टावर वाले होटल और भवन बनाए जा रहे हैं, वह आम मुसलमानों के लिए चिंता का विषय है। यह होटल साधारण होटल नहीं है बल्कि इनका स्तर फाइव स्टार होटल से भी ज्यादा अर्थात फाइव प्लस है। ये होटल सभी जन सुविधाओं से लैस पश्चिमी तर्ज पर आधारित हैं। जिनमें पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति का जलवा है। खाना-ए-काबा जो जमीन पर है, चारांे तरफ से घिरी इमारतों के बीच कैसा लगेगा और क्या उसकी पवित्रता बाकी रहेगी! इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। गत कुछ दशकों से काबा स्थित मक्का शहर में एक नया इनफ्रास्ट्रक्चर परवान चढ़ रहा है, जिसमें होटल से लेकर शापिंग मॉल आदि सभी हैं। एक प्रकार से यहां हज इंडस्ट्री वजूद में आ रही है। और जब किसी जगह इंडस्ट्री वजूद में आती है अथवा कोई वस्तु बाजार में चल पड़ती है तो एक नया वर्ग वजूद में आता है। दोनों ही परिस्थितियों में मुनाफा कमाने एवं कारोबारी मानसिकता का पैदा होना आवश्यक है। सच तो यह है कि कारोबारी मानसिकता ही चीजों को व्यापारी शक्ल प्रदान करती है।
सऊदी सरकार जो हाजियों की सेवा तत्परता से करती है। बदलते परिदृश्य में उसकी सोच भी बदलती जा रही है। निःस्वार्थ सेवा भाव की जगह व्यापारी मानसिकता बढ़ती जा रही है। इसके लिए नए-नए उपाय और योजनाएं बनाई जा रही हैं। काबा के चारों तरफ जिस तेजी से ऊंची-ऊंची इमारतें और होटल बनाए जा रहे हैं। वह आम हाजियों की पहुंच से दूर होंगे, क्योंकि इन होटलों में वही हाजी ठहर सकेगा जो अपनी जेब ढीली करने के लिए तैयार होंगे। जबकि आम हाजी जिसका अपना एक सीमित बजट है, वह यहां ठहर नहीं सकता। हज कमेटी ऑफ इंडिया के वाइस चेयरमैन हसन अहमद ने भी इस बात को स्पष्ट किया कि हज के दौरान सऊदी अरब में निवास अब महंगा हो गया है। यदि हाजी काबा से करीब रहना चाहे तो उसे और ज्यादा खर्च करने के लिए तैयार रहना चाहिए। सऊदी सरकार ने ऐसा कर उस मानसिकता को भुनाने की कोशिश की है, जो काबा से करीब ठहरना चाहते हैं। इससे जहां उनकी मनोकामना पूरी होगी वहीं सऊदी सरकार की भी आमदनी बढ़ेगी। काबा के चारों तरफ बन रहे होटल और भवन आम लोगों के नहीं हैं। उन्हें इस क्षेत्र में किसी तरह के निर्माण कार्य करने की इजाजत भी नहीं है। यह अधिकार सिर्फ शाही परिवार को है। वे ही इन होटलों अथवा भवनों के मालिक हैं।
जहां तक खाना-ए-काबा का मामला है। इसकी मर्यादा के चलते ही इसके ऊपर से जहाज नहीं गुजरता है। लेकिन जब आसमान छूती इमारतें इसे चारों तरफ से घेर लेंगी तो क्या इसकी मर्यादा बचेगी, यह सवाल मुसलमानों को परेशानी किए हुए है। काबा जिसे हरम भी कहते हैं, उसके करीब एक 595 मीटर लंबी इमारत है जो 1952 फुट ऊंचे टावर की शक्ल का है और सबसे ऊंची है। इसी पर दुनिया की सबसे बड़ी घड़ी मक्का रायल क्लॉक टावर लगी है। दूसरे टॉवर का काम भी जोरों पर है। अगर यह जिस दिन पूरी तरह तैयार हो गया उस दिन काबा पूरी तरह ढक जाएगा।
काबा का मान-सम्मान हर मुसलमान के लिए सर्वोपरि है। इसे भंग करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती, चाहे वह व्यक्तिगत स्तर पर हो अथवा सामूहिक स्तर पर या किसी सरकार द्वारा हो। हाजियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सऊदी सरकार का दायित्व है कि वह इनके लिए नए भवन व होटल बनाए। लेकिन वह काबा से 100-150 किलोमीटर दूर हो।
व्यापारी मानसिकता केवल शासक वर्ग में ही नहीं है, अब इसके कीटाणु नागरिकों में भी फैल गए हैं। काबा में नमाज पढ़ने की इच्छा हर मुसलमान की होती है। जब वह वहां पहुंच जाता है तो उसकी कोशिश होती है कि आगे की पंक्ति में बैठे। इसके लिए कुछ सऊदी नागरिकों ने अपने लोगों को लगा दिया कि वह आगे की पंक्तियों में जा-ए-नमाज (जमीन पर बिछा कर नमाज पढ़ने वाला कपड़े का टुकड़ा) बिछा कर बैठ जाए। जब कोई संपन्न हाजी उस व्यक्ति को इस जगह के बदले कुछ रुपए दे देता तो वह जगह उसके हवाले कर दी जाती। यह एक कारोबार की शक्ल में जारी था। पांच समय की नमाज एवं इतने बडे़ काबा में जहां एक साथ एक लाख से अधिक लोग नमाज पढ़ सकते हैं, जगह घेर कर पैसा वसूल करना अच्छा व्यापार था। काबा में केवल हज के समय ही भीड़ नहीं रहती है बल्कि वहां तो साल के 12 महीने ही भीड़-भाड़ और चहल-पहल रहती है। इसका रहस्योद्घाटन उस समय हुआ जब कुछ लोगों ने इस तरह पैसा वसूल करने की शिकायत की। जिसके बाद सरकार सक्रिय हुई और उन्होंने इसका संज्ञान लिया। लेकिन सवाल यह है कि जब व्यापारी सोच की मानसिकता सत्ता वर्ग में आ गई है तो आम नागरिक उससे कैसे बच सकेगा!
बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब व्यवस्था को पुण्य कार्य समझते हुए भारतीय मुसलमानों द्वारा सऊदी अरब में निवास के लिए भवन निःशुल्क उपलब्ध कराए जाते थे। अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार कई भारतीय मुसलमानों ने इस तरह की व्यवस्था कर रखी थी, जिन्हें रूबात कहा जाता है। अब इन पुराने भवनों को तोड़कर नया बनाया जा रहा है। लेकिन इसमें भारतीय मुसलमानों की भूमिका नहीं के बराबर है। यह ज्यादातर शाही परिवार के सदस्यों की मिल्कियत है। ये उन्हें किराए पर देने के लिए अपने एजेंट रखते हैं जो विभिन्न देशों से आने वाले हाजियों को इन भवनों में रहने के लिए तैयार करते हैं, जिस पर उसे कमीशन मिलता है। हज कमेटी ऑफ इंडिया पर भी यह आरोप है कि वह शाही परिवार के सदस्यों की कम सुविधा वाली भवनों को ज्यादा किराए पर हाजियों के लिए लेती है। साथ ही हाजियों से जिस श्रेणी का किराया वसूल किया जाता है, उन्हें वहां न ठहरा कर अत्यंत घटिया मकान में ठहराया जाता है। इस संबंध में हज प्रतिनिधि मंडल में गए हैदराबाद के जस्टिस फखरूद्दीन ने अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए इसकी जांच की मांग की है। हज के दौरान आम तौर पर हाजियों के निवास को लेकर अक्सर शिकायतें आती हैं, जिसकी कोई सुनवाई नहीं होती है। उसे यह कह कर ठंडा करने की कोशिश की जाती है कि हज एक तरह का परिश्रम है, इसके रास्ते में जो परेशानी एवं कठिनाई आए उसे हंसते हुए बर्दाश्त करना चाहिए। इस तरह अपने दायित्वों का निर्वाह करने के बजाए हाजियों की भावनाओं का शोषण किया जाता है।

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