Monday, February 7, 2011

करकरे की हत्या, सच्चाई सामने आनी चाहिए

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह द्वारा हेमंत करकरे से मौत से पूर्व बात करने सहित अमेरिकी दबाव में संधि एवं चीनी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा, आशाएं और जैसे अनेक मुद्दों को उर्दू अखबारों ने चर्चा का विषय बनाया है।

दैनिक `हिन्दुस्तान एक्सप्रेस' ने `दिग्विजय सिंह की कथनी और खंडन' के तहत लिखा है कि जिस तरह यह चर्चा का विषय बना हुआ है वह बहुत अफसोसजनक है। उन्होंने चंद दिन पूर्व नई दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में एक सम्मेलन में भाषण देते हुए यह रहस्योद्घाटन किया था कि हेमंत करकरे ने अपने कत्ल से सिर्प दो घंटे पूर्व फोन पर उनसे बात की थी और बताया था कि वह बेहद परेशान हैं और गंभीर परिणाम भुगतने की धमकियां दी जा रही हैं। उन्होंने कहा था कि षड्यंत्र करना और झूठे प्रचार करना आरएसएस के लोगों की पुरानी आदत है। यह किताब के लोकार्पण पर आयोजित गोष्ठी थी और जिस किताब का उन्होंने विमोचन किया उसका नाम है। `आरएसएस की साजिश 26/11?' उनका यह बयान अगले दिन केवल उर्दू समाचार पत्रों में स्थान पा सका था लेकिन उसके चार दिन बाद जब एक अंग्रेजी दैनिक ने इनके इस बयान को पहली खबर बना दी तो हंगामा हो गया और अब कांग्रेस यह कह कर अपना दामन बचा रही है कि यह उनका व्यक्तिगत बयान है इससे जार्टी का कुछ लेना-देना नहीं है। वहीं स्वयं दिग्विजय सिंह सफाई दे रहे हैं कि मैंने यह कब कहा कि करकरे के कत्ल में उन ताकतों का हाथ है जो मालेगांव बम धमाके की तहकीकात से परेशान थे। मैंने तो केवल यह कहा है कि करकरे से इस दिन मेरी बात हुई थी और वह बहुत परेशान थे। वह अब इससे भी इंकार कर रहे हैं कि करकरे ने उनको फोन किया था। कह रहे हैं कि मैंने करकरे को फोन किया था। सवाल यह है कि जब अपनी बातचीत के बारे में इतने दिनों तक मौन रहे, कभी जरूरत नहीं समझी कि इसका रहस्योद्घाटन करें तो फिर इतने सनसनी अंदाज में आज इसका जिक्र करने की जरूरत क्यों पेश आ गई? वह अब कह रहे हैं कि न ही इस वारदात समझा जाए? क्या है जो 6 दिसम्बर के दिन इस कार्यक्रम में भारी संख्या में मौजूद थे।

`हेमंत करकरे की मौत' पर दैनिक `सियासत' ने अपने संपादकीय में लिखा है कि मुंबई हमलों के समय करकरे की मौत से ही कई सवाल उठने लगे थे। यह सवाल किया जा रहा था कि इतने गंभीर आतंकवादी हमलों के स्थान पर करकरे और उनके साथी किसी सूचना के बिना अचानक क्यों पहुंच गए? उनकी जैकेट भी लापता हो गई थी। यह वह सवालात थे जो उस समय उठे थे लेकिन तब उनको जुबान नहीं मिल सकी। अब कांग्रेस के एक जिम्मेदार महासचिव दिग्विजय सिंह ने स्वयं यह संदेह व्यक्त किया है कि हिन्दू आतंकवादी संगठन करकरे की मौत के जिम्मेदार हो सकते हैं क्योंकि इन संगठनों से खतरे की बात स्वयं करकरे ने बताई थी। दिग्विजय सिंह के रहस्योद्घाटन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस समय दुनिया भर में तहलका मचाने वाले वीकीलेक्स के रहस्योद्घाटन से यह सच्चाई सामने आई है कि कांग्रेस पार्टी ने मुंबई में हुए आतंकवाद हमलों के बाद धार्मिक राजनीति की है। जबकि दिग्विजय सिंह की तरह वीकीलेक्स दस्तावेजों में किए गए रहस्योद्घाटन को भी बेबुनियाद करार देते हुए उन्हें नजर अंदाज किया जा रहा है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि इस पूरे घटना की सच्चाई को सारी हिन्दुस्तानी कौम के सामने लाया जाए। सच्चाई को सामने लाने के लिए केंद्र और महाराष्ट्र दोनों ही सरकारों को इन आरोपों की छानबीन का आदेश देना चाहिए।

दैनिक `उर्दू टाइम्स' ने `हेमंत करकरे पर राजनीति अफसोसनाक' में लिखा है कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि करकरे ऐसे ईमानदार अधिकारी साबित हुए हैं जिन्होंने बम धमाके के आरोपियों को बेनकाब किया और पहली बार हिन्दू आतंकवादियों को मालेगांव बम धमाके में लिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार किया था जिसके कारण भगवा संगठन हेमंत करकरे की मुखालिफ हो गई। यदि हेमंत करकरे के दिमाग में हिन्दू-मुस्लिम की भावना होती तो यह संभव नहीं था। वह एक सेकुलर और मजबूत इरादों के मालिक थे। उन्होंने कभी हिन्दू बनकर काम नहीं किया बल्कि एक सच्चे और ईमानदार अधिकारी के तौर पर काम किया और इसी में है वह सही नहीं है। नेताओं को इस तरह की बयानबाजी से करना चाहिए ताकि आम आदमी के शरीर पर लगे जख्म ठीक हो सकें।

`अमेरिका के दबाव में संधि' के तहत दैनिक `सहाफत' ने लिखा है कि मीडिया विशेषकर अंग्रेजी मीडिया को जब यह पता चलता है कि कोई काम अमेरिकी दबाव में आकर किया गया है तो उसकी तेजी खत्म हो जाती है, तेवर नरम पड़ जाते हैं और हाथ-पांव ठंडे पड़ जाते हैं। यही कारण है कि तुर्पमानिस्तान से गैस पाइप लाइन पर कोई चर्चा तो दूर उसे कोई महत्व भी देने की जरूरत नहीं समझी गई। यदि यही संधि ईरान से हुई होती तो चारों तरफ चेतावनी और खतरे वाले भोंपू बजने लगते। अब एक और खबर आई है जो इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसका प्रभाव छोटे-छोटे उद्योगों पर भी पड़ सकता है। भारत में बहुत से ऐसे छोटे-छोटे उद्योग हैं जिनमें कोयले का इस्तेमाल किया जाता है और कोयले के इस्तेमाल की वजह से बड़ी संख्या में कार्बन डाई आक्साइड निकलती है। इसी आधार पर भारत इस संधि पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर रहा था। पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश इसी आश्वासन के साथ कानकुन गए थे लेकिन वहां पहुंचकर उन्होंने भाषण के बीच अपना लहजा बदल दिया जिससे अंदाजा हुआ कि उन्होंने अमेरिकी दबाव कुबूल कर लिया है। राष्ट्रपति बराक ओबामा शुरू से कह रहे थे कि भारत को इस संधि पर हस्ताक्षर करना ही होगा। जयराम रमेश के बदले लहजे पर यहां के राजनैतिक हलकों और मीडिया में काफी हंगामा हुआ, लेकिन अब वही समाचार पत्र जो कल तक ऐसी किसी संधि के खिलाफ थे, अब अपने संपादकीय धारा हमें यह समझा रहे हैं कि स्वास्थ्य और पर्यावरण आर्थिक उन्नति से ज्यादा अहम है।

इसलिए यदि यह संधि हो जाती है तो हमें इस संधि का विरोध नहीं करना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि पर्यावरण की बेहतरी हम सबके हित में है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि कोयले की मदद से चलने वाले उद्योगों को विकल्प दिया जाए, अन्यथा यह उद्योग दम तोड़ देंगे। शायद यही कारण है कि स्टाक एक्सचेंज के विशेषज्ञ सुझाव देने लगे हैं कि छोटे उद्योगों के शयेर न खरीदे जाएं।

`राष्ट्रीय सहारा' ने चीनी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा ः आशा एवं संभावनाएं में लिखा है कि भारत-चीन संबंधों के लिए कभी गर्म और कभी नरम की शब्दावली का इस्तेमाल किया जाए तो गलत न होगा। चीनी प्रधानमंत्री 400 व्यापारियों का एक बड़ा प्रतिनिधि मंडल अपने साथ लेकर आ रहे हैं और वह भारत-चीन कंपनियों के बीच बिजली से लेकर दवाओं के विभिन्न क्षेत्रों में 20 अरब डालर के 45 से अधिक व्यापारिक समझौते के इच्छुक हैं। दोनों देशों के नेतृत्व को जनता के संपर्प को बढ़ावा देना चाहिए और सीमा विवाद के स्वीकार हल तलाश करने में गंभीरतापूरक कोशिश करनी चाहिए।

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